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sapankumarghosh6504
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Sapan Kumar Ghosh

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Sapan Kumar Ghosh

सितारे...माइकल जैक्सन..

सितारे...माइकल जैक्सन.. #फ़िल्म

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Sapan Kumar Ghosh

नादान मनवा रे।
किस किस को पुकारे।
ये जग है, जग की रीत है।
कौन वक्त पे काम आया है ?
स्वार्थ के खेल में सारा जहां।
होड़ है आगे निकलने की।
कोई गिरा,कोई दबा।
लाशों पर दौड़ जारी है।

©Sapan Kumar Ghosh
  # दौड़ जारी है...

# दौड़ जारी है... #कविता

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Sapan Kumar Ghosh

# सावन में गणपति दर्शन...

# सावन में गणपति दर्शन... #न्यूज़

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Sapan Kumar Ghosh

इक नाम प्यार,
अनगिनत कहानी है।
हर प्यार आंखो से शुरू,
रूह की गहराई में समाई।
मीरा ने कृष्ण को चाहा,
विष को पिया।
समर्पण का दूजा नाम,
...प्यार ही तो है।

©Sapan Kumar Ghosh
  # प्यार...

# प्यार... #कविता

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Sapan Kumar Ghosh

# दीया और बाती...

# दीया और बाती... #कविता

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Sapan Kumar Ghosh

# महताब...

# महताब... #कविता

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Sapan Kumar Ghosh

# Poetry month.. वीरो का कारवां...

# Poetry month.. वीरो का कारवां... #कविता

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Sapan Kumar Ghosh

# Poetry month.. शक्तिपात...

# Poetry month.. शक्तिपात... #कविता

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Sapan Kumar Ghosh

वो अक्सर रास्ते पे मिल जाती।निगाहे चार होती,पर बात न हो पाती।गोरे भरे गाल,नीली - नीली आंखे। जींस टॉप में कसा बदन,मुझे जन्नत की हूर लगती।कैसे बात शुरू करू ?कोई जतन काम न आया।रोज के मुलाकात से ढांढस मिलता, उत्साह बढ़ता।उसकी नीली आंखों में खो जाने को आतुर रहता।सारा दिन उसी की याद में मगन रहता।हिम्मत करके उसे प्रेम पत्र थमा आया।सारी रात वो मेरे सपनों में आती रही।मेरी बाहों में सोती रही।अगले दिन से मेरे जीवन मैं बहार आने वाली थी ।ये तो महज एक सपना था।हकीकत में गोरे,भरे बदन की अप्सरा; नीली आंखों वाली जन्नत मेरी होने वाली थी। भोर में ही जाग गया।तैयार होकर निकल पड़ा।दो घंटे रास्ते नापने के बाद मेरी जिंदगी नज़र आ ही गई।आज वो सुर्ख गुलाब सी नजर आ रही थी। आ.. हा..,मेरी स्वपन राजकुमारी ! इसे देख कर दोस्त सब जल मरेंगे।गोरे रंगत पे गुमान करने वाली, सारी भाभी अंगूठा रगड़ - रगड़ के अपने खून को जलाएंगी।आने वाले पल में वो मेरी हमदम,मेरी जान और मेरी महबूबा होगी।मैं उसको देखकर मुसकुराया।पर...वो संयत रही।कोई भी खुशी के भाव उसके चेहरे से नदारत थी।वो मेरे पास आई और बोली," भैया...! इसकी जरूरत मुझे नही है।इस पर हक किसी और का होगा। मैं तो इस खुश्क रास्ते से गुजर चुकी हूं...और वर्तमान में एक पति तथा दो बच्चों की मां भी बन चुकी हूं।"
थोड़ी ही दूर पर एक उभरी तोंद वाला,सर पर गिने चुने बालों को ऐसे सहेज रहा था... मानो कई दिनों से भूखा - प्यासे को बिरयानी ले जाने का ऑफर मिला हो।ये क्या से क्या हो गया।मेरी बात बनते - बनते बिगड़ गई।कहा हुस्न की मल्लिका से शुरुआत हुई थी...एक गंजे की बीबी और दो बच्चों की मां पर खत्म हो गई।

©Sapan Kumar Ghosh
  # Poetry month नीली - नीली आंखे।

# Poetry month नीली - नीली आंखे। #कॉमेडी

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Sapan Kumar Ghosh

# मेरा मीत...

# मेरा मीत... #लव

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