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kunalkumarrakesh8758
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Kunal Kumar Rakesh

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Kunal Kumar Rakesh

तो अब वापस अपने सपनों को,
मेरे वाली दराज में रख कर,
निकालना होगा, चंद पैसे बटोरने,
ज़मीन खरीदनी है
ऊपर वाले दराज में रखे सपनों कि
हूबहू इमारत उस जमीन पर बनाने को।

फिर हिम्मत बची,
सपने बचे, 
वक़्त बचा, 
तो निकलेंगे कभी

वो नीचे वाली दराज से मिलती
कुछ वैसी ही इमारत जमीन पर उतारने को
तब तक
वो वहीं ठीक है।

बहुत खुशनसीब होते हैं वो
जिनके पास, जमीन होती है। दराज में रखे सपने
भाग३

दराज में रखे सपने भाग३

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Kunal Kumar Rakesh

उनसे पूछने पर पता चला,
मेरे सपनो को बनाने के लिए,
जिस मिट्टी की जरूरत थी,
मेरे नन्हे हाथों को,
उन्होंने अपने सपनों में से तोड़ कर दिए थे
सपनों की इमारत, उनकी भी नहीं बनी थी,
उनके तो सपने भी अधूरे छूट गए थे।

उन्होंने कुछ मांगा नहीं,
लेकिन उस पल लगा,
की अब, जब हुनर है,
औजार और हिम्मत भी है,
तो थोड़ी सी ज़मीन खरीद, 
उनके सपनों की इमारत बनाई जाए। दराज में पड़े कुछ सपने

दराज में पड़े कुछ सपने

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Kunal Kumar Rakesh

हो गया?
देख लिए सपने?
चलो अब वापस उसे महफूज़ रख दो
उसी दराज़ में,
देखना, कहीं ठोकर ना लग जाए,
तमाम उम्र से संभाल के रखा है।

सोचा था,
की हूबहू इक इमारत बनाऊंगा
ज़रा, बड़ा हो कर।
सब चीज़ तो थे बनाने को,
हुनर, औजार, हिम्मत।

फिर बड़ा हुआ, 
तो एक और दराज़ दिखी
थोड़ी ऊपर थी वो, 
बचपन में, मेरे पहुंच से ऊपर
इस पर कुछ और परतें थी
धूल की, जमी हुई।
पता नहीं किसकी थी ये।
इक रोज़ पिताजी दिखे,
उस दराज में से,
 कुछ पुराने, हल्के टूटे से
जंग लगे हुए, 
सपने निकाल कर निहारते।
काफ़ी खूबसरत थे। दराज़ में पड़े कुछ सपने
प्रथम भाग

दराज़ में पड़े कुछ सपने प्रथम भाग

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Kunal Kumar Rakesh

उस शाम जब तुम साथ थी मेरे,
हाथों में हाथ डाले,
तुम्हारा क्या था पता नहीं,
मेरा तो वो पहला इश्क़ था।

उस रोज़ जब तुम देखी थी
मेरी आंखों में आंख डाले,
तुमको क्या हुआ था पता नहीं,
मेरा तो सुदबुध सब खो गया था।

उस रोज़ जब रास्ता खोए थे हम
साथ चलते चलते
मेरी उंगलियों से खेल रही थी तुम,
तुम क्या सोच रही थी पता नहीं,
मेरा तो वापस रास्ते पे आने का मन ही नहीं था

अब जब तुम उन बातों को 
वो कुछ भी नहीं था कह के दरकिनार कर देती हो
तुम्हारे लिए तो क्या था पता नहीं,
मेरे लिए तो ज़िन्दगी था।

खैर।

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Kunal Kumar Rakesh

अब जो तू नहीं है
ना तेरे आने की कोई गुंजाइश
ना तुझको वापस ले आने की कोई ख्वाहिश है
ना तेरे होने कि रब से कोई फरमाइश

सब शांत सा लगता है,
एक अजीब से शोर के बीच
ना खुद को संवारने की कोई चाहत,
ना ही कोई खुशी कोई गम बचा।

इस होने या ना होने के एहसास से आजाद
सो चुका है सब,
खो चुका है सब,
हो चुका है सब

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Kunal Kumar Rakesh

अब तुम जो नहीं हो मेरे साथ
तो अपनी बातों में ही तुमसे बात कर लेते हैं,
नहीं हो पाती जो तुमसे बात,
तो लोगों से ही तुम्हारी बात कर लेते हैं।

पता है हमें, अब तुम पलट कर नहीं आओगी,
जिस रास्ते पर आखिरी बार देखा था तुमको
जाते हुए,
आज भी से चार कदम,
हर रोज़ उस तरफ चल लेते हैं।

तुम्हारी कुछ तस्वीरें पड़ी हैं,
पास मेरे, बीते लम्हों को संजोई हुई,
जब भी अकेले होते हैं,
देख लेते हैं।

आओगी तुम एक दिन अचानक,
बिना बताए, बिना किसी कारण,
जैसे गई थी तुम,
खुद को हर रोज़ ये कह कर
किसी तरह सुला लेते हैं।

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Kunal Kumar Rakesh

मेरे शहर में गर कभी आना,
तो लोगों से नज़रें मत मिलाना,
सब ने पढ़ा है आंखों को मेरी,
सब को पता है हर सितम तेरी।

पूछेंगे तो जवाब क्या दोगी?
वो मेरी तरह तुम्हें देखते ही,
ठिठक के ठहरेंगे नहीं,
सवाल करेंगे, और सुनाएंगे,तुमको 
कि किस तरह देखे हैं वो,
सड़को पर बेतहाशा चल रहे,
उन कदमों को जो कभी,
उमंग से भरे ज़िंदादिल रहते थे।
सोच के रखना जवाब सारे
उनके सामने तुम्हारे ये आंसू
काम नहीं आएंगे।

खैर, मेरा काम था बताना,मेरे शहर में
 ज़रा सोच समझ कर आना। तुम और तुम्हारी यादें

तुम और तुम्हारी यादें

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Kunal Kumar Rakesh

जाने से पहले, कुछ तो बोल दिया होता
बहुत गिला है तुम्हे हमसे,
नहीं कुछ तो, शिकायतों का
वो बड़ा सा पिटारा ही खोल लिया होता,
इक बार और कोशिश कर लेते हम मनाने की,
इक बार और तुमने दिल ही तोड़ लिया होता।

इसी बहाने कुछ वक़्त तो मिल जाता
साथ तुम्हारे बिताने को,
कितने बुरे हैं हम, 
जो इक बार फिर से,
तुमने हमें यही जो बोल दिया होता।

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Kunal Kumar Rakesh

सुनो, रहने दो,
तुम वफा की बात मत करो,
ये कस्मे ये वादे,
अब छोड़ो भी, इतना मज़ाक मत करो।

हां हुई खता हमसे,
इश्क़ कर बैठा तुमसे,
अब बस इतना करो,
तुम भी हमसे इश्क़ होने की
ये झूठी बेबुनियाद बात मत करो।

हार जाते हो तो कहते हो,
हमने पहले से चेताया था?
और बहलाते वक़्त कहते हो,
जान दे सकते हो हमारे लिए?
जमीन पर पड़ा था मैं, आंसू थे बेहिसाब
तब तो तुम झुक के छु नहीं पाए इन्हे!
अब चुप रहो, फिर से वही झूठी
जान देने की बात मत करो।

छोड़ गए हो, पता है
बहुत हैं चाहने वाले तुम्हारे,
अब ऐसा करो, 
मिल जाओ गलती से कहीं
याद आने की बात मत करना।

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Kunal Kumar Rakesh

बना ली थी हमने, पूरी इक दुनिया
तेरे नाम से।
बस तेरे क़दमों के छुवन बाकी थी,
तुम आए, तो मुकम्मल हुई ये दुनिया,
अब तेरे जाने के बाद,
सब वीरान सा पड़ा है इसमें।

मैं भटकता रहता हूं इसमें कहीं,
कभी इस गली कभी उस,
सब में हैं घर कुछ बने हुए,
कुछ तुमसे जुड़े यादों के,
कुछ तुमसे जुड़े ख्वाबों के।
कुछ तुम्हारे हमसे किए वादो के
और मेरी बेचारगी देखो,
अपनी ही बनाई दुनिया में,
खो सा जाता हूं हर बार।

रास्ते पर देखते,
तेरा इंतज़ार करते
उम्मीद है, तुम आओगे
डर है, कहीं भूल जाओगे।

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