" इतनी देर तक क्यों जग रही थी तुम. तुम्हें तनिक भी अपना ख्याल नही रहता न. गोबर भर रखा है तुम्हारे दिमाग में जानती हो तुम्हारी तबियत खराब हो जाती है फिर भी जाने क्यों करती रहती हो. जाओ कुछ बोलना ही नही अब मुझे तुमसे करो अपने मन की".
रोहित की बातें और उसका ये गुस्सा,.
जन्मदिन था उसका पिछले कल .. और मैं भूल गयी. अभी याद आया तो शुभकामनायें देने आ गयी. उसका ध्यान हटाने के लिए मैंने उसे अपने कुछ क्लिक्स दिखाए. उसने भी उड़ते-उड़ते देखे और घूरते हुए कहा...
" खूबसूरत ".
मैंने उसे चिढ़ाते हुए शराररी लहजे
AB
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हैं लिपटे धुंध के दिलकश नज़ारे
नदी खामोश हैं,..चुप किनारे
है छोटी सी कश्ती और हम हैं
चले जाते हैं लहरों के सहारे
सुहानी अपनी संगत हो गयी है
ये दुनिया खूबसूरत हो गयी है,.
हमें जबसे तुमसे मोहब्बत हो गयी है.
रिहायी कभी वक़्त से चाहिए, कभी दूसरों से चाहिए तो कभी खुद से. एक उम्र हो चली रिहायी भरी उम्रकैद काटते-काटते... मैं कैद में हूँ या हूँ आज़ाद नहीं मलूम,.. बहुत दिन हो चले हैं डायरी लिखे अब तो सब ड्राफ्ट के हवाले कर देती हूँ और कभी-कभी social media पर शब्दों की गंगा बहा देती हूँ. गंगा इसलिए कह रही हूँ क्युंकि शब्द ही तो माध्यम हैं जो मेरे पवित्र ह्रदय के पवित्र भावों को एक पहचान देते हैं,..
Social media की demerit ये है कि यहाँ एक सीमा तक लोगों के प्रतिक्रियाओं से बचाव किया जा सकता है. परन्तु एक