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आलोक कुमार

गणित विषय की अच्छी समझ

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आलोक कुमार

हार और जीत हार और जीत शायद क्रमशः उत्तरी ध्रुव और  दक्षिणी ध्रुव  में ही निवास करते हैं. यानी जहां पर बहुसंख्य लोग निवास करते हैं वो हमेशा हार में ही हैं और जहां पर नगण्य लोग ही प्रवेश कर पाए, वो जीत गए. अबतक विश्व के सभी लोग अपने आप के द्वारा किए गए कर्म में हमेशा जीत में ही रहना पसंद करते हैं, लेकिन उनमे से कुछ ही लोग (अंटार्कटिका महादेश में पहुंचने की योग्यता रखने वाले) ही जीत में अपने आप को समझें तो ही बेहतर कल होगा. मेरा यह आशय है कि जिस प्रकार बर्फ से घिरे क्षेत्र, जहां जाना तो छोड़िए, बस सोचने की कल्पना रखना भी दूर की परिकल्पना है और जो वहां पहुंचने में सफल हो जाते हैं. असलियत में जीते वही हैं. अर्थात्‌ जीत समझने के लिए काफी बेबाक परिश्रम की जरूरत पड़ती है. केवल मन में सोचने से जीत नहीं हो जाती. इसलिये अपने अंदर के "कलाम" को जगाये. 
"जय हिंद" हार और जीत का सफल मंत्र

हार और जीत का सफल मंत्र

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आलोक कुमार

बस यूँ ही चलते-चलते .........
जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त

आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त

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आलोक कुमार

आखिरी फैसला मित्रों....बस यूँ ही चलते-चलते 
अपने देश में विभिन्न सरकारों द्वारा किसी सन्दर्भित विषय पर लिए गए फैसलों में से  किन फैसलों को आप चिरस्थायी काल तक विद्यमान रहने एवं सभी भारतवासियों द्वारा  स्वीकार्य फैसला मानते हैं और जिसे "आख़िरी फ़ैसला" की संज्ञा देने की बात मन में दौड़ाने की कल्पना कर सकें. शायद ऐसा कोई फैसला दूर-दूर तक अब तक नजर आया ही नहीं. तो फिर आख़िरी फ़ैसला का तो जिक्र करना बेवकूफ़ी और मूर्खतापूर्ण भरी ही परिपाटी होगी. तो फिर "आख़िरी फ़ैसला" का प्रारुप, आलेख एवं श्रोत का माध्यम किसे बनाना उचित होगा. जैसा कि अब तक संविधान रूपी मानव के  दिशानिर्देशों एवं प्रावधानों के आधार पर "आख़िरी फ़ैसला" दिया जाता रहा है, जो कि एक-दूसरे के लिए वर्ग के आधार पर खुद में ही अलग-थलग हुआ है. अब सत्तर साल गुज़र चुके हैं, जो कि वर्तमानकालीन वातावरण के अनुसार मानवों के औसत उम्र 60 वर्ष से 10 वर्ष ज्यादा भी हैं. इसलिए अब नए वातावरण के अनुसार संविधान रूपी मानव की पदस्थापना करना अत्यावश्यक होना भी लाज़िमी हो गयी है. मेरा मानना है कि यह इक्कीसवी शताब्दी की पहली "आख़िरी फ़ैसला" बन जाएगी.
सधन्यवाद............... "इक्कीसवी शताब्दी का बड़ा ही निहितार्थ एवं चरितार्थ पहला 'आख़िरी फ़ैसला'"

"इक्कीसवी शताब्दी का बड़ा ही निहितार्थ एवं चरितार्थ पहला 'आख़िरी फ़ैसला'"

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आलोक कुमार

अधूरा सच अगर कोई काम पूरा न हो तो उसे अधूरा काम कहते हैं और यह सबके सामने दृष्टिगोचर भी होता है. लेकिन कभी आपने यह समझने की कोशिशें की हैं कि अधूरा सच किसे कहते हैं और इसका प्रारूप क्या रहता होगा. इसे मैं एक उदाहरण से समझाने की कोशिश कर रहा हूँ. शायद आप समझ जायेंगे. विभिन्न समितियों/परिषदों/आयोगों/संस्थाओं के द्वारा नगण्य मानवों के सुझावों के आधार पर असंख्य लोगों के लिए बाध्यकारी फैसले प्रावधान में लाना तो एक अनसुलझी पहेली सी बन गई है. इसे कुछ समुदायों के लिए पूरा सच और अनेकों समुदायों के लिए अधूरा सच कहना गलत न होगा. अर्थात्‌ भारतवर्ष के स्वतन्त्रता के बाद लिए गए बहुत से फैसले अब पूरे सच से अधूरे सच साबित हो गए हैं. जम्मू-कश्मीर का मसला इसका जीता-जागता सबूत आपके खिदमत में दस्तक दे चुका है. तो फिर भारत सरकार ने संविधान का एकाध पत्ता जैसे 370 और 35A तो तोड़ कर एक अधूरे सच को पूरा सच बना दिया, ठीक वैसे ही संविधान रूपी पेड़ के और भी निष्क्रिय पत्तों को तोड़ना ही होगा. इससे "अधूरे" शब्द का नामोनिशान ही मिट जाएगा और देश बिना किसी भेदभाव के प्रगति के पथ पर दोगुनी तेजी से अग्रसर होगा. प्रिय देशवासियों को मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं. जय हिंद. जय जवान जय किसान जय विज्ञान जय अनुसंधान........ जय संविधान

जय जवान जय किसान जय विज्ञान जय अनुसंधान........ जय संविधान

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आलोक कुमार

जैसा कि हम सभी जानते है कि राष्ट्रीय शिक्षक दिवस भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जयंती के अवसर पर मनाते हैं. साथ ही हमें यह भी जान लेना चाहिए कि हमने राष्ट्रीय शिक्षा दिवस भारतवर्ष के प्रथम शिक्षा मंत्री स्वर्गीय अबुल कलाम आजाद के जयंती के अवसर पर काफी वर्षो के बाद मनाना शुरू किया है. तो इससे साफ़ स्पष्ट है कि शिक्षक और शिक्षा का अन्तर बहुत ही ज्यादा है. लेकिन आप इससे घबराये नहीं, क्योंकि इस अन्तर को निकालने की जरूरत के लिए वर्ष 2009 तक का लंबा इंतजार करना पड़ा है. प्राचीन शिक्षक और आधुनिक शिक्षक में क्रमशः अन्तर्निहित शिक्षा तथा देने योग्य शिक्षा के बीच का अन्तर भी इससे ही निकाल लीजिए. अरे शिक्षक तो वो होते हैं जो जीवन भर किताबों के साथ-साथ विद्यार्थियों से भी निरंतर कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं. मेरे गुरु श्री अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव को शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर सादर प्रणाम और ढेर सारी शुभकामनायें. सर यदि मेरी ये बात पसंद आयी हो तो कृपया आप कुछ और भी इस सन्दर्भ मे मार्गदर्शन करें.

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आलोक कुमार

रास्ते क्या कभी आपने यह भी सोचा है कि हम सभी के रास्ते अलग-अलग क्यों हैं? बस यूँ ही चलते-चलते मुझे कुछ इस विषय पर समझ हुई कि इसके पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं, लेकिन इन अनेकों कारणों में से एक ही कारण सभी कारणों का मूल है- वन नेशन वन कार्ड हो सकती है, वन रैंक वन पेंशन हो सकती है, वन आई.ए.ए.डी वन सिस्टम आदि जैसी योजना चलाकर सरदार पटेल की सोच "एक भारत श्रेष्ठ भारत" को साकार करने की कोशिशें बदस्तूर जारी है. तो क्यों नहीं समान नागरिक संहिता को लागू करते हुए भी यह कोशिशें की जाय. शायद तभी  "एक भारत श्रेष्ठ भारत" की योजना सफल एवं सकेन्द्रित होते हुए भारत के सभी नागरिकों को एक गोले के अंदर लाएगी.

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आलोक कुमार

मज़बूर भारतीय संविधान लागू होने के लगभग सत्तर साल गुजर जाने के बाद भी भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी मजबूरी "जाति आधारित आरक्षण" को जारी रखने की ही है. लेकिन इससे भावी भारत सरकार को बचने या फिर इसमे उत्तरोत्तर कटौतियों का उपाय ढूंढना तो मजबूरी नहीं होनी चाहिये. मेरे पास कुछ सुझाव हैं. केंद्र सरकार के विभागों/कार्यालयों में कार्यरत सभी कर्मियों/अधिकारियों के सेवापुस्त में वर्णित सभी आश्रितों को केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त योजनाओं यथा केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना, शिशु शिक्षण भत्ता एवं छुट्टी यात्रा भत्ता आदि का हवाला देते हुए आरक्षण का लाभ नहीं देने की समेकित योजना बनानी चाहिए. इससे कम से कम एक प्रतिशत भारतीय आरक्षण से मुक्त हो जायेंगे और साथ ही यह प्रतिशत पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती जायेगी. यदि यह योजना सफल हो गई हो तो फिर सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश खुद इसका अनुसरण करने लगेंगे. तो जरा सोचिए पिछला प्रतिशत समय दर समय किस रफ्तार से भागेगी.

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आलोक कुमार

हमलोग को आजादी किन-किन चीजों से मिली थी और क्या हमलोग आज भी उन सभी चीजों से आजाद हुए हैं. अरे सबसे बड़ी और कीमती आजादी तो आपसी समान विचारधारा की आजादी होती है, जो आजतक सम्भव नहीं हो पायी है. इसके पीछे सबसे बड़ा और प्रभावी कारण है "जाति आधारित आरक्षण". इससे जिस दिन देश को मुक्ति मिल जाएगी, तब ही यह समझना उचित होगा कि अब हमलोग को आज़ादी प्राप्त हो गयी है. आजादी का सही और सटीक भावार्थ...

आजादी का सही और सटीक भावार्थ... #विचार

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