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abhisheksuman6243
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अर्हंत

जीवन एक तप है, लक्ष्य खुद की खोज लक्ष्य अर्जित होये, बने जब अच्छी सोच

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अर्हंत

सुनता आया हूँ
झूठ के पाँव नहीं होते
करते ये हवा में कारोबार
सच्च के भाव नहीं होते
चाहे ना करो एतबार

पर यहाँ कुछ और ही दीखता
झूठ के पाँव भी होते हैँ और जमीं भी
बस उसकी प्रस्तुति गजब हो
फिर झूठ सच्च से ज्यादा रोचक लगता
और सच्च कही कोने में अकेला सहमा
खुद का ही समलोचक दीखता 

खुद के आदतों का क्या करें
झूठ से दोस्ती होती नहीं
और मेरे सच्च में वो तासीर ही नहीं

कभी हमें भी सीखा जाओ ये हुनर
तुम्हारा तजुर्बा तो सालो का है
तुम्हारे लतिफे भी कायनात हैँ
हमारा सच्च तो हम से रूठा है

©अर्हंत
  सच झूठ.......

सच झूठ....... #Shayari

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अर्हंत

कौन कहता है हम झूठ नहीं बोलते,

एक बार खैरियत पूछ कर तो देखिये।

©अर्हंत
  खबर....

खबर.... #Shayari

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अर्हंत

आज आवाज़ में मेरे कोई शब्द नहीं
जो हैँ वो बस उधार के हैँ
लिख भी लूँ चाहे अपनी आवाज़ को 
पर उसमे अब वो अदब नहीं

आँखों में इंतजार की आस बची बस
हर झलक में दीखता खुद का प्रतिबिम्ब
आईना जितना भी बदला मैंने
ना दिखा किसी के चेहरे में तोष का बिबं 

हर शहर अब सहरा बना
बना विराना अब ये मेरा आशियाना
जिंदगी की शिकायतों से निकल
जीने का ना रखा अब कोई पैमाना 

क्या ख्वाब है और क्या हक़ीक़त
जब आगाज और अंत साथ खड़े
पूरब भी अब लगता पश्चिम
पलकों में जब हो अश्क की मोती जड़े

©अर्हंत
  अदब.....

अदब..... #Shayari

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अर्हंत

जाने ज़िन्दगी क्या चाहती है मुझसे
जीने की राह दिखा के
रास्ता बदल देती है
भटक जाये कोई क्यूँ नहीं ऐसे
जब अँधेरा हो घना
और रास्ता शोलो से बना
कहाँ जाये कोई फिर
तब किस्मत पर आता है रोना
उम्मीद की एक रौशनी दिखाई दें
तो आस जगे जीने की
पर पहुचे कैसे जब हौंसला तो हों
पर हों कदम जंजीरो में बंधे
और रास्ते हो दलदल में सने 
तब साँसे भी हिचकियाँ लेती हैँ 
और हजारों ख्वाइशें आपस में लड़ती हैँ
और जीत आखिर में हार की होती है,
फिर भी आस, एक उम्मीद
टकटकी लगाएं बैठी रहती है
जब अच्छा वक़्त आया और चला गया
तो बुरा वक़्त भी क्यूँ गले लगाएं रहें
बदलती है दुनियाँ वक़्त के साथ
हम भी खड़े हैँ अपने अक्स के साथ
आया हूँ तो जी के जाऊंगा
अब पराये को पराया कहूंगा
अपनों को गले लगाऊंगा.

©अर्हंत
  उम्मीद

उम्मीद #Shayari

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अर्हंत

तेरी आँखों से ही
जागे सोये हम
कब तक आखिर
कब तक आखिर तेरे 
घाम को रोये हम

वक्त का मरहम
ज़ख्मों को भर देता हैं
शीशे को भी यह
पत्थर कर देता हैं
रात में तुझ को पाये
दिन मे खोये हम
तेरी आँखों से ही
जागे सोये हम

हर आहट पर लगता
हैं तू आया हैं
धूप हैं मेरे पीछे
आगे साया हैं
खुद अपनी ही लाश को
कब तक ढोये हम
तेरी आँखों से ही
जागे सोये हम

"निदा फाज़ली"

©अर्हंत
  कब तक.......

कब तक....... #Shayari

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अर्हंत

कुछ आहटें हैं,
और कुछ आवाज़ें...
कुछ शोर हैं,
और कुछ सन्नाटे...
जानें फिर कौन बुलाता है,
कोई हवा सा छू जाता है

ये गहरी काली ख़ामोशी
कुछ तो कहती है मुझसे..
कोई हाथों में हाथ थामें मेरा,
अपनी ही तरफ लिए जाता है..
कोई है,जो हवा सा छू जाता है

जितना भी चाहा दूर रहूँ,
उस परछाईं को ना छूं,
पर बाज़ नहीं वो आता है...
हर पल पास बुलाता है...
कोई है,जो हवा सा छू जाता है...


अनगिनत दर्द दिए हैं उसने,
ये आँसू,ये तड़प,ये बेचैनी,
फिर भी ये दिल है ढीठ बड़ा,
बस उसकी यादों को दोहराता है....
कोई तो है,जो हवा सा छू जाता है।

©अर्हंत
  आज भी इंतजार है तुम्हारा...

आज भी इंतजार है तुम्हारा... #Shayari

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अर्हंत

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया...।
हम सिख न पाये 'फरेब'
और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...।
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से...
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में !
चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं...
तुम हमें ढुंढो...
हम तुम्हे ढुंढते हैं

©अर्हंत
  तजुर्बा

तजुर्बा #Shayari

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अर्हंत

क्या सच मैं तुम्हे बताऊँ
ना आंखें बोलती हैं
ना सांसो में कोई आवाज है
बस आहटें हैं जिंदा होने का
एक लम्हा ऐसा नहीं गुजरता
जो तुम्हारे बिना हो
मुझे नहीं पता मैं ज़िंदा हूँ भी की भी नहीं
बस दिन, तारीखे, महीने गिनता हूँ
तुम्हारे इंतज़ार में
अब कुछ बचा नहीं ज़िन्दगी में
बस खुद को बहलाता हूँ
यकीं मानों मैं कुछ भी नहीं तुम्हारे बिना
बस इस शहर में घूमता
एक ज़िंदा लाश हूँ

©अर्हंत
  खुद को बहलाता हूँ

खुद को बहलाता हूँ #Shayari

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अर्हंत

ये ज़िन्दगी

©अर्हंत
  ये ज़िन्दगी

ये ज़िन्दगी #Shayari

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अर्हंत



ता उम्र गुजर जाती है
खुद को साबित करने में
ऐसी जिंदगी की जरूरत क्या है
 
अपने ही काफी है तबाही के लिए
फिर गैरों की जरूरत क्या है
 
हमसे ना पूछो गमे दिल का हाल
आंखें जब दरिया हो दर्द की जरूरत क्या है
 
आंसू तो अपने हैं जख्म पराए हैं
ऐसे जख्मों को मरहम की जरूरत क्या है
 
रिश्तो के धागों में जब गांठ पड़ी हो
ऐसे धागों को सुलझाने की जरूरत क्या है
 
साया भी जब खुद का दूर नजर आए
फिर किस्मत आजमाने की जरूरत क्या है
 
अंधेरे जब सुनाएं खुद अपनी दास्तान
उसे रोशनी में लाने की जरूरत क्या है

©अर्हंत
  क्यूँ...

क्यूँ... #Shayari

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