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pankajchoudhary9495
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Pankaj Choudhary

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Pankaj Choudhary

बस 'काफिर' लड़ेगा
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कभी मंदिर तोड़कर जो मस्जिद बना था,
अब उसी मस्जिद तोड़ फिर मंदिर बनेगा,
पूजा, इबादत से किसी को, क्या मतलब, 
वर्चस्व की लड़ाई है, बस 'काफिर' लड़ेगा।1।

शहंशाह ए कुकर्म, बेनकाब होकर रहेगा,
दीवारों की गवाही पे हिसाब होकर रहेगा,
धर्म रक्षार्थ धर्मयुद्ध सा इक समीर बहेगा,
वर्चस्व की लड़ाई है, बस 'काफिर' लड़ेगा।2।

साधना के घर, कब तक इबादत यूं होगा,
धर्म ए मर्म परे, कब तक बगावत यूं होगा,
अयोध्या,काशी संग मथुरा प्राचीर अड़ेगा,
वर्चस्व की लड़ाई है, बस 'काफिर' लड़ेगा।3।

सरेआम इक धर्म दूजे से  अदावत करेगा,
श्रेष्ठता दिखाने बंधु बांधव शहादत करेगा,
नियति खेल रचेगा, सदियों ना द्वंद थमेगा,
वर्चस्व की लड़ाई है, बस 'काफिर' लड़ेगा।4।

तख्तो-ताज कई फिर से, कटघरे में होंगे,
कुतर्क ए संवाद, कहां सत्य छुपा सकेंगे,
अदालते जाने क्या, मियां नवाजी कहेगा,
वर्चस्व की लड़ाई है, बस 'काफिर' लड़ेगा।5।

विधि  द्वार  विधाता, संयम सन्निकट होंगे,
मेरे तेरे ईश्वर अलग, अलग सारे हठ होंगे,
ईश बेघर तो शाश्वत यूं ही मुसाफ़िर रहेगा,
वर्चस्व की लड़ाई है, बस 'काफिर' लड़ेगा।6।

✍️ शाश्वत "मुसाफ़िर"

©Pankaj Choudhary #PARENTS
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Pankaj Choudhary

मजदूर
जिन्दा रहने की जद्दोजहद में, हम यहां हर रोज मरते हैं
गरीबी, बेबसी मेरे संग रहती है, हम इनसे रोज लड़ते हैं
जेठ की आग उगलती दोपहर हो, या  पूस की सर्द रातें
ये दिन नहीं बदलता, रात भी आंखों आंखों में गुजरते है

संसद में मेरा जिक्र, सियासत जन का दिखावटी फिक्र
हर सरकारी बजट में, मनमौजी समितियों  के  रपट में
समाचारों में, अखबारों में, सड़क  पर टंगे इश्तिहारों में
मैं ही मैं होता हूं, पर सच पूछो तो, कहीं नहीं मैं होता हूं

मैं तो राशन दुकानों की उधारी खाता में नित संवरता हूं
मैं महाजनों के चौखट से बंधा, अब भी ये पेट भरता हूं
निर्माण में, विध्वंस में, विपदा के हर दंश में, मैं होता हूं
हकीकत से परे, सियासी भाषणों के अंश में, मैं होता हूं 

पहले वाजिब मजूरी न देकर, उसने मुझे विवश बनाया
फिर मेरे प्रति आभार जताने, ये 'श्रमिक दिवस' बनाया
ऐ रहनुमा, मत जाता आभार, कर जुगाड, मिले आहार
 रख याद, न हो अब विवाद,अन्यथा इंकलाब ज़िंदाबाद

©Pankaj Choudhary #fog
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Pankaj Choudhary

मां 

अनकहे शब्दों में भी, जो शब्दशः दिले जज़्बात ताड़ लेती है
हालात चाहे जैसे हो, बेटे को वो राज कुंवर' सा पाल लेती है
अपने हिस्से का दे निवाला, हर ओहदे की 'प्रथम' पाठशाला
वो मां ही है जो, स्वयं काल विरुद्ध भी, मोर्चा संभाल लेती है

©Pankaj Choudhary #NojotoRamleela
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Pankaj Choudhary

वासंतिक संवाद

बह रही सर्द हवा, 
कह रही कुछ तो हुआ,
ये अलौकिक भाव, 
अनायास उमड़ा लगाव, 
सज रही प्रकृति
दिख रहा श्रृंगार
ये अलौकिक आनंद 
ये सुखद बसंती संसार
खेतों में सरसों मुस्काती 
पेड़ों पर चिड़ियां गाती
बागों के फूल खिले हैं
भंवरे मंडराते मिले हैं

कोयल कूके कुहू कुहू
तितलियों घर मौज बहार
अध्येता स्वर्णिम मौसम
यौवन अधर मौन मनुहार
आम की बौरें महके
महुआ गंध मधुर उन्माद
कवि हृदय जगाए भाव
वसंत का ऐसा स्वभाव
ठिठुरन कोहरा की विदाई
प्रेम रंग ले मधुमास आई
तेरे जाने के बाद का याद
शाश्वत' ये वासंतिक संवाद

✍️ पंकज चौधरी "शाश्वत"
दरभंगा, बिहार

©Pankaj Choudhary #sagarkinare
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Pankaj Choudhary

"विनीता"

धरा धारे शक्ति प्रबल, फिर भी रहे सदा सौम्य  सरल
वक्ष पर उगा फसल, सभ्यता  सींचे  विनीत गंगाजल
नम्र भाव धर समरथ, हर घर सम-ज्योत देत रवि रथ
गगन में अनंत ग्रह नक्षत्र, पर एक रवि से समय सत्र

अर्पण भाव से ही, यहां पावत सबरी हर युगे श्रीराम
सहन-शीलता अहिल्या सा, सहजहिं मिले परमधाम 
शरणागत प्रह्लाद बचाने हर युग में प्रभु लेते अवतार
सेवा प्रणत हर जटायु को प्रभु गोद ले, करते उद्धार

विनीत  भाव रख वृक्ष, फल देता, मिठास लुटाता है
पत्थर खाकर  भी क्षमा, दया, त्याग ही समझाता है
अटल हिमालय,उठते आंधियों में अड़ना सीखाता है
बहता पवन मौन रह ,अवरोधों से लड़ना सीखाता है

किंतु अनुनय - विनय, बिन शक्ति द्योतक कायर का
बिन पौरुष, यह विजय मात्र, स्वप्न किसी शायर का
संधि संवाद बिना विवाद, यहां कब कौरव मानता है
समर्पण स्वभाव को दब्बू, भीरु, कापुरुष जानता है

शाश्वत मुसाफिर

©Pankaj Choudhary #fog
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Pankaj Choudhary

कलम
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विधाने संविधान लिखते लिखते 
"अनुबंध" ए ककहरा,  लिखाने लगी कलमे
इसकी भाषा समझ से परे होती गई
'जी हजूरी' में ऐसे, रंग दिखाने लगी कलमे
दूजा दोष दिखा खुद पे रही मौन
ऐसे खुद में यूं अभिमान जगाने लगी कलमे
विधाने संविधान लिखते लिखते 
"अनुबंध" ए ककहरा,  लिखाने लगी कलमे

नैतिकता लिख रिश्ते सम्हाले कभी
आज नातों में व्यापार आजमाने लगी कलमे
लोकतंत्र ए आवाज रही थी कभी
'धन ए खिदमते' ये सर झुकाने लगी कलमे
ये बेमुरव्वत हो गई है इस कदर 
'लिख जाने' का कह, धमकाने लगी कलमे
विधाने संविधान लिखते लिखते 
"अनुबंध" ए ककहरा,  लिखाने लगी कलमे

आदमी संग रह ये भी कुछ कुछ
वैसा ही 'दोहरा चरित्र', निभाने लगी कलमे
भाव के अभाव में समर्पण को
देखो सरेआम औकात दिखाने लगी कलमे
रहे दाना पानी तो कौन छीने
'बिन रहे कौन दे' इसे झुठलाने लगी कलमे
विधाने संविधान लिखते लिखते 
"अनुबंध" ए ककहरा,  लिखाने लगी कलमे

©Pankaj Choudhary #fog
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Pankaj Choudhary

एक दीप क्या जलाया 
तू सब, यहां धरने पर आ गया
छुपाने अपनी करतूत   
सरेराह मारने मरने पे आ गया
तेरी सलामती को, चल
आधी रात ही, दीप बुझाता हूं
पर तू सो मत अब भी 
मैं दीये बाद सूरज ले आता हूं 
तेरी ज़िद्द ए तवज्जो दे 
बार बार तुझे ही आजमाता हूं
तू उधर कोसता रहता
इधर मैं सारे मत, पा जाता हूं

✍️ शाश्वत मुसाफ़िर

©Pankaj Choudhary #SunSet
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Pankaj Choudhary

बेमतलब से अपनापन में 
सब दिखावा ए याराना ढूंढते हैं
रिश्ते, रुखसत ए बहाना ढूंढते हैं
फिर तू, कब तलक रुकेगा 'मुसाफिर'
चल, अब कहीं और ठिकाना ढूंढते हैं

✍️ शाश्वत मुसाफ़िर

©Pankaj Choudhary #safar
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Pankaj Choudhary

उम्मीदें तमन्नायें चाहत सब पीछे छूटते रहे..
जीवन पल पल रंग बदलती रही, स्वप्न टूटते रहे..
पर शाश्वत सफर ए मुसाफिर अब नहीं परेशानी मुझे..
हां!ये अलग बात है बड़ी महंगी मिली है ये आसानी मुझे..

©Pankaj Choudhary
  #Life
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Pankaj Choudhary

उम्मीदें तमन्नायें चाहत सब पीछे छूटते रहे..
जीवन पल पल रंग बदलती रही, स्वप्न टूटते रहे..
पर शाश्वत सफर ए मुसाफिर अब नहीं परेशानी मुझे..
हां!ये अलग बात है बड़ी महंगी मिली है ये आसानी मुझे..

©Pankaj Choudhary #Life
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