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vikramsharma8509
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Vikram Sharma

Vikram Sharma

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Vikram Sharma

कितना सँभालें तुझे ए जिंदगी 
कभी रिश्तों से, तो कभी 
खुद से रूठ रहे है 
जज्बातों के इस गहरे समंदर में 
ख़्वाहिशों की कश्तियाँ डुबो रहे है 
मत कर उदास इतना कि 
अब तुझे जीने की आस खो रहे है.. !

©Vikram Sharma डिअर ज़िन्दगी 

#LostInNature

डिअर ज़िन्दगी #LostInNature

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Vikram Sharma

जीवन से भरी तेरी आंखें

जीवन से भरी तेरी आंखें

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Vikram Sharma

तुमसे मिलने वापस आउंगी 
दिल में छुपे हर राज बताउंगी !
जो समझ सको तो समझ लेना
इन धड़कनों की गहराई को,
तड़पती इस रूह की
आह तुम्हें सुनाऊँगी !
बदलते  इन मौसमों सा
इश्क़ नहीं था मेरा, 
तेरे इंतजार के वो सारे 
किस्से तुम्हें सुनाऊँगी !
दो जिस्म मिलकर एक होते है 
ऐसा कहा था उस रोज तुमने 
तेरे किए उन झूठे वादों की 
याद तुम्हें दिलाऊंगी !
पर अभी दिल कुछ रूठा सा है 
प्यारा सा एक सपना टूटा सा है 
तुम भी अभी  कुछ अपनों में खोये हो 
तोड़कर ख्वाब मेरे सुकून से सोये हो..!

                          ©Vikram बेजुबां सा इश्क़

बेजुबां सा इश्क़

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Vikram Sharma

देर लगी पर मैंने 
अब जीना सीख लिया !
गिरते गिरते ही सही
मगर चलना सीख लिया !
बेशक़ कुछ बेमानी 
रिश्तों से मुलकात हुई !
पर कुछ पल बिखरकर
फिर से  सँवरना सीख लिया !
हर पल को खुशी से जीकर 
अब हर गम को पीना सीख लिया !
पर चलो अब एक 
नई शुरूआता करते है !
अपने कल की बातें भूलकर  
एक नए सफर का आगाज़ करते है  !
कुछ अच्छी यादों के साथ 
नई मंज़िलो को तलाश करेंगे.. !
                   
                                            ©Vikram

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Vikram Sharma

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Vikram Sharma

वो तोड़कर दिल मेरा 
इसमें खुद को तलाश करते है 
रूठे पड़े जज्बातों से
अब मुहब्बत की बात करते है !
चाहतों के इस खारे समंदर में 
मीठे से स्वर घोला करते है !
प्यार, वफ़ा कसमें, वादे, 
क्या सच्चे, क्या झूठे है !
वो तो अक्सर हर मौके पर
धोखे का खंजर घोपा करते है 
हम भी तो कुछ कम नहीं 
जो उनको खुदा समझ बैठे है ! 
फिर ना जाने क्यूँ वो खुद को 
मंदिर का प्रसाद समझ बैठे है..!


                      ©Vikram

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Vikram Sharma

बस यूँही

बस यूँही

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Vikram Sharma

आंखें खुलीं तो तुझे ही पाया 
गोद में तेरी पूरा जन्नत समाया 
जब लड़खड़ाया मैं उस रोज 
उंगली पकड़कर तूने ही
चलना सिखाया !
खुद भूखी सोकर अक्सर तुमने 
अपना निवाला सबको है खिलाया !
तेरी ममता की छाँव में मैंने 
अपने हर भगवान को पाया !
 तेरी चाहत के किस्से 
हर किसी ने सुनाये हैं !
पर तेरी पलकों की कोरों पर 
छिपे आंसू कहां देख पाए हैं !
तूने दिया है जीवन सबको 
तेरे ही सपनों को कहां समझ पाए हैं!
तूने अक्सर अपनों की खातिर 
कई गम अपने होंठों पर सजाये हैं  !
फिर तेरे ही अपने क्यूँ तुझे
 ब्रद्धाश्रम अकेले छोड़ आये हैं..??

             -©Vikram माँ

माँ

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Vikram Sharma

तू जहां जहां चलेगा

तू जहां जहां चलेगा

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Vikram Sharma

Rip Irfan sir🙏

Rip Irfan sir🙏

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