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manishkumar2330
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manish bauddh

jindgi guljar hai...#123 up

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manish bauddh

अहिल्या बाई होलकर(31 मई -13 अगस्त)

जब गांव में कोई स्त्री-शिक्षा का ख्याल भी मन में नहीं लाता था तब मनकोजी ने अपनी बेटी को घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया।हालाँकि अहिल्या किसी शाही वंश से नहीं थीं। उनका जन्म एक चरवाहे(OBC) परिवार में हुआ था।अपने पति की मृत्यु के पश्चात जब अहिल्याबाई ने सती हो जाने का निर्णय किया तो उनके ससुर मल्हार राव होलकर ने उन्हें रोक दिया। हर एक परिस्थिति में अहिल्या के ससुर उनके साथ खड़े रहे।अहिल्याबाई हर दिन लोगों की समस्याएं दूर करने के लिए सार्वजनिक सभाएं रखतीं थीं। इतिहासकार लिखते हैं कि उन्होंने हमेशा अपने राज्य और अपने लोगों को आगे बढ़ने का हौंसला दिया।ऐनी बेसंट लिखती हैं, “उनके राज में सड़कें दोनों तरफ से वृक्षों से घिरी रहती थीं। राहगीरों के लिए कुएं और विश्रामघर बनवाये गए। गरीब, बेघर लोगों की जरूरतें हमेशा पूरी की गयीं। आदिवासी कबीलों को उन्होंने जंगलों का जीवन छोड़ गांवों में किसानों के रूप में बस जाने के लिए मनाया। हिन्दू और मुस्लमान दोनों धर्मों के लोग सामान भाव से उस महान रानी के श्रद्धेय थे और उनकी लम्बी उम्र की कामना करते थे।”

©manish bauddh जन्म दिवस की हार्दिक बधाई

#SuperBloodMoon

जन्म दिवस की हार्दिक बधाई #SuperBloodMoon

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manish bauddh

होलिका दहन क्यों?
तथाकथित रूढ़िवादी परंपरा के अनुसार, ''हिरण कश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण कश्यप ने आदेश दिया की होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई परंतु प्रहलाद बच गया। ''
यहां यह बात सिद्ध होती है कि होलिका एकदम निर्दोष थी वह धोखे से आग में जली थी। तो मैं पूछना चाहता हूं उन बुद्धिजीवी लोगों से जो प्रत्येक वर्ष होलिका दहन करते हैं कि क्या एक निर्दोष स्त्री को जलाना कहां का इंसाफ है। अगर आप फिर भी इस घिनौने कृत्य को करना अपना सौभाग्य समझते हैं तो मेरी नजर में आप एकदम गंवार और मूर्ख हैं।
और फिर हर वर्ष देते रहिए अपनी मूर्खता का परिचय।

©manish bauddh #coldnights  vimalkishor jalan Preeti shabad prit ke  Siya Pandey  komal sindhe

#coldnights vimalkishor jalan Preeti shabad prit ke Siya Pandey komal sindhe

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manish bauddh

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manish bauddh

जिस समुदाय का राजनीतिक व्यवस्था में प्रतिनिधित्व नहीं है, वह समुदाय मर चुका है।

जिसकी जितनी संख्या भरी उसकी उतनी हिस्सेदारी।

                              मान्यवर कांशीराम साहब

©manish bauddh #Light
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manish bauddh

ऊंची जातियां हमसे पूछती हैं कि हम उन्हें पार्टी में शामिल क्यों नहीं करते, लेकिन मैं उनसे कहता हूं कि आप अन्य सभी दलों का नेतृत्व कर रहे हैं। यदि आप हमारी पार्टी में शामिल होंगे तो आप बदलाव को रोकेंगे। मुझे पार्टी में ऊंची जातियों को लेकर डर लगता है। वे यथास्थिति बनाए रखने की कोशिश करते हैं और हमेशा नेतृत्व संभालने की कोशिश करते हैं। यह सिस्टम को बदलने की प्रक्रिया को रोक देगा।
  
                  मान्यवर कांशीराम साहब

©manish bauddh
  #Light
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manish bauddh

1. अब कभी घर नहीं आऊंगा.
2. कभी अपना घर नहीं खरीदूंगा.
3. गरीबों दलितों का घर ही मेरा घर होगा.
4. सभी रिश्तेदारों से मुक्त रहूंगा
5. किसी के शादी, जन्मदिन, अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होऊंगा.
6. कोई नौकरी नहीं करूंगा.
7. जब तक बाबा साहब अंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो जाता, चैन से नहीं बैठूंगा.
कांशीराम ने इन प्रतिज्ञाओं का पालन किया. वह अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए।

आज जिसने संपूर्ण बहुजन समाज(sc,st,obc) को सामाजिक परिवर्तन से लेकर सत्ता की गलियों तक से रूबरू कराया और अपना पूरा जीवन समाज को सौंप दिया। बहुत दुख होता है जब बहुजन समाज की आधी से ज्यादा आबादी कांशीराम साहेब के त्याग और संघर्ष से अपरिचित होती है।

©manish bauddh #Light
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manish bauddh

चमार रेजिमेंट की स्थापना सन् 1 मार्च 1943 में अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई। इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के समय की गई।जिसे सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली जापानी सेना से लड़ने के लिए भेजा गया था।कोहिमा में चमार रेजीमेंट ने अंग्रेजों की ओर से 1944 में जापानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। यह इतिहास की सबसे खूंखार लड़ाईयों में से एक थी।” उस वक्त दुनिया की सबसे ताकतवर सेना जापान की मानी गई थी. जापान को हराने के लिए अंग्रेजों ने इसका इस्तेमाल किया। कोहिमा के मोर्चे पर इस रेजीमेंट ने सबसे बहादुरी से लड़ाई लड़ी। इसलिए इसे बैटल ऑफ कोहिमा अवार्ड से नवाजा गया था।अंग्रेजों ने इसे आजाद हिंद फौज से मुकाबला करने के लिए सिंगापुर भेजा। रेजीमेंट का नेतृत्व कैप्टन मोहनलाल कुरील कर रहे थे। कैप्टन कुरील ने देखा कि अंग्रेज चमार रेजीमेंट के सैनिकों के हाथों अपने ही देशवासियों को मरवा रहे हैं। इसके बाद उन्‍होंने इसको आजाद हिंद फौज में शामिल कर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने का निर्णय लिया। आजाद हिंद फौज अंडमान निकोबार को अंग्रेजों से आजाद कराया , तब इसमें चमार रेजिमेंट का भी सहयोग था ।तब अंग्रेजों ने 1946 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया।अंग्रेजों से युद्ध के दौरान चमार रेजीमेंट के सैकड़ों सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। कुछ म्यांमार व थाईलैंड के जंगलों में भटक गए। जो पकड़े गए उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। कैप्टन मोहनलाल कुरील को भी युद्धबंदी बना लिया गया। जिन्हें आजादी के बाद रिहा किया गया।

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संत गाडगे जी महाराज
संत गाडगे जी महाराज का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गांव में धोबी परिवार में हुआ था। गाडगे महाराज चलते-फिरते शिक्षक थे। वे पैरों में फटी टूटी चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा ढक कर पैदल यात्रा करते थे। यही उनकी पहचान भी थी। जब किसी गांव में प्रवेश करते थे तो वे तुरंत गांव के रास्तों और नालियों को साफ करने में लग जाते थे। गांव के लोग उन्हें पैसे भी देते थे और गाडगे महाराज उन पैसों का उपयोग सामाजिक कार्य , स्कूल ,धर्मशाला, अस्पताल और जानवरों के रहने की जगह बनवाने में करते थे। गांव की सफाई के बाद शाम को कीर्तन के माध्यम से भी लोगों को अंधविश्वास और पाखंड के विरुद्ध जागरूक भी करते थे। वे अपने कीर्तन में कबीर के दोहों का प्रयोग करते थे। गाडगे महाराज ने शिक्षा पर विशेष कर जोड़ दिया। गाडगे महाराज डॉक्टर अंबेडकर से उम्र में बड़े थे। वे डॉ आंबेडकर से बहुत प्रेरित हुए। बाबा साहब से उनकी मुलाकात कई बार हुई और दोनों एक दूसरे के काम से बहुत प्रसन्न भी हुए। पंढरपुर की धर्मशाला जो गाडगे महाराज ने अछूतों के लिए बनवाई थी उसको उन्होंने डॉक्टर अंबेडकर को सौंप दिया था। 20 दिसंबर 1956 को महान समाज सुधारक और जनकल्याणकारी गाडगे महाराज सब के दिलों में अपने विचारों और आदर्शों की ज्योति जला कर बहुत दूर चले गए।

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छत्रपति शिवाजी महाराज
विषय- क्या शिवाजी हिंदु धर्म के रक्षक थे?
शिवाजी हिंदु धर्म के रक्षक थे यह तर्क सरासर अतार्किक है क्योकि 17वीं शताब्दी में वर्तमान हिंदु धर्म प्रचलन में था ही नहीं।केवल ब्राह्मण धर्म था।चलो मान भी लिया जाए कि हिंदू धर्म था और शिवाजी हिंदु थे।लेकिन पूना के  ब्राह्मण ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया क्योंकि वे शूद्र(obc) थे। तब काशी के ब्रह्मण ने दबाव में आकर उनका राज्याभिषेक किया और वो भी वैदिक मन्त्रों से नहीं पौराणिक मंत्रो के उच्चारण से।क्योंकि शूद्रों का राज्याभिषेक पौराणिक मंत्रो से किया जा सकता था।शिवाजी के तथाकथित गुरु कहे जाने वाले स्वामी रामदास जोकि एक ब्राह्मण था ने उनका राज्याभिषेक क्यों नहीं किया या पूना के किसी और ब्राह्मण से तो करवा ही सकता था और तो और वो राज्याभिषेक में शामिल भी नहीं हुआ। कहा जाता है शिवाजी धार्मिक लड़ाई लड़ रहे थे इसमें भी कोई तर्क नजर नहीं आता क्योंकि शिवाजी की सैना में खुद 30_40% मुस्लिम सैनिक थे। कृष्णा जी भास्कर नामक ब्राह्मण जोकि अफजल खान के यहां रहता था ने शिवाजी पर तलवार से हमला क्यों किया जबकि वे हिंदू धर्म की रक्षा कर रहे थे। और कहा जाता है कि शिवाजी ने हिंदु धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से युद्ध लिए, ये तो एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न है। क्योंकि उस समय भारत पर अधिकतर मुगलों का शासन था और कोई भी राजा अपने राज्य विस्तार के लिए दूसरे प्रांतों या राज्यों पर आक्रमण करता है।अगर शिवाजी मुगलों से युद्ध ना करते तो और क्या छत्रियों को ढूंढ ढूंढ कर उनसे युद्ध करते। sc, st,obc के लोगों ने जो भी पड़ा उसको ही सच मान लिया और अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं किया यही सबसे बड़ी कमजोरी है आज तक पिछड़े रहने का।

©manish bauddh #shivajimaharaj
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manish bauddh

तुम पर कोडों की बरसात हुई

तुम घोड़ों में बांधकर घसीटे गए

फिर भी तुम्हें मारा नहीं जा सका

तुम भागलपुर में सरेआम

फांसी पर लटका दिए गए

फिर भी डरते रहे ज़मींदार और अंग्रेज़

तुम्हारी तिलका (गुस्सैल) आंखों से

मर कर भी तुम मारे नहीं जा सके

तिलका माझी

मंगल पांडेय नहीं, तुम

आधुनिक भारत के पहले विद्रोही थे

©manish bauddh #dilkibaat
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