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gulshankumar6417
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GULSHAN KUMAR

कलम का कारीगर हूँ साहब मीठे मीठे शब्दो को सजाता हूँ ❣️✍️ HARYANVI💪💪❣️

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GULSHAN KUMAR

ख्वाबो से जब कोई दूर खड़ा हो
दिल जब चकनाचूर पड़ा हो 
तब कोई  कैसे खुश रह पाए... 
तब कोई कैसे खुश रह पाए... 

दरिया में जब कोई बहता ही चला जाए
जब सुनने वाला कोई ना हो 
और ये दिल कहता ही चला जाए
तब कोई कैसे खुश रह पाए... 
तब कोई कैसे खुश रह पाए...

अंजाने सफर मे बीच डगर मे जब कोई सहारा ही ना पाए 
समन्दर मे डूबे हुए को जब कोई किनारा ही ना पाए 
साँसे थमने को हो और उम्मीदे जब आधी हो जाए
सारे साथी एक एक करके जब बागी हो जाए 
तब कोई कैसे खुश रह पाए... 
तब कोई कैसे खुश रह पाए...

इंतजार करते करते जब बहुत देर हो जाए 
और घोर अंधेरी रात के बाद जब सवेर  ही ना आए 
तब कोई कैसे खुश रह पाए... 
तब कोई कैसे खुश रह पाए...

©GULSHAN KUMAR तब कोई कैसे खुश रह पाए...

तब कोई कैसे खुश रह पाए... #कविता

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GULSHAN KUMAR

इश्क़ की सर पर चढ़ी खुमारी थी
मुसलत मुझ पर मोहब्बत् की बीमारी थी
बच गया अगर मै तेरे हिज्र की मार से
तो बताऊंगा जरूर एक दिन के गलती तुम्हारी थी या हमारी थी 
ये जो मेरी आँखो से बह रहे है
ये आँसू नही आबशार है
मुझे खबर है तुमने सुना भी है गली के किसी कोने से
कि फलां को फलां से अभी तक प्यार है
जरा बताइये, वीरान खंडहर मे कौन रहा है
मै तो परिंदो से बात करता हूँ
फिर इंसानो को ये झूठ किसने कहा है 
जब से तुमने मेरा दिल तोडा है 
जब से तुमने मेरा साथ छोड़ा है 
मेरे जिस्म का हर हिस्सा शोगवार है
और मोहतरमा तुम सोचती हो कि
फलां को फलां से अभी तक प्यार है
दुसरो के लिए अपनी खुशियाँ मिन्हा करने मे क्या जाता है
वैसे दरियाओ मे अक्सर वही डूबते है जिन्हे तैरना आता है
जब वस्ले बंद हुई तो तेरे और मेरे दरमियां दूरियां बढ़ने लगी 
यकीनन कारवां जब चलना शुरू करता है तो धीरे धीरे आगे बढ़ता जाता है.... 💔

©GULSHAN KUMAR कारवां

कारवां

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GULSHAN KUMAR

अपनी राह ढूंढ चुका है पानी 
अब थम जाने की कशमकश मे नही है
और जाके कहे कोई मल्लाहो से
कि अपनी किश्तीयों को बाहर निकाले
दरिया अब अपने बस मे नही है....
अब्र साथ दे रहे है 
अब्र हालात दे रहे है 
और अपनी ताकत को बढ़ाने का वक्त अब आ गया है
अब्र बरसात दे रहे है.... 
सबको अपना बनाने मे वक्त जाया हो गया
हर एक अपना पराया हो गया
और टूटे हुए को तो और तोड़ता है जमाना
टूट- टूट कर शायर कितनी मर्तबा रो गया...
पर अब... 
हवाओ ने अपना रुख बदला है
लहरो ने अपना मुख बदला है
पहाड़ों को काट कर आगे आ रहा है पानी 
पहली दफा देखा होगा किस तरह अपना दायरा बढ़ा रहा है पानी
थाम दे इसे अब इतना दम किसी साजिश मे नही है
और जाके कहे कोई मल्लाहो से 
कि अपनी किश्तीयों को बाहर निकाले 
दरिया अब अपने बस मे नही है 
गुलशन अब अपने बस मे नही है....

©GULSHAN KUMAR दरिया..

दरिया..

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GULSHAN KUMAR

शब-ए-माहताब मे मै जागता रहा
तमाम रात मै भागता रहा 
कोई गम नही है मुझे 
फकत इस गम के 
कि मै मुकम्मल होकर भी मुकम्मल हो ना सका 
और कुछ ना-मुकम्मल लोगो से मेरा वास्ता रहा
शब-ए-माहताब मे मै जागता रहा.....

©GULSHAN KUMAR शब -ए- माहताब..

शब -ए- माहताब..

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GULSHAN KUMAR

दरिया बरगा है गुलशन बस बहता रहवै है 
बेशर्म बेवकूफ बद्तमीज़ कुछ भी लिखता 
कुछ भी कहता रहवै है 
मत करया करो मजबूर चाँद नै अंधेरा लिखन पै 
यो पागल अंधेरे मै घुट घुट कै जीता आँसुआ नै पीता
डरता मरता दर्दा नै सहता रहवै है
दरिया बरगा है गुलशन बस बहता रहवै है...

©GULSHAN KUMAR दरिया...

दरिया...

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GULSHAN KUMAR

सब को समझदार और मुझे पागल कहते है
हाँ ठीक है भीड़ से हटकर चलने वाले शख्स अलग ही रहते हैं
मेरी मावाजना होती है सभी से की मै उनके जैसा बनकर दिखाता नही हूँ
थोड़ा कड़वा लगेगा पर सच यही है जनाब मै सब के जैसा बनना चाहता नही हूँ
मै बातो को घुमाता नही हूँ 
जगह जगह महफिले सजाता नही हूँ
जी हुजूरी करना आपको पसंद होगा साहब पर 
माफ करना मै अपने उसूलो से नीचे कभी जाता नही हूँ
मुझे सताने से बाज नही आते है लोग
सबके सामने मुझे नीचा दिखाते है लोग
जरूरत पड़ने पर मै ही काम आता हूँ
मगर फिर भी मेरी तारीफ मे कहाँ कुछ कहके दिखाते है लोग
भेड़ चाल मे मस्त रहते हैं
नासमझ खुद को समझदार कहते हैं
कुछ भी तो फर्क पड़ता नही है गुलशन को इन सब बातो से
क्योंकि शायर को तो सदियों पहले भी लोग पागल कहते थे 
आज भी पागल कहते हैं...

©GULSHAN KUMAR पागल..

पागल..

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GULSHAN KUMAR

किसी को क्या पता मुझ पर क्या बीत रही है 
कोशिशे हार रही है बद्दुआएं जीत रही है
लोग कहते है मै भटक गया हूँ रास्ते से
गलत कहते है मै भटका नही हुँ साहब 
मुझे भटकाया जा रहा है..
ख्वाबो को सच करने की तमन्ना है मेरी 
मेरे सपनो को मिट्टी मे मिलाया जा रहा है
मेरी उदासियों को दूर करते करते थकता नही है एक शख्स
मै उसे दोस्त नही अपना भाई मानता हुँ
वो मुझे मुझसे  ज्यादा समझता है 
मै उसे उससे ज्यादा जानता हूँ
हीरे जैसी चमक है उसकी
दिल कंचन है उसका
मेरे सुख दुख का साथी है वो
एक थाली मे परोसकर खाते है हम खाना 
मेरा भाई पवन राठी है वो...
आज फिर तेरी जरूरत है 
आज फिर बद्दुआओ ने अपना असर दिखाया है 
आज फिर उदासी अपने चरम पर चली गयी है 
आज फिर मेरा दिल भर आया है.... 😞

©GULSHAN KUMAR #Dosti

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GULSHAN KUMAR

बहुत जज्बे से लड़ा
पर मुझे पता था मेरा हसर क्या होगा
इसलिए मैने हर किसी को नही बताया सब कुछ
क्योकि मुझे पता था मेरा असर खत्म कहाँ होगा
मेरे दस्तरस मे नही था कुछ भी 
अगर होता तो मै भी आज दुसरो की मशावात करता 
खुद्दार हूँ मै मैने दरियाओं से नही पूछना है उनसे कैसे पार पाना है
मै तो वो हुँ जो भीड़ मे खड़ा होकर भी खुद के सिवा दुसरो से बात नही करता
जद्दोजहद मे लगा रहता हूँ सारा दिन 
मेरी कशमकश को कोई समझता नही है
मेरे तश्मे हमेशा खुले रहते है
मेरी तख्ती पर जज्बातो के अलावा कुछ छपता नही है
मेरे मतलो की गहराइयों को समझा करो
समझने पर ही मेरे मक्तो का रुतबा बढ़ता है
तुम लोग ऐसे ही हो कह देते हो
गुलशन तु ये क्या लिखता है  
सूरज रोज सुबह उगता जरूर है पर दिन चढ़ता नही है...

©GULSHAN KUMAR कशमकश..

कशमकश..

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GULSHAN KUMAR

नदियाँ समंदर मे मिलती हैं
बूँद बूँद से सागर बनता है 
यहाँ कोई भी तो नही है जो मेरी बातो को समझता हो
यहाँ कौन है मेरा जो मेरी जरा सी भी फिक्र करता है
यहाँ कोई भी तो नही है जो मेरे जन्मदिन का इंतजार करता हो
यहाँ कौन है मेरा जो सूरज निकलने से पहले मुझे मेरे जन्मदिन की बधाईयां देता हो 
यहाँ हर कोई दिन गुजर जाने पर मुबारक बाद करता है
मुसीबत के वक्त बुलाया जाता है मुझे 
यू हीं बेफिजूल कौन किसीको याद करता है 
तोहफो की राह देख रहे हो पागल मत बनो
लौट चलो अंधेरे कमरे मे गुलशन 
ये दुनिया है यहाँ कौन दुसरो पर अपना पैसा बर्बाद करता है
 नदियाँ समंदर मे मिलती है 
बूँद बूँद से सागर बनता है...

©GULSHAN KUMAR

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GULSHAN KUMAR

अगर दो दिनों की दूरियाँ मोहब्बत खत्म कर देती है 
तो दूरियाँ अच्छी है 
इश्क़ का पता लगता है
मेरे इतने करीब है मेरा प्यार
जब मै मुसीबत मे होता हुँ तो हँसता हैं 
जब मै खुश होता हूँ तो मेरे गले लगता है 
ये बेवफाई ये तन्हाई मुझे भीतर तक खा जाती है
जब मै देखता हुँ उसकी आँखों की बीनाई मे कोई और सफर करता हैं
इसीलिए कहता हूँ मै फूलों को हक है खिलने का उन्हे तोडा ना जाए
सच्ची मोहब्बत वाला बिना गुलाब के भी इश्क़ की कद्र करता है...

©GULSHAN KUMAR दूरियाँ..

दूरियाँ..

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