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alpanabhardwaj6740
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AB

..... सुनो ना,..

तुम्हें पता है एकांत कितना अच्छा होता है,.. और उससे भी ज्यादा अच्छा होता है अपने एकांत को पहाड़ों सँग साझा करना. खैर! पहाड़ तो मेरे घर हैं. मैं सदियों से इन्हें जी रही हूँ. तुमसे इसलिए कह रही हूँ ताकि तुम भी पहाड़ बन सको और इस तरह मैं हमेशा तुम्हारे करीब रहूँ. तुम्हारा मन, तुम्हारा ह्रदय, तुम्हारा शरीर और तुम्हारी आत्मा बन कर.

   सुना ना तुमने,...? क्या-क्या कहा मैंने,...

-अल्प©

सुनो ना,.. तुम्हें पता है एकांत कितना अच्छा होता है,.. और उससे भी ज्यादा अच्छा होता है अपने एकांत को पहाड़ों सँग साझा करना. खैर! पहाड़ तो मेरे घर हैं. मैं सदियों से इन्हें जी रही हूँ. तुमसे इसलिए कह रही हूँ ताकि तुम भी पहाड़ बन सको और इस तरह मैं हमेशा तुम्हारे करीब रहूँ. तुम्हारा मन, तुम्हारा ह्रदय, तुम्हारा शरीर और तुम्हारी आत्मा बन कर. सुना ना तुमने,...? क्या-क्या कहा मैंने,... -अल्प©

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AB

Alps©

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AB

काश ! तू ऐसे आये.. जैसे कोई दुआ,..
( Read in caption ) " इतनी देर तक क्यों जग रही थी तुम. तुम्हें तनिक भी अपना ख्याल नही रहता न. गोबर भर रखा है तुम्हारे दिमाग में जानती हो तुम्हारी तबियत खराब हो जाती है  फिर भी जाने क्यों करती रहती हो. जाओ कुछ बोलना ही नही अब मुझे तुमसे करो अपने मन की".

रोहित की बातें और उसका ये गुस्सा,.

जन्मदिन था उसका पिछले कल .. और मैं भूल गयी. अभी याद आया तो शुभकामनायें देने आ गयी. उसका ध्यान हटाने के लिए मैंने उसे अपने कुछ क्लिक्स दिखाए. उसने भी उड़ते-उड़ते देखे और घूरते हुए कहा...
" खूबसूरत ".

मैंने उसे चिढ़ाते हुए शराररी लहजे

" इतनी देर तक क्यों जग रही थी तुम. तुम्हें तनिक भी अपना ख्याल नही रहता न. गोबर भर रखा है तुम्हारे दिमाग में जानती हो तुम्हारी तबियत खराब हो जाती है फिर भी जाने क्यों करती रहती हो. जाओ कुछ बोलना ही नही अब मुझे तुमसे करो अपने मन की". रोहित की बातें और उसका ये गुस्सा,. जन्मदिन था उसका पिछले कल .. और मैं भूल गयी. अभी याद आया तो शुभकामनायें देने आ गयी. उसका ध्यान हटाने के लिए मैंने उसे अपने कुछ क्लिक्स दिखाए. उसने भी उड़ते-उड़ते देखे और घूरते हुए कहा... " खूबसूरत ". मैंने उसे चिढ़ाते हुए शराररी लहजे

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AB

कभी-कभी हम ऐसी कहानियां
लिखने लगते हैं जिनकी पात्रता हमें
स्वंय स्वीकार नहीं होती.
अल्प©

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AB

Alps© हैं लिपटे धुंध के दिलकश नज़ारे
नदी खामोश हैं,..चुप किनारे
है छोटी सी कश्ती और हम हैं
चले जाते हैं लहरों के सहारे
सुहानी अपनी संगत हो गयी है
ये दुनिया खूबसूरत हो गयी है,.

     हमें जबसे तुमसे मोहब्बत हो गयी है.

हैं लिपटे धुंध के दिलकश नज़ारे नदी खामोश हैं,..चुप किनारे है छोटी सी कश्ती और हम हैं चले जाते हैं लहरों के सहारे सुहानी अपनी संगत हो गयी है ये दुनिया खूबसूरत हो गयी है,. हमें जबसे तुमसे मोहब्बत हो गयी है.

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AB

I'll fall for you. Time to collab and complete this #lovepoem. #ififallinloveagain #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Baba

Time to collab and complete this #lovepoem. #ififallinloveagain #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Baba

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AB

जिसके हिस्से जो होगा जरूर आएगा,..
कोई बादल पर तर आएगा तो 
कोई पानी पर घर बनाएगा,..
अल्प©

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AB

....... By : Sumeet Pathak


DQ : DQC : 

..... इस प्रतिउत्तर को सुनने के बाद शौर्य जैसे अपने मन ही मन में भावनाओं के तरंगों से जूझ रहा हो ! 

होंठ तो सिले हुए परंतु चेहरे की भाव भंगिमा से ऐसा प्रतीत हो रहा

By : Sumeet Pathak DQ : DQC : ..... इस प्रतिउत्तर को सुनने के बाद शौर्य जैसे अपने मन ही मन में भावनाओं के तरंगों से जूझ रहा हो ! होंठ तो सिले हुए परंतु चेहरे की भाव भंगिमा से ऐसा प्रतीत हो रहा #Transformation #Collaboration #lifequotes #yqdidi #YourQuoteAndMine #longform

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AB

मैं छोटा सा हिस्सा 
तुम्हारी ज़िंदगी का
और तुम मेरी ज़िंदगी
अधूरा ख्वाब हो,..

मैं छोटा सा हिस्सा
तुम्हारी ज़िंदगी का
और तुम मेरे लिए एक 
खूबसूरत अहसास हो,.

न होकर भी तुम्हारा
हमेशा मुझमें होना
बताता है मुझे कि तुम
मेरे लिए कितने खास हो,.

मैं छोटा सा हिस्सा
तुम्हारी ज़िंदगी का
और तुम मेरी सारी
कायनात हो,..
अल्प©
 𝙻𝚘𝚟𝚎 𝚢𝚘𝚞 𝚊𝚕𝚠𝚊𝚢𝚜,.. 🦋🐝

𝙻𝚘𝚟𝚎 𝚢𝚘𝚞 𝚊𝚕𝚠𝚊𝚢𝚜,.. 🦋🐝

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AB

एक रोज़,..
 रिहायी कभी वक़्त से चाहिए,  कभी दूसरों से चाहिए तो कभी खुद से. एक उम्र हो चली रिहायी भरी उम्रकैद काटते-काटते... मैं कैद में हूँ या हूँ आज़ाद नहीं मलूम,.. बहुत दिन हो चले हैं डायरी लिखे अब तो सब ड्राफ्ट के हवाले कर देती हूँ और कभी-कभी social  media पर शब्दों की गंगा बहा देती हूँ. गंगा इसलिए कह रही हूँ क्युंकि शब्द ही तो माध्यम हैं जो मेरे पवित्र ह्रदय के पवित्र भावों को एक  पहचान देते हैं,..

Social media की demerit ये है कि यहाँ एक सीमा तक लोगों के प्रतिक्रियाओं से बचाव किया जा सकता है. परन्तु एक

रिहायी कभी वक़्त से चाहिए, कभी दूसरों से चाहिए तो कभी खुद से. एक उम्र हो चली रिहायी भरी उम्रकैद काटते-काटते... मैं कैद में हूँ या हूँ आज़ाद नहीं मलूम,.. बहुत दिन हो चले हैं डायरी लिखे अब तो सब ड्राफ्ट के हवाले कर देती हूँ और कभी-कभी social media पर शब्दों की गंगा बहा देती हूँ. गंगा इसलिए कह रही हूँ क्युंकि शब्द ही तो माध्यम हैं जो मेरे पवित्र ह्रदय के पवित्र भावों को एक पहचान देते हैं,.. Social media की demerit ये है कि यहाँ एक सीमा तक लोगों के प्रतिक्रियाओं से बचाव किया जा सकता है. परन्तु एक

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