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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

poetry,.. insta- @_shravanyadav yadavsravan333@gmail.com

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे , 

बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला !


@ बशीर बद्र !









.

©दिल-ऐ-मुसाफ़िर! #NightRoad
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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

क्यूँ ढूंढते हो यूँ दर-ब-दर,
यहाँ कोई है नहीं किसी का रहगुज़र!

©दिल-ऐ-मुसाफ़िर! #Walk #alone

12 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

मर्द ने लिखी,
रामायण, गीता, महाभारत, कुरान, बाइबिल 
और ना जाने क्या क्या?

नही लिखी ,
एक ग्रंथ जो आज़ादी दे सके एक औरत को,

क्योंकि बंदिशे और डर 
एकमात्र हथियार है इनका....

©दिल-ऐ-मुसाफ़िर! #MothersDay

13 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

उसे क्या ख़बर वो क्या खोया है?

अजुरी भर मोती को समंदर में डुबाया है.

©दिल-ऐ-मुसाफ़िर! #Likho

11 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

मुर्शद अब ख़ाक भी नही तेरे जिस्म में,
तू किस पर इतराता है??

जब थी मुहब्बत , यकीनन बहुत कमाल की थी,
किसी को क्या ख़बर?

तू बे-वजह क्यों अश्क बहाता है...

©दिल-ऐ-मुसाफ़िर! #hand

14 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

मेरे ठहाकों का सबब बन जाओ तुम,
तुम्हे क्यों जानने है दर्द मेरे...

©दिल-ऐ-मुसाफ़िर! #rain

17 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

देखो तमाशा करो शौक से ,
पर जब वक्त आए तो मुस्कुरा देना...

©दिल-ऐ-मुसाफ़िर! #Happy

14 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

आधी रात गुजर
 चुकी थी,
नींद अब भी आंखो 
से खफा थी,
नजर अचानक ख़ामोश
पंखे पर पड़ी,
फिर ख्याल आया 
लोग खुदकुशी के लिए
मजबूर क्यों होते हैं?.....
........
...

2 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

चुप रहना जाने कैसा छा गया,
मैं खामोश रहा और जंहा सो गया!

है मेरी ख़ुलूस में आज भी की कह दूं,
पर डर ये है मोहब्ब्त ,जो किया क्या वो मर गया?

रुक कर देख लूँगा उसे किसी चहारदीवारी से,
पर दुख ये की जिस्म की आड़ में वो क्या कर गया ?

है वक़्त है बहुत बाकी उसके पास,
जो वक़्त दे दिया उसे ,सो उसी पर अड़ गया!

2 Love

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दिल-ऐ-मुसाफ़िर!

जंहा का हर इल्ज़ाम आज मेरी कमीज पर है,
देख साकी ये जाम किस गरीब का है!

बंद कर आँखे की अब मयख़ाना बंद है,
तोड़ी गयी है सब बोतलें जैसे सब करीम का है!

उठा कर चला दिया गया है एक भाला तेरे माथे पर,
ऐसा उठा है दर्द जैसे सब रहिम का है!

कँहा है अब ये दुनिया मुसाफिरों कि,
ऐसे भटके है सब जैसे रास्ता ये अजीब सा है!

उधेड़ कर अपना जिस्म हम फिर सी लेंगे,
ये जो लहू निकल रहें हैं ये मजीद का है!

चलो गुसलखानों  के डहर में आशियाँ ढूढें,
यँहा जो सच्चा रहा वो अजीब सा है!

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