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drnaveenprajapat2706
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Dr. Naveen Prajapati

डॉ० कविराज

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Dr. Naveen Prajapati

बदलते रिश्ते

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Note- will enjoy but need patience 😊













     #badalte_rishte #changing_relationship
वैसे तो सृष्‍ट‍ि का प्रथम सम्बन्ध अपने रचयिता से ही माना जाना चाहिए, मगर इन्सान अपनी ज़िन्दगी की स्लेट पर रिश्तों की इबारत लिखते समय जो प्रथम शब्द मुँह से उच्चारित करता है, वह उसका अपनी माँ से मातृत्व का वो अमर रिश्ता स्थापित करता है, जिसके लिए उसकी माँ उस पर सदैव अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहती है। आंचल में आश्रय देती है। अपने वक्ष से उसे स्तन पान करवाती है। उसका मैला धोती है। उसकी अंगुली पकड़ कर उसे चलना सिखाती है। माँ की ममता में सना मातृत्व

#badalte_rishte #changing_relationship वैसे तो सृष्‍ट‍ि का प्रथम सम्बन्ध अपने रचयिता से ही माना जाना चाहिए, मगर इन्सान अपनी ज़िन्दगी की स्लेट पर रिश्तों की इबारत लिखते समय जो प्रथम शब्द मुँह से उच्चारित करता है, वह उसका अपनी माँ से मातृत्व का वो अमर रिश्ता स्थापित करता है, जिसके लिए उसकी माँ उस पर सदैव अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहती है। आंचल में आश्रय देती है। अपने वक्ष से उसे स्तन पान करवाती है। उसका मैला धोती है। उसकी अंगुली पकड़ कर उसे चलना सिखाती है। माँ की ममता में सना मातृत्व

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Dr. Naveen Prajapati














   #शून्य_से_शून्य_तक 
#dr_naveen_prajapati 
#संघर्ष
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Dr. Naveen Prajapati

नवीन उत्साह जगा अंतर में, एक 'नूतन' उमंग पैदा कर !
इस नाशवान निष्ठुर जीवन में, एक 'अद्वैत' तरंग पैदा कर !

लुब्ध मरीचिका हटा हृदय से, एक 'सुदृढ़' अनुषंग पैदा कर !
सर्वत्र संघर्षरत धूमिल साये में, एक 'विचित्र' रंग पैदा कर !

कंटीले कठोर निकृष्ट मार्ग में, एक 'अंसल' अध्वंग पैदा कर !
परित्याग रेंगना कर्मभूमि में ,एक 'आशुग' तुरंग पैदा कर !

समक्ष खड़ी है मंज़िल राह में, एक 'अथक' विहंग पैदा कर !
प्रेमरिक्त निहंग दुनियाँ में, एक 'अवियोज्य' अंतरंग पैदा कर !

बना अस्तित्व क्षण-भंगुर जग में ,एक 'समर्थ' अखंग पैदा कर !
अंगीकार औद्धत्य अमर्त्यात्मा में, जीने का एक 'अव्वल' ढंग पैदा कर !

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Dr. Naveen Prajapati

तन्मया तुम तराश कर करवर के कंदराकर को,
                  अंतर्मन में अवजनित अनिवर्ती ज्वारीय लहरों से।
सन्नद्ध होकर करो तलाश स्वयं में ही स्वयं को,
                  अमित आह्लाद में परिष्यंद इन आशातीत चेहरों से।
मनन चिंतन कर ठानो जीवन के गंतव्य को,
                  छोड़ दामन दूर चलो उन अंधविश्वासी गाँव-शहरों से।
प्रतिबंधों की तोड़ बेड़ियाँ प्रास्त करो आलस्य को,
                  उन्मुक्त करो खुदको आधारहीन सामाजिक पहरोंं से।
ध्यान लगा लक्ष्य पर केंद्रित करो एकाग्रता को,
                 निर्लिप्त होकर यश-अपयश में तुम बनो गूंगे-बहरों से।
अनासक्त बन तत्पर रहो कब्जाना अगर मंजर को,
                  सर्वचारी समुद्र हो तुम त्यागो निस्बत नदी-नहरों से।
चलना काँटों की कठोर डगर अगर पाना प्रसून को,
                  अन्ततः मिलेगा सुधा-रस तुम मत घबराना जहरों से।
सुख-दुख कालचक्र है समझ इस जीवनसत्य को,
                  जलाकर लौ अंतर में तुम बनना अभिसर अघहरों से।
निःस्वार्थ सेवा में करके सर्वस्व न्योछावर वतन को,
                  प्रयासरत्त आजीवन लड़ना होगा चुनौती की कहरों से।
मिटाकर डर जिगर से चीर तक़दीर की छाती को,
                  उठाओ कलम करो पहचान अंकित अक्षर सुनहरों से। Dedicating a #testimonial to my little champ Dr. Shailja Prajapati a lady with aptitude and passion
#dr_naveen_prajapati 
#शून्य_से_शून्य_तक

Dedicating a #testimonial to my little champ Dr. Shailja Prajapati a lady with aptitude and passion #dr_naveen_prajapati #शून्य_से_शून्य_तक

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Dr. Naveen Prajapati


तेरी ऊंगली पकड़कर चलने वाला, अब भागदौड़ में रहता माँ,
तुम मुझको जीवन देने वाली, मैं अब औरों को जीवन देता माँ।

जो सुकूं मिला तेरे आँचल में, अब फिरूँ उसे रोज़ टटोलता माँ,
तेरा बचपन में तुतलाने वाला, अब दिल की बात बोलता माँ।

स्वाद जो तेरी चूल्हे की रोटी में, कोई पाक नहीं उस जैसा माँ,
अगर काँटा चुभे तो बस तुझे पुकारूँ, प्यार यह तेरा कैसा माँ।

कभी गुस्से में आँख दिखाती, पर रहा तेरी आँखों का तारा माँ,
जो आनंद है तेरे चरणों में, नहीं मिला घूमने पर जग सारा माँ।

वक़्त के साथ बदले रिश्ते सारे, पर सम्बन्ध अपना बेजोड़ माँ,
तुझे हरपल मेरी चिंता सताए, नहीं इस प्रेम का कोई तोड़ माँ।

अब मतलब का सब संसार हुआ, बस प्यार यह तेरा सच्चा माँ,
तेरा लल्ला डॉक्टर बन गया, पर आज भी तेरा छोटा बच्चा माँ।

एक दिन था मैं रोया तू हँसी, जब जग में तूने मुझे उतारा माँ,
तेरी आँखों से आँसू ना आने दूँ, बुढ़ापे में बनूँ मैं तेरा सहारा माँ।

मुझे जन्म देकर यह दिन दिखाया, यह मुझपर तेरा कर्ज़ है माँ,
मैं सहस्र साल सेवा करूँ तेरी, यह अब बनता मेरा फर्ज़ है माँ।

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Dr. Naveen Prajapati

तेरी ऊंगली पकड़कर चलने वाला, अब भागदौड़ में रहता मांँ,
तुम मुझको जीवन देने वाली, मैं अब औरों को जीवन देता मांँ।

जो सुकूं मिला तेरे आँचल में, अब फिरूँ उसे रोज़ टटोलता माँ,
तेरा बचपन में तुतलाने वाला, अब दिल की बात बोलता माँ।

स्वाद जो तेरी चूल्हे की रोटी में, कोई पाक नहीं उस जैसा माँ,
अगर काँटा चुभे तो बस तुझे पुकारूँ, प्यार यह तेरा कैसा मांँ।

चाहे दुनिया मुझे आँख दिखाती, पर रहा तेरी आँखों का तारा माँ,
जो आनंद मिला तेरे चरणों में, नहीं मिला घूमने पर जग सारा माँ।

वक़्त के साथ बदले रिश्ते सारे, पर सम्बन्ध अपना बेजोड़ माँ,
तुझे हरपल मेरी चिंता सताए, नहीं इस प्रेम का कोई तोड़ माँ।

अब मतलब का सब संसार हुआ, बस प्यार यह तेरा सच्चा मांँ,
तेरा लल्ला डॉक्टर बन गया, पर आज भी तेरा छोटा बच्चा मांँ।

एक दिन था जब मैं रोया तू हँसी, जब जग में तूने मुझे उतारा माँ,
तेरी आँखों से आँसू ना आने दूँ, अब यह जीवन तुझपर वारा माँ।

मुझे जन्म देकर यह दिन दिखाया, यह मुझपर तेरा कर्ज़ है मांँ,
मैं सहस्र साल सेवा करूँ तेरी, यह अब बनता मेरा फर्ज़ है मांँ।

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Dr. Naveen Prajapati

मनुज कभी न होना सम्मोहित संन्यासी पर,
वह मनुष्य नहीं बस एक धुंधली छाया है।
कदापि नहीं कर पाओगे राज उस दिल पर,
क्योंकि उसने तो दिल में प्रभु को बसाया है।

मनुज कभी प्रेममुग्ध न होना भोलेपन पर,
वह ईश्वर प्रेम में लीन प्रेम फैलाने आया है।
घृणा त्यागकर, भोग- विलास लगा दाँव पर,
देशभक्ति संदेश लिए इस धरा पर आया है।

कभी विचार न करना उनके अनजानपन पर,
यहाँ उसके सब अपने हैं नहीं कोई पराया है।
दो दिन की जिंदगी में छोड़ परिवार का मोह,
उस अनासक्त ने पूरे जग को परिवार बनाया है।

कभी ना उपहास उड़ाना उसकी नासमझी पर,
उस जटिल को कोई कभी समझ नहीं पाया है।
क्षणभंगुर जीवन में, कुछ करने का प्रण लेकर,
अपनी प्रेम ताल से इस जग को हर्षाने आया है।

क्यूँ दुखी हुआ मधुकर पुष्प के टूट जाने पर,
यह तो जीवनचक्र की चलती-फिरती छाया है।
यूँ तो मिलेंगे अच्छे लोग जीवन के हर मोड़ पर,
दिल न लगा राहगीर से,दो दिन ठहरने आया है।

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Dr. Naveen Prajapati

      क्या लिखूँ ?

मैं कोई कवि नहीं,
बस अपने जज़्बात लिखता हूँ...

ज़नाब जज़्बात भी कहाँ ?
परिस्थितियों का मारा हूँ ,
बस अपने हालात लिखता हूँ...

कभी सुकून से सोया नहीं...
अकस्मात ख़्वाबों में खो जाऊँ, 
तो अपने ख्यालात लिखता हूँ...

अभी बिसरी यादें भूला नहीं..
साहब भटका हुआ संन्यासी हूँ ,
बस अपनी मुलाक़ात लिखता हूँ...

कभी किसी से कुछ माँगा नहीं...
ज़नाब अपनों से हारा हूँ, 
बस अपनी औक़ात लिखता हूँ...

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Dr. Naveen Prajapati

कल्प बिना हैं काम अधूरे, कल्प ही विनाश कराए
कल्प बिना हैं प्राण अधूरे, कल्प ही व्याधि उपाय
कल्प से ही जीवन आए, कल्प से ही जीवन जाए...

काम बिना है सृष्टि अधूरी, काम से अर्थ सिद्ध होए
काम बिना है हृदय अधूरा, काम से जेब भारी होए
काम बिना है अंतर अधूरा, काम से वार्तालाप होए...

नाम से ही पहचान बने, नाम से जग प्रसिद्धि होए
नाम से ही कुल चले, नाम से यादगार सिद्ध होए
नाम से ही मैं जन्मे, नाम से काम कलंकित होए...

शून्य बिन संसार नहीं, शून्य से ही शुरुआत होए
शून्य

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Dr. Naveen Prajapati

ख़्वाब जिनके देख कभी संजोया सुलगते सीने में, 
क्यों आज वही टूटी माला के मोती-से बिखर गए ।

जिनको हंस और बगुलों से छुपाया दिल के कोने में, 
क्यों आज मेरे मीठे बोल भी उनको अखर गए ।

खुशियों का हार बनाकर चाहा मैंने कंठ सजाना, 
क्यों आज वही सब सुंदर सपने बिन बारिश ढह गए ।

पिरो दिया एक प्रेम-सूत्र में समझ सब अपने , 
आज टूटते सब रिश्ते देख मेरी आँखों से मोती बह गए ।

उस कठिन घड़ी में चाहा मैंने उनको ढाल बनाना,
क्यों आज अपने ही जोहरी बन मुझपर कर वार गए ।

मैं सागर-गर्भ गयी सीप -हृदय से मोती जीतने, 
वक़्त की बंदिशों में बंधकर हम अपनों से ही हार गए ।

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