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gurudeenverma5507
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Gurudeen Verma

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Gurudeen Verma

White शीर्षक- हम तो हैं परदेश में, क्या खबर हमको देश की
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हम तो हैं परदेश में, क्या खबर हमको देश की।
बहुत दिनों से मिली नहीं, चिट्टी हमको देश की।।
हम तो हैं परदेश में-------------------------।।

हमें मतलबी मत समझना, भूलें नहीं हैं हम तुमको।
प्यार तुम्हारा याद हमें हैं, करते हैं याद हम तुमको।।
तड़पाती है रोज यादें बहुत, सच में हमको देश की।
हम तो हैं परदेश में------------------------।।

पँख लगाकर उड़ आये हम, मजबूरी नहीं हो यदि।
मिल भी जाये वक़्त हमें भी, मजदूरी नहीं हो यदि।।
भेज दो तुम ही तस्वीर अब, अपने हमको देश की।
हम तो हैं परदेश में------------------------।।

वैसे तो यहाँ कमी नहीं कुछ, मिलता है यहाँ प्यार भी।
साथ है साथी बहुत हमारे, अच्छी है यहाँ बयार भी।।
खलती है फिर भी एक कमी, अपने हमको देश की।
हम तो हैं परदेश में--------------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीतकार
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- पसन्द नहीं था खुदा को भी, यह रिश्ता तुम्हारा
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पसन्द नहीं था खुदा को भी, यह रिश्ता तुम्हारा।
लिखा नहीं था नसीब में, उनसे मिलन तुम्हारा।।
मत हो निराश हे दिल तू , कोई बात नहीं, कोई बात नहीं।
पसन्द नहीं था खुदा को भी--------------------------।।

जो है नसीब में, वही तुमको मिलेगा।
किसी का कभी तो साथ, तुमको मिलेगा।।
बाकी है और भी, राहें चलने की।
मत रुक ऐसे तू , नहीं मंजिल को पाकर।।
पसन्द नहीं था खुदा को भी-------------------।।

आँसू बहाने से, गम नहीं मिटेगा।
टूटेगी हिम्मत ही, जोश नहीं बढ़ेगा।।
फूलों को देखकर, तू भी मुस्करा।
मत तू बुझा दीपक, नहीं रोशनी को पाकर।।
पसन्द नहीं था खुदा को भी----------------------।।

इंतजार तेरा भी, होगा किसी को।
तुमसे भी प्यार, होगा किसी को।।
समझना उसे ही तू , अपनी खुशी।
मत तू मिटा हस्ती, नहीं प्यार को पाकर।।
पसन्द नहीं था खुदा को भी----------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीतकार
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Gurudeen Verma

White शीर्षक - कसम, कसम, हाँ तेरी कसम
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कसम,कसम, हाँ तेरी कसम।
करते हैं प्यार तुमको हम।।
इसमें नहीं है कोई शक।
चाहते हैं दिल से तुमको हम।।
कसम, कसम, हाँ-------------------।।

आवो करीब, खत यह पढ़ो तुम।
तस्वीर,चेहरा यह देखो तुम।।
कुछ भी फरेब इसमें नहीं है।
वफ़ा करते हैं तुमसे हम।।
कसम,कसम, हाँ------------------।।

रोशन हैं तारें, यह प्यार देखकर।
महके हैं फूल, यह मिलन देखकर।।
अब कोई डर तुमको नहीं हो।
थामे हैं दामन तेरा हम।।
कसम, कसम, हाँ-----------------।।

कुछ पल का नहीं, साथ हमारा।
उम्रभर का रहेगा, साथ हमारा।।
तुमको बेरोशन नहीं होने देंगे।
कुर्बान हैं दिल से तुझपे हम।।
कसम,कसम, हाँ--------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीतकार
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Gurudeen Verma

शीर्षक - अब तुझपे किसने किया है सितम
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अब तुझपे किसने किया है सितम।
आँसू हैं क्यों अब तेरी आँखों में।।
हम तो अलग तुमसे हो गये।
क्यों नहीं खुशी अब तेरी आँखों में।।
अब तुझपे किसने ---------------------।।

आई नहीं थी तुम्हें तो पसंद।
मोहब्बत हमारी, बस्ती हमारी।।
अब तो तुम हो राजा की रानी।
क्यों नहीं सुकून अब तेरी आँखों में।।
अब तुझपे किसने---------------------।।

कमत्तर तुम्हें तो लगती थी कल।
किस्मत हमारी, हस्ती हमारी।।
अब तो नहीं तुझको कोई कमी।
क्या शेष ख्वाब है अब तेरी आँखों में।।
अब तुझपे किसने--------------------।।

फैली है रोशनी तेरे हर तरफ।
महके हैं फूल तेरे बाग में।।
बहुत फिक्र है तेरी तेरे सनम को।
क्या गम है अब तेरी आँखों में।।
अब तुझपे किसने-----------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीतकार
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Gurudeen Verma

White शीर्षक - जाये तो जाये कहाँ, वतन यह अपना छोड़कर
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जाये तो जाये कहाँ, वतन यह अपना छोड़कर।
जायेंगे हम ना कहीं, चमन यह अपना छोड़कर।।
हम खुश हैं यहीं, हाँ हम खुश हैं यहीं।।
जाये तो जाये कहाँ --------------------------।।

प्यार हमें मिलता है बहुत, यहाँ सभी से सदा।
मिलती है इमदाद बहुत, यहाँ सभी से सदा।।
कहाँ मिलेगा सम्मान इतना, इस जमीं के सिवा।
हम खुश हैं यहीं, हाँ हम खुश हैं यहीं।।
जाये तो जाये कहाँ-------------------------।।

पाला है हमको जन्म से, इस धरती ने प्यार से।
किया है दूर दुःख हमारा, उस धरती ने प्यार से।।
यही तो हमारी है माता, ममता की छाँव ऐसी कहाँ।
हम खुश हैं यहीं, हाँ हम खुश हैं यहीं।।
जाये तो जाये कहाँ------------------------।।

हमारे लिए तो यही है, स्वर्ग- शान्ति और अमन।
जान से प्यारा है हमें, यह वतन और यह चमन।।
होने नहीं देंगे बर्बाद इसको, ऐसा जहां है कहाँ।
हम खुश हैं यहीं, हाँ हम खुश हैं यहीं।।
जाये तो जाये कहाँ------------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीतकार
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Gurudeen Verma

White शीर्षक - क्यों आज हम याद तुम्हें आ गये
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क्यों आज हम याद तुम्हें आ गये।
क्यों आज तुम मिलने हमें आ गये।।
कल तो नहीं थी तुम्हें मिलने की फुर्सत।
क्यों आज तुम मिलने हमें आ गये।।
क्यों आज हम याद-----------------------।।

देख रहा हूँ तुम्हारी कहाँ हैं निगाहें।
मेरा महल देख क्यों भरते हैं आहे।।
छूने से डरते थे तुम मुझको कल तो,
क्यों आज मिलाने हाथ तुम आ गये।।
क्यों आज हम याद------------------।।

कल तक की थी तुमने बुराई हमारी।
करते हो आज सबसे तारीफ हमारी।।
नहीं पूछते थे तुम कल हाल हमारा।
क्यों आज बिछाने फूल तुम आ गये।।
क्यों आज हम याद------------------।।

नहीं था कबूल कल क्यों साथ हमारा।
गैरों की बाँहों में था कल हाथ तुम्हारा।।
तोड़ा था क्यों तुमने कल ख्वाब हमारा।
क्यों आज बनाने साथी तुम आ गये।।
क्यों आज हम याद-------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीत
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- अपनी भूल स्वीकार करें वो
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कल तक बता रहे थे वो, 
अपनी परेशानियां मुझको,
जब तैयार था मैं भी,
लेने को उनसे कर्ज उधार,
वो मुझको समझाते थे,
कि इस पर इतना खर्चा है।

और अब वो निकालकर देते हैं,
उत्सुकता से मुझको उधार रुपये,
बिना मांगे बैंक से निकालकर,
बिना सोचे अपने खर्चे के बारे में,
आँख बन्दकर मुझ पर विश्वास करके।

क्योंकि आज मुझको मिला है,
मेरी नौकरी का पहला वेतन,
और अब वो नहीं करते हैं,
मुझ पर कोई शक किसी प्रकार का,
और उनके उधार को चुकाने का संदेह।

मगर मेरी भी तो है मजबूरियाँ,
मुझको भी तो बनाना है अपना घर,
शायद नहीं दे सकूँ मैं भी उनको,
उनके माँगने पर रुपये उधार,
जबकि मालूम है उनको भी,
मैं भी तो शौकीन हूँ ,
उनके जैसी जीवन शैली का,
अपनी भूल स्वीकार करें वो।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #कविता

कविता

12 Love

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Gurudeen Verma

White शीर्षक - जबकि तड़पता हूँ मैं रातभर
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नहीं ले पाता मैं पूरी नींद,
याद जब किसी की सताती है,
छटपटाता हूँ रातभर मैं,
उनकी बेरुखी को देखकर।

सोचता हूँ मैं,
क्यों नहीं आते वो,
मुझसे मिलने कभी,
क्या प्यार नहीं उनको मुझसे,
क्या धड़कता नहीं उनका हृदय,
मेरे लिए कभी भी।

शायद बेकार की चीज समझते हैं वो,
मुझको और रिश्तों को,
जो जुड़े होते हैं हृदय से,
जीवन में प्रेम की प्रगाढ़ता के लिए।

जब बूढ़ा हो जाता है आदमी,
होता है आँसूओं से भीगा उसका मन,
तब इन्हीं रिश्तों की जरूरत होती है,
शेष जिंदगी को ताकत देने,
बची हुई जिंदगी को जीने के लिए।

शायद वो बहरे हो गये हैं,
कि अब सुनते नहीं है मेरी आवाज को,
नाहक समझते हैं शायद मुझको,
इसलिए नहीं बढ़ाते कदम वो,
मुझसे मिलने के लिए,
जबकि तड़पता हूँ मैं रातभर,
उनके मिलने आने की उम्मीद में।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #कविता

कविता

15 Love

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Gurudeen Verma

White शीर्षक - फूल और भी तो बहुत है, महकाने को जिंदगी
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फूल और भी तो बहुत है, महकाने को जिंदगी।
तो फिर शिकायत करें क्यों, हम जीने को जिंदगी।।
फूल और भी तो बहुत है---------------------।।

आज है शाम सफर में तो, होगी कल को सुबह भी।
आज इससे है खफ़ा तो, होगी कल को सुलह भी।।
राहें और भी तो बहुत है, मंजिल पाने को जिंदगी।
तो फिर शिकायत करें क्यों, हम जीने को जिंदगी।।
फूल और भी तो बहुत है------------------।।

उस यार से क्या मतलब, दिया नहीं हो जिसने साथ।
निकालने को मुसीबत से, मिलाया नहीं हो कभी हाथ।।
साथ और भी तो बहुत है, प्यार देने को जिंदगी।
तो फिर शिकायत करें क्यों, हम जीने को जिंदगी।।
फूल और भी तो बहुत है-------------------।।

उसपे बर्बाद नहीं हो, जिसने किया नहीं आबाद।
तू इश्क उससे छोड़ दें, तू हो जा जी.आज़ाद।।
ख्वाब और भी तो बहुत है, सजाने को जिंदगी।
तो फिर शिकायत करें क्यों, हम जीने को जिंदगी।।
फूल और भी तो बहुत है-------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीतकार
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- इस ठग को क्या नाम दे
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बड़े नम्बरी होते हैं वो आदमी,
जो करते हैं शोषण छोटे आदमी का,
और छीन लेते हैं उधारी चुकाने के नाम पर,
गरीब आदमी की जमीन और आजादी।

लेते हैं काम छोटे आदमी को,
कोल्हू के बैल की तरह दिनरात,
एक वर्ष की मजदूरी बीस हजार देकर,
जबकि होते हैं खर्च पाँच हजार एक माह में।

लेता है ब्याज बहुत वो आदमी,
छोटे आदमी को देकर उधार रुपये,
बड़े ही ठाठ होते हैं इन आदमियों के,
जिनके होते हैं मकां महलनुमा।

होती है उनकी जिंदगी राजा सी,
जिनके एक ही आदेश पर,
हो जाते हैं सारे काम,
और हाजिर नौकर चाकरी में।

कमाता होगा इतने रुपये वह आदमी,
मेहनत की कमाई से कभी भी नहीं,
बनाता है वह अपनी इतनी सम्पत्ति,
भ्रष्टाचार और दो नम्बर की कमाई से।

लेकिन एक ऐसा आदमी भी है,
जो लेता है बड़े आदमी से भी ज्यादा दाम,
करता नहीं रहम वो अपने भाई पर भी,
और कोसता है वह बड़े आदमी,
इस ठग को क्या नाम दे।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #कविता

कविता

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