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Rishu

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Rishu

तुम तो पढ़ सुन कर आए हो,
और हमने सालों झेला है,
तुम तो दर्शक बन देखे हो,
हमने मैदान यह खेला है,

तुम आसमान में बैठे हो,
धरती की तुमको खबर कहाँ,
हमको पूछो क्या बीतती है,
किस हद तक जहर यह फैला है,

तुम दर्द कहाँ से समझोगे,
तुम तो दोझख से दूर बसों,
हमसे पूछो हमने धोया,
कितना ही दाग यह मैला है,

हमसे समझो क्या चुभता है,
विश्वास जो चकनाचूर हुए
कितने थक गए,है हार गए,
कितना भारी यह थैला है,

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Rishu

हम धन्य हुए,हम धन्य हुए,
खुद शिव ने नज़र जो डाली है,
तब से तो रोज़ ही होली है
भई अपनी रोज़ दीवाली है,

अपनी खुशियों का अंत नही,
है रोज़ नया उत्सव अब तो,
दुख की दुनिया की खबर नही,
खुद की जब होश संभाली है,

अजी छोड़ दिया,सब भूल गए,
कांटे देकर,हो फूल गए,
जीवन मधुवन अब महक गया,
हरियाली अब हर डाली है,

हम धन्य हुए,हम धन्य हुए,
खुद शिव बगिया के माली है,
राह स्वर्ग की उसने खोली है,
अब अपनी रोज़ दीवाली है,

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Rishu

ਉਹ ਕਿਹੜਾ ਦੁਖ ਜੋ ਦੇਖਿਆ ਨਾ
ਉਹ ਕਿਹੜੀ ਸੱਟ ਜੋ ਝੱਲੀ ਨ੍ਹੀ,
ਉਹ ਕਿਹੜੀ ਪੀੜ ਜੋ ਸਹੀ ਨਹੀਂ,
ਜਿਸਨੇ ਰਫਤਾਰ ਏ ਠੱਲੀ ਨ੍ਹੀ,

ਅਸੀਂ ਸਬ ਮੈਦਾਨ ਸੀ ਹਾਰ ਗਏ,
ਉਹ ਕਿਹੜੀ ਚੀਜ਼ ਜੋ ਖੋਈ ਨਾ
ਉਹ ਕਿਹੜਾ ਦਿਨ,ਜੋ ਸੁੱਕਾ ਸੀ,
ਜਿਸ ਦਿਨ ਇਹ ਅੱਖਾਂ ਰੋਈ ਨਾ,

ਉਹ ਕੌਨ ਸੀ, ਛਦਾ ਰੂਹ ਨੂੰ ਜੋ,
ਉਹ ਕੌਨ ਸੀ,ਜਿਸਨੇ ਛੱਡਿਆ ਨ੍ਹੀ,
ਉਹ ਕੌਨ ਸੀ,ਨਾਲ ਜੋ ਖੜ ਜਾਂਦਾ,
ਜਿਸਨੇ ਇਸ ਦਿਲ ਜੋ ਕੱਢੇਆ ਨ੍ਹੀ,

ਹਰ ਥਾ ਤੋਂ ਧੱਕੇ ਖਾ ਖਾ ਕੇ,
ਹਰ ਇਕ ਨੂੰ ਲਾਰੇ ਲਾ ਲਾ ਕੇ,
ਅਸੀਂ ਪੁੱਜੇ, ਜਿਥੇ ਪਹੁੰਚਣਾ ਸੀ,
ਜਿੰਨੂ ਸਦਿਆ ਸੀ ਮੈਂ ਗਾ ਗਾ ਕੇ,

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Rishu

......

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Rishu

ਕਿਸੇ ਮੋਹਰ ਲਾਈ ਬੇਕਾਰ ਦੀ ਸੀ,ਕੋਈ ਬੁੱਝਦਾ ਦੀਵਾ ਦੱਸਦਾ ਸੀ,
ਕੋਈ ਹਸਦਾ ਸੀ ਔਕਾਤ ਤੇ ਜੀ,ਕੋਈ ਸਟੈਂਡਰਡ ਨੀਵਾਂ ਦੱਸਦਾ ਸੀ,

ਉਂਗਲਾਂ ਵੀ ਥੋਕ ਚ ਚੁਕਦੇ ਦੀ,ਜਿਸ ਪਾਸੇ ਜਿਸ ਥਾ  ਰੁਕਦੇ ਸੀ,
ਹਰ ਪਾਸੇ ਦਰਦ ਦੇ ਨਾਕੇ ਸੀ,ਜਿਸ ਪਾਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਨੱਸਦਾ ਸੀ,

ਇੰਜ ਕਰਦੇ ਸਾਲੋ ਸਾਲ ਗਏ,ਕਿੰਝ ਦੱਸਾਂ ਸੌਖਾ ਨਹੀਂ ਇਹਨਾਂ,
ਅੰਦਰ ਬਾਹਰ ਹਰ ਪਾਸਿਓਂ ਦੁਖ,ਦਿਲ ਵਿਚ ਹੀ ਸੀਵਾ ਵਸਦਾ ਸੀ,

ਪਰ ਤੁਰਦੇ ਰਹੇ,ਅਸੀਂ ਤੁਰਦੇ ਰਹੇ,ਨਾ ਨਾ ਨਾ ਸੁਣ ਅਸੀਂ ਮੁੜਦੇ ਰਹੇ,
ਮੇਹਨਤ ਕਰ ਕਰ ਇੰਝ ਖੁਦ ਤੇ ਜੀ,ਤੇ ਹੰਜੂਆ ਵਿਚ ਵੀ ਹੱਸਦਾ ਸੀ,

ਪਰ ਚੰਗਾ, ਜੋ ਵੀ ਹੋਇਆ ਸੀ,ਜੋ ਵੀ ਮਿਲਿਆ ਤੇ ਖੋਇਆ ਸੀ,
ਮਾਲਿਕ ਦੀ ਮੇਹਰ ਬਚਾ ਬੈਠੀ,ਵਰਨਾ ਆਪਣੇ ਨਾ ਬੱਸ ਦਾ ਸੀ,

ਰੱਬ ਦੇਖਦਾ ਏ,ਰੱਬ ਸੁਣਦਾ ਏ,ਪਹਿਲਾਂ ਹਉਮੈ ਨੂੰ ਮੁੰਨਦਾ ਏ,
ਅਸੀਂ ਪਹੁੰਚ ਠਿਕਾਣੇ ਆਪਣੇ ਗਏ,ਸਾਰਾ ਮਸਲਾ ਇਕ ਝੱਸ ਦਾ ਸੀ

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Rishu

जब भी मैं कभी थक जाता हूँ
चिक चिक से मैं पक जाता हूँ,
फिर भागता हूँ इस शोर से मैं,
और शरण मौन की जाता हूँ,

जब भी बोझिल मन हो जाता,
विवेक कभी जब सो जाता,
निर्णय शक्ति हो क्षीण कभी,
निज सत्ता के गुण गाता हूँ,

जब भी मनोबल गिरता जाता,
तब मौन में ही स्थिरता पाता,
अपनी खुराक तो शांति है,
ना मिलने पर घबराता हूँ,

जब भी मैं कभी थक जाता हूँ
बाहर से जब पक जाता हूँ,
अंदर की और ही भागता हूँ,
और शरण मौन की जाता हूँ,

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Rishu

तुम देखो तो औकात मेरी
बिंदी से ज्यादा कुछ भी ना,
निर्भर हूँ दाता मालिक पर,
और आपके सामने तुच्छ भी ना,

जरा जानो तो मेरी हस्ती,
टीले पर बनी लकीरे हैं,
है पल का नही भरोसा भी,
तभी शुक्र शुक्र कर जी रहे हैं,

जरा देखो तो क्या पाया है,
खाली वीरान सा पाओगे,
मुश्किल से अंत मे खुशियां है,
गर हर कोने में जाओगे,

तुम देखो ना  हालात मेरे,
तुम देखो फिर भी लगा हुआ,
अरसा बीता आराम नही,
तब जाकर थोड़ा सगा हुआ,

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Rishu

बाबा सब कुछ तुमको सौंपा,
मुझपर जो चाहे रंग डालो,
अब हश्र तुम्हारे हाथों में,
जिस मर्ज़ी सांचे में ढालो,

जो गुण भरने वो भर डालो,
मैं याद तुम्हारी में बैठा,
तेरी राह पे चलता जाऊं,
तेरा बच्चा,तुम ही पालो,

इस कद्र याद में खो जाऊं,
दुनिया सारी को भूलूँ मैं,
बिगड़ी को बनाते तुम ही हो,
उलझी जीवन सुलझा डालो,

बाबा मैं तेरा, तू मेरा,
हड्डी हड्डी में रचा हुआ,
मुझमें अब मैं ना बचा हुआ,
कठपुतली अपनी संभालो,

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Rishu

इक तरफ सांच की भट्टी है
इक तरफ झूठ पे झूठ बिके,
अब बोलो किधर को जाऊं मैं
बोलो अब रिशु कहाँ टिके,

बोलो तुम किधर है हल मेरा,
बोलो,सबको है समझ बड़ी,
बोलो सब कहाँ है ठंडक सी,
और कहाँ आग,है हाथ सिके,

बोलो तुम तो सब जानते हो,
बोलो अब चुप क्यों बैठे हो,
बोलो बतलाओ रस्ता अब,
बोलो किस किस को अंत दिखे,

इक तरफ सांच की भट्टी है
इक तरफ झूठ पे झूठ बिके,
अब बोलो किधर को जाऊं मैं
बोलो अब रिशु कहाँ टिके,

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Rishu

उन्हें करने दो तुम मनमर्जी
उनको हर रण में जीतने दो,
चुपचाप रहो तुम झुके रहो,
उनको तुम अति तो करने दो

उन्हें अहं वहम में झूमने दो,
उन्हें गगन धरा पर लाने दो,
करने दो तो विध्वंस जरा,
जी भर कर क्षति तो करने दो,

छू लेने दो हर शिखर को तुम,
नतमस्तक होकर देखो बस,
उन्नत रख तुम विश्वास जरा,
उनको अवनति तो करने दो,

तुम देखना अंत तुम्हारा है,
तुम धीरज नही ही खोना कब,
तुम तो विवेक के साधक हो,
उन्हें अल्पमति को वरने दो,

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