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diyajethwani5167
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Diya Jethwani

एक गृहणी के साथ साथ एक लेखिका भी हूँ...। बहुत से अलग अलग प्लेटफार्म पर लिख रहीं हूँ...। सिर्फ अपनी एक पहचान बनाने के लिए... अपना खुद का अस्तित्व बनाने के लिए....।

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Diya Jethwani

एक बार की बात हैं एक धनवान व्यक्ति जो शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था... रास्ते से कही जा रहा था...। चलते चलते उसे रास्ते में शिव जी का एक भव्य मंदिर दिखा..। उसकी इच्छा हुई की अंदर जाकर दर्शन करने चाहिए..। लेकिन उसे एक चिंता थी..। उस व्यक्ति ने बहुत महंगे जूते पहने हुए थे..। उसने विचार किया की अगर वह जूते बाहर उतार कर जाएगा तो चोरी होने का भय बना रहेगा.. जिससे उसका पूजा में ध्यान नही लगेगा..। मंदिर के भीतर तो पहनकर जा नहीं सकता था..। वो सोच में पड़ गया की करें तो क्या करें..। थोड़ी देर विचार करते करते उसने देखा की मंदिर के पास पेड़ के नीचे एक भिखारी बैठा हैं.. वो उस भिखारी के पास गया और बोला :- बाबा मुझे मंदिर जाना हैं.. आप मेरे इन किमती जूतों का ख्याल रखेंगे..? 
भिखारी ने हां में जवाब दिया..। 
तब वह व्यक्ति अपने जूते वहाँ उतार कर मंदिर के भीतर निश्चित होता हुआ चला गया..। 
भीतर जाकर पूरी श्रद्धा से उसने पूजा की और भगवान जी के  सम्मुख होकर कहा :- प्रभु आपकी लीला भी बहुत अजीब हैं..। किसी के पैरों में इतने महंगे जूते दिए हैं तो कोई बेचारा एक वक्त का खाना भी ठीक से नहीं खा पाता..। कितना अच्छा होता अगर सभी एक समान होतें..।अपनी प्रार्थना पूर्ण कर उसने भगवान के समक्ष हाथ जोड़ें और मन में विचार किया की बाहर आकर वो उस भिखारी को सौ रुपये देगा..। वो खुश होता हुआ बाहर आया..। बाहर उस पेड़ के पास आया तो देखा वो भिखारी और उसके जूते दोनों वहाँ नहीं थें.। उस व्यक्ति ने सोचा शायद वो किसी काम से आसपास कहीं गया होगा..। इसलिए वो उसी पेड़ के नीचे उसका इंतजार करने लगा..। जब काफी समय तक वो नहीं आया तो वो व्यक्ति नंगे पैर ही अपने काम पर जाने लगा..। कुछ दूर चलने पर उसने रास्ते में फुटपाथ पर एक शख्स को देखा.. जो जूते चप्पल बेच रहा था..। वो व्यक्ति उसके पास गया चप्पल लेने के इरादे से..। वहाँ जाकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई.. उसने देखा की उसके चोरी हुए जूते भीं वहीं पड़े थे..। उसने उस शख्स से उन जूतों के बारे में पुछा तो उस शख्स ने बताया की एक भिखारी अभी अभी इन जूतों को सौ रुपयों में बेचकर गया हैं..। वो व्यक्ति मुस्कुराता हुआ वहाँ से नंगे पैर ही आगे चला गया..। उसे अपने सारे सवालो के जवाब मिल चुके थें..की समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती.. क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के कर्म अलग अलग होते हैं..। जिस दिन सभी के कर्म समान हो जाएंगे...उस दिन समाज की संसार की सारी विषमताएं समाप्त हो जाएगी..। ईश्वर ने सभी के भाग्य में लिख दिया हैं की उसे कब,  क्या और कहाँ मिलेगा..। पर यह नहीं लिखा होता हैं की कैसे मिलेगा वो हमारे कर्म तय करते हैं.. जैसे की उस भिखारी को आज सौ रुपये मिलने थें..। वो वहीं रहता तो भी वो धनिक व्यक्ति उसे उपहार स्वरूप सौ रुपये देने वाला था.. लेकिन उसने चोरी करके.. किसी के भरोसे को तोड़ के सौ रूपये कमाएं..। 
हमारे कर्म ही हमारे भाग्य ,यश -अपयश,लाभ - हानि, मान - अपमान ,लोक - परलोक तय करते हैं... इसलिए इन सबके लिए भगवान को दोष देना गलत हैं..।

©Diya Jethwani #कर्म और भाग्य..

#कर्म और भाग्य.. #प्रेरक

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Diya Jethwani

कर्म करें किस्मत बनें.. 
जीवन का यह मर्म... । 
प्राणी तेरे हाथ में..
तेरा अपना कर्म...।। 

अर्थात.... कर्म करने से ही किस्मत बनतीं हैं..और जीवन का यहीं रहस्य हैं...। व्यक्ति के कर्म उसके स्वयं के हाथों में होता हैं..। अर्थात किस्मत का बनना और बिगड़ना इन्सान के अपने ही हाथों में होता हैं..। नसीब को दोष देने से कोई लाभ नहीं हैं...। 


इसी कर्मों के चक्कर को एक छोटी सी कहानी से आप सबके सामने रख रहीं हूँ...। ये कहानी कभी मैंने अपने पिताजी से सुनी थीं..और कुछ समय पहले मैने इसे कहीं पढ़ा भी था...। 

बहुत समय पहले की बात हैं एक मांसाहारी (मांस खाने वाला) परिवार था..। परिवार में पांच सदस्य थे..। पति - पत्नी और उनके तीन बच्चे..। बड़े बच्चे की उम्र चार साल की थीं.. दूसरे बेटे की उम्र ढाई साल और सबसे छोटा बच्चा गोद में था.. कुछ महीनों का..। 
पड़ोस में हर कोई उस औरत को किस्मत का धनी और खुशनसीब कहते थे.. क्योंकि वो तीन तीन बेटों की माँ थीं..। वो औरत भी अपने तीनो बेटों पर बहुत अभियान करतीं थीं..। पूरे गाँव में दोनों पति पत्नी बहुत ही अभिमान से रहते थे..। आए दिन अपने अंहकार से किसी ना किसी का दिल दुखी कर देते थे...। लेकिन  कोई उनकों कुछ कह नही पाता था... क्योंकि उनकी जूबान बहुत कड़वी थीं...। इसलिए गाँव के लोग उनसे दूरी बनाकर ही रखते थे..। उस आदमी की एक खास दैनिक क्राय प्रणाली थीं वो रोजाना सवेरे मुर्गे को पकड़ कर उसकी गर्दन मरोड़ कर उसे अधमरा करता था फिर छूरी से उसकी गरदन काट कर सफाई कर अपनी पत्नी को बनाने के लिए दे देता था..। उसके दोनों बेटे रोजाना यह सब देखते थें..। लेकिन वो कुछ समझ नहीं पाते थे..। उन्हें उस वक्त ऐसा लगता था उनके पिताजी रोज कोई खेल खेलते हैं और उस खेल में उन्हें बहुत मजा आता हैं...। वो दोनों दूर खड़े होकर तालियां बजाते थे...। 

एक रोज की बात हैं...उनके पिता किसी काम से शहर गए हुए थे..। वो दोनों बच्चे आस पास मुर्गे को तलाशने लगे.. जब वो नहीं दिखाई दिया तो उन्होंने आपस में ही खेल खेलने का सोचा.। बड़े लड़कें ने अपने पिता की तरह ही अपने भाई की दोनों टांगें पकड़ी फिर... उसकी गर्दन मरोड़ने की कोशिश की..। गरदन मरोड़ने पर वो बच्चा चीखा तो बड़े लड़कें ने छूरी उसकी गरदन पर चला दी...। बच्चे की गरदन से खून की धार बहनें लगी.... ये सब देखकर बड़ा लड़का भी बहुत डर गया... उसे लगा अब उसके माता पिता उसे बहुत मारेंगे... डर के मारे वो छत पर भाग गया और छत से छंलाग लगा ली...छत से गिरते ही उसकी मौत हो गई....चीखें सुनकर उनकी माँ जो उस वक्त सबसे छोटे बच्चे को टब में बिठाकर नहला रहीं थीं... वो बच्चे को वही छोड़कर दौड़ती हुई बाहर आई...। बाहर आकर उसने जब दोनों बेटों की लाशें देखीं तो चक्कर खाकर वही गिर पड़ीं...। कुछ देर बाद उसने खुद को संभाला तो उसे तीसरे बेटे की याद आई.. वो दौड़कर भीतर गई.... पर तब तक बहुत देर हो गई थी...। वो बच्चा भी पानी में डूबकर मर चुका था...। 


अंहकार...अभिमान  और उनके कर्मों की वजह से आज उनका सब कुछ खत्म हो चुका था...। किसी बेजुबान को निर्ममता से मारने... और अपने बेटों पर हद से ज्यादा घंमड करने की उन दोनों को सजा मिल चुकी थीं...। 


इसलिए ही ऊपर लिखी पंक्ति में कहा गया हैं की जो कुछ होता हैं.. तुम्हारे कर्मों की वजह से  होता हैं...। इसलिए अपने कर्म अच्छे करो...। 

Karma is back... 💕

जय श्री राम....।

©Diya Jethwani karma is back

#luv

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Diya Jethwani

हमारे देश में रोजगार की कोई कमी नहीं हैं... लेकिन फिर भी सबसे ज्यादा बेरोजगारी हमारे देश में हैं...। आप जानते हैं क्यूँ...? 
इसके बहुत से कारण हैं... और सबसे बड़ा कारण जो हमारे देश के युवाओं में हैं वो हैं जल्दी से जल्दी बहुत सारा पैसा कमाना... मेहनत कम.... कमाई ज्यादा...। 
हमारे देश के युवाओं में मेहनत का अभाव नहीं हैं... वो मेहनत करना जानते हैं... लेकिन वो इसका इस्तेमाल हमारे समाज... हमारे देश में करने की बजाय... विदेशों में जाकर करना ज्यादा सही समझते हैं... क्यूँ.... क्योंकि वहाँ पैसा ज्यादा मिलता हैं...। हम आज इसलिए ही पिछड़े हुए देशों में आते हैं... क्योंकि हमारे देश का युवा वर्ग किसी और देश को अपना सौ प्रतिशत दे रहा हैं...और जो लोग बाहर नहीं जा पाते हैं... वो यहाँ जल्दी पैसे कमाने के अलग ही नुस्खे आजमाता हैं.... जिसमें से सबसे ऊपर आता हैं सट्टा बाजार....। उसके बाद ड्रग्स की सप्लाई.... जूआ खेलना... और वो हर काम जो गलत और अमानवीय हैं.. .। 
वजह क्या.... हमारे यहाँ रोजगार नहीं हैं..! 
जी नहीं.... वजह हैं.... कम मेहनत.... ज्यादा मुनाफा...। 
इन सब बातों के बाद सोने पर सुहागा लगाते हैं हम.... हमें भी मेड इन इंडिया से ज्यादा... मेड इन चाइना... मेड इन यूएसए... की ब्रांडों पर ज्यादा भरोसा हैं...। 
भारत में बनी हर चीज़ पर हम शक करेंगे.... लेकिन अगर कोई विदेशी कंपनी का टैग लगा हो तो हम खुशी खुशी खरीद लेते हैं... क्योंकि हम सबकी मानसिकता ही ऐसी हो गई हैं...। विदेशी कपड़े हो... जूते हो.... खाने पीने का सामान हो या सजावट से संबंधित कोई चीज़... हर जगह हम सिर्फ विदेशी ब्रांड को ढूंढते हैं....। 
बेरोजगारी को रोकने के लिए सबसे पहले हमें हमारी मानसिकता बदलनी होगी...और मेहनत करनी होगी...। 
ये सिर्फ कुछ ही कारण हैं... । 
एक महत्वपूर्ण कारण हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या भी रहीं हैं...।

©Diya Jethwani बेरोजगारी

#Journey

बेरोजगारी #Journey #विचार

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Diya Jethwani

एक शादी के निमंत्रण पर जाना था... पर मेरा वहाँ जाने का बिल्कुल मन नहीं था... क्योंकि गाँव की शादी  में मुझे कोई रुचि नहीं थीं..।लेकिन घरवालों की जिद्द की वजह से मैं उनके साथ चल दिया...।वहाँ पहुंचकर.....बहाना बनाकर मैं गाँव की गलियों में विचरण करने निकल गया..। घरवालों ने शादी के कार्यक्रम तक आने का कहा..। उनकी बातों को अनसुना कर वहाँ से निकल गया..। विचरण करते करते मैं गाँव के बाहर आ गया था..। 
वहाँ  मैने देखा... एक बड़ी सी लग्जरी गाड़ी में से एक सज्जन उतरे... उनके पहनावे और चाल चलन में उनकी रईसी साफ़ झलक रहीं थीं...। उनकी उम्र यहीं कोई पचास की होगी..। 
मैने देखा वो सज्जन एक पालिथिन लेकर एक पेड़ के चबुतरे पर गए... फिर उस पालिथिन को चबुतरे पर उड़ेल दिया और आओ आओ की आवाज निकालने लगे... पास के खेतों में चारा चरती हुई कुछ चार पांच गायें आवाज सुनते ही वहाँ आई और गुड़ जो उस सज्जन ने डाला था वो खाने लगी...। कुछ गायों को वो अपने हाथ से खिला रहे थे.. कुछ स्वयं खा रहीं थीं..। वो प्यार से सभी गायों के कभी सिर पर तो कभी गले पर हाथ फेर रहें थें..। कुछ मिनटों बाद सभी गाएं वहाँ से चलीं गई...। यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य था... लेकिन उसके बाद जो हुआ वो अविस्मरणीय और आश्चर्य से भरा हुआ था..। 
मैने देखा.... सभी गायों के चले जाने के बाद उस सज्जन ने वहाँ बचा हुआ गायों का जूठा गुड़ उठाया और खुद खा लिया...। तीन चार टुकड़े उन्होंने उठाएं और खाकर वहाँ से वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए...। ये सब देखकर मैं सोच में पड़ गया...। इतना अमीर... पैसे वाला शख्स जूठा गुड़ क्यूँ खा रहा हैं.... वो भी गायों का जूठा... जो वो खुद ही लाया था... खाना था तो पहले खुद के लिए निकाल देता..। तरह तरह के सवाल दिमाग में घुम रहें थे..। जिझासा वश में दौड़ कर उनके पास गया और उनकों आवाज देकर रोका :- रुकिए महाराज... कुछ देर ठहरिए... महानुभव मैंने अभी अभी जो देखा... वो मेरे ह्रदय में सौ सवाल पैदा कर गई हैं...। कृपया उनका समाधान किजिए वरना उधल पुथल चलतीं रहेगी..। 
वो सज्जन मुस्कुराए और बोले:- बोलो बेटा... क्या जानना चाहते हो..। 
मैने कहा :- महाराज आप खुद इतने अमीर हैं फिर भी आपने गायों का बचा हुआ जूठा गुड़ ही क्यूँ खाया..? 
वो सज्जन मुस्कुराएं और मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे उसी चबुतरे के पास लेकर गए और बोले:- बेटा बात आज से पैतिंस साल पहले की हैं.... घर में आंतरिक कलह और रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आकर मैनें अपना घर छोड़ दिया... मैं भागते भागते इस जगह  आ पहुंचा...। लेकिन दो दिन बाद ही मेरी हिम्मत जवाब देने लगी...। भूख की वजह से शरीर बेहाल हो गया...। यहाँ इसी जगह पर मैंने देखा की एक सज्जन गुड़ के कुछ टुकड़े गायों के लिए डालकर गया था..। तब यहाँ ये चबुतरा नहीं था...। पीपल का बड़ा सा पेड़ था.। मैं बेहाल सा होकर उसी पेड़ के नीचे बेसुध होकर पड़ा था...। मैने देखा वो सज्जन गुड़ डालकर चला गया... तब कुछ एक दो गाएं वहाँ आई और गुड़ को सिर्फ सुंघ कर वापस लौट गई....। मैं भूख के मारे निठाल सा हो गया था.. कोई रास्ता ना देख... मैने वो मिट्टी में रखा हुआ गुड़ साफ़ किया और झट से खा गया..। दो दिन बाद पेट में  कुछ गया तो एक शांति सी मिली.... मैं वहीं उस पेड़ के नीचे सो गया..। सुबह हुई... अपने नित्य कर्म करके मैं काम की तलाश में निकल पड़ा....। लेकिन दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था...। कहीं काम नहीं मिला.. थक कर भूख से बेहाल होकर शाम ढलते ही मैं फिर उसी जगह आ पहुंचा...। आज भी वो सज्जन आए... गुड़ डाला और चले गए...। कल ही की तरह गायें आई.. गुड़ को देखा और बिना खाए चलीं गई...। मैं भी भूखा तो था ही... बिना समय गंवाएं झट से सारा गुड़ खा गया... और उसी पेड़ के नीचे सो गया..। अगले दिन फिर काम की तलाश में निकल गया...। इस बार ऊपरवाले को मुझपर दया आई और मुझे एक ढाबे पर काम मिल गया..। अब मैं वहीं रहकर काम करने और रहने लगा..। कुछ दिन बाद मालिक ने कुछ पैसे दिए..... ।मैनें एक किलो  गुड़ लिया और ना जाने कौनसी शक्ति थीं जो मुझे वहाँ खींच रहीं थी...।वहां से सात किमी पैदल चलकर मैं उसी पेड़ के पास आया और सारा गुड़ डाल दिया....। गाएं भी नजदीक ही थीं...मेरे आवाज लगाते ही तुरंत आ गई..।इस बार मैने देखा की गाएं ने सारा गुड़ खा लिया...। यानि उन दो दिनों मैं उन गायों ने जानबूझकर गुड़ नहीं खाया था...। उन्होंने मेरे लिए गुड़ छोड़ दिया था...। उनकी ये ममता देखकर मेरा दिल भर आया..। मैं ढाबे पर आकर सोचता रहा...। कुछ समय बाद ही मुझे एक फर्म में काम मिला...। निरंतर कड़ी मेहनत से मैं बहुत जल्द एक फर्म का मालिक बन गया..। शादी हुई... बच्चे हुएं...। दिन ब दिन मैं तरक्की करता गया...। लेकिन अपने इस लंबे सफर में मैने कभी गाय माता को नहीं भुलाया...। मैं अक्सर यहाँ आता रहता हूँ और इनको गुड़ खिलाने के साथ साथ इनका स्नेह पाता हूँ...। आज मैं पांच फर्म का मालिक हूँ...। धन दौलत की कोई कमी नहीं हैं... लेकिन जो सुकून मुझे यहाँ आकर मिलता हैं... वो कहीं नहीं मिलता...। जो मिठास इनके जूठे गुड़ में मिलती हैं... वो किसी व्यंजन में नहीं मिलतीं..। इन गायों की ममता की वजह से ही मैं आज जिंदा हूं...। इनका उपकार तो मैं कभी नहीं भुला सकता..। मैं लाखों रुपये गौशाला में दान करता हूँ... लेकिन इन गायों का स्नेह मुझे आजभी यहाँ खींच लाता हैं...। 
ऐसा कहते कहते वो सज्जन भावुक हो गए और वहाँ से चले गए...। 
मैं कुछ पल उनको जातें देखता रहा... फिर ना जाने क्या सोचता हुआ... मैने भी वहाँ रखा एक गुड़ का टुकड़ा लिया और अपनी जिहृवा पर रखा.... सचमुच उसके जैसी मिठास मैने कभी महसूस नहीं की थी..। किसी ने सच ही कहा हैं गाय सच में हमारी माता तुल्य होतीं हैं..। उनकी ममता सच में अद्भुत हैं..। मैं उनके बारे में सोचता हुआ...। शादी के कार्यक्रम में शरीक होने चल पड़ा और इस बार दिल से मैने सारे कार्यक्रम का आनंद उठाया...।

©Diya Jethwani कर्म 

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