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सुकुमार

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सुकुमार

अभ्यागत सा रहा आगमन तुम्हारा 
जीवन के इस कालचक्र में।
संशय चित्त में इतने पले 
विकृति जितनी अष्टावक्र में।।

पर ढाल हृदय को प्रीत पथ पर
भवितव्य यूं अपना जान लिया।
बना विग्रह मन मंदिर में 
तुम्हें स्थापित मान लिया।।

पार उतरने को नाम प्रेम का
क्या तुमने कभी सुना है देवी!
मेरी चेतना प्रज्ञा के प्रवाह ने 
लक्ष्य तुम्हें चुना है देवी।।

- रोहित_सुकुमार 
   16.12.2024











जीजी

©सुकुमार
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सुकुमार

जो आलम है
वो बस इतना है कि - 
मैं टिकट लेकर 
यात्री प्रतीक्षालय में बैठा
अंतिम आशार्थी!

और तुम 
सपनों तक जाने वाली
मेरी जिंदगी के डिपो की 
अंतिम बस...


- रोहित सुकुमार 
14.12.2024


जीज

©सुकुमार
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सुकुमार

नित उठ रहा मन का द्वंद्व 
आहिस्ता ही सही,
फासले के दर पर दस्तक देने लगता है...

इससे पहले कि बज उठे 
उसके घर की डोरबेल,
मनचाही गली में जाकर तुम्हारे लिए 
हमेशा खुले दरवाज़े में घुसकर
कुंदी लगा दो भीतर से...

हमेशा याद रहे,
होठों की मुस्कुराहटों से 
तुम्हारी आंखों का मैच होना या नहीं होना
सब लोग नहीं देख पाएंगे...

- रोहित_सुकुमार 
   05.12.2024


























सीवी

©सुकुमार
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सुकुमार

संसार के तल से
इतना डरते हुए जीया है
हमनें अपना प्यार,
साथ अपनी ज़िंदगी!!!

कि पौ फटने के बाद
उसकी यादों का श्राद्ध भी 
मैं कभी सार्वजनिक 
न कर पाया...

-रोहित सुकुमार







सीवी

©सुकुमार
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सुकुमार

ज्यादा पढ़े-लिखों में है सवाल 
अस्तित्व को लेकर!!!

यहाँ जिसका काम सधा,
वो बावजी कह गया...

(पीपली वाले भूत बावजी के सिगरेट चढ़ती है...😋)
























fg

©सुकुमार
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सुकुमार

थोड़ा-बहुत रूई के फोहों सा
खालीपन रखो ज़हन में
ओ अयस।

जमाना क्या कहेगा!
इतना मजबूत होकर भी 
पानी-सी मोहब्बत नहीं सहेज पाया???

- तत्वमसि
















दध

©सुकुमार
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सुकुमार

उसने सब-कुछ माना तुम्हें।
उसने भरोसा किया तुम पर।
उसने सारा स्पेस दिया तुम्हें
और तुम उसे अपने हक़ मान लेते गये!!!

कोई नहीं,
खुद को इस लायक जरूर 
बचा के रखना कि
आइंदा कभी 
उसके पास खड़े होकर
'भरोसे' पर बोलना पड़ जाये,
तुम्हारे पैरों तले वाले हिस्से की 
ज़मीन न खिसक जाये...

- सुकुमार 






















नप

©सुकुमार
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सुकुमार

वह टहल रहा है भीतर मेरे
घड़ी की मिनट वाली सुई की भाँति
आहिस्ते से जो महसूस भी न हो।
मैं भी गुजर रहा हूँ यादों में उसकी
आसमां में पतंग की तरह
जो भी आवाज है, हवा की है...
यादों में
जंगले से आती सूरज की पहली धूप
मुट्ठी में बंदकर
मैंने उसके माथे पर रखी है,
धरकर धूप माथे पर
उसने चूम ली है हथेली मेरी।
उसके नथुनों से जो आ रही है हवा
प्राणवायु है मेरे गालों के रंध्रों के लिए 
और हमारी आँखों में दिखने लगे हैं
सारे ग्रह-नक्षत्र  और सारी आकाशगंगाएँ...

हमारी हथेलियों को गले मिल लेने दो अब
और चूम लेने दो अंगुलियों के पोरों को भी,
कि अब हमारे लिए नई सृष्टि बनने वाली हैं...

- सुकुमार





ऑ

©सुकुमार
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सुकुमार

अगर है मोहब्बत 
तो सच्ची, पाक, बहुत ज्यादा और खूबसूरत

-ये सब शब्द इसमें पहले से शामिल हैं...

©सुकुमार #sagarkinare
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सुकुमार

जब वो लिखने लगा-

ज़मीन ने हर्फ दिये मिट्टी से सने
आसमां ने बरसाये अहसास बून्दें बनाकर
हवा साँसें भर गई खुशबू घोलकर
और धूप नमी मिटा गई आँखें खोलकर।
और जब लिखा,
बूत बना दिया उसने
मोहब्बत करने वालों का।
हर्फ, अहसास, खुशबू और नमी मिलाकर...

बताइये,
कौन और कैसे कोई नष्ट कर सकेगा 
मोहब्बत को?❤

©सुकुमार ❤

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