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satyamthakur7042
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satyam thakur

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satyam thakur

मोहब्बत की कश्ती, नसीहतों की पतवार..!
गैरों से भरी नदी, मोहब्बत पल में तार तार ..!

©satyam thakur
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satyam thakur

मैं अपने बारे में लिखूं भी तो क्या लिखूं
थोड़ा अच्छा, या काफ़ी बुरा लिखूं ..!
मैं कहानी हूं पूरी या क़िस्सा अधूरा लिखूं
मैं कौन हूं , मैं ख़ुदको क्या लिखूं ..!
अपनी उम्र से, तजुर्बे में बड़ा लिखूं
या उम्मीदों की लाशों पर मैं चला लिखूं ..!
हजारों लोगों से मिलता हूं रात दिन
खुद से एक अरसे से न मिला लिखूं ..!
ना समझेगा कोई, भला मैं क्या लिखूं
लोग समझते है सुलझा हुआ, भला क्यूं उलझा लिखूं ..!
मैं अपने बारे में ज्यादा जानता ही नहीं
चलो छोड़ो भी, मैं ख़ुद को आज सरफिरा लिखूं ..!

©satyam thakur
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satyam thakur

नीद को मेरी नीद आती तो बहुत है 
ज़िंदगी मेरी मुझे मगर, जगाती बहुत है..!
बंद करता हूं दरवाज़ा ख़ुद ही मैं हाथों से अपने
ज़िंदगी फिर भी, अकेला महसूस कराती बहुत है ..!
मैं छोड़ कर आया हूं घर, आप की खातिर
पर गालियां अपने शहर की,बुलाती बहुत है..!
एक तरफ़ दिन उधेड़ देता है, उम्मीदों के तार 
और रात है की, ख़्वाब दिखाती बहुत है..!
नीद को मेरी, नीद आती बहुत है
ज़िंदगी मेरी मुझे मगर, जगाती बहुत है..!

©satyam thakur
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satyam thakur

लक्ष्य भी है, मंज़र भी है,
चुभता मुश्किलों का, खंजर भी है!!
प्यास भी है, आस भी है,
ख्वाबों का उलझा, एहसास भी है!!
रहता भी है, सहता भी है,
बनकर दरिया सा, बहता भी है !!
पाता भी है, खोता भी है,
लिपट लिपट कर फिर, रोता भी है!!
थकता भी है, चलता भी है,
मोम सा दुखों में, पिघलता भी है!!
गिरता भी है, संभलता भी है,
सपने फिर से नए, बुनता भी है!!

©satyam thakur
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satyam thakur

सोलह श्रृंगार की सारी बातें एक तरफ
हल्के काजल की तेरी आंखे एक तरफ..!
मैं करता हूं लाखों बातें वैसे दिन भर
पर तुझसे हुई वो दो चार बाते एक तरफ ..!
वैसे ये रात,ये बादल,चांद खूब नज़ारे है
बादलों सी लहराती लेकिन तेरी जुल्फ़े एक तरफ..!
नशें की वैसे खूब चीज़े है दुनिया में
लबों का लेकिन जाम तुम्हारा एक तरफ..!
वैसे सपने है सारे मेरे कई लेकिन
देखूं जो एक ख़्वाब तुम्हारा एक तरफ..!

©satyam thakur ❤️

❤️ #Quotes

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satyam thakur

जाते जाते भी,मेरे सर पर इल्ज़ाम रह गया
उस के घर पर मेरा कोई, सामान रह गया ..!
मैं घर छोड़ के अपना, नया घर बनाने चला था
बाप दहलीज पर, खड़ा ही रह गया..!
इश्क के समंदर में, तैरना तो ठीक था
जो मैं डूबा यहां, घर मेरा वहां ढह गया ..!
बर्बादी और आबादी का, रास्ता एक है
निकला था वहां जाने, पैर जाने कहा पड़ गया..!
कर्ज़ मोहोब्बत का, उतारने निकला था
मां का कर्ज़, सर पर चढ़ा रह गया ..!
कुछ और पाने की, ख्वाहिश पालते रहा
जो हाथ में था, वो धरा का धरा ही रह गया ..!

©satyam thakur
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satyam thakur

मुझमें मेरा रहा कुछ अच्छा साथ नहीं
 डर था तुमसे दूर जाने का, दूर जाने के बाद लगा वो डर कुछ ख़ास नहीं...!

©satyam thakur
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satyam thakur

उसे किसी और की गजलों में देखा ,
यार वो किसी और को भी प्यारा था

©satyam thakur
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satyam thakur

न   जानें….कितनी  चीखें..हृदय   में  चीखती हैं
कुलबुलाती  हैं…
    फिर   दब   जाती   हैं…
       खामोश   हो   जाती  हैं….बस   चीखकर  ही…
हृदय   से   टकरा टकराकर.. चीख चीख कर  हृदय   में   ही   दम   तोड़  डालती   हैं…..
सत्यम ठाकुर

©satyam thakur
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satyam thakur

Maa  तेरा गर साथ हो तो मुश्किलों से जीत जाते हैं
घने कोहरे में भी हम रोशनी की ज्योति पाते हैं
अगर जो रूठ जाए तूँ तो दुनिया रूठ जाएगी
तेरे होने से मेरे दिल में भी गुल खिलखिलाते हैं
सत्यम ठाकुर

©satyam thakur
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