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monikagarg8153
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Monika Garg

एक अदना सी लेखिका शब्द इन, लेखिनी, प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर और अब नोजोटो पर

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Monika Garg

सीमा की सास आज सुबह से ही बड़बड़ कर रही थी,"हाय पता नही कैसी मनहूस हमारे पल्ले पड़ गयी है । कोई काम सही ढंग से नही करना आता ।बता मठरिया बनाने मे भी कोई मंतर पढ़ने थे क्या । मां ने कुछ सीखाया हो तो कुछ आये।भाग फूट गये हमारे जो ऐसी बहू पल्ले पड़ी है।"
सीमा की सास का आज पारा हाई था क्योंकि आज सीमा से नमक पारे बनाते समय थोड़े जल गये थे।वो भी क्या करती सारे घर का काम उसी के ऊपर था।उसका एक साल का बेटा भी था जिसे सम्हालना भी पड़ता था।और सास टीचर थी सुबह ही स्कूल जाते समय सीमा की सास ये कह गयी थी ,"सुन मिननी आये गी उसके लिए नमकपारे और कचोरी बना दियो।मै स्कूल जा रही हूं।दोपहर मे आते समय सामान ले आऊंगी।इतने सारा काम करके रहियो।"
सीमा की सास जैसे नौकर को सुना कर जाते है ऐसे हुक्म सुना कर चली गयी।सीमा बेचारी के लिए इतना काम बढ़ गया था कि पूछो मत।ननद का परिवार,और सीमा ,उसके पति , बच्चा,और एक दो रिश्तेदार और आये हुए थे ।वो बेचारी भाग भाग कर सारे घर का काम करती रही ।बेटे को दूध पिला कर सुला दिया था अब दोपहर के खाने की तैयारी कर रही थी तभी मिननी उसकी ननद उसका हाथ बंटाने रसोईघर मे आ गयी ।सीमा को लगा चलों अगर ननद ये सम्भाल लेगी तो वो नमकपारे और कचोरी अराम से बना लेगी। लेकिन उसका मन जब खराब हो गया जब उसने सास को ननद को इशारा करते देख लिया कि तू छोड़ के आ जा बाहर ये अपनेआप बना लेगी।सीमा की आंखों मे पानी आ गया कि देखो कैसा ससुराल मिला है इन्हें बहू थोड़े ही चाहिए थी इन्हें तो नौकरानी चाहिए थी। लेकिन फिर भी उसपर सर्वगुणसंपन्न का ठप्पा नही लगा था ।सभी उसे सर्वगुण संपन्न कहते थे लेकिन सास के मुंह से हमेशा ही उसके लिए अपमान जनक शब्द ही निकले।
सीमा ने कचोरी तो बना ली लेकिन जब आधे नमकपारे बना चुकी तो उसका बेटा उठ गया ।अब एक हाथ से बेटे को पकड़े हुए और दूसरे हाथ से कलछी चलाते हुए सीमा का ध्यान कढ़ाई से हट गया और तेल उछलकर उसके हाथ पर गिर गया।सीमा कढ़ाई मे नमकपारे छोड़ कर बाथरूम मे भागी ताकि पानी मे हाथ दे सके।पीछे से नमकपारे जल गये।उसकी सास को जब बदबू आई जलने की तो वो रसोई की तरफ भागी।जब देखा नमकपारे जल गये है तो फिर क्या था ऐसा क्लेश रचा जो अभी तक जारी था।दिनेश सीमा का पति जब काम से लौटा तो सास दरवाजे पर ही बैठी थी उसके आते ही बोली,"भाई रे।तेरी बीवी को बिल्कुल भी अक्ल नही है मिननी के लिए नमकपारे बनवाएं थे सारे जला दिए।"
दिनेश ने अंदर जाकर देखा तो दंग रह गया।पूरी बड़ी परात कचौरियों से भरी थी और छोटी नमकपारे से थोड़े से जले हुए एक कटोरे मे रखे थे जिसे सास ने सारे गली पड़ोस को दिखा दिया था कि देखो हमारी बहू को तुम लोग अच्छी , सर्वगुण संपन्न मानते हो।देखो उसके ये गुण।कैसे ननद को देने के नाम पर नमक पारे जला दिये। 
  दिनेश ने सीमा को ही चुप रहने को कहा।ननद सब खाने पीने का सामना लेकर ससुराल चली गयी । वहां जब उसकी सास ने कचोरी खाई तो दंग रह गयी ।बार बार यही कह रही थी,"मिननी बेटा । तुम्हारी भाभी के हाथ मे तो अन्नपूर्णा का वास है कितना स्वाद भरा है उसके हाथों मे । तुम्हें भी तो आती होगा ये सब ऐसा करना जब सरला आये तो उसके लिए ऐसे ही कचोरी बना देना उसके लिए।
  अब बारी मिननी की थी वह मां को मन ही मन कोसने लगी ,"काहे मां भाभी को कहती कचोरियों के लिए।और काहे मेरी सास मुझे कहती।" उधर मिननी की सास बार बार कह रही थी कचोरी बनाने के लिए।उसने मां को फोन लगाया,"मां तुम ने तो गृहस्थी मे देखा ही होगा।काम कैसे करते है ।मेरे से इतना काम नही होगा मेरी सास बार बार कमला दीदी के लिए कचोरी बनाने को बोल रही है।"
  अगले दिन सीमा की सास और पति लड़ने जा रहे थे मिननी की ससुराल कि तुम ने हमारी बेटी को इतना काम क्यों बताया।अब सीमा मन ही मन सोच रही थी "मै सर्वगुण संपन्न हूं या मिननी पर उसको कोई जवाब नहीं मिल रहा था।

©Monika Garg सर्वगुण संपन्न 

#Lumi

सर्वगुण संपन्न #Lumi #समाज

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Monika Garg

बाय, मम्मी!बाय, आज भी अंशुल जोर जोर से अपनी माँ को  स्कूल जाता हुआ बाय बाय कर रहा था।ये इत्तेफाक ही था कि इधर मीना चाय पी रही होती और उधर अंशुल स्कूल जा रहा होता था।वह दौड़ कर छज्जे पर आ जाती और उसको स्कूल जाते हुए देखती।थोड़ी देर वह भूल जाती कि उसे पति के लिए नाशता भी बनाना है ।बस उसके मासूम चहेरे को देखती रहती और अपनी माँ न बन पाने की कमी को उसे देख कर पूरा करती रहती।
                          अंशुल था ही इतना मासूम।कई बार वह उसे भी 'बाय 'बोल कर जाता था।जिस दिन बोल कर जाता उस दिन तो निहाल सी हो जाती थी मीना । दोनों  में कही पिछ्ले जन्म का रिश्ता था शायद।कभी कभार वह उसके घर आ जाता था खेलने  तो मीना उसकी जेबे भर देती थी खाने की चीजों से ।कई बार अंशुल की माँ कहती,"मीना बहन तुम  बिगाड़ दो गी अंशुल को।"वह हंस कर रह जाती ।

     उस दिन भी अंशुल हर बार की तरह जोर जोर से 'बाय 'बोल  रहा था।मीना भाग कर छज्जे पर गई।उस दिन अंशुल ने उपर देखते हुए मीना को भी हाथ  हिला कर 'बाय  बोला।मीना के मन को आज  कुछ  अजीब सा लग रहा था ।पता नही क्यो ।लेकिन वह अपने विचारों को झटक कर काम मे लग गयी।
           थोड़ी सी  देर बाद, बस उसने अजय का टिफ़िन ही तैयार किया था आफिस के लिए ।इतने मे अंशुल के  घर से उसकी माँ की जोर जोर से रोने की आवाज सुनाई दी ।मीना को झटका सा लगा ।अनहोनी की आशंका से  वह दौडी दौडी उसके घर गयी तो पता चला अंशुल को किसी ने स्कूल के बाथरूम में चाकू से बुरी तरह घायल कर दिया है और उसकी
हालत सीरियस है ।उसे शहर के बड़े  अस्पताल ले गये है।अंशुल की माँ बार-बार अचेत हो रही थी।मीना उसे सम्हालने मे लगी हुई थी आखों में आंसू और यही सोच रही थी कि उस नन्ही सी जान की किसी से क्या  दुश्मनी हो सकती थी जो उसे कोई चाकू से मारे गा।
      थोड़ी देर बाद अस्पताल से फोन आया अंशुल के पापा का कि अंशुल नही रहा।मीना तो एक दम गिरते-गिरते बची ।अंशुल की माँ तो नीम बेहोशी की हालत मे चली गयी।पानी के छींटे मारने पर जरा सा होश आता तो "मेरा बाबू ,आज मुझे बाय बोल कर गया था ।बहन उस ने तुम्हे भी बोला था।कहाँ चला गया मेरा बाबू।"ये कहती और बेहोश हो जाती।अंशुल की माँ की हालत गंभीर हो गयी थी।मीना का ही रो रो कर बुरा हाल था ।बस यही सोचकर कलेजा मुंह को आ रहा था कि उस बच्चे की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है ।
        लाश का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि गर्दन पर चाकू के वार से सांस की नली कटने से अंशुल की मौत हुई थी ।लाश घर आ गयी  माँ तो नीम बेहोशी में थी पिता ने और पास पड़ोस वालों ने नन्हे अंशुल को नम आँखों से  अन्तिम विदाई दी।दाह संस्कार करा के सब लोग अपने घरों को चले गये।मीना  भी घर आ गयी।बार-बार उसके आगे नन्हे अंशुल का चेहरा घुम रहा था।मन मे तरह-तरह के विचार आ रहे थे।कभी सोचती ,हो सकता है उसने किसी को गलत परिस्थिति में देख लिया  हो। या उसके साथ ही कोई गलत हरकत कर रहा हो जब अंशुल ने उस का विरोध किया हो तो उसने उस पर चाकू का वार किया हो।कभी कुछ  कभी  कुछ ।बस मीना पागलों की तरह सोचें जा रही थी।अगले दिन  मीडिया का जमावड़ा लगा गया ।जितने मुँह उतनी बातें ।कभी अंशुल की माँ की हालत दिखा रहें थे कभी पिता से पूछ रहे थे।मीना को बड़ा गुस्सा आ रहा था ।अगर ये लोग  इन की हालत को दिखाने के बजाये उस कातिल को पकड़ने में पुलिस की सहायता करे तो कितना अच्छा होता ।स्कूल भी शहर का जाना माना  था।अपनी साख बचाने के लिए उन्होंने बस ड्राईवर को पुलिस के हवाले कर दिया कि नशे की हालत  मे उस से ये गलती हो गयी है ।पर थोड़े दिनों बाद ही सच सामने आ गया कि स्कूल वालो ने पैसे खिला कर ड्राइवर से गुनाह कबूल करवाया था ।
     अब दोषी कौन है  यही रहस्य बना हुआ था ।आखिर कार अंशुल के पापा मम्मी के मीडिया में यह बोलने के कारण कि इसकी सी बी आई जांच होनी चाहिए ।जांच पूरी होने के बाद जो सच सामने आया तो वो रौंगटे खड़े कर देने वाला था ।

अंशुल को चाकू उसी के स्कूल के एक बडी कक्षा के बच्चे ने मारा था। कारण और भी भयावह था। वो बड़ी क्लास का लड़का पढाई में कमज़ोर था।अंशुल की मौत से दो दिन बाद  टीचर पैरंट्स 
मीटिंग होनी थी।उस बच्चे के  कक्षा में सबसे कम अंक  थे।टीचर से तो वो पीट चुका था ।लेकिन माँ बाप का डर उसे सता रहा था।वह अपने दोस्तो को कह कर गया था कि अब की बार  ऐसा धमाका करूँ गा।कि ये टीचर पैरंट्स मीटिंग होगी ही नही।तुम कल देख लेना।
                हे भगवान!मीना सोचती ही रह गयी कि दोषी कौन है।स्कूल  मे बच्चो पर ज्यादा पढ़ाई का दबाव बनाने  वाले अध्यापक, या जो वे ख़ुद नही कर सके वो इच्छाए अपने बच्चो के जरिए पूरी करने वाले  माँ बाप ,या हर रोज टेलीविजन पर दिखाये जाने वाले हिंसात्मक प्रोग्राम ।बस मीना का सर घूमने  लगा और वह सिर पकड़ कर बैठ गयी।..............??????????

©Monika Garg दोषी कौन?

#dilemma

दोषी कौन? #dilemma #सस्पेंस

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Monika Garg

मदन की नयी नयी नौकरी लगी थी ।एक छोटे से कस्बे मे।उसने दलाल से कह कर अपने लिए एक कमरा किराए पर लेने की बात की।छोटे कस्बों मे घरों के अंदर ही एक कमरा किराए पर दे दिया जाता है ऐसे ही एक दलाल ने मदन को यहां के जमींदार की हवेली मे एक कमरा किराए पर दिला दिया था हवेली के मालिक शम्भु प्रसाद बीमार रहते थे।उनकी पत्नी ही उनकी देखभाल करती थी।कहने के नाम पर ही जमींदारी थी।बस जो पुश्तैनी था वो था। बाकी सब शम्भु प्रसाद की बीमारी निगल गयी थी ।इतनी बड़ी हवेली मे दो जीव रहते थे । इसलिए उन्होंने दलाल से कह दिया था कि किसी को कमरा चाहिए तो हमारा नीचे का भाग हवेली का खाली है ।छोटे कस्बे मे कौन आ कर रहने वाला था।ये तो मदन की पोस्टिंग यहां हुई थी।वह ठाकुर शम्भु प्रसाद से मिलने गया। वास्तव मे उनकी तबीयत ज्यादा ही खराब थी ।मदन ने एक बात नोटिस की उनके कमरे मे।इतना साफ सुथरा होते हुए भी एक अजीब सी दुर्गंध फैली थी उनके कमरे मे।मदन थोड़ा बहुत ज्ञान रखता था इन बातों का बहुत सी तांत्रिक क्रिया का जानकार था।उसे हवेली मे किसी की उपस्थिति का अहसास हो रहा था।वह जैसे ही अपने कमरे मे आया तो उसे वही अजीब सी दुर्गंध अपने कमरें से भी आ रही थी। उसने जैसे तैसे रात काटी।सुबह उसने मिसेज शम्भु प्रसाद से पूछा जो की एक अधेड़ उम्र की महिला थी,"भाभी जी भाईसाहब कब से बीमार है ।"वो बोली,"पता नही बीस साल पहले हल्का सा बुखार चढ़ा था जब ये विदेश से पढकर यहां इस हवेली मे रहने आये थे ।वो ही बुखार ही इतनी बड़ी बीमारी बन गया।सारे इलाज करवा लिया कोई आराम नही है।"
"आप भूत प्रेत को मानती है। क्यों कि एक अजीब तरह की दुर्गंध उनके कमरे से और नीचे के और कमरों से आ रही है। जहां तक मै जानता हूं ये प्रेत बाधा की सूचक है।"मदन ने मुंह पर हाथ रखकर सोचने की मुद्रा से कहा।
मिसेज प्रसाद चौंकी,"हे प्रेत बाधा।पर आप को कैसे पता?"
मदन उन्हें लेकर ठाकुर शम्भु प्रसाद के कमरे मे गया।और उन्हें मंदिर से गंगाजल लाने को बोला । मिसेज प्रसाद गंगाजल लायी तो मदन अंजुली मे भरकर गंगा जल शम्भु प्रसाद के पलंग के चारों ओर घुमने लगा साथ मंत्र भी बुदबुदा रहा था।थोडी देर पहले जो शम्भु प्रसाद बैचेन होकर होंठों मे बुदबुदा रहे थे वो अब शांत होकर सो रहे थे। मिसेज प्रसाद हैरान रह गयी क्यों कि उनके पति कभी भी इस हवेली मे आने के बाद इतनी गहरी नींद नही सोये।अब तो मिसेज प्रसाद को भी यकीन हो गया।वो बोली,"मै कल ही अपने मायके से पहुंचे हुए तांत्रिक को बुलाकर किर्या करवाती हूं।
मदन आफिस के लिए निकल गया ।दोपहर दो बजे मिसेज प्रसाद का फोन आया कि इनको सांस लेने मे तकलीफ हो रही है मै इन्हें शहर के अस्पताल ले जा रही हूं।आप घर का ख्याल रखना।मदन को अपराधबोध हो रहा था उसने उन पर आये प्रेत को जगा दिया था। लेकिन अब कर भी क्या सकते थे।
मदन शाम को पांच बजे दफ्तर की छुट्टी के बाद जैसे ही हवेली पहुंचा और अपने कमरे का दरवाजा खोला तो देखकर हैरान रह गया।उसकी तांत्रिक उपाय की किताब बीच मेसे फटी हुई है।अब मदन को पक्का यकीन हो गया कि हवेली प्रेत बाधा से ग्रस्त है।वह बाहर से खा पीकर रात दस बजे अपने कमरे मे सोने गया अभी उसे सोते एक डेढ़ घंटा ही हुआ था कि बाहर गैलरी मे पायल की आवाज सुनाई दी।मदन चौकन्ना हो गयाऔर जितने भी तांत्रिक क्रिया के मंत्र आते थे याद करने लगा।तभी वह घुंघरूओं की आवाज तेज हो गयी और उसके कमरे से आने लगी।वह थोड़ा सा सोया और थोड़ा जगा महसूस कर रहा था।उसने देखा एक तीस बतीस साल की औरत लाल सुर्ख जोड़े मे ठुडी तक घुंघट निकाल कर उसके पलंग से एक फुट की दूरी पर खडी है।और धीरे से उसके कान मे कह रही है ,"हवेली में खजाना छिपा है ।"
तभी मदन ने चेता किया तो पाया कोई नही था उस के कमरे मे वो सारी रात सोचता रहा कौन है वो औरत और मुझे ही खजाने के विषय में क्यों बता रही है।सारी रात आंखों ही आंखों मे निकल गयी।अगले दिन मदन का आफिस मे किसी काम मे मन नही लगा वह सारा दिन उस घुंघट वाली औरत के विषय मे सोचता रहा।शाम को आफिस से आकर जल्दी से खाना खाया और दस बजे उस औरत के दोबारा आने के इंतजार मे मदन बिस्तर पर लेट गया।रात साढ़े ग्यारह बजे मदन को फिर से वही घुंघरूओं की आवाज आने लगी।वह जोर लगाकर बोला,"बताना है तो साफ साफ बताओ तुम कौन हो और क्या चाहती हो।"
इतने मे घुंघरूओं की आवाज शांत हो गयी।मदन ने भी सोचा शायद मेरा वहम है ये सोच कर वह सो गया।तभी उसे ऐसे लगा जैसे वह हवेली के आंगन मे खड़ा है पर यह हवेली तो वही है पर चीजे सारी पुराने जमाने की है। कमरों मे बिजली के बल्ब की जगह लैम्प जल रहे है तभी हवेली के मुख्य दरवाजे पर खटखटाहट होती है ।मदन मूक दर्शक बना सब देख रहा  था।एक कमरे से वही घुंघट वाली ओरत लैम्प लेकर दरवाजे की तरफ जाती है और दरवाज़ा खैलते ही एक डाकू जैसा आदमी प्रवेश करता है।और उस औरत से कहता है ।देख अशर्फी मै आज कितना तगड़ा हाथ मारके आया हूं थैला भरा है स्वर्ण मुद्राओं से।तभी अशर्फी उसे धीरे बोलने के लिए बोलती है और कहती है,"शशशं।धीरे बोल मुन्ना सो रहा है दूसरे कमरे मे। मैने तुझे कहां है ना डाका मार कर मेरी हवेली मे मत आया कर । अंग्रेज सिपाही खाल मे भूसा भर देंगे समझा।"
डाकू जैसी शक्ल वाला आदमी उसे बड़े प्यार से देखने लगा।
तभी अशर्फी बोली,"अच्छा अच्छा मंगल अब चिरोरियां बंद कर और जा तहखाने मे छिपा दे।"
डाकू मंगल सी थैला लेकर तहखाने मे चला गया पीछे पीछे अशर्फी भी ओर मदन भी चले गये। अशर्फी और मंगल ने एक दीवार खोदकर सारी मोहरें उस मे दबा दी और दीवार पहले जैसी करके उसपर लाल गेरू से पुताई कर दी।तभी हवेली का दरवाजा फिर से खड़का।इस बार जब अशर्फी ने खोला तो दो अंग्रेज सिपाही खडे थे वे बोले,"आपकी हवेली मे कोई आया है क्या?"अशर्फी बोली,"नही तो पर क्या बात है ?"
वे बोले ,"डाकू मंगल सिंह राजा जी के दो आदमियों को मार कर खजाना लूटकर फरार है आखिरी बार इसी इलाके मे देखा गया था।आप सचेत रहिये गा।"
तभी अशर्फी बोली,"साहब यहां चिड़ी भी पर नही मार सकती डाकू तो बहुत बडी बात है यहां ठाकुर भीमा की विधवा रहती है‌।आप निश्चित रहे।"
यह कहकर अशर्फी ने किवाड़ बंद कर दिये और नीचे तहखाने मे आयी और मंगल से बोली,*पहले डाके डालता था अब लोगों की जान भी लेने लगा है ।बाबा मुझे बक्श तू।"मंगल सिंह उसे बाहों मे भर कर उपर कमरे की तरफ ले गया और बोला,"मेरी जान अगर तू मुझे यहां बर्दाश्त नहीं कर सकती तो अंग्रेज सिपाही के हाथ क्यों नही पकड़वाया।मुझे पता है तू मेरी दीवानी है।"यह कहकर वे दोनों एक कमरे मे बंद हो गये।थोडी ही देर मे मदन क्या देखता है एक दो तीन साल का बच्चा आधी नींद से उठा अपनी मां को ढूंढ रहा था।तभी अशर्फी दूसरे कमरे से निकली और बच्चे को सुलाने के लिए अपने कमरे मे चली गयी।पीछे से डाकू मंगल सिंह दीवार फांद कर गली मे कूद गया।तभी धांय धांय धांय तीन गोली चली । अशर्फी चिल्लाते हुए खिड़की पर गयीऔर पड़ोस की काकी से पूछा,"क्या हुआ काकी?*
पडोस की काकी बोली,"बेटी कुछ नही ।मुआ मंगल सिंह डाकू मारा गया।" 
तभी जैसे मदन को किसी ने झिंझोड़ कर जगाया।देखा सामने अशर्फी खडी थी।वह धीरे धीरे बुदबुदा रही थी।"मेरी मुक्ति, खजाने से मंदिर बनवाना,और वादा करो मेरी असलियत किसी को ना बताना।"
जब मदन अच्छी तरह से नींद से जगा तो सुबह हो चुकी थी। हवेली का मुख्य दरवाजे पर दस्तक हुई ।मदन ने देखा शम्भु प्रसाद अपने पैरों से चल कर हवेली मे प्रवेश कर रहे है और पूर्णतः स्वस्थ लग रहे है।मदन ने मिसेज प्रसाद से पूछा ,"ये कैसे चमत्कार हुआ ?"तो वह बोली, "पता नही भाई आज सुबह ही इनकी हालत मे अचानक से सुधार हो गया और डाक्टर ने बोला हम घर जा सकते है।"
मदन बोला,"भाईसाहब और भाभी जी आप को एक बात बतानी है इस हवेली मे जो प्रेत है वो एक खजाने की रक्षा कर रहा है आप से विनती है आप उस खजाने को निकाल कर उससे मंदिर या पाठशाला बनवाए ताकि उस आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिले।और एक बात मुझे आप से पूछनी थी भाईसाहब।"
शम्भु प्रसाद एकदम से बोले,"हां पूछो क्या पूछना चाहते हो।"
"ये अशर्फी कौन है।"मदन ने सवाल किया।
शम्भु प्रसाद बोले,"मेरी माता जी का नाम है। क्यों क्या बात है?"
मदन बोला,"उन्होंने ही कहा है मुझे।" 
यह कह कर मदन सारी वो बात छुपा गया।जो एक बेटे से उसकी मां का सम्मान छीन ले।और साथ ही अशर्फी देवी का वादा भी निभाया था उसने।

©Monika Garg खजाना 

#RIP_KK

5 Love

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Monika Garg

करवा ले लो ,करवा।बहन करवा ले लो।बाहर से करवे बेचने वाले की आवाज़ सुन कर कनक बाहर की तरफ भागी तो कदम चौखट पर ही ठिठक गए ।उसने देहली के बाहर बढाया  कदम एकदम अन्दर की तरफ खींच लिया।आखों से  अश्रु धार बहने लगी।तभी सात साल का सानु दौड़ता हुआ आया और बोला ,"माँ गली की सारी औरतें करवे ले रही है तुम क्यो नही लेती।देखों  ना बिलकुल घरके आगे खड़ा है करवे वाला।"कनक की जोर से रूलाई फूट पड़ी ।अब वह उस कोमल हॄदय को कैसे समझायें कि वह अब किसके नाम  का व्रत रखे।जिसके नाम का रखती थी वो तो पिछले साल ही देश की सेवा करने में  शहीद हो गया याद है उसे वो मंज़र ।चारों तरफ "भारत माता की जय "।"शहीद  अमन दीप अमर रहे"।चारो तरफ से यही नारे गूंज  रहे थे।अमन को जब चिता पर लिटाया  गया तो वह बेसुध हो कर गिरने वाली थी।तभी गली की औरतों ने उसे सम्भाला और दिलासा देती हुई बोली,"कनक !अमन हम से दूर थोड़े गया है वो तो अमर हो गया है।उसकी शहादत पर आँसु बहा कर तू उसकी शहादत को बेकार कर रही है।तू तो अमर शहीद की पत्नी है।नाज  कर अपने ऊपर।"एक तो सानु छोटा उपर से दुख का पहाड़। अब जाये तो कहा जाये ।बेचारी ने मन पर पत्थर रखकर पति को अन्तिम विदाई दी।रिश्तेदार भी कितने दिन रहते।थोड़े  दिनों बाद कनक को दिलासा दे कर सब अपने-अपने घरों को रवाना हो गये ।अब माँ  बेटा दोनों घर मे अकेले रह गये।दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर जीवन की गाड़ी को खींचने लगे।सानु माँ की आखों में आंसू देखकर विचलित हो गया ।पूछा,"क्यो रो रही हो माँ ?बताओ ना।कनक ने आंसू पोंछते हुए कहा,"कुछ नही मेरे लाल बस आखों मे कुछ गिर गया था ।इस लिए पानी आ गया ।"सानु माँ से चिपकता हुआ बोला,"माँ आप मुझे मूर्ख समझती है।रोना और पानी आना मै अच्छी तरह से समझता हूँ ।बताओ ना क्यू रो रही थी।"कनक ने बेटे की जिद के आगे घुटने टेक दिए ।बोली ,"बेटा मैं आज तुम्हारे पापा को याद करके रो रही थी।उनको कितना चाव था करवा-चौथ का हर बार फौज से छुट्टी लेकर आते थे।अपने हाथों से मेरा श्रृंगार करते थे।करवे वाला आता था तो मुझ से पहले गली मे पहुँच जाते थे ।अब मै किसके लिए व्रत रखू बस यही सोचकर  आँखो मे पानी आ गया।सानु बेचारा हैरान परेशान माँ की ओर देखने लगा ।बच्चा था वह करे भी तो क्या करे।गांव के बाहर उसके पिता की स्मृति में एक पत्थर की प्रतिमा स्थापित की थी गांव वालों ने ।वहाँ जाकर उदास हो कर बैठ गया।यही सोचता रहा माँ को कैसे खुश करूँ ।तभी उसकी नजर पिता की  मूर्ति के नीचे लिखी लाईन पर गयी।"शहीद अमन दीप अमर रहेँ ।"बस उसे रास्ता मिल गया ।वह दौड़ा दौड़ा करवे वाले के पास गया और करवे वाले से करवे खरीदने लगा।रेहडी पर खड़ी औरतों ने पूछा, "है रे!किसके लिए  खरीद रहा है।सानु ने कहा,"माँ के लिए "औरते मुँह पर हाथ रख कर तरह-तरह की बातें करने लगी।कोई कहती"मुझे तो इसके रंग ढंग सही नही लगते थे।पति के जाने के बाद तो आजाद हो गयी है भई।"जितने मुँह उतनी बातें ।सानु किसी की भी परवाह किए बगैर करवे खरीद कर  घर पहुंचा और माँ  से बोला, "माँ आज तुम करवा-चौथ का व्रत रखो गी।"सानु की ये बात सुनकर कनक सन्न रह गयी।बोली"ये तू क्या  कह रहा है बेटा।मैं और करवा-चौथ ।लोग क्या कहेंगे ।"सानु बोला "माँ तुम कुछ मत सोचो  बस व्रत रखों मै सब देख लूँ गा।"कनक ने बहुत मना किया पर सानु ज़िद पर अडा रहा।कनक ने मन न होते हुए भी बेटे की ज़िद के लिए व्रत रखा।आज सानु ने माँ को वो ही साड़ी  अलमारी मे से निकाल कर दी जो उस के पिता को पसंद थी।अपनी माँ को सारा श्रृंगार करने को बोला जो उसके पिता उसकी माँ  का करते थे।पर कहते है ना लोगों को अपने सुख मे सुखी रहना नही आता दूसरा सुखी क्यू है यही बात उन्हे परेशान करती है।ऐसी ही चार पांच औरतें जिन से रहा नही गया पहुँच गयी कनक के घर ।जब देखा कनक तो नयी नवेली दुल्हन की तरह सजी है तो सुनाने लगी,"है री करम जली किसके नाम का करवा-चौथ रख रही है।पति को गुज़रे साल भी नही हुआ और ये महारानी सज-धज कर ना जाने किस के नाम का व्रत रखो रही है।,"मेरे पिता के नाम का "सानु लगभग चीखता हुआ हाथ में पूजा की थाली और छलनी लेकर बाहर आया ।बोला,"काकी मुझे ये बताओ वो आप ही थी ना जब मेरे पिता जी को चिता पर लिटा रहे थे तो माँ को ढाढ़स बंधाते  हुए कहा था कि मेरे पिता कही नही गये वो यही है।और मैंने स्कूल में पढ़ा है अमर का मतलब  जो कभी नहीं मरा हो।इस लिए मेरी माँ एक अमर शहीद  की पत्नी है।वह तो विधवा हो ही नही सकती ।इसलिए मेरी माँ आज से मेरे पिता के नाम  का व्रत करेंगी ।सानु चल पड़ा अपनी माँ को ले कर अपने पिता के स्मारक की ओर ।माँ  को चाँद को अरग देते व छलनी से चाँद और पिता को देखती माँ को देखने के लिए ............

©Monika Garg विधवा का करवाचौथ 

#RIP_KK

विधवा का करवाचौथ #RIP_KK #समाज

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Monika Garg

करवा ले लो ,करवा।बहन करवा ले लो।बाहर से करवे बेचने वाले की आवाज़ सुन कर कनक बाहर की तरफ भागी तो कदम चौखट पर ही ठिठक गए ।उसने देहली के बाहर बढाया  कदम एकदम अन्दर की तरफ खींच लिया।आखों से  अश्रु धार बहने लगी।तभी सात साल का सानु दौड़ता हुआ आया और बोला ,"माँ गली की सारी औरतें करवे ले रही है तुम क्यो नही लेती।देखों  ना बिलकुल घरके आगे खड़ा है करवे वाला।"कनक की जोर से रूलाई फूट पड़ी ।अब वह उस कोमल हॄदय को कैसे समझायें कि वह अब किसके नाम  का व्रत रखे।जिसके नाम का रखती थी वो तो पिछले साल ही देश की सेवा करने में  शहीद हो गया याद है उसे वो मंज़र ।चारों तरफ "भारत माता की जय "।"शहीद  अमन दीप अमर रहे"।चारो तरफ से यही नारे गूंज  रहे थे।अमन को जब चिता पर लिटाया  गया तो वह बेसुध हो कर गिरने वाली थी।तभी गली की औरतों ने उसे सम्भाला और दिलासा देती हुई बोली,"कनक !अमन हम से दूर थोड़े गया है वो तो अमर हो गया है।उसकी शहादत पर आँसु बहा कर तू उसकी शहादत को बेकार कर रही है।तू तो अमर शहीद की पत्नी है।नाज  कर अपने ऊपर।"एक तो सानु छोटा उपर से दुख का पहाड़। अब जाये तो कहा जाये ।बेचारी ने मन पर पत्थर रखकर पति को अन्तिम विदाई दी।रिश्तेदार भी कितने दिन रहते।थोड़े  दिनों बाद कनक को दिलासा दे कर सब अपने-अपने घरों को रवाना हो गये ।अब माँ  बेटा दोनों घर मे अकेले रह गये।दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर जीवन की गाड़ी को खींचने लगे।सानु माँ की आखों में आंसू देखकर विचलित हो गया ।पूछा,"क्यो रो रही हो माँ ?बताओ ना।कनक ने आंसू पोंछते हुए कहा,"कुछ नही मेरे लाल बस आखों मे कुछ गिर गया था ।इस लिए पानी आ गया ।"सानु माँ से चिपकता हुआ बोला,"माँ आप मुझे मूर्ख समझती है।रोना और पानी आना मै अच्छी तरह से समझता हूँ ।बताओ ना क्यू रो रही थी।"कनक ने बेटे की जिद के आगे घुटने टेक दिए ।बोली ,"बेटा मैं आज तुम्हारे पापा को याद करके रो रही थी।उनको कितना चाव था करवा-चौथ का हर बार फौज से छुट्टी लेकर आते थे।अपने हाथों से मेरा श्रृंगार करते थे।करवे वाला आता था तो मुझ से पहले गली मे पहुँच जाते थे ।अब मै किसके लिए व्रत रखू बस यही सोचकर  आँखो मे पानी आ गया।सानु बेचारा हैरान परेशान माँ की ओर देखने लगा ।बच्चा था वह करे भी तो क्या करे।गांव के बाहर उसके पिता की स्मृति में एक पत्थर की प्रतिमा स्थापित की थी गांव वालों ने ।वहाँ जाकर उदास हो कर बैठ गया।यही सोचता रहा माँ को कैसे खुश करूँ ।तभी उसकी नजर पिता की  मूर्ति के नीचे लिखी लाईन पर गयी।"शहीद अमन दीप अमर रहेँ ।"बस उसे रास्ता मिल गया ।वह दौड़ा दौड़ा करवे वाले के पास गया और करवे वाले से करवे खरीदने लगा।रेहडी पर खड़ी औरतों ने पूछा, "है रे!किसके लिए  खरीद रहा है।सानु ने कहा,"माँ के लिए "औरते मुँह पर हाथ रख कर तरह-तरह की बातें करने लगी।कोई कहती"मुझे तो इसके रंग ढंग सही नही लगते थे।पति के जाने के बाद तो आजाद हो गयी है भई।"जितने मुँह उतनी बातें ।सानु किसी की भी परवाह किए बगैर करवे खरीद कर  घर पहुंचा और माँ  से बोला, "माँ आज तुम करवा-चौथ का व्रत रखो गी।"सानु की ये बात सुनकर कनक सन्न रह गयी।बोली"ये तू क्या  कह रहा है बेटा।मैं और करवा-चौथ ।लोग क्या कहेंगे ।"सानु बोला "माँ तुम कुछ मत सोचो  बस व्रत रखों मै सब देख लूँ गा।"कनक ने बहुत मना किया पर सानु ज़िद पर अडा रहा।कनक ने मन न होते हुए भी बेटे की ज़िद के लिए व्रत रखा।आज सानु ने माँ को वो ही साड़ी  अलमारी मे से निकाल कर दी जो उस के पिता को पसंद थी।अपनी माँ को सारा श्रृंगार करने को बोला जो उसके पिता उसकी माँ  का करते थे।पर कहते है ना लोगों को अपने सुख मे सुखी रहना नही आता दूसरा सुखी क्यू है यही बात उन्हे परेशान करती है।ऐसी ही चार पांच औरतें जिन से रहा नही गया पहुँच गयी कनक के घर ।जब देखा कनक तो नयी नवेली दुल्हन की तरह सजी है तो सुनाने लगी,"है री करम जली किसके नाम का करवा-चौथ रख रही है।पति को गुज़रे साल भी नही हुआ और ये महारानी सज-धज कर ना जाने किस के नाम का व्रत रखो रही है।,"मेरे पिता के नाम का "सानु लगभग चीखता हुआ हाथ में पूजा की थाली और छलनी लेकर बाहर आया ।बोला,"काकी मुझे ये बताओ वो आप ही थी ना जब मेरे पिता जी को चिता पर लिटा रहे थे तो माँ को ढाढ़स बंधाते  हुए कहा था कि मेरे पिता कही नही गये वो यही है।और मैंने स्कूल में पढ़ा है अमर का मतलब  जो कभी नहीं मरा हो।इस लिए मेरी माँ एक अमर शहीद  की पत्नी है।वह तो विधवा हो ही नही सकती ।इसलिए मेरी माँ आज से मेरे पिता के नाम  का व्रत करेंगी ।सानु चल पड़ा अपनी माँ को ले कर अपने पिता के स्मारक की ओर ।माँ  को चाँद को अरग देते व छलनी से चाँद और पिता को देखती माँ को देखने के लिए ............

©Monika Garg विधवा का करवाचौथ 

#RIP_KK

विधवा का करवाचौथ #RIP_KK #समाज

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