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akhileshkumar6981
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Akhilesh Kumar

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Akhilesh Kumar

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Akhilesh Kumar

दर्प तिमिर का 
चूर कर देना 
दीप !
रोशनी से हर उर भर देना
अखिलेश

©Akhilesh Kumar #Diwali
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Akhilesh Kumar

किसी के प्रेम में 
गुम हुए लोग 
एक दिन 
घर तो आ जाते 
ये अपने आप में 
फिर कभी नहीं लौट पाते हैं 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar किसी के प्रेम में

किसी के प्रेम में

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Akhilesh Kumar

सबसे बुरे दौर में
छोटी सी खिलखिलाहट 
हथियार हो जाती है 
तब सबसे बुरा दौर 
सबसे बुरा नहीं रह जाता है 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar सबसे बुरे दौर में 

#AloneInCity

सबसे बुरे दौर में #AloneInCity

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Akhilesh Kumar

आदमी क्या 
घुंघचिल है 
आधा लाल 
.... आधा काला 
और हां...
आदमी ही दुनिया है 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar घुंघचिल

घुंघचिल #कविता

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Akhilesh Kumar

करवाचौथ आ रहा है। हर साल की तरह। बाजार चौड़ा रहे हैं। आर्डर बुक हो रहे। विवाहिताएं तैयार हैं । वो भी जिन्हें पति दो पैग के बाद इस बात पे कूट देता की आज आलू की सब्जी काहे बनाई है। अरहर की दाल के काहे नाहीं। (वो न तो आलू लाया रहा, न अरहर की दाल, पत्नी पड़ोस से मांग कर लाई थी )। वो भी जिन्हें रात को पति के खर्राटों से कुढ़ होती है। वो भी जिन्हें पति के पसीने या पायरिया की सड़ांध से उबकाई आती है। और सामने ही मुंहबंद गाली देती हैं, बाद में मुंह फाड़कर। वो भी जिन्हें पहले प्रेम की शिद्दत से याद आती रहती है।
 अब मुद्दे पर। अभी करवाचौथ को पुरुष समाज की साजिश बताने पर इक लोग भड़क गए। जवाब था। मैं दुराग्रहग्रस्त हूँ। इसलिए की अविवाहित हूँ। कोई व्रत रखने वाला नहीं है। मसलन मुझे शादी उम्र बढ़वाने के लिए कर लेनी चाहिए। कुछ शुभचिंतक मेरे कपड़े  धोने की दिक्कत, खाना बनाने की समस्या..पर इक ही प्रस्ताव देते रहे हैं -शादी। इन्हीं के मुताबिक पत्नी अपने गुजारे के लिए कपड़े धोने वाली या खानसामा... या इन्हीं जैसी प्रजातियों वाली जीव है। इनसे ये सुविधाएं किराये पर हासिल करने की बाबत जवाब था, इत्ते खर्चों से कुल जमा पत्नी सस्ती पड़ती है।
ये बात आपत्तिजनक हो सकती है। वैसे ही जैसे मेरी इक कहानी पग्गल घाट पर महिला पाठकों और कुछ तथाकथित भद्र जनों ने घोर आपत्ति की थी। आज भी करते हैं। यानी चूल्हा, चौका, बर्तन मांजने की तरह व्रत रखने की भी जिम्मेदारी महिलाओं की ही है। इनमें आधी आबादी की आजादी कम मुक्ति का झंडा बुलंद करने वाली भी हैं। इनके लिए ( जितना मैंने जाना) आजादी का मतलब विवाहेत्तर संबंध हैं। मेरी जानकारी में ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जिसने बेटी, बहन, माँ या पत्नी के लिए व्रत रखा हो। ऐसे ही कभी इक बुजुर्ग ने बताया था, संवरने सजने के बारे में। पायल के बारे में ये था कि बजने से पता चलता रहे कि पत्नी घर में ही है। बिछिया, सिन्दूर से पता लगे कि वो विवाहित है। इसी तरह चूड़ी, नथुनी, महावर, लाली, बालों के बारे में तफ्सील से बताये थे। तब मैंने जाना की पुरुष इतना अविश्वासी है महिलाओं को लेकर, वो जो तमाम व्रत रहती हैं- निर्जला जैसा भी। और वो सारी उम्र भ्रम में खटती रहती हैं।  बातें और भी  हैं। गहरे राजफाश फिर कभी।
अखिलेश

©Akhilesh Kumar करवाचौथ

करवाचौथ #विचार

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Akhilesh Kumar

काम पर लौटता 
आदमी अकेला नहीं होता 
उसके साथ 
इक टिकट पर 
 पूरा कुनबा सफर कर रहा होता है 
सबको / यहां तक कि 
टिकट चेक करने वाले को 
वो इकलौता ही नजर आता है 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar काम पर लौटता

काम पर लौटता

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Akhilesh Kumar

तुम
सबसे छिपाकर 
 थोड़े बीज बचा लेना 
मैं मिट्टी बचा लेता हूं 
ऐसे... 
प्रेम बंजर होने से 
बचा रहेगा 
पूरी दुनिया में 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar थोड़े से बीज

थोड़े से बीज #कविता

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Akhilesh Kumar

लोग 
कविताओं के लिए 
लड़ेंगे 
खेतों में 
दुकानें उगने लगेंगी 
... उस दिन 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar कविताओं के लिए

कविताओं के लिए

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Akhilesh Kumar

तुम्हारा कभी 
मुझसे मिलने का जी करे
तुम कविताओं की 
पगडंडी पकड़ना 
ये तुम्हें 
मुझ तक पहुंचा देंगी 
बिना किसी खतरे के 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar तुम्हारा कभी 
#BooksBestFriends

तुम्हारा कभी #BooksBestFriends #कविता

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