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trvikashkumarpan0365
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Tr. Vikash Kumar Pandey

आवारा हवा का झोंका हूँ, मुझे हर तरफ बस बहने दो

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Tr. Vikash Kumar Pandey

shabd shakti
please subscribe and share my youTube channel...🙏🙏🙏

https://youtu.be/4x0tKjmyEps

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Tr. Vikash Kumar Pandey

मैं... एक वक़्त का कैदी                           
तड़पता हूँ छटपटाता हूँ,                           
वक़्त की सख़्त गिरफ़्त से लेकिन,              
छूट ज़रा भी ना पाता हूँ,                           
कोशिशें हज़ार करता हूँ बेशक                   
वक़्त की क़ैद से छूट जाने की,                  
पर, देख ज़िम्मेदारी कन्धों पर
मैं अक्सर नाकाम हो जाता हूँ,
जाने कितनी ख़्वाहिशें मेरी
दफ़न हो जाती हैं मन के भीतर,
पर, ख़ुश देखकर अपनों को
मैं ग़म अपना भूल जाता हूँ ।
मैं... एक वक़्त का कैदी
वक़्त कि सलाखों से बाहर
बस झांक कर ही रह जाता हूँ ।
भूलकर अपने वो ख़्वाब सारे
मैं सबके ख़्वाब सजाता हूँ ।
मेरा मन भी परिन्दे सा कभी
हसरतों के पंख फड़फड़ाता है,
ख़्वाबों के खुले आकाश में वो
उड़ने की बेताबी दिखलाता है                                 
लेकिन, उस बेपरवाह परिन्दे सा
वो बेख़बर परवाज़ कहाँ से लाऊँ,
वक़्त के हिस्सों में बँट-बँटकर
मैं सोच ज़रा भी ना पाता हूँ ।
मैं... एक वक़्त का कैदी
हसरतों को समेट हकीक़त में
बस कसमसा कर रह जाता हूँ,
मैं... एक वक़्त का कैदी
ख़्वाबों के खुले आकाश को 
बस देखकर ही रह जाता हूँ । #NojotoQuote वक़्त का कैदी
#वक़्त
#कैदी
#परिन्दा
#हसरत
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Tr. Vikash Kumar Pandey

मैं... एक वक़्त का कैदी
तड़पता हूँ छटपटाता हूँ,
वक़्त कि सख़्त गिरफ़्त से लेकिन
छूट ज़रा भी ना पाता हूँ,
कोशिशें हज़ार करता हूँ बेशक
वक़्त कि क़ैद से छूट जाने की,
पर  देख ज़िम्मेदारी कन्धे पर
मैं अक्सर नाकाम हो जाता हूँ,
जाने कितनी ख़्वाहिशें मेरी
दफ़न हो गयी मन के भीतर,
बस देख ख़ुशी अपने लोगों की
मैं मन अपना बहलाता हूँ ।
मैं... एक वक़्त का कैदी
अपनों पर कुर्बान हो जाता हूँ ।
वक़्त कि सलाखों से बाहर
बस झांक कर ही रह जाता हूँ ।
मेरा मन एक परिन्दा
हसरतों के पंख फड़फड़ाता है,
ख़्वाबों के खुले आकाश में
उड़ जाने को मचल जाता है,
उस बेपरवाह परिन्दे जैसा
बेख़बर परवाज़ कहाँ से लाऊँ,
वक़्त के हिस्सों में बँटकर
मैं सोच ज़रा भी ना पाता हूँ ।
मैं... एक वक़्त का कैदी
हसरतों को समेट हकीक़त में
बस कसमसा कर रह जाता हूँ,
मैं... एक वक़्त का कैदी
ख़्वाबों के खुले आकाश को
बस देख कर ही रह जाता हूँ । #NojotoQuote वक़्त का कैदी
#वक़्त
#कैद
#हसरतें
#मन
#परिन्दा
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Tr. Vikash Kumar Pandey

एक सवाल है साहब
उस मासूम बचपन का
जो सड़क किनारे दम तोड़ गया,
एक सवाल है साहब
उस बिलखते बचपन का
जो ज़िन्दगी का हाथ छोड़ गया ।
कुसूर क्या था उसका 
कि भूख से वो तड़पता रहा,
दो वक़्त के निवालों ख़ातिर
वो दर-ब-दर भटकता रहा,
फिर भी भूख से लड़-थककर
वो बेरहम दुनिया ये छोड़ गया,
एक सवाल है साहब
उस भूखे तड़पते बचपन का
जो बगैर निवाला सो गया ।
उम्मीद थी उसे बेहद सुन लो
बचपन ठाट से जीने का,
मन में पल रहे ख्वाबों को
एक-एक हकीक़त करने का,
फिर भी अपने ख़्वाबों को 
वो ख़्वाबों में ही छोड़ गया,
एक सवाल है साहब
उस ख़्वाब देखते बचपन का
जो हकीक़त का आईना छोड़ गया ।
भरोसा था उसे यकीनन
ये देश उसका है, अपना है,
मानता था वो दिल से अपने
जो सबका है वो अपना है,
फिर भी दुत्कार खा-खा कर
वो हक़ अपना भी छोड़ गया,
एक सवाल है साहब
अपने हक़ से बिछड़े उस बचपन का
जो सबकुछ अपना छोड़ गया
कौन आएगा मदद को इनकी
कौन खड़ा होगा इनके साथ,
कौन पूरे करेगा इनके सपने
कौन थामेगा इनके हाथ
बाकी बच्चों की ख़ातिर वो
एक उम्मीद यहाँ पर छोड़ गया,
एक सवाल है साहब
उस मासूम बचपन का 
जो इन्सानियत पर छोड़ गया #NojotoQuote एक सवाल है साहब

एक सवाल है साहब

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Tr. Vikash Kumar Pandey

ग़र महसूस करनी है तुम्हें मेरी मोहब्बत
तो बस ज़रा और करीब सरक जाओ,
फ़िर गौर से झांको मेरी आँखों में तुम 
और चुपके से मेरे दिल में उतर जाओ । #NojotoQuote मोहब्बत

मोहब्बत

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Tr. Vikash Kumar Pandey

सिसकता है
एक बचपन
गरीबी के बोझ तले
दम कहीं पर तोड़ता है,
एक बचपन
खेलने की उमर में
दर-दर कहीं भटकता है,
कहीं हाथ पसारता है
कहीं करतब दिखाता है,
कहीं कचरे के ढेर में
अपने लिए कुछ चुनता है,
कहीं किसी ढाबे पर
वो छोटू बनकर रहता है,
एक बचपन
अठखेलपन अपना भूलता है,
जिम्मेवारियों की मुठ्ठी में
अल्हड़पन उसका भींचता है,
कहीं मजदूरी करता है
तो कहीं नौकर सा रहता है,
एक बचपन
बस एक सवाल करता है,
वो भी तो है एक नौनिहाल
इस देश का, इस मिट्टी का
फिर क्यों उसका बचपन
इस तरह सिसकता है ?
चन्द सिक्के बटोरने को
दर-दर क्यों भटकता है ?
एक बचपन...
आखिर क्यों सिसकता है ? एक बचपन

एक बचपन

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Tr. Vikash Kumar Pandey

कौन हो तुम ?
जो मेरे भीतर छुपकर
मुझसे मेरी पहचान कराते हो,
जीवन में कुछ कर गुजरने को
दिन-रात मुझे उकसाते हो,
कौन हो तुम ?
जब कभी निराश हो
हिम्मत हार बैठ जाता हूँ,
तब-तब तुम मेरा संबल बन
मेरे साथ खड़े हो जाते हो,
जब-जब मैं कभी अनगिनत
राहों में उलझ जाता हूँ,
तब-तब तुम राह दिखलाने
रौशनी बनकर आते हो,
आखिर कौन हो तुम ?
जो चुपके-चुपके साथ मेरे
हर कदम साथ-साथ चलते हो,
ठेस लगती है जब भी मुझे
तुम्हारी बांहों में सम्भल जाता हूँ,
साथ रहते हो मेरी खुशी में
तुम हँसी बनकर मेरे होठों पर,
छलकती हैं आंखें जब कभी
तुम आँसू पोंछने आते हो,
कौन हो तुम आखिर ?
जिसे मैं जानकर भी 
पहचान नहीं पाता,
जिसे महसूस कर भी
मैं अहसास नहीं कर पाता,
आखिर...कौन हो तुम ? कौन हो तुम ?

कौन हो तुम ?

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Tr. Vikash Kumar Pandey

वो एक अध्यापक है --- 
जो बच्चों के संग बच्चा बन
खेलता है, खिलखिलाता है,
बच्चों की कोरी कल्पना को
जो सच का पंख लगाता है ।
हाँ, वो एक अध्यापक है ---
जो बच्चों के सुख-दुःख को
मिल बैठ कर बाँटता है,
बच्चों के मन की उलझन को
चुटकियों में सुलझाता है ।
हाँ, वो एक अध्यापक है ---
जो बच्चों का नेता बनकर
उनकी बातों को उठाता है,
बच्चों के अधिकारों हेतु
वो सबसे टकरा जाता है ।
हाँ, अध्यापक ही है वो ---
जो पल भर में आसानी से
बच्चों का मन टटोलता है,
बच्चा जिस पर भरोसा कर
हर राज बेहिचक खोलता है ।
हाँ, अध्यापक ही है वो ---
जो बच्चों को बड़े आसानी से
अपनी पहचान करवाता है,
उनके भीतर क्या खास है
वो ज्ञान इसका करवाता है ।
हाँ, वो अध्यापक ही है ---
जो अपने भीतर पता नहीं
कितना कुछ ले चलता है ?
एक शरीर मे वो न जाने
कितना जीवन जीता है ?
अच्छा लगता है मुझको भी
बच्चों के संग बच्चा होने का,
हाँ, मुझे भी गर्व है स्व पर
एक अध्यापक होने का । एक अध्यापक

एक अध्यापक

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Tr. Vikash Kumar Pandey

उफ़क...!! ये बंदर !!
मुझ अभागिन को 
जाने क्यों सताता है ?
मुझ दुखियारी से
उमर की मारी से
क्या इसका नाता है ?
कभी बिखेर देता है
मेरी सब्जियां अरमानों की तरह,
कभी समेट देता है
बिखरी सब्जियां खुशियों की तरह,
इसका समेटना-बिखेरना
मुझे समझ नहीं आता है ।
उफ्फ...!! ये बंदर !!
कभी छेड़ता है मुझे
ज़िद करता है मुझसे
एक पोते की तरह,
कभी सम्भालता है
सहलाता है मुझे
एक बेटे की तरह,
इसकी ज़िद, इसका अपनापन
जाने क्यों मुझे भाता है ?
उफ्फ...!! ये बंदर !!
मेरी भावनाओं को
ज़ुबान ने ठुकराया
बेज़ुबान ने अपनाया,
मेरे कांपते हाथों से
लाठी ने ही हाथ झटका
इसने हाथ अपना थमाया,
इसका अपनापन ही मुझे
गमों से बचाता है ।
उफ्फ...!! ये बंदर !!
अच्छा लगता है 
मुझे जब भी सताता है । उफ्फ...ये बन्दर !!!

उफ्फ...ये बन्दर !!!

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Tr. Vikash Kumar Pandey

आज...
लिपटी हैं तुम्हारी
नन्हीं-नन्हीं उंगलियां
मेरी उंगली पर ।
शायद...
पता है तुम्हें कि
ये उंगली ही तुम्हें
संभालेगी हर कदम पर,
बचा कर रखेगी तुम्हें
ज़िंदगी की मुश्किलों से,
कमजोर न होने देगी तुम्हें
ज़िंदगी में कभी भी, कहीं भी,
तुम्हें उम्मीद है...
इस उंगली पर कि
भले ज़माना बदल जाये,
मगर नहीं बदलेगी, ये उंगली 
और लड़ जाएगी तुम्हारे लिए
तुम्हारी ओर तनने वाली
उन तमाम उंगलियों से,
और साथ देगी तुम्हारा
हर जगह, हर कदम पर ।
साथ ही...
मुझे भी है... 
इक भरोसा तुम पर कि
लिपटी रहेंगी तुम्हारी उंगलियां
मेरी उंगली पर तब भी
जब शाम होगी मेरी ज़िंदगी की । उंगली

उंगली

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