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Author Harsh Ranjan

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Author Harsh Ranjan

दिमाग वाला होऊं न होऊं।
पैसे वाला होऊं न होऊं।
इज़्ज़त वाला होऊं न होऊं।
प्रतिभा वाला होऊं न होऊं।
...बदलते हालातों ने इतना तो जरूर साबित कर दिया कि अपने साथ ईमानदार जरूर हूँ। Quote

Quote

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Author Harsh Ranjan

जितना तुमने जाना है...
बीतता बीतता रह गया
एक जमाना है।
जितना तुमने माना है...
छूटता छूटता छूट गया
एक ठिकाना है।
जितना तुमसे मिलूंगा...
टूटता टूटता टूटकर
जितना बच जाना है। रचनाकार: हर्ष रंजन
रचना: जितना...

कवर : प्रियंका रंजन

रचनाकार: हर्ष रंजन रचना: जितना... कवर : प्रियंका रंजन

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Author Harsh Ranjan

इतना ही हक़ हमारा था,
बेपरवाह जो छोड़के गए,
मिट जाना नाम पे उनके
अगला फ़र्ज़ हमारा था।
नहीं! कमजोर नहीं हम,
किसी एक नाम के आगे,
ये नाम ही हैं वो अभागे,
अपने अस्तित्व पे रोते हैं,
जो गंगा की लहर त्याग
कुएं के औचित्य ढोते हैं।
जो आज भी पराया धर्म
प्रसाद मानकर ले लेते हैं,
आज भी चैन और सुकून
जो पराया जान सो लेते हैं।
उन सबको याद किया है जो
अपनों के अपने न होते हैं। चुनाव

रचनाकार: हर्ष रंजन

कवर फ़ोटो: प्रियंका रंजन

चुनाव रचनाकार: हर्ष रंजन कवर फ़ोटो: प्रियंका रंजन

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Author Harsh Ranjan

जिंदगी बस गुजार लेंगे....
सुख-दुख कम पड़े तो
देने वालों से उधार लेंगे,
नावें खोजेंगी जो किनारे
चुपचाप वहीं उतार लेंगे।
लहरों के सहारे तैर लेंगे,
क्यों अपने दैव से बैर लेंगे,
कुछ प्रहरों का इम्तिहान है,
एक सांझ होती बिहान है।
इसके परे सब कुछ सिर्फ
एक कही-अनकही कहानी है,
थोड़ी आग है, थोड़ा पानी है,
जितनी जिसने समझी है बस
इतनी ही जिंदगानी है। इतनी ही कहानी है।

रचनाकार: हर्ष रंजन
कवर: प्रियंका रंजन

इतनी ही कहानी है। रचनाकार: हर्ष रंजन कवर: प्रियंका रंजन

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Author Harsh Ranjan

स्याह अंधेरे में,
स्वर्णिम सवेरे में,
अवसाद घनेरे में,
उल्लास बहुतेरे में,
मुड़कर देखता हूँ,
पीछे से एक आवाज आती है,
जिसने कभी बुलाया नहीं निकलते हुए,
वही पुकार आज टूटकर बुलाती है।
मेरे गुजरने के बाद तुमने माना है,
बेहतर वही गुजरा जमाना है! गुजरे जमाने को

रचना: हर्ष रंजन

कवर: प्रियंका रंजन।

गुजरे जमाने को रचना: हर्ष रंजन कवर: प्रियंका रंजन।

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Author Harsh Ranjan

कभी शरद की बारिश में,
कभी ज्येष्ठ की तपिश में,
ये पूछना खुद से,
कभी सुध, कभी बेसुध से,
मौसम चुपके से गुजरता है!
वो महीनों की सीढ़ियां चढ़ता है
हर बरस के घाट पर,
वो संवरता है, बिखरता है,
घड़ियों के साथ पर,
जो भी असहनीय हो,
वांछित हो, लांछित हो,
बुरा हो, भला किंचित हो,
गुजर जाता है एक रोज,
समय की सारी शक्तियों पर
बस यही एक है राजरोग।
तुमसे पूछेगा नहीं, कहेगा नहीं,
वो चुपचाप गुजर जाएगा और
जो बीता है जाने-अनजाने,
कभी लौट न आएगा! समय।
रचनाकार: हर्ष रंजन

कवर फोटो: प्रियंका रंजन।

समय। रचनाकार: हर्ष रंजन कवर फोटो: प्रियंका रंजन।

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Author Harsh Ranjan

देर हो गयी!...
ये तब कहना था
जब एक जीवन गुजर रहा था...
आज तो एक दिन-
कुछ प्रहर गुजरे थे देर बन,
एक नाम पुकारे जाने को,
एक विस्मृत को यादों में बुलाने को...
उन्हें देश अक्सर देर से पहचानता है,
पर वही देश उन्ही की यादों को
आक्रामक हो ठानता है!
आपको लगता है कि
जंग खाया तमंचा,
नीब टूटी हुई कलम,आज भी 
चर्चा का विषय बन बची होगी?
पुष्पों से घायल, दबी-कुचली तमन्नाएं
उनकी, वर्ष के बाद आज फिर
आपकी स्मृति के दीपों में सती होगी! श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि

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Author Harsh Ranjan

कितने गुजर गए इस आस में,
कि उन्हें पानी मिलेगा प्यास में।
कितने गुजर गए इस धुन में
कि आज भी ताकत है पुण्य में।
कितने तड़प रहे हैं द्वारे पर
कि तृप्ति होगी इस इशारे पर।
कितने उम्मीदों में गुजर गए
इधर बेअर्थ आयु से पहर गए।
कितनों ने रोकर रात गुजारी है,
फिर भी उनके दिन महामारी है।
कभी थकी नजरों से देखा है
जिंदगी लंघ गयी लक्ष्मणरेखा है।
होना था एक कठिन योग आसन,
जिंदगी रही राशन और किरासन।
कुछ बेमन से खड़े हैं मोड़ पर,
टूटे को कैसे जोड़ें तोड़कर।
बस यही सोचा है पेट ओढ़कर,
कहाँ जाना है यूँ भाग दौड़कर।
बेबस अब जाएंगे किस ठौर को
देखा अंधियारे घेर गए भोर को! पंक्तियाँ

पंक्तियाँ

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Author Harsh Ranjan

घने बादलों की ओट में,
हृदय की गहरी चोट में,
एक साया पराया है,
जो जिंदगी के लिए माया है
और बेशक जिसने
कई दौरों तक विमुख 
होके भी साथ निभाया है!
तुमने मुझे बताया कि
प्यार वो नहीं सिर्फ जो मिले 
तो चले जन्मों के सिलसिले,
तुमने मुझे ये दिखाया है,
प्यार गर्भ में भले न पले,
चट्टान आलिंगन से गले न गले,
भूले भटके सा कोई स्मृतिचिह्न 
भीतरी अंगों पर मिले न मिले,
यकायक तेज बारिश में भींगकर,
दर्पण में देख खुद पर रीझकर,
पलकों को अश्रु से सींचकर,
एक परिचय पे ध्यान खींचकर
लंबी साँस ले लेना भी
इतवार की सुबह की चाय है,
जो चाहत है, राहत है,
जिसके बिना जीने का मतलब
छह बेदर्द दिनों की आदत है! इतवार की चाय

इतवार की चाय

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Author Harsh Ranjan

वारदात से पहले जागना था सरकार को,
कहा गया कि तब वारदात रुक जाएगी,
सरकार जागती रही, वारदात के बाद तक,
कि वारदात की खबर छापकर सो जाएगी वारदात

वारदात

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