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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

कोशिश एक ख़यालों की..

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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

एक बुनियाद पड़ रही है सपने की
आँखे साथ साथ हैं किसी अपने की

पकड़ ख्वाहिशों की डोर सुलझा देंगे
क्या हमें कच्चे धागे उलझा देंगे

स्वप्न दूर  तलक नंगे पांव चलेंगे 
दौर बुरा हो तो कई फूल छलेंगे

दर्द होगा सफर में मगर होने दो
सपनो को कहीं मखमली बिछौने दो

इर्द गिर्द तुम्हारे कुछ काटें होंगे
मगर दर्द कई किसि ने बांटे होंगे

पकड़कर उंगली उन एहसासों की
लांघ दो सीमा तुम लाख प्रयासों की

सीमा पार हर वो स्वप्न उदय होगा
दर्द आँसु का खुशियों से विलय होगा

फिर अधरों में मुस्कान सी छायेगी
और अंधेरी रात जगमगायेगी

शर्त एक कि सूरज सा तपना होगा
हर रस्ते को एक दिन नपना होगा

--हिमांशु परौहा
       "भोलू"

©कवि हिमांशु परौहा "भोलू" #friends
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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

#Fondness
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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

#NoMoreCorona
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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

तन तो मिट्टी का है  ,बस मिट्टी का रह जायेगा
चले किस ओर हवा ,किस ओर ये जीवन बह जायेगा
जाय पलट कब और किस ओर ये ताशों सी होती है
जीवन रेखा ,में कीमत तो स्वाशों की होती है

माना की जीवन भर सुविधाओं का ढेर रहा होगा
पर आशा के विपरीत समय भी कुछ देर रहा होगा
रुई मखमल से भारी भाग ,तो काशों की होती है
जीवन रेखा ,में कीमत तो स्वाशों की होती है

कुछ ही होंगे जो शाम ढले तक कुछ पा पाते होंगे
कुछ तो मेरे जैसे इन फूलों सा मुरझाते होंगे
हार जीत जीवन में पल-पल इन पाशों सी होती है
जीवन रेखा ,में कीमत तो स्वाशों की होती है

भावों का सुपरिवेश लगता दूर कहीं हमसे तुमसे
पल पल उर संवेदन भगता दूर कहीं हमसे तुमसे
मानव बिन मानवता की संज्ञा लाशों की होती है
जीवन रेखा ,में कीमत तो स्वाशों की होती है

जीवन है ये कर्म युद्ध यहाँ तो हर क्षण लड़ना होगा
हमको प्रस्फुटन से पहले युँ मिट्टी में गड़ना होगा
हो बहुमूल्य मगर तय उम्र इन आवासों की होती है
जीवन रेखा ,में कीमत तो स्वाशों की होती है
--हिमांशु परौहा"भोलू"

©कवि हिमांशु परौहा "भोलू" #Nodiscrimination
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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

न छोड़ोगे आस तो हम मिल जायेंगे
ध्येय कहता बनके फूल खिल जायेंगे

डिगा कौन नहि इन पथरीली राहों में
बस मन न डिगे पत्थर भी हिल जायेंगे

--हिमांशु परौहा
      "भोलू"

©कवि हिमांशु परौहा "भोलू" #walkingalone
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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

बोलूं कैसे झूठ प्रिये

#SADFLUTE

बोलूं कैसे झूठ प्रिये #SADFLUTE

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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

मन भारी भारी हो रहा है
अस्तित्व स्वयं का खो रहा है

हर ओर उगेंगे काटें ही तु
क्यूँ बीज बहम का बो रहा है

जगकर अहम की धार बहेगी
सोने दो जब तक सो रहा है

है युँ मुस्कान मधुर पर पूँछो
किन किन आँखों से रो रहा है

एक फिर पूरा हो चला और
वो कितने ख्वाब सजो रहा है

--हिमांशु परौहा
     "भोलू"

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कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

#inspirational
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