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girishmishrasyah3311
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Girish Mishra Syahee

I am a Story writer, a versatile Poet and an Anchor..

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Girish Mishra Syahee

Fitrat

Fitrat

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Girish Mishra Syahee

जब मैल मन का न तुमसे धोया गया, 
रंग लिबासो का तब तुम बदलने लगे..
दफ़न करने की चाह इस जंहा को तेरी,
आग खुद ही लगाई और झुलशने लगे..
है घर में पारस पड़े पत्थडों से कहीं,
और तुम पत्थर को हिरा समझने लगे..
कुछ आईने दीवारों पर क्या सजने लगी,
तुम सूरत ही खुद की बदलने लगे..
चार पैसे क्या जेबो में आया तेरे,
तुम खुद को ही भगवान् कहने लगे.. Fitrat

Fitrat

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Girish Mishra Syahee

Corporate..

Corporate..

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Girish Mishra Syahee

Chalnaa Yaar Fir Milte Hai..

Chalnaa Yaar Fir Milte Hai..

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Girish Mishra Syahee

भूल के सारी बंदिश को , आज दिल की बाते सुनते है,
कुछ कच्चे-पक्के धागो से, बिखरी यादो को बुनते है ||
हम नायक भी खलनायक भी, इस खुद की लिखी कहानी के ,
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है |
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है ||
चाय की उस उजरि टपरी पर फिर घूम के आते है, 
सूना है लोग अब भी वंहा चाय संग मट्ठी ही खाते है |
क्या टॉयलेट के बहार, अब भी कतारे लगती होंगी ,
क्या सरोजनी की लड़किया, अब भी वहां सजती होंगी |
क्या कोई फिर से प्लेट में , खाना छोड़ कर जाता होगा |
क्या पनिशमेंट में अब भी, खेम चंद पगलाता होगा ||
याद करो क्या दिन थे वो भी , जब रिंकू मेश चलाता था ,
सरा गला खाना खा कर भी, तब अपना दिन कट जाता था |
बिस्तर पर सोते ही अपने, सरप्राइज वेल बज जाते थे | 
बिना सेविंग पकडे गए तो , होज कंधे पर सज जाते थे |
उस्तादों की उस्तादी भी तब, कहाँ समझ में आती थी ,
उन् सब को मिल कर बस, अपनी ही मारनी होती थी |
किसी के घर से आया खाना, हम खूब लूट कर खाते थे |
कभी कभी छोटी बातो पर, तब काजू भी बन जाते थे |
कुछ की बनी कहानी थी, कुछ अब तक वंहा बेचारा था ,
थे हम कवारे बहुत ही तनहा, बस हाथो का बचा सहारा था |
कुछ रंग थे जो अपने दामन में, वो चुरा गया बंजारा था ,
खुला खुला शौचालय भी, तब कितना हमको प्यारा था ||
स्कोप मीनार से किस वर्कर ने,किसको आँखे मारी थी |
इतना खाना क्यों बचा थाल में, किसकी ये अय्यारी थी ,
वक़्त ने साधा एक नज़र से , एक जंग की तब तैयारी थी 
वो बड़े जोड़ की लात पेट में, किसने चार्ली को मारी थी ||
रिंगटोन में किसकी फ़ोन पर, कौन घास घास चिल्लाता था,
वो कौन था जो जरा जरा कर के, पूरा खाना खा जाता था ,
किसने अपनी ड्राइविंग में, गाडी दिवार पर चढ़ाई  थी, 
रेस्क्यू करके खोखहर ने, तब किसकी जान बचाई थी ||
आयोडेक्स की मालिश थी , कोई घुटनो पर तेल लगता था ,
उस्तादों की चाट चाट कर , पांडे अच्छे नंबर पाता था |
राका का वो सावधान , तब सबका दिल दहलाता था ,
बेरोजगारी के उस दौर में , भाई साब 17 माल घुमाता था |
दिल्ली की सब लड़की राका पर अपनी जान लुटाती थी |
मधुवन में सब मिलकर उसे, चिन्गोटी कटा करती थी |
हर शनि और रविवार को , जब सब गायब हो जाते थे |
तब हम चारो ही बैठ अकेले, मकरा मारा करते थे  ||
उन् सारी यादो को फिर से, दुहराने को दिल करता है,
आये बुढ़ापा उससे पहले , जी लेने को दिल करता है |
फास्मा की दीवारों पर हमने, मिलकर लिखी कहानी थी ,
नौ महीने की थी वो ट्रेनिंग, बस उतनी ही मेरी जवानी थी ||
कैद हुए क्यों हम दीवारों में, चल ना यार निकलते है ,
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है ||
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है || Chal Na Yaar Fir Milte hai

Chal Na Yaar Fir Milte hai #कविता

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Girish Mishra Syahee

Baanjh...

Baanjh...

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Girish Mishra Syahee

Main Kamane Nikla Hun..

Main Kamane Nikla Hun..

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Girish Mishra Syahee

Main Radhika Teri..

Main Radhika Teri..

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Girish Mishra Syahee

Naya Suraj...

Naya Suraj... #कविता

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Girish Mishra Syahee

Naa Uncle Gande hai..

Naa Uncle Gande hai..

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