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sapnaparihar5796
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Sapna Parihar

I am hindi teacher, and poet . I love my family & friends . I am simple women😊

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Sapna Parihar

गणतंत्र दिवस 
___________
मेरे शहर में भी दुकाने
सजने लगी हैं,
तिरंगे, बेच, बैनर की 
क़ीमत लगने लगी है।
सजावट की वस्तु की तरह 
इन्हे खरीदा जायेगा,
अगले दिन कूड़ेदान में 
फेंक दिया जायेगा।
राष्ट्रीय त्यौहार सिर्फ 
अब दिखावे के लिए हैं,
इसको मनाने के लिए 
लोगों के पास ज्यादा समय नहीं है।
राष्ट्रीय गीत और गान की 
औपचारिकता निभाई जाएगी,
कुछ मिष्ठान बाँटकर 
विदाई दे दी जाएगी।
गणतंत्र दिवस हर बार ऐसे ही 
मनाया जाता है,
झंडा वंदन, सलामी, परेड 
का आयोजन किया जाता है।
संविधान के बारे में सबको 
पता नहीं है,
क्या हमारे मौलिक अधिकार हैं?
कोई भी इसका ज्ञाता नहीं है।
हर साल बस यही तो होता है,
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस ऐसे ही मनता है।
सपना परिहार ✍🏻

©Sapna Parihar #RepublicDay ♥️
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Sapna Parihar

White नहीं बदला
--------------
उठ जाती थी नानी 
सुबह -सुबह। लीपती थी 
आँगन, पूरती थी चौक 
और लग जाती थी बनाने 
भोजन , सभी के लिए।
महक उठता था घर 
खाने की सुगंध से।
समय बदला,,
माँ  भी उठ जाती थी, भोर में!
पूजा स्नान करके चली थी 
अपनी प्यारी रसोई में 
सभी की पसंद का बहुत कुछ बनाने।
दिनभर  काम करते देखा मैंने 
नानी और माँ को 
बिना शिकायत के।
आज मैं भी उठती हूँ जिम्मेदारी से, 
घर के सभी काम निपटाने।
काम पर जाने के लिए।
और,,, मेरी बेटी भी जाती है 
काम पर, घर के काम करके।
समय बदला, नजरिया  बदला 
पर,,, नहीं बदला 
स्त्रियों का घर की जिम्मेदारी 
का जिम्मा!
जिसे नहीं बाँटा 
घर के पुरुष ने अधिकार और 
मन से,,,।
सपना परिहार ✍️

©Sapna Parihar #women_equality_day
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Sapna Parihar

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset कामकाजी औरतें 
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उठ जाती हैं  तड़के ही 
जिम्मेदारियों के साथ, कामकाजी औरतें ¡
घर के वो सारे काम,
 जिन्हें निपटाने के लिए वो कर लेती हैं
 आधी तैयारी रात में ही। 
क्योंकि,,,
उन्हें जाना होता है अपने काम पर,
,, सारे काम करके।
इन सबके बीच में कभी -कभी रह जाती है
 कप में गर्म चाय
 जो एक घूंट हलक में जाकर
 रख दी जाती है गैस स्टेण्ड पर।
वो भूल जाती है भागदौड़ में 
कभी -कभी सलीके से बाल बनाना।
बना कर चली जाती है एक बिखरा सा जूड़ा।
 बेग में रखती है जरूरी सामान हड़बड़ी में।
और,,,
निकल जाती है अपने काम पर।
फिर लौटती हैं,
शाम को घर के काम को करने 
के लिए,
कामकाजी औरतें।
सपना परिहार ✍️

©Sapna Parihar #SunSet
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Sapna Parihar

जन्मदिन पर विशेष 
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प्रखर वाणी के तेज वक्ता,
व्यक्तित्व में जिनके तेज झलकता था,
उनके गंभीर विचारों में 
अपनापन छलकता था।
सोच नेक थी, विचार अटल थे,
सरल, सहज, विद्वान सजल थे।
काव्य के गुण वंशानुगत 
उनमें स्वतः ही आये थे,
अध्यापक पिता की इस संतान 
में सारे गुण समाये थे।
राजनीति में रूचि रही, 
राष्ट्रीय स्वयं सेवक बने।
प्रधानमंत्री के पद पर पहुँचे
पाँच वर्ष सत्ता में रहे।
आजीवन अविवाहित 
रहने का संकल्प लिया,
भीष्मपितामह कहलाये।
नाम के अनुरूप ही 
वे अटल कहलाये।

सपना परिहार

©Sapna Parihar
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Sapna Parihar

- लोग आजकल मेरी खामियों गिनाने में लगे हैं,
 दूसरों की नजरों में मुझे गिराने में लगे हैं।

 खुद को सही और मासूम सा दिखाते हैं आजकल,
 अपनों से ही राजनीति की चाल चलाने में लगे हैं।

 शायद मेरा ज्यादा अच्छा होना उन्हें अच्छा नहीं लगा,
 तभी तो हर महफिल में मेरी इज्जत उछालने में लगे हैं।

 सच को सच कहने पर जो बुरा मान जाते हैं,
 वे खुद के झूठ के महल बनाने में लगे हैं।

 मैं भीड़ का हिस्सा बनने की दौड़ में शामिल नहीं हूँ,
 मेरे अकेले चलने के हौसले से लोग घबराने लगे हैं।

 मैंने खुद का मुकाम अपनी मेहनत और दम पर बनाया है,
 और लोग हैं कि दूसरों के पैसे उड़ाने में लगे हैं।
सपना परिहार ✍️

©Sapna Parihar #♥️
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Sapna Parihar

White गजल 
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 जिंदगी मुकम्मल ना हुई कुछ अधूरा ही रहा,
 सिलसिला सबके दरमियां कुछ यूँ ही रहा।
 खत्म खेल तमाशे बचपन के छूट गए,
 पत्थरों से बना घर अधूरा ही रहा।
 तमाम शिकायतें लफ्जों में बयाँ 
 हुई,
 दौर कमियाँ निकालने का जारी ही रहा।
 कब किस बात पर रोये,कब चेहरे पर हँसी रही,
 वह लम्हाँ बस एक लम्हाँ ही रहा।
 बेफिक्री सी जिंदगी जो कभी हुआ करती थी कभी,
 इस उम्र तक आते-आते वह सिर्फ ख्वाब ही रहा।
 रफ्तार भरी जिंदगी की बस आगे बढ़ती रही,
 अपने तय सफर पर हर आदमी उतरता ही रहा।
 एशो- आराम की जद्दोजहद में थककर चूर हुआ,
 हर इंसान का सफर कुछ इस तरह अधूरा ही रहा।
 जिम्मेदारियों की उलझन में खुद को खो दिया,
 तलाशे सुकून का वह कोना "सपना" ही रहा।
सपना परिहार ✍🏻

©Sapna Parihar #sad_quotes
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Sapna Parihar

White पूरे समाज से  पूछे रावण 
केवल मैं ही अपराधी हूँ क्या?
क्यों हर वर्ष ही मुझे जलाते,
मैं इतना दुस्टाचारी हूँ क्या?

मैंने ऐसे राम भी देखे 
जिनके मन में रावण है,
पर सीता को वो भी घूरे 
राम के भेष में दानव है।

ऐसे कई विभीषण देखे 
जिसने अपने घर को तोड़ा है 
भाई के सँग घात किया 
शत्रु से नाता जोड़ा है।

मैंने ऐसी सीता देखी 
जो अपने राम की हुई नहीं 
पर पुरुष को सदा लुभाती 
खुद की नजरों में उठी नहीं।

कमियाँ सबकी भूल -भालकर 
मुझमे दोष निकालते हो 
दोहरे चरित्र वालों को तुम,
मेरी तरह क्यों नहीं जलाते हो।

मेरी एक त्रुटि के बदले 
मुझे कष्ट दिया ही जाता है 
हर दशहरे पर  ही क्यों?
रावण दहन किया जाता है।

सपना परिहार ✍🏻

©Sapna Parihar #Dussehra
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Sapna Parihar

White गौरैया
.........
 मेरे घर की खिड़की पर
 रोज उड़ कर आती गौरैया 
 तिनके- तिनके चुन -चुन कर 
 रोज लाती गौरैया।

 कभी घास तो कभी लकड़ियाँ 
 मुंह में लाकर इकट्ठा करती
 खिड़की के कोने में रखती 
 घोंसला बनाने की तैयारी करती।

 बारिश के मौसम में भीग कर 
 उड़ कर आती गौरैया 
 तिनके तिनके चुन- चुन कर 
 रोज लाती गौरैया।

 नीड़ बनाती मेहनत से 
 देख हर्षाती गौरैया 
 मेरे घर की खिड़की पर
 रोज उड़ कर आती गौरैया ।

सपना परिहार ✍🏻

©Sapna Parihar
  #love_shayari
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Sapna Parihar

राष्ट्रीय त्यौहार🇮🇳
मन में उठी व्यथा  को,कैसे दूँ बिसराय,
धर्म,संस्कृति धूमिल होती,देख के हिय घबराय।
कब देश आजाद हुआ,कब था पराधीन,
कितने अत्याचार हुए हम सब पर,कितने थे आधीन।
चरण स्पर्श की सभ्यता खोते,अभिवादन करना भूल गए,
उनको ये भी याद नहीं, कि कितने फाँसी झूल गए।
नहीं बताते अभिभावक भी,अपने देश की संस्कृति के बारे में,
भावी पीढ़ी कैसे सीखेगी,अपने ही गलियारे में।
इन ७७ वर्षों में कम पाया ज्यादा खोया है,
अपने देश के सम्मान का,क्यों मन  में बीज न बोया है।
झंडा वंदन,मिठाई वितरण, भाषण की औपचारिकता होगी,
राष्ट्रीय त्यौहारों के प्रति क्या ये सच्ची नैतिकता होगी?
क्यों एक दिन हमें मनाना अपने देश के त्यौहारों को,
क्यों दिल से हम मना नहीं सकते,इन राष्ट्रीय त्यौहारों को।

 "स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें "
सपना परिहार✍🏻

©Sapna Parihar
  #IndependenceDay
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Sapna Parihar

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