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दिनेश

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दिनेश

White कि मत भागो इतना 
कि दूर निकल जाओ, 
रास्ता फिसलन भरा है 
कहीं फिसल न जाओ।
जा रहे थे परदेश जब 
तो कितना रोये थे याद है?
जाते जाते हमारे दिल में 
कुछ ख्वाब संजोये थे याद है।
रिश्तों की लकीर है झीनी सी 
काश आते उसे मिटा जाते,
या अपनों को संबल देकर 
कुछ अपनापन जता जाते।
घर से तो चले गये कब के 
दिल से न निकल जाओ,
इंतजार करती हैं घर की
बुनियादें आज भी 
एक दफा चले आओ।

©दिनेश
  #sad_shayari दूरियाँ

#sad_shayari दूरियाँ #कविता

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दिनेश

White मीठी बातों में छिपा हुआ 
कोई राज है शायद ,
कि मेरी हालत पर हँसने वाले 
चुप हैं कुछ दिनों से ,
ओह ! मेरी तबियत आजकल 
कुछ नासाज है शायद ।
कि अपनी हसरतों को दिल में 
दबाकर रखो मेरे दोस्त ,
सारा आसमान अपना है 
पर उसमें कुछ बाज है शायद ।
मेरी उम्र की चढ़ाव से उम्र की उतार तक 
तुमने बड़ा साथ दिया ऐ किस्मत !
वक़्त कटता ही नहीं आजकल 
कि वक़्त ही नाराज है शायद।

©दिनेश
  #summer_vacation नाराज वक़्त

#summer_vacation नाराज वक़्त #कविता

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दिनेश

एक ख़ामोशी सी है 
जीवन में,
एक तूफान चल रहा है 
मन में।
सारे अपने पराये हो गये 
क्योंकर ?
बस यही सवाल 
गूंज रहा है जेहन में।
मैं टूटता जा रहा 
हालातों से,
दम घुट रहा मेरा 
इन झूठे जज्बातों से।
"मेरे बुरे वक़्त में 
ये साथ देंगें"
ताउम्र जीता रहा रहा 
मैं इसी भरम में।
एक ख़ामोशी सी है 
जीवन में,
एक तूफान चल रहा है 
मन में।

©दिनेश
  #dawnn मन का तूफान

#dawnn मन का तूफान #कविता

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दिनेश

White मैं बहुत थक गया हूँ माँ 
तुम्हारे आँचल में सोना चाहता हूँ।

छोटे कमरे में माँ न जाने क्यों ?
नींद अब जल्द आती नहीं ,
सोता हूँ तो सोता रहता हूँ माँ 
कोई आवाज़ मुझे जगाती नहीं ।
झाड़ू ,पोछा ,बर्तन , खाना 
बस इतने में माँ पसीना आ जाता है ,
पर इसी बहाने न माँ मुझे
तुम्हारी तरह जीना आ जाता है ।
अब कोई ख्वाहिश नहीं माँ
बस तुम्हारी गोद सा बिछौना चाहता हूं ।

तुम्हारे हाथ का  पकवान माँ
रह रह कर याद आता है ,
पर अब दाल पकती ही नहीं
कभी चावल कच्चा रह जाता है ।
इन  रोटियों की बनावट माँ
मुझे अक्सर चिढ़ाती है ,
अक्सर कपड़े धुलने में माँ
बटन भी टूट जाती है ।
जो नहीं सीखा वो सिखा देना माँ
मै फिर छोटा होना चाहता हूँ।

हमारा भी राज था कभी माँ तुम
रोज राजकुमार सा सजाती थी ,
बस मुंह से निकलते हर चीज
मेरे सामने आ जाती थी ।
मसरूफ हूँ अब मैं इस कदर 
कि पहले सा इतवार नहीं आता ,
माँ तुम क्यों नहीं हो मेरे पास अब
क्या अब मुझ पर प्यार नहीं आता ?
परेशान हूँ मै इस कदर माँ कि
तुम्हारे आगोश में रोना चाहता हूँ ।

मै बहुत थक गया हूँ माँ 
तुम्हारे आँचल में सोना चाहता हूँ ।

©दिनेश
  #mothers_day कुछ पंक्तियाँ माँ के लिए 🙏

#mothers_day कुछ पंक्तियाँ माँ के लिए 🙏 #कविता

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दिनेश


अब हाल अपना हम बतायें किसको ?
इस महफिल में अपने भी पराये से हैं ,
ये दर्द अपना छुपाये किससे, दिखाएँ किसको ?
गैर ग़र रूठ जाये तो कोई बात नहीं मेरे दोस्त, 
पर तुम न माने तो भला हम मनायें किसको ?

©दिनेश
  #Barsaat हाले-दिल

#Barsaat हाले-दिल #कविता

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दिनेश

भाग दौड़ भी जरूरी है साहब 
पर अपनी सेहत और 
अपना घर भी जरूरी है,
इसके बिना मेरे दोस्त 
सारी कायनात अधूरी है।
इस कदर सारी उम्र 
भाग - दौड़ में बिताओगे ,
क्या खोया , क्या पाया 
इसका हिसाब कब लगाओगे ?

©दिनेश
  #sunrisesunset भाग-दौड़

#sunrisesunset भाग-दौड़ #कविता

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दिनेश

White क्या खोया क्या पाया बतलायें किस कदर ?
सारी उम्र का पूरा हिसाब लगायेंगे  किसी दिन।
अभी हँसने की फुर्सत नहीं मुझे मेरे दोस्त ,
पर दिल खोलकर खिलखिलायेगें किसी दिन ।
मेरे होने का तुम्हें अहसास नहीं है अभी, 
यूँ ही तेरी जिन्दगी से चले जायेंगे किसी दिन

©दिनेश
  #Road किसी दिन

#Road किसी दिन #कविता

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दिनेश

उसे अपने वक़्त पर कुछ 
इस कदर गुरूर हो गया ,
कि एक पल में एक उम्र का 
ख्वाब चकनाचूर ही गया ।
जो सोचता था कि वो पूरा घर 
चलाता है ,
आज एक कदम न चल पाया 
इतना मजबूर हो गया ।
कुछ आये अपनापन जताने
उनके आने से आधा दर्द दूर हो गया ,
पर दुख में साथ देती है सिर्फ पत्नी 
ये अहसास जरूर हो गया।

©दिनेश #Raat कोई कारवां कहाँ ?
कोई काफिला कहाँ ?

#Raat कोई कारवां कहाँ ? कोई काफिला कहाँ ?

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दिनेश

उसे अपने वक़्त पर कुछ 
इस कदर गुरूर हो गया ,
कि एक पल में एक उम्र का 
ख्वाब चकनाचूर ही गया ।
जो सोचता था कि वो पूरा घर 
चलाता है ,
आज एक कदम न चल पाया 
इतना मजबूर हो गया ।
कुछ आये अपनापन जताने
उनके आने से आधा दर्द दूर हो गया ,
पर दुख में साथ देती है सिर्फ पत्नी 
ये अहसास जरूर हो गया।

©दिनेश
  #Raat सुख- दुख की साथी

#Raat सुख- दुख की साथी #कविता

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दिनेश

White धरती पे कदम बने रहें यूँ 
चाह नहीं कि आसमान मिले ,
पर मैं जब वापस आऊँ घर को 
सबके चेहरे पर मुस्कान मिले ।
तुम चिंता क्यूँ करते हो ?
मैं मरा नहीं अभी जिंदा हूँ ,
पर लौटकर घर तो आऊँगा ही 
अभी बेशक एक परिंदा हूँ ।
भाई से बस एक भाई  मिले 
न कि एक मेहमान मिले ।
पर मैं जब वापस आऊँ घर को 
सबके चेहरे पर मुस्कान मिले ।

©दिनेश
  #Hope घर
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