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sonakshisingh8297
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Sonakshi Singh

*Mass Communication Student

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Sonakshi Singh

(who am I)मैं कौन हूँ....?

कोई ये बता दे कि मैं कौन हूँ ?......
क्या हूँ और क्यों हूँ मैं?.....
क्या आसमान में उड़ती एक आज़ाद पंछी हूँ,
या फिर एक मुसाफिर हूँ,
या फिर सपने और ख्वाहिशों से भरी एक गहरी नींद हूँ
कोई  बता दे कौन हूँ मैं?....
क्या इस मायावी संसार से जुड़ी एक इंसान हूँ ,जिसे डर लगता है अपनों से ही कही मिल जाए ना दगा जिसे,
डर लगता है इन रास्तों से की ये रास्ते चलू या ना और डर लगता है अपने ही सपनों से की कर दे ना ये मुझे तबाह।
खुद की ही पहचान को टटोलने निकली हूँ मैं,
कोई बता दे कौन हूँ मैं?....
मैं आने वाला कल हूँ या गुजरा हुआ उम्र हूँ,
मैं ख़्वाब हूँ या असलियत की किताब हूँ,
मैं होने वाली ज़िन्दगी की शुरूआत हू या आनेवाला अंत हूँ,
मैं बूंद हूँ या सैलाब हूँ,
मैं आग हू या राख़ हूँ,
मैं चांद हूँ या दाग हूँ,
काफी दिनों से परेशान हूँ मैं क्योंकि खुद के ही वजूद से अभी तक अनजान हूँ मैं,
कोई तो बता दे कि कौन हूँ मैं?....
क्या हूँ और क्यों हूँ मैं?...

                      ✍️Sonakshi singh💭 #who am I
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Sonakshi Singh

PHIR_MUSKURAEGA_INDIA🇮🇳
जब साथ देगा सारा इंडिया तो जरूर मुस्कुराएगा इंडिया♥️
Let's gear up for a beautiful tomorrow India
#muskuraegaindia #stayhomestaysafe #messagemodi

PHIR_MUSKURAEGA_INDIA🇮🇳 जब साथ देगा सारा इंडिया तो जरूर मुस्कुराएगा इंडिया♥️ Let's gear up for a beautiful tomorrow India #muskuraegaindia #stayhomestaysafe #messagemodi

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Sonakshi Singh

सालो बाद स्कूल का वो दिन....

उस रात मुझे नींद ही नहीं आ रही थी क्यूकि अगले ही दिन सालो बाद मुझे स्कूल जाना था। दिल और दिमाग में बहुत सी बातें चल रही थी।
अगले दिन ठीक साढ़े नौ बजे में अपने स्कूल के गेट पर खड़ी थी, वो स्कूल जहा मेरे अनगिनत यादे बसी है। डीएवी पब्लिक स्कूल लिखा हुए वो बोर्ड के साथ - साथ वाहा की बहुत सारी चीज़ें बदल चुकी थी पर फिर भी अपना स्कूल तो अपना ही होता है ना। हालांकि में सालो बाद वहां गई थी पर फिर भी जब में वाहा खड़ी थी तो एसा लग रहा था मानो मै वापस से क्लास 11 के उस दिन में आ गई जब मै पहली बार यहां आई थी और जैसे ही स्कूल का गेट खोल कर मै अंदर गई तो हर कुछ मुझे मेरे उस बीते हुए पल में बदल गया।
जब तक मैं वहां खड़ी होकर कुछ सोच ही रही थी तभी मुझे पीछे से एक आवाज आई - (excuse me, plz side didi) और ये आवाज थी जल्दी - जल्दी चल कर आ रही 16 साल की लड़की सोनाक्षी सिंह की जिसकी छोटी - छोटी आंखों में बड़े - बड़े सपने और उम्मीदें थी।
उन दिनों हमारी ज़िन्दगी की सर्कल बहुत छोटी हुआ करती थी बिल्कुल वॉलीबॉल के उस छोटे से कोर्ट की तरह। घर,स्कूल,दोस्ती,प्यार, उम्मीदे,लापरवाही और लड़कपन बस इन सब में ही हमारे दिन गुजरा करते थे। ज़िन्दगी में इतना कुछ करने के बाद आज भी अपने स्कूल के टॉपर्स लिस्ट में लिखा अपना नाम देखकर एक अलग सा प्राउड फील होता है -टॉपर sonakshi singh 82.3% और 2018 वो आखरी साल था जब मै आखरी बार टॉप की थी।
स्कूल के गेट से थोड़ी ही दूर पर रखा एक चेयर और रेडियो मुझे कृष्णा चाचा की याद दिला गई जो हमेशा रेडियो पर एक ही चैनल सुना करते थे क्युकी उनके पास उनकी पसंदिता और पुराने गाने सुने के लिए एंड्रॉइड फोन नहीं हुआ करता था। जो बच्चे लेट हो जाते थे वो कृष्णा चाचा को बातो में फसा कर अंदर घुस जाया करते थे क्युकी 9 बजे के बाद स्कूल आने पर अंदर जाने नहीं दिया जाता था।
स्कूल का वो पहला दिन वो दिन था जब मै अपनी सबसे प्यारी दोस्ती पम्मी से मिली थी, तब किसको पता था कि ये हाइट में छोटी सी दिखने वाली मेरी दोस्त आज आईएएस ऑफिसर बन जाएगी। 
उन दिनों स्कूल बंक कर के सबसे छुपते - छुपाते फिल्म देखने जाना भी बड़ी बात होती थी चाहे वो दोस्त के पैसे से देखना हो या खुद के पैसे से क्युकी स्कूल की बोंडरी क्रॉस कर के बाहर निकलना इतना आसान नहीं होता था। 
स्कूल जाने वाले उन दिनों की सुबह भी कुछ अलग ही हुआ करती थी और हवा में एक अलग सी ऊर्जा और खुशबू हुआ करती थी। हर रोज एसा लगता था जैसे आज कुछ खास होगा और मेरा तो स्कूल का हर दिन ख़ास ही होता था।
स्कूल में पढ़ाते टीचर को देखकर मुझे मेरे टीचर प्रताप सर याद आ गए जिनसे सभी बच्चे डरते थे पर मेरे वो फेवरेट टीचर हुआ करते थे, इसलिए नहीं कि वो मुझे डांटते नहीं थे बल्कि इसलिए क्युकी वो मुझे ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी अच्छी बाते बताते थे।
एक मै थी जो हमेशा स्कूल में एक मार्क्स कम आने के लिए टीचर से लड़ जाती थी और एक वो था मेरे ही क्लास के बगल के क्लास में जिसे पढ़ाई से बिल्कुल मतलब नहीं था, जो मुझसे बिल्कुल अलग था, बिल्कुल पागल और बिल्कुल इंप्रक्टिकल। एक लड़का था शुभम। अगर मुझसे कोई पूछे कि मैंने कभी झूट बोला है या नहीं तो मेरा जवाब ना तो बिल्कुल नहीं हो सकता क्युकी कोई एसा था जिसके लिए मैंने झूट भी बोला था और ना जाने क्या - क्या नहीं किया था। स्कूल एग्जाम्सस  का तो पता नहीं पर दोस्ती के एग्जाम में वो हमेशा टॉप करता था।
स्कूल के मैदान में बैठ कर अभी और भी बाते याद कर ही रही थी कि स्कूल की घंटी बजी और छुटि हो गई। बैग में कॉपी डाल रहे उन सभी बच्चो की तरह मैंने भी अपनी उन सभी यादों को दिल और दिमाग में वापस से समेट लिया और स्कूल के गेट से निकल कर बचपन कि उस दुनिया को छोड़ बड़े लोगो की भाग दौर वाली दुनिया में आ गई।

                  💭 sonakshi singh ✍️
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Sonakshi Singh

My dear Zindagi... ✍️

यु तो हमदोनो बचपन से ही एक दूसरे के साथ है पर शायद आज हैरान होगी तुम मेरे इस खत को पढ़ कर,शायाद आज एक बार फिर से सोचो गी तुम की अब ऐसा क्या बुरा कर दिया मैंने इसके साथ?

पर आज ये खत तुम्हे कोसने के लिए नहीं बल्कि तुम्हारा सुक्रियादा करने के लिए लिख रही हूं।

दिल की बात बताना चाहती हूं तुम्हें, आज कुछ कैहना चाहती हूं तुम्हें।

तुमसे मैंने बहुत कुछ सीखा है, तुमने मुझे बहुत कुछ दिया है।

आने वाले कल की सुबह से पहले तुम्हारे साथ गुजारी हुई हर उस अच्छे और बुरे पल को  याद करती हूं।

जब भी हार जाती हूं तो आंखे बंद कर के तुम्हारे दिए हुए उस सीख को याद करती हूं और हर बार वो सीख मुझे दुनिया से लरने का हौसला दे जाती हैं।

अकेले बैठ कर जब भी तुमसे बाते करती हूं तो दिल को हर उस पूछे गए सवालों का जवाब काफी आसानी से मिल जाता है।

तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो पता है क्यों?, क्युकी तुम मेरे आस - पास रहने वाले उन्न सब लोगो से अलग हो और
मुझे बिना जज किए हुए मेरी हर बाते सुनती हो। मेरे हर गलती को माफ कर के तुम मुझे आगे बढ़ने का हिम्मत देती हो।

थैंक यू हमेशा मेरा हाथ पकड़ कर रखने के लिए और मेरे हर बदलते वकत में मेरा साथ निभाने के लिए।
थैंक यू मेरी जैसी बनकर मुझे अपनाने के लिए। 
थैंक यू मुझे गिरा कर चलना सिखाने के लिए।
थैंक यू मेरी मां बनकर मुझे रिश्तों कि ऐहमियत सिखाने के लिए।
थैंक यू पापा बनकर मुझे हर मुसीबत से जूझना सिखाने के लिए।
थैंक यू मुझे अंधेरे और उजाले दोनों का सफर करना सिखाने के लिए।

अब तुम्हे जादा इमोशनल नहीं करूंगी। अब इस खत का अंत कर रही हूं कुछ अंतिम बातो के साथ :
तुम मेरे अंदर की वो दीप हो जो हमेशा मेरे सपनो को मेरे अंदर बसाए रखता है। अगर मैं एक तस्वीर हूं तो तुम मेरा वो रंग हो जो अगर उतर जाए तो तस्वीर फीका और अधूरा हो जाएगा। कभी - कभी सोचती हूं तो डर जाती हूं कि कैसे बीतेगा वो समय जब तुम से जुदा होकर मौत मुझे गले लगाएगी। पर ये जरूर याद रखना कि जूदा होने के बाद मै समय की नदी को पार कर के एक बार फिर से आऊंगी तुहरे साथ फिर से एक नए सफर की शुरुआत करने। 

लव यू ❤️
तुम्हारी प्यारी सी आवाज सोनाक्षी🙏

                    💭Sonakshi Singh ✍️ #खत #letter
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Sonakshi Singh

ना जाने कब मेरी ना हा में बदल गई....♥️

कॉलेज का वो तीसरा महीना जब लिखा था मुझे तुमसे मिलना,
इकतफाक शायद इसी को कहते है, जब जिसे जहां मिलना होता है वो मिल के ही रहते हैं।
कोई था जो चाहता था मुझे तुमसे मिलाना, कोई था जो लिख रहा था हम दोनों का मिलना।
तो यही मेरी पहली कारन बन गई ,जब मेरी ना हा में बदल गई।

अब भी याद है मुझे वो फेसबुक रिक्वेस्ट वाली रात,जो सेंड की थी तुमने मुझे उस रात।
देखकर उस फेसबुक रिक्वेस्ट को दिल में मेरे आई कई बात, फिर भी मैंने सोचा कि चलो इसे भी एक्सेप्ट कर लेती हूं आज।
कोई था जो चाहता था हमदोनों को पहले दोस्त बनाना ,तभी तो उसने बीच में लाया फासेबुक रिक्वेस्ट का बहाना।
और फिर यही मेरी दूसरी कारण बन गई, जब मेरी ना हा में बदल गई।

फिर हर रोज फेसबुक पर होती थी बहुत सी बात,आखिर आ ही गई वो रात जब उसने की नंबर एक्सचेंज की बात।
पहले तो दिल ने कहा ना यार पर सामने से मेसेज आई ट्रस्ट मी यार, पढ़ कर वो मेसेज मैंने नंबर दे दी यार।
पर अब भी मेरे दिल में नहीं हुई थी उसके लिए प्यार की शुरुआत, फिर भी इन सब बातो से एसा लग रहा था जैसे कोई था जो चाहता था कि हो कोई नई शुरुआत।
और फिर यही मेरी तीसरी कारण बन गई, जब मेरी ना हा में बदल गई।

तो अब होने लगी थी कॉल पर बात, फिर हुई लेट नाईट टॉक की शुरुआत।
एक दिन मेरे दिल ने कहा तो मैंने उसे पूछा कि क्यों करते हो मुझसे इतनी देर तक बात as a friend या मानते हो मुझे कोई ख़ास? तो उसने कहा कि मिलोगी तो बताऊंगा की क्या है ख़ास।
कोई और भी था जो चाहता था कि हो हमारी ये मुलाकात। और फिर यही मेरी चोथी कारण बन गई, जब मेरी ना हा में बदल गई।

फिर आई एक शाम जब साथ चल रहे थे दो अंजान। दोनों के दिल में बहुत सी बातें थीं जो सुनी और सुनानी थी। मैंने फिर पूछा उसे की क्या है वो ख़ास जो बताना चाहते थे तुम आकर पास। उसने कहा कि देख कर पहली नजर में हो गया था तुमसे प्यार रिएली में आई लव यू यार। मैंने तो उससे ना बोल दिया पर पता नहीं क्यों मेरे कदम उसके साथ थोड़ा और चलना चाहते थे।
कोई था जो हम-दोनों का एक नया सफर शुरू करना चाह रहा था। और फिर यही मेरी पांचवी कारण बन गई, जब मेरी ना हा में बदल गई।

क्या पता था कि ज़िन्दगी में एक नया मोड़ आएगा, तुम्हे में कितना भी ना बोलू पर ये दिल तेरी ओर ही जाएगा।
ना जाने क्यों ना चाहते हुए भी चली आती थी, तेरी एक फोन कॉल पर तुझसे मिलने आ जाती थी। दिल कहता था कि थम जा और कह दे हा, पर ये दिमाग कहता था ना - बाबा - ना।
हा उसी दिन से शायद ये इकरार हो रहा था, क्युकी मुझे भी तुमसे प्यार हो रहा था। फिर मेरे दिल ने कहा चलो प्रखती हूं इसे आज,की कब तक कर सकता है ये मेरा इंतज़ार। बहुत दिन तक टाला यार पर फिर मान ही लिया तेरा प्यार, एसा लग था जैसे तेरी आदत सी हो गई है मुझे यार। बस फिर क्या एक शाम मैंने भी मिलकर कर ही दी इजहार की हा - हा मुझे भी हो गया है तुमसे प्यार आई लव यू टू यार।
यही मेरी अंतिम और आखरी कारण बन गई , इसी तरह मेरी ना हा में बदल गई।

                         ♥️sonamar♥️
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Sonakshi Singh

ये उन दिनों की बात है .....💭

ये उन दिनों की बात है जब मै १२ का एग्जाम देकर वापस लौट रही थी। हालाकि आने वाला कल का एग्जाम मेरा आखरी एग्जाम होने वाला था और ये आखरी दिन आने में काफी समय लगा था पर उस दिन जब मै वापस आ रही थी तो एसा लग रहा था मानो ये एग्जाम कुछ दिन पहले ही शुरू हुई थी और इतनी जल्दी खतम हो रही हैं। बोर्ड एग्जाम के इस पूरे पीरियड में बहुत तरह की बातें दिमाग़ में चल रही थी। 

अपने घर के उस कमरे में जब भी मै पढ़ने बैठती थी तो पेढ़ते - पढ़ते हमेशा अपने क्लास १२ के बीते हुए उन लम्हों में खो जाती थी ,जब दोस्ती ज़िन्दगी का बहुत ही जरूरी और प्यारा रिश्ता होता था। हम सब को कहीं ना कहीं ये जरूर पता था कि ये शायद दोस्ती का आखरी पल होगा पर फिर भी इस बात को भुलाकर हम सब बस उस पल को जी रहे थे। 
साथ सब हस तो रहे थे पर उन हस्ते चेहरों मै भी बिछड़ने का गम छुपा था। एक दूसरे को सब यही केह रहे थे कि हम मिलते रहेंगे पर वो महज़ एक बात बन कर रह जाने वाली थी। एसा लग रहा था जैसे एक रिश्तों का साथ छुटने वाला था।

और ये सब सोचते - सोचते जैसे ही मुझे मेरे घर की टन - टन बजने वाली घडी की घंटी सुनाई देती थी वैसे ही वो सारी बाते और यादे मेरे दिमाग से छू हो जाती थी और वापस से मै एग्जाम के उस प्रेशर में आ जाती थी और पढ़ने लग जाती थी।

 💭Sonakshi singh ♥️
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Sonakshi Singh

लिखने जाता था जब भी किताब के उन कोरे पनो में तो मेरी भानाएं मौसम की तरह बदल जाती थी। 

मोबाइल फोन में जब भी देखता था तस्वीरो की उन धुंधली यादों को तो इन बूढे आखो को चश्मे की जरूरत पड़ जाती थी।

मुझे याद है गाड़ी में किए गए उस सुनी सड़क का सफर जो एक दास्तां बनकर मेरे आंखों में पानी के बूंद की तरह छलक जाती थी।

काश मै लौट जाऊं बचपन के उन हसीन यादो की गलियों में जहां पहाड़ के बीच ज़िन्दगी काफी सुकून से गुजर जाती थी।

मां के हाथों की बनी वो झोल की सब्जी सारे टेंशन को पल में छु कर जाती थी और पापा के साथ गुजारी हुई हर छुट्टी कुछ नया सीखा जाती थी।

याद आती है मुझे स्कूल की वो बाते जब एक ही बॉटल से सबका प्यास बुझ जाता था और भूख लगते ही किसी भी पीरियड में दोस्त का टिफिन खुल जाता था।

आज बरसो बाद कॉलेज का वो दिन याद आया है जब दोस्ती के कुछ यादगार रिश्ते चाए की टप्री पर चाए पीते - पीते बन जाते थे।

ऑफिस का खाना खाते - खाते हो गया था एक अरसा, मां के हाथो की रोटी खाने को मै था तरसा और
जैसे ही घर की याद आती थी मेरी भूख एक बार फिर से मिट जाती थी।

ज़िन्दगी के पोडियम पर खरे होकर जब भी मैं मन की इन बातो को दोहराता था तो ये शब्दों के जाल से एक कविता बन जाता था।

💭Sonakshi Singh💭


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