बाकी है
अभी तो सुबह हुई है कल अंधेरे की,
अभी तो घनघोर भयानक श्याम बाकी है अभी तो हवा चली है तानाशाही की,
अभी तो तूफानी को हराम बाकी है
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मन से सुनिए बहुत देर और बहुत रिसर्च लगी है
Medha Bhardwaj Mamta kumari NEHA SHARMA अभय (पथिक) Lalit Saxena #कविता