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harishankardubey5126
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यशस्वी तिवारी

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यशस्वी तिवारी

जीवन का संग्राम भी है, संग्राम का परिणाम भी है कविता,,
सांसो की लय भी है, ह्रदय का स्पंदन भी है कविता,,
आकाश का गर्जन भी है कविता, जल का प्रवाह भी है कविता,,
पक्षियों की चहचाहट भी है, बालक का रूदन भी है कविता,,
प्रेम की रिक्तता भी है, प्रेम की पूर्णता भी है कविता,,
कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कहना है कविता,,
प्रेम,वात्सल्य,दुख,प्रसन्नता, सर्व भावों का मिश्रण है कविता,,
अवास्तविक सी दुनिया मे वास्तविकता का प्रमाण भी है कविता, 
अन्याय के अश्रुओं का रूदन भी है कविता,,
न्याय के शब्दो का गुन्जन भी है कविता,,
मेरी देह के ना रहने पर मेरे शब्दो को जीवित रखेगी कविता,,
जब तक रहेगी ये धरती तब तक रहे शब्द और कविता।

©यशस्वी तिवारी
  #WorldPoetryDay
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यशस्वी तिवारी

हमारी प्यारी गौरैया सुना है तू विलुप्त हो रही है,,
मेरे आंगन , मेरे झरोखे से दूर हो रही है,,
तेरे खेल देख कर बड़ी हुई,,
तेरे साथ ही तो पूरा बचपन जिया,,
सुबह पढ़ते मे जब नींद आ जाती तो तू ही तो जगाती थी,,
क्या तू अपने घोसले से झाँक कर मुझे नही देखेगी,,
क्या तू मुझे नींद से नही जगायेगी,,
नही नही गौरैया दूर मत जाना,,
अपना बनाया घोसला सूना मत करना,,
झरोखे पर बैठ कर हमेशा गुनगुनाना ,,
मेरी प्यारी गौरैया दूर मत जाना। 

गौरैया सा मन सबकी छतों पर सबके आंगन मे चहचहाता है,,
थोड़े से दाने और थोड़ा सा पानी और थोडी-सी जगह चाहता है।

©यशस्वी तिवारी
  #sparrowday
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यशस्वी तिवारी

नारी का मातृत्व है यह"
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अभिशाप नहीं बरदान है यह,,
अपवित्र नही पवित्र है यह,,
गंदगी नही हमारा रक्त है यह,,
नारी का मातृत्व है यह,,
क्यूं वर्जित है मन्दिर मे जाना??
क्यू वर्जित है तुझे स्पर्श करना??
क्यू समाज मे ऐसा नियम बना??
क्यू नारी को कष्ट पड़ा सहना??
क्या इस बहती वायु ने मुझे स्पर्श कर मन्दिर और मूरत को स्पर्श नही किया??
क्या हमारी नासिका ने निकली वायु(CO2) के एक भी कण से तुलसी के वृक्ष ने प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अपना भोजन नही बनाया होगा??
क्या हमारा स्पर्श किया जल पवित्र नदियो मे नही मिला??
क्या इस ब्रह्मांड की अनंत तरंगो ने मेरे बाद तुझे स्पर्श नही किया??
हमारी अंतरात्मा मे विराजमान ईश्वर ने तो मुझे प्रतिपल ,प्रतिक्षण स्पर्श किया,, फिर ये ढोंग क्यू??
क्या ईश्वर की सीमाएं सिर्फ मन्दिर तक है??
क्या ईश्वर कण कण में नही है??
जागो! और सोचो!   क्यू??????
हे ईश्वर! जब अद्रश्य रुप मे मैने तुझे स्पर्श किया तो द्रश्य रुप मे  स्पर्श वर्जित क्यू???

©यशस्वी तिवारी
  #menstruation
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यशस्वी तिवारी

✍✍कितना अजीब है ना,,
कोई सबकुछ होकर भी काफी अकेला है,,
कोई अकेला होकर भी काफी है,,
कोई सब कुछ होकर रोता है,,
कोई सब कुछ खोकर हंसता है,,
कोई उठ उठ कर गिरता है,, 
कोई गिर गिर कर उठता है,,
कोई चाह कर भी नही जी पाता,,
कोई ना चाह कर भी जीता है,,
कोई अपनो को भी पराया करता है,,
कोई परायों का भी अपना होता है,,
कोई हँस हँस कर रोता है, 
कोई रो रो कर हँसता है,,
कोई खा खा कर थक जाता है,,
कोई थक कर भी नही खा पाता है,,
कोई सबकुछ होकर भी काफी अकेला है,,
कोई अकेला होकर भी काफी है,,
कोई अकेला होकर भी काफी है।।

©यशस्वी तिवारी
  #Life
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यशस्वी तिवारी

जीवन की रसोई में,
 परिस्तिथियों की आग में,
 कच्ची मासूमियत,
 पक्की जिम्मेदारी मे पक रही है,,
संसार के ताने और हेय दृष्टि रुपी दाब और तापमान,,
कार्बन को उसे अतिशुद्घ रुप हीरे मे 
परिवर्तित कर रही है,,
मेरा मासूम बचपन बिखरेगा नहीं, निखरेगा।

©यशस्वी तिवारी
  #मासूम

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