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alpdev3140308131592
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AlpDev

कलम की मस्तानी मेरी क्या खूब है माँ मेरी कलम भी तेरी दीवानी है।।

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AlpDev

शायद...

#tears

शायद... #tears

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AlpDev

हर रोज़ होते हैं मसले नए अपनों से मेरे फासले नए,
हर रोज़ हार कर भी मिल जाते हैं मुझे जीने के हौंसले नए,

हर रोज़ गर्म मिजाज़ी हम अपनी संभाल कर,
ख़ुद हुए बेबस हम अपनों को तमाम समझाइश दिए बैठते हैं,

हर रोज़ हर दफ़ा ग़लतफहमीयों को मिटाने की नियत लिए,
सारे दाग़ अपनों के हम सर अपने ही ले बैठते हैं,

मजबूरी हमारी क्यों लगती हैं कमज़ोरी अक्सर इस बज़्म को,
इन मजबूरियों को ही अपनी हम ज़िम्मेदारियां समझ बैठते हैं,

तक़दीर के तख़्ते पर रब की रहमतों से वो एक दिन नसीब होता है,
साथ पुराने यारों के जिस दिन हम ताउम्र का सुकून ढूंढ लिया करते हैं,

हर रोज़ मौत को न‌ए नए बहानेबाजीयों से दे कर चकमा,
चुपके चुपके ही बस दो लम्हें हम सुकून भरे जी लिया करते हैं।

©AlpDev #Stars&Me
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AlpDev

कैसे गुज़रती होगी ज़िन्दगी तक़दीर में जिनके कोई हमसफ़र नहीं,
हमें तो अब ये उम्र सारी उनके यादों के साथ ही गुज़ारना है,

कैसे कटता होगा वक़्त उनका जिनके तक़दीर में हो बस तन्हाई,
हमें तो इसी तन्हाई के संग ये सफ़र ताउम्र अब अपना काटना है,

कैसी होती होगी शामें उस मेहफ़िल में जहां नज़र ना आए कोई अपना,
हमें तो अपने इसी सूने से आंगन को अकेलेपन के साए में अब संवारना है,

कैसा होता होगा वो लम्हा बांटने को दर्द जब नज़र ना आए कोई हमदर्द,
हमें तो अब ख़ुद से ही ये सारा का सारा दर्द बांटना है,

कैसी लगती होंगी वो निगाहें किसी के आने की आस में तरसती हुईं,
हमें तू अपना यही सूनापन अपनी सूनी सी निगाहों से अब निहारना है,

कैसे संभलते होंगे लोग अक्सर ज़िन्दगी की मार खा कर,
झूठी आस से मन भर गया हमारा कि अब तो ख़ुद को ख़ुद ही संभालना है।

©AlpDev #evening
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AlpDev

देख लिया हर शहर बदल कर,
मगर मोहब्बत-ए-मय-ओ-माशुक़ सी अपनी फितरत ना बदल पाए हम,
जिस जिस शहर में चर्चे तुम्हारे सुने,
वो हर शहर से नाता तोड़ आए हम,
लौट आए हम उस हर मुकाम से,


जिस पर पोहोंच कर सिर्फ़ तुम्हारी यादें ही होती थी हासिल हमें,
जिन ख़्वाबों में सिर्फ़ तुम हुआ करती थी,
उस हर ख़्वाब से हमें अब बस शिकायत है,
जिस अंदाज़-ए-इनायत पर तुम्हारे,
हमारे शामें रंगीन हुआ करती थीं कभी,
उन शामों से हमें अब बेहद नफ़रत है,
उन ख़्वाबों को ख़यालातों को हसरतों को उन तमाम इबादतों को अपनी,


पीछे अपने छोड़ आए हम,
जिस जिस शहर में चर्चे तुम्हारे सुने,
वो हर शहर से नाता तोड़ आए हम,
जिस जिस शहर में चर्चे तुम्हारे सुने,
वो हर शहर से नाता तोड़ आए हम।।
©अल्पदेव
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 #Stars&Me
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AlpDev

ना करीब कोई हमारे आज फ़िर भी, 
ऐ वक्त बुरे मेरे सुन ज़रा अल्फ़ाज़ कुछ यूँ मेरे,
कि बन कर मौत मेरा कतल कर सकता है तू मगर,
बन कर हार मेरी मेरा खात्मा नहीं...
©अल्पदेव
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 #dawn
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AlpDev

#OpenPoetry ऐ_मेरे_वतन_2.

जैसे अंश माँ भारती के सारे,
एक अंश माँ का निलाम करने चले थे,
वो कश्मीर तो युगों से हमारा ही था मगर फ़िर भी क्यों,
बगावत फ़िज़ूल की वो हमसे करने चले थे।।

कि भीतर हर एक हिंदुस्तानी के,
देश प्रेम रगों से रागों तक बसा है,
शायद भूल बैठे थे सारे,
ज़र्रे ज़र्रे में हमारे,
देश प्रेम का एक अलग ही नशा है।।

ऐ वतन मेरे
मुझपर हैं तेरे कई एहसान,
मेरी पहचान मेरा ईमान है तू,
मेरे वतन मेरी जान है तू।।
मेरा अस्तित्व मेरी शक्सियत है तूझसे,
संतान हम सारे तेरे,
हमारा अभिमान है तू,
माँ हमारा अभिमान है तू।। जान की बात करते हो रुह भी निलाम कर देंगे,
गुरूर है अभिमान है ये हिंदुस्तान हमारा,
आंच आई ज़रा भी हमारे मुल्क़ पर,
सरेआम गद्दारों का कत्लेआम कर देंगे।।
माँ भारती की संतान हैं हम,
मौत को भी हम डरते नहीं,
जो दाग माँ पे लगाने की करोगे कोशिश,
हर कोशिश हम गद्दारों की नाकाम कर देंगे,

जान की बात करते हो रुह भी निलाम कर देंगे, गुरूर है अभिमान है ये हिंदुस्तान हमारा, आंच आई ज़रा भी हमारे मुल्क़ पर, सरेआम गद्दारों का कत्लेआम कर देंगे।। माँ भारती की संतान हैं हम, मौत को भी हम डरते नहीं, जो दाग माँ पे लगाने की करोगे कोशिश, हर कोशिश हम गद्दारों की नाकाम कर देंगे, #OpenPoetry

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AlpDev

#OpenPoetry ऐ_वतन_मेरे_1.

ऐ वतन मेरे
मुझपर हैं तेरे कई एहसान,
मेरी पहचान मेरा ईमान है तू,
मेरे वतन मेरी जान है तू।।
मेरा अस्तित्व मेरी शक्सियत है तूझसे,
संतान हम सारे तेरे,
हमारा अभिमान है तू।।

इक तरफ़ अम्मी का प्यार 
इक ओर माँ का दुलार,
इक ओर भाईजान के संग मस्ती,
इक तरफ़ भाईयों के साथ शरारतें बेशुमार,
सलाम करता सम्मान से हमारे,
इस मुल्क को सारा संसार।।

गुजरात से मनिपुर हो या फ़िर,
कश्मिर से हो कन्याकुमारी,
सुकून की नींद हो या पेट भर भोजन हो,
ऐ भाई जवान ऐ भाई मेरे किसान,
आवाम ये सारी तुम्हारे आभारी।। जान की बात करते हो रुह भी निलाम कर देंगे,
गुरूर है अभिमान है ये हिंदुस्तान हमारा,
आंच आई ज़रा भी हमारे मुल्क़ पर,
सरेआम गद्दारों का कत्लेआम कर देंगे।।
माँ भारती की संतान हैं हम,
मौत को भी हम डरते नहीं,
जो दाग माँ पे लगाने की करोगे कोशिश,
हर कोशिश हम गद्दारों की नाकाम कर देंगे,

जान की बात करते हो रुह भी निलाम कर देंगे, गुरूर है अभिमान है ये हिंदुस्तान हमारा, आंच आई ज़रा भी हमारे मुल्क़ पर, सरेआम गद्दारों का कत्लेआम कर देंगे।। माँ भारती की संतान हैं हम, मौत को भी हम डरते नहीं, जो दाग माँ पे लगाने की करोगे कोशिश, हर कोशिश हम गद्दारों की नाकाम कर देंगे, #OpenPoetry

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AlpDev

ए मेरे वक्त बुरे,
तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी,
दर्द-ए-दास्तां सी या किस्से याराने के हो अपने,
बख़ूबी निभाई तूने अपनी साझेदारी।।
अगर साथ तेरा संग हमारे ना होता,
फ़िर आँखों में फ़रेब-ए-नाते लिए ज़रूर,
सारी उम्र अक्सर मैं सोता,
कि साथ तेरा संग मेरे ना होता,
कौन गैर कौन है अपना,
पता मुझे फ़िर कैसे ही होता।।
कि कभी टूटा सा कभी हारा सा मैं,
अंजानो के बज़्म में फ़िरता इक आवारा सा मैं,
बिना चमक फ़लक में इक सितारा सा मैं,
ज़ख़्मों के मार से ज़ख़्मी बेसहारा सा मैं,
संग तेरे लड़ना सीखा है गम़ों से,
अपने घाव भरे मैंने बिना मरहमों के,
कि यारी तेरी उस ख़ुदा की रहमत सी,
संग तेरे ही ज़िंदगी मेरी सलामत सी।।
हर तालिम में तेरे हमने,
जिना सीखा है,
बद्किस्मति के ज़हर को भी,
हमने पीना सीखा है।।
कि वाबस्ता संग तेरे हमारी,
जो थी कभी अपनी बगावत-ए-अदावत सी,
मेरे कज़ा तक संग अब तेरे हमें है रहना,
कि यही है हमारी अब इक आख़िरी इबादत सी।।
ए मेरे वक्त बुरे,
तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी,
तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी।। ए मेरे वक्त बुरे,
तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी,
तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी।।

ए मेरे वक्त बुरे, तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी, तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी।।

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AlpDev

हमारा अंतिम संस्कार भी होगा,
ये बदन चार कंधों पर सवार भी होगा,
बेशक़ चिता भी एक दिन हमारी जलेगी,
उन अंजाने चेहरों में ज़रूर ग़म भी होगा,
किसी को ज़्यादा किसी को कम भी होगा,
टूटेगी डोर संग जिंदगी के हमारे भी ज़रूर,
सिलसिला अकेलेपन का ख़तम भी होगा,
नम अंजाने बज़्म की आंखें भी होंगी,
भींगी बरसातें भी होंगी,
ना जाने कितनों से मुलाकातें भी होंगी,
रोता सिसकता उस दिन ये गगन भी होगा,
हमारे बेजान जिस्म पर कफ़न भी होगा,
मटके में सिमटी हमारी अस्थियां भी होंगी,
बह भी जाएंगे आंचल में,
माँ गंगा के ज़रूर मगर,
ना ज़रूरत ना चाहत ना ही अब कोई आस,
हमें किसी झूठे रिश्तों की,
कि अब गैरों के बाहों मे ही सही,
अर्थी तो ज़रूर उठेगी हमारी,
एक दिन अर्थी तो ज़रूर उठेगी।। घमंड का बादल घंघोर छाया,
मेरे सारे अपनों में ऐसा,
कि वक्त के मार ने कर दी,
असलियत बयां सबकी,
कौन अपना कितना अपना सा,
कौन अपना कितना अपना सा।।

घमंड का बादल घंघोर छाया, मेरे सारे अपनों में ऐसा, कि वक्त के मार ने कर दी, असलियत बयां सबकी, कौन अपना कितना अपना सा, कौन अपना कितना अपना सा।।

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AlpDev

ये कैसा दौर जिंदगी में अल्पदेव,
अकेलेपन का आया है,
नफ़रतों ने तो साज़िश अरसो पहले की थी मुझे तोड़ने की मगर,
अब तो ख़िलाफ़ आज मेरे,
सामने ये मोहब्बत भी आया है।।
©अल्पदेव अफ़सोस-ए-आलम में टूटा हुआ,
ना जाने क्यों ही हमें तुमसे उम्मीदें थी।
अफ़सोस-ए-वफ़ा कुछ ऐसी हुई,
ना जाने क्यों ही हमने मुहब्बत की।।

अफ़सोस-ए-आलम में टूटा हुआ, ना जाने क्यों ही हमें तुमसे उम्मीदें थी। अफ़सोस-ए-वफ़ा कुछ ऐसी हुई, ना जाने क्यों ही हमने मुहब्बत की।।

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