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drnaveenprajapat2706
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Dr. Naveen Prajapati

डॉ० कविराज

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Dr. Naveen Prajapati


तेरी ऊंगली पकड़कर चलने वाला, अब भागदौड़ में रहता माँ,
तुम मुझको जीवन देने वाली, मैं अब औरों को जीवन देता माँ।

जो सुकूं मिला तेरे आँचल में, अब फिरूँ उसे रोज़ टटोलता माँ,
तेरा बचपन में तुतलाने वाला, अब दिल की बात बोलता माँ।

स्वाद जो तेरी चूल्हे की रोटी में, कोई पाक नहीं उस जैसा माँ,
अगर काँटा चुभे तो बस तुझे पुकारूँ, प्यार यह तेरा कैसा माँ।

कभी गुस्से में आँख दिखाती, पर रहा तेरी आँखों का तारा माँ,
जो आनंद है तेरे चरणों में, नहीं मिला घूमने पर जग सारा माँ।

वक़्त के साथ बदले रिश्ते सारे, पर सम्बन्ध अपना बेजोड़ माँ,
तुझे हरपल मेरी चिंता सताए, नहीं इस प्रेम का कोई तोड़ माँ।

अब मतलब का सब संसार हुआ, बस प्यार यह तेरा सच्चा माँ,
तेरा लल्ला डॉक्टर बन गया, पर आज भी तेरा छोटा बच्चा माँ।

एक दिन था मैं रोया तू हँसी, जब जग में तूने मुझे उतारा माँ,
तेरी आँखों से आँसू ना आने दूँ, बुढ़ापे में बनूँ मैं तेरा सहारा माँ।

मुझे जन्म देकर यह दिन दिखाया, यह मुझपर तेरा कर्ज़ है माँ,
मैं सहस्र साल सेवा करूँ तेरी, यह अब बनता मेरा फर्ज़ है माँ।

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Dr. Naveen Prajapati

तेरी ऊंगली पकड़कर चलने वाला, अब भागदौड़ में रहता मांँ,
तुम मुझको जीवन देने वाली, मैं अब औरों को जीवन देता मांँ।

जो सुकूं मिला तेरे आँचल में, अब फिरूँ उसे रोज़ टटोलता माँ,
तेरा बचपन में तुतलाने वाला, अब दिल की बात बोलता माँ।

स्वाद जो तेरी चूल्हे की रोटी में, कोई पाक नहीं उस जैसा माँ,
अगर काँटा चुभे तो बस तुझे पुकारूँ, प्यार यह तेरा कैसा मांँ।

चाहे दुनिया मुझे आँख दिखाती, पर रहा तेरी आँखों का तारा माँ,
जो आनंद मिला तेरे चरणों में, नहीं मिला घूमने पर जग सारा माँ।

वक़्त के साथ बदले रिश्ते सारे, पर सम्बन्ध अपना बेजोड़ माँ,
तुझे हरपल मेरी चिंता सताए, नहीं इस प्रेम का कोई तोड़ माँ।

अब मतलब का सब संसार हुआ, बस प्यार यह तेरा सच्चा मांँ,
तेरा लल्ला डॉक्टर बन गया, पर आज भी तेरा छोटा बच्चा मांँ।

एक दिन था जब मैं रोया तू हँसी, जब जग में तूने मुझे उतारा माँ,
तेरी आँखों से आँसू ना आने दूँ, अब यह जीवन तुझपर वारा माँ।

मुझे जन्म देकर यह दिन दिखाया, यह मुझपर तेरा कर्ज़ है मांँ,
मैं सहस्र साल सेवा करूँ तेरी, यह अब बनता मेरा फर्ज़ है मांँ।

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Dr. Naveen Prajapati

मनुज कभी न होना सम्मोहित संन्यासी पर,
वह मनुष्य नहीं बस एक धुंधली छाया है।
कदापि नहीं कर पाओगे राज उस दिल पर,
क्योंकि उसने तो दिल में प्रभु को बसाया है।

मनुज कभी प्रेममुग्ध न होना भोलेपन पर,
वह ईश्वर प्रेम में लीन प्रेम फैलाने आया है।
घृणा त्यागकर, भोग- विलास लगा दाँव पर,
देशभक्ति संदेश लिए इस धरा पर आया है।

कभी विचार न करना उनके अनजानपन पर,
यहाँ उसके सब अपने हैं नहीं कोई पराया है।
दो दिन की जिंदगी में छोड़ परिवार का मोह,
उस अनासक्त ने पूरे जग को परिवार बनाया है।

कभी ना उपहास उड़ाना उसकी नासमझी पर,
उस जटिल को कोई कभी समझ नहीं पाया है।
क्षणभंगुर जीवन में, कुछ करने का प्रण लेकर,
अपनी प्रेम ताल से इस जग को हर्षाने आया है।

क्यूँ दुखी हुआ मधुकर पुष्प के टूट जाने पर,
यह तो जीवनचक्र की चलती-फिरती छाया है।
यूँ तो मिलेंगे अच्छे लोग जीवन के हर मोड़ पर,
दिल न लगा राहगीर से,दो दिन ठहरने आया है।

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Dr. Naveen Prajapati

      क्या लिखूँ ?

मैं कोई कवि नहीं,
बस अपने जज़्बात लिखता हूँ...

ज़नाब जज़्बात भी कहाँ ?
परिस्थितियों का मारा हूँ ,
बस अपने हालात लिखता हूँ...

कभी सुकून से सोया नहीं...
अकस्मात ख़्वाबों में खो जाऊँ, 
तो अपने ख्यालात लिखता हूँ...

अभी बिसरी यादें भूला नहीं..
साहब भटका हुआ संन्यासी हूँ ,
बस अपनी मुलाक़ात लिखता हूँ...

कभी किसी से कुछ माँगा नहीं...
ज़नाब अपनों से हारा हूँ, 
बस अपनी औक़ात लिखता हूँ...

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Dr. Naveen Prajapati

कल्प बिना हैं काम अधूरे, कल्प ही विनाश कराए
कल्प बिना हैं प्राण अधूरे, कल्प ही व्याधि उपाय
कल्प से ही जीवन आए, कल्प से ही जीवन जाए...

काम बिना है सृष्टि अधूरी, काम से अर्थ सिद्ध होए
काम बिना है हृदय अधूरा, काम से जेब भारी होए
काम बिना है अंतर अधूरा, काम से वार्तालाप होए...

नाम से ही पहचान बने, नाम से जग प्रसिद्धि होए
नाम से ही कुल चले, नाम से यादगार सिद्ध होए
नाम से ही मैं जन्मे, नाम से काम कलंकित होए...

शून्य बिन संसार नहीं, शून्य से ही शुरुआत होए
शून्य

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Dr. Naveen Prajapati

ख़्वाब जिनके देख कभी संजोया सुलगते सीने में, 
क्यों आज वही टूटी माला के मोती-से बिखर गए ।

जिनको हंस और बगुलों से छुपाया दिल के कोने में, 
क्यों आज मेरे मीठे बोल भी उनको अखर गए ।

खुशियों का हार बनाकर चाहा मैंने कंठ सजाना, 
क्यों आज वही सब सुंदर सपने बिन बारिश ढह गए ।

पिरो दिया एक प्रेम-सूत्र में समझ सब अपने , 
आज टूटते सब रिश्ते देख मेरी आँखों से मोती बह गए ।

उस कठिन घड़ी में चाहा मैंने उनको ढाल बनाना,
क्यों आज अपने ही जोहरी बन मुझपर कर वार गए ।

मैं सागर-गर्भ गयी सीप -हृदय से मोती जीतने, 
वक़्त की बंदिशों में बंधकर हम अपनों से ही हार गए ।

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Dr. Naveen Prajapati

तुम्हें क्या कहूँ मैं, 
जिंदगी की अनकही सच्चाई या फिर, 
बीती हकीकत की एक अनछुई परछाई ?

तुम्हें आज भुलाकर मैं, 
निश्चिंत होकर सो जाऊँ या फिर, 
बनाकर ख़्वाब तुम्हें सपनों में खो जाऊँ।

तुम्हारा बन दीवाना मैं, 
अथाह इंतजार करूँ या फिर, 
बनकर फ़कीर कहीं आवारा हो जाऊँ।

आज बैठकर साहिल मैं,
तुम्हारा दीदार करूँ या फिर, 
बनकर सागर तुम्हारा किरदार निभा जाऊँ।

इस विरह की अग्नि से मैं,
आशा का चिराग़ जला लूँ या फिर,
जलाकर अपनी हस्ती अब शून्य हो जाऊँ।

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Dr. Naveen Prajapati

तुम क़लम बनो ,मैं बनूँ लफ़्ज तुम्हारा
हम क़ातिब बन इख्लास की जीवन्त कथा लिख जाएँगे

तुम जज़्बात बनो, मैं बनूँ ज़िक्र तुम्हारा
हम एहसास बन एतबार की अटूट रस्म निभा जाएँगे 

तुम नींद बनो , मैं बनूँ ख़्वाब तुम्हारा
हम फ़रिश्ते बन इक - दूजे के कटुक कष्ट मिटा जाएँगे 

तुम स्वर बनो ,मैं बनूँ संगीत तुम्हारा
हम मधुर ग़ज़ल बन इस जग को जीवन- राग सुना जाएँगे

तुम हृदय बनो, मैं बनूँ रक्त तुम्हारा
हम धड़कन बन इस मृत पड़ी रूह को अमर बना जाएँगे

तुम ढाल बनो, मैं बनूँ कृपाण तुम्हारा
हम पुरुषार्थी मानव बन भाग्य को कर्मों से हरा जाएँगे

तुम हवा बनो, मैं बनूँ फूफुस तुम्हारा
हम साँसों में साँस मिला जीवन को सफल बना जाएँगे

तुम सुयोग बनो, मैं बनूँ वक़्त तुम्हारा
इक- दूजे की कीमत पहचान इतिहास अमर बना जाएँगे

तुम दौड़ बनो, मैं बनूँ धावक तुम्हारा
हम कदमों से कदम मिलाकर दोनों कालजयी हो जाएँगे

तुम नदी बनो, मैं बनूँ सागर तुम्हारा
हम इक- दूजे की मंजिल बन ये मिलन सफल बना जाएँगे #dr_naveen_prajapati#शून्य_से_शून्य_तक
हम उन्मुक्त पंछी हैं, "किसके लिए लिखी" यह पूछकर उपहास न उड़ाएँ🙏
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..
#तुम_और_हम 
फूफुस- फेफड़े
कातिब- लेखक 
इख्लास- प्रेम

#dr_naveen_prajapati#शून्य_से_शून्य_तक हम उन्मुक्त पंछी हैं, "किसके लिए लिखी" यह पूछकर उपहास न उड़ाएँ🙏 #कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है.. #तुम_और_हम फूफुस- फेफड़े कातिब- लेखक इख्लास- प्रेम

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Dr. Naveen Prajapati

अपने विचारों पर नजर रखिए क्योंकि विचारों से ही आपके शब्द बनते हैं

अपने शब्दों पर नजर रखिए क्योंकि शब्दों से ही आपके कार्य बनते हैं

अपने कार्यों पर नजर रखें क्योंकि कार्यों से ही आपकी आदतें बनती हैं

अपनी आदतों पर नजर रखिए क्योंकि आदतों से आपका चरित्र बनता है

अपने चरित्र पर नजर रखिए क्योंकि चरित्र से ही आपकी किस्मत बनती है

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Dr. Naveen Prajapati

मैं जब उपवन की कोमल कच्ची कली थी,
वो भंवरा बन मुझे सूर्योदय से पूर्व खिला गया ।
जब मुझे होना चाहिए था माँ के आँचल में ,
वह हवा बन मेरी नाजुक पंखुड़ियों से टकरा गया ।।
जब बचपन में समय था खेलने- कूदने का,
वह पारिवारिक ज़िम्मेदारी मुझको थमा गया ।
जब फल- फूलकर छाँवदार वृक्ष बनना था,
वह जिन्दगी में पतझड़ ला ठूँठ वृक्ष मुझे बना गया ।।

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