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santoshhegde1821
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santosh hegde

कवी। yekagra Hegde chikodi- belguam 591287 . 6364360216

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santosh hegde

माणूस रोजच्या अनुभवातून काय तरी शिकत असतो, जर आपण डोक्याचा वापर करत गेलो तर. काही गोष्टी , काही ठिकाणं आपल्या साठी ज्ञाना चे मार्ग मोकळे करतात. फक्त काही गोष्टी आणि कांही ठिकाण, सगळे स्थान न्हवे. एकाग्र

©santosh hegde
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santosh hegde

(*दिल की बात*)                                                                                            उसे दिल की बात बताना है, मगर ओ अकेले में मिलती नहि कभी, प्यार में उसके पागल हुं, मै प्यार में पागल हो गया हूं कहते हैं मेरे यार सभी ,पर सच तो हम आंजान हैं , अभी नई पहचान है , इक दूजे से दूर है फिर भी दो  जिस्म एक जान हैं. उसको पाने के लिए , उसे से दिल लगाने के लिए मै तो हूं राजी अभी, पर ओ हो जाएगी कभी?....................................................................................................... मुझे देखते ही मुस्कुराती है, ओ आंखों से दिल में आती है. फिरभी दिल की प्यास नही बुझती, जब  उसकी पल पल याद सताती है. उसे दिल की बताने के लिए , उसे अपना बनाने के लिए, मै तो हूं राजी अभी , पर ओ हो जाएगी कभी? .................................................................................... मित्रानो ज्या वेळी मला सरळ हिंदी बोलता ही येत न्हवत, आणि मी कविता सूचावी म्हणून जिथं डोंगर झाडी आहेत तिथं बसून असायचो. एकदा एका डोंगरा मध्ये तिसऱ्या शतकातील महादेव मंदिराच्या शेजारी कोल्हापूर पासून ४० km अंतरा वर दक्षिण दिसेला शीप्पूर म्हणून एक गाव आहे तिथं मला हे पहिलं कविता न्हवे गाणं सुचलं आणि त्या नंतर एका मागून एक खूप गाणी कविता सुचत गेले. आणि एक गोष्ट विचार कराय लावणारी आहे  शंकराला चंद्र आवडतो म्हणून त्यानं मला माझ्या कविता संग्रहाच नाव चांद हे ठेवायची  कल्पना सुचवली. कारण पहिलं गाणं त्याच्या मंदीरा शेजारीच सुचलं होत... देव दिसत नाही पण कुठं तरी आहे याची जाणीव या गोष्टी वरून होते. मला हे २ शब्द बोलायचे होते म्हणून अर्द गाणंच पोष्ट केलोय. (*कवी एकाग्र हेगडे*)

©santosh hegde #MusicLove
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santosh hegde

कविता खूप लिही लो य म्हणू,मनात आल एक सुविचार लिहावं........ मै उस सूरज के जैसा हूं जो पहाड़ों के उस पार छुपा हुआ है, मै उस चांद के जैसा हूं जो बादलों में ढका हुआ है........ जिवनात दुसऱ्या च यश बघून कधीच हार मानू नका. नाराज होऊ नका. कारण डोंगरा पलीकडील सूर्य काय लपून तिथच थांबत नाही त्याची वेळ झाल्या वर  येतो आणि आपल प्रकाश जगावर पाडतो. चंद्राचं पण तसच आहे, तो पण आभाळात ढगात तसच कोंडून राहत नाही, बाहेर येतो आणि आपला प्रकाश जगा वर पाडतोच. तुम्ही ही प्रयत्न करत रहा तुमचा ही प्रकाश एक दिवस जगा वर पडेल.. कवी एकाग्र हेगडे

©santosh hegde #Sawankamahina
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santosh hegde

Conservation (* महापूर *).                                      हे आकाश, आम्हा दिसेना प्रकाश, चोही कडेच नाही पाणी , डोळ्यात ही आहे पाणी , या महापुरान केलं सर्वांचा नाश,,,,.......................... बाग फुलांनी बहरल होत, ऊस मनी मोहरल होत, अनेक फळ भाज्यांचं पीक, नदी किनारी पसरलं होतं.यासह पक्षांचया घरटयांच , मानव निर्मित उंबरठ्यांच , धो धो कोसळणाऱ्या  पावसानं झालं रहास , हे आकाश आम्हा दिसेना प्रकाश................................................... नदी काठच्या गावांना एका रात्रीत वेढल पाणी अन सर्व किनाऱ्याना द्यावं लागलं घर सोडूनी, तत्काळ मदतीला बोटी अन हवेतून हेलिकप्टर आले , त्यातून जल सेना अन मंत्री उतरून सर्वा धीर दिले, तरी ही आम्ही दुखीच आहोत, किती दिवस घेणार सरकारी आधार , हे जर असच चाललं तर एक दिवस होईन आम्ही निराधार. हे आकाश आम्हा दिसेना प्रकाश, चोही कडेच नाही पाणी डोळ्यात ही आहे पाणी , या महापूरान केलं सर्वांचा नाश..... पूरग्रस्तां ची  आकाश. ढग, आणि त्या ही पलीकडे एक आदुर्ष शक्ती आहे ज्याला आम्ही निसर्ग, देव म्हणतो  त्याला विनवणी. .. कवी एकाग्र हेगडे

©santosh hegde #ConservationDay
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santosh hegde

इस देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो हालात के मारे हैं, उनके दिल से निकली आह उनके दिल से निकली आवाज इस कविता में है.................................................. ये भ्रष्टाचार है, इसे रोके कैसे? पानी में  फैला हो जहर जैसे, है ये वैसे,................. एक को पकड़े तो दूसरा भी भ्रष्टाचारी है, गौर से देखें तो यहां भ्रष्टाचारों की सवारी है, ये सब लोग पैसों के यार हैं, ये भ्रष्टाचार है,....................... यहां मिलता है इंसाफ बस पैसे वालों को ही, बिन पैसे हैं भटकते राही, इंसानों से नहीं पैसों से प्यार है, ये भ्रष्टाचार है................................... यहां पैसे वालों को सब करते हैं सलाम, कुछ पैसों के लिए बनके रहते हैं गुलाम,इस में न जीत है न  हार है, ये भ्रष्टाचार है,..................................... ऊपर से नीचे तक कितने ही  भ्रष्टाचारी हैं, उन्हें हम तो देख लिए , अब ऊपर वाले की बारी है, रिश्वत से जो मिलता पुरस्कार है, वो  भ्रष्टाचार है..... कवि एकाग्र हेगड़े

©santosh hegde #India

31 Love

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santosh hegde

#RIPDilipKumar                                    ( बारिश )                                   कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप, थोड़ी ठंडी और गर्मी का नज़ारा लेता है रूप, दिन निकलते ही दोपहर चला आता है, शाम का माहौल घने बादलों में बदल जाता है, कहीं कहीं कौंधती है बिजली तो कहीं कहीं कड़कड़ाती है खुप.. कहीं कहीं होती ................................ रुकते ही बारिश बादल आपस में मिलते हैं, कुछ देर बातें करके समंदर की ओर चलते हैं, कहीं कहीं उठती हैं लहरें तो कहीं कहीं रहती चुप,, कहीं कहीं होती.............................. खेती जमीं से बहते हुए पानी नाली नदियों का जाता है, तट को लगा हर एक पेड़ पौधा चैन की सांस लेता है, कही कहीं चिडिया करती है चिं व चिं व तो कहीं कहीं बन्दर करते हैं हुप, कहीं कहीं होती है बारिश तो कहीं कहीं धूप......... कवि एकाग्र हेगड़े

©santosh hegde
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santosh hegde

(    मेरे दादा  )                                          जब मैं छोटा था, तब कहते थे मेरे मेरे दादा, इक जमाना था, उस जमाने में सब कुछ था सीधा सादा, आज की तरह मोटर गाडियां नहीं बैल गाडियां थी, पहले माले पर पहुंचने के लिए जीने नहीं शिडिया थीं, अब सबकुछ बदल गया है, पहले सायकल भी इतनी नहीं थीं, अब फट फटी हो गई हैं उससे ज्यादा ....................................... पहले गांव में जब कभी अंधेरा छाया रहता था, तब पूछने पर किसी एक को मिट्ठी के तेल ख़तम हो गया होगा कहता था, अब बिजली आ चुकी है, हर तरफ बिजली के खंबे हो चुके हैं, आधी रात को भी बत्तियां जलती नजर आती है सदा............................................... बरसात के दिनों में पहले हर साल नहरों को बाढ़ आता था, जिससे उस पार जाने वालों का रास्ता ही बन्द होता था, अब पुल बन चुका है, इसलिए बारिश रुके या ना रुके कोई चाहकर भी किसिसे नहीं हो सकता जुदा, जब मै छोटा था तब कहते थे मेरे दादा.......... कवि एकाग्र हेगड़े

©santosh hegde #Trees

21 Love

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santosh hegde

( चांद  )                                                जब ये दुनिया सोती है तब चांद जागता है, गहरे बादलों से निकल के जाने कहां भागता है?....................... छा जाता है अंधेरा हर तरफ बादलों के घेर लेने पर, फुर्ती से निकलता है चांद बादलों में से धरती उजाले को तरस जाने पर, सुबह उगा कर शाम सूरज डूबता है, जब ये दुनिया सोती है तब चांद जागता............................. मिलती है राहत पंछी परिंदो को चांद नजर आने से, गूंज उठता है सारा जंगल हर तरफ उजाला छाने से, इसके बदले किससे कुछ भी न मांगता है, जब ये दुनिया सोती है तब चांद जागता है,................................. मासूमों को वो मासूम नजर आता है,  हर छोटे बड़े बच्चों के होटों पर चंदा मामा नाम आता है, उसे देखते समय ना कोई मजहब, धर्म या जात आड़े आता है, जब ये दुनिया सोती है तब चांद जागता है.................................. संकष्टी के दिन गणेश जी का उपवास कर  रात को चांद की राह देखते हैं, अपने आप को यहां तक की, चांद नजर आने तक , खाने पीने से भी रोकते हैं, कोई ईश्वर का प्रतीक तो कोई उसे ग्रह के नाम से जानता है. कवि  एकाग्र हेगड़े

©santosh hegde

19 Love

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santosh hegde

( चांद सा चेहरा  )।                                                           उस चांद से चेहरे का हमें खयाल हर पल था, जब हम चाहने लगे थे तब वो अंजाना दिल था, वो अंजाना दिल एक दिन पहचान में बदल गया, फिर ये तरसता हुआ दिल खुशियों से खिल्ल्ल गया, पहचान से उसके इस दिल में, पहचान से उसके इस दिल में, चैन बेचैन पल पल था, उस चांद से चेहरे का हमें खयाल हर पल था.............................................................................. हम चाहने लगे थे उसे हद से ज्यादा प्यार में, वो हमसे दूर हुई तो खो गए इंतजार में , वो ना आयी फिर कभी, वो ना आयी फिर कभी, उसकी मंजिल ,उसका मकाम वहीं पर था. उस चांद से चेहरे का हमें खयाल हरपल था.................................................................. सपनों में आके कभी कभी वो नींद से जगाती है ,फिर उस गुजरे प्यार की यादें दिलाती है, आज वो प्यार ना रहा,आज वो प्यार ना  रहा, हम दोनों का वो कल था. उस चांद से चहरे का हमें खयाल हरपल था.. कवि एकाग्र हेगड़े

©santosh hegde #OneSeason

24 Love

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santosh hegde

नजाने कितने दिनों बाद मिली? जब तु यहां से थी गई, तब सुनी पड गई थी ये गली.............................

lतेरे सिवा यहां मेरा कोई अपना नहीं था, तुझे पाने के सिवा जहन में और  कोई सपना नहीं था. सारे सपने टूट गए, इरादे छूट गए, जब किस्मत ने अपनी चाहत की चढाई बली............................ अब शायद कभी ये मुमकिन नहीं के हम फिर से एक हो जाएं, बिना चुके एक दूजे से मिलने चले आएं, चोरी छुपे मिलने की, बातें करते संग चलने की, सारी उम्मीदें ढलिं.................................. जब भी तेरी याद आती है, अकेले घूमने जाता हूं, हम दोनों लिखें थे जिस पेड पर उस नाम को चूम लेता हुं. तु आती नहीं  यहां, तु चली गई कहां, पूछती है मुझे वहां के बगीचों की कली. नजाने कितने दिनों बाद मिली?................. कवि एकाग्र हेगड़े

©santosh hegde

32 Love

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