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santoshsharma6030
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santosh sharma

writing A poem

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santosh sharma

आज भी तुम याद आती हो 
जब मै गलियो से गुजरता
अपनी यहसास दिलाती हो
महक आती  द्वार से गम का,
तू ना मिली अबतलक 
उदासीयों में मुझे सताती हो
अधूरी है जिंदगी
अधूरी है ख्वा़ब
क्या फायदा इस जिंदगी का 
ना हो जब कभी तुमसे मुलाकात
जिंदा हूँ तो बस तेरे साये से
हौसला जीने की दिलाती हो
नही होती खत्म तेरी एहसास,
जब भी सोचता तुम्हें दूर करने की
न जाने मेरे गम में क्यों
तुम सिर्फ़ मुस्कुराती हो।
बेचैन हूँ तुम्हारी चाहतो से
हृदय की गहराइयों में समाती हो
-------santosh sharma #Rose
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santosh sharma

तुम स्थिर तुंग ,मै चंचल स्रोतस्विनी,
तुम हरीतिमा, मै घनरस ओजस्विनी।
मै पानी की धारा,तुम पृथ्वी की तारा,
तुम शिव,मै शीतल ,निर्मल तपस्विनी।
----संतोष शर्मा Nature#
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santosh sharma

पहाड़ो तले नदीयां बहे जा रहा है।
गुमशूम तलाशे शांत कहे जा रहा है
वो बादल की पानी है मोती बिखेरे
ठहरा जा थोड़ी देर गोद में कहे जा रहा है

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santosh sharma

धन्य है भारत की भूमि जहाँ पर मीरा का जन्म हुआ,
 
हिंदू जाति और नारी कुल की सम्मान का उद्भव हुआ

दसम मास सवंत 1561आश्विन शुक्ल पूर्णिमा था जब,

पिता रतन सिंह माता वीरकुमारी का कोख धन्य हुआ।
-------संतोष शर्मा (कुशीनगर) "मीरा का जन्म"

"मीरा का जन्म"

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santosh sharma

प्रेम पूनित पद करें गुणगान भगवत्यप्रेम में डूब जाता,

एक-एक तान में करती पुकार रोम रोम में बस जाता।

गा रहा हूँ मै गाथा अनुपम चरित्र मीरा की अभिलाषा,

नव-नील -नीरद मुख-कमल श्यामसुंदर का हो जाता।

-- ------------–--संतोष शर्मा 
दिनांक 20/06/22 अनुपम चरित्र श्री मीराबाई

अनुपम चरित्र श्री मीराबाई

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santosh sharma

मोतियां सजी है आँखों में ,
सफेद बादलों में काजल है ।

अंधेरे को निहारते रहता,
प्रेम में प्यार का आँचल है।

डूबता रहता तूझमें शाम -सुबह,

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santosh sharma

बेचैन हूँ अशांत हूँ

घण्टों विचारता रहता।

क्यों ऐसा हुआ

कैसे हुआ।

उलझता रहा ,

रुक रुक कर चलता रहा।

सम्बंधों में मनमुटाव है,

आपस में कुछ टकराव है।

बड़े सपने पाल रखे है,

ढलती उम्र को मन से निकाल रखे है।

सम्मान की आस लगाये बैठा हूँ,

जुये पर खुद को लुटाये बैठा हूँ।

कभी शून्य की तरफ निहारता,

खुले आकाश में मकान बनाये बैठा हूँ।

सूरज की रोशनी में जलने की कोशिश है,

देह चंदन के लेप से लगाया बैठा हूँ।

राख मुट्ठीभर बह रहा नद में बिखर कर,

अब शांत हूँ पर मै नही ,

कण-कण में बसने लगा,

स्वंम्भू में ध्यान लगाये बैठा हूँ।
--santosh sharma

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santosh sharma

अंतस में अब  आती जाती,

छितिज में धूमिल हो जाती।


सूदूर तमस में छुपते-छुपते,

वैरागिन मै श्यामल हो जाती।


नाना भेष धरे है, तरूवर 

रोम-रोम विह्वल हो जाती।


छणिक विरह भी दुर्लभ लगता,

महल अटारी कुटीर हो जाती।

          ----संतोष शर्मा

Dated-12/05/2022

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santosh sharma

नूतन विचार हो ,
हर सम्भव कार्य हो।
गुण -दोष जानिए,
व्यक्ति को पहचानिए।
रुढ़ियों से मुक्त हो,
ईष्या ,द्वेष से अवमुक्त हो।
स्वच्छंद समाज की आस करे
 चिंतन का प्रयास करें।
हर दिन रोजगार हो,
सपने आपके साकार हो।
इस साल आपके ,
स्वस्थ सुखी परिवार हो,
जीवन में नये चमत्कार हो।
-------नये साल 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं
            ।।।।संतोष शर्मा।।।। #happy new year

#Happy new year

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