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सुरेश सारस्वत

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सुरेश सारस्वत

White मौनी अमावस्या है
अंधेरी रात है
चुपचाप मौन साथ है
कितनी अजीब बात है
रोशनी भरी है चुप्पियों संग 
मगर नज़र में भरा अंधकार है
बात दर्द या ज़ख्म छिपाने की नहीं
खुद को सच बताने की है
आज मौनी अमावस्या है 
चुप चुप रहना है ...
खुद से खुद को कहना है...
वो हर बात जो गुत्थियों में रही
गांठों में उलझती रही 
रिश्तों के मौन भ्रम जाल बुनती रही
खोल दो... खोल दो...
मौन दरवाज़े...
सुनो...दस्तक रोशनी की ...
मौनी अमावस्या है
एक नई सुबह अंतर की

©सुरेश सारस्वत #love_shayari  poetry in hindi

#love_shayari poetry in hindi #Poetry

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सुरेश सारस्वत

White अन्तर्मन में जो बहती है धारा
वो ही दिखलाती सत्य हमारा
भाव - प्रवाह में चिंतन चित्रण
करते हैं अंकित सृजन हमारा
आत्म भाव में दृश्य का दर्शन
अंश अंश अभिव्यक्त है सारा
डोर पकड़ अवचेतन मन की 
प्रति पल चेतन मन है संवारा
कदम कदम प्रतिरोध स्वयं से
स्वयं से जीता.. स्वयं से हारा

©सुरेश सारस्वत
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सुरेश सारस्वत

White अब दर्द को पिरोना शुरू कर दिया है 
कुछ अश्क मोती कुछ रुद्राक्ष साथ हैं

हमने दर्द को पीना  शुरू कर दिया है 
कुछ प्याले भरे हैं,कुछ खाली साथ हैं 

महल खण्डहर हमें अच्छे नहीं लगते  
अंतस में  झोंपड़ियों की भूख साथ है 

मंज़िलों की हद दूर नहीं रह पाएगी 
नंगे पैरो में ज़ज़्बो की ताकत साथ है

सहरा ही सहरा हो चाहे राहें नज़र 
कड़ी धूप में चलने की हिम्मत साथ है

©सुरेश सारस्वत #
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सुरेश सारस्वत

Unsplash कतरा-कतरा हूँ  मैं बिखरा 
फिर भी थोड़ा-थोड़ा निखरा 

पड़ा हुआ हूँ जैसे मैं निर्गत
कतरन का निरर्थक टुकड़ा 

चहल-पहल सब दूर खड़ी 
भूल गया अन्तर्मन खिलना 

अगर-मगर से हूँ छला मैं 
भूला-भूला खुद से कहना

ज़िंदगी क्या खूब फ़लसफ़ा 
टूटना, बिखरना फिर जुड़ना 

पहरों पहर चलना पड़े बेशक
भटक कर सही वक्त रुकना

©सुरेश सारस्वत #Book  shayari in hindi

#Book shayari in hindi

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सुरेश सारस्वत

Unsplash रिश्ते का अर्थ ही अगर ना समझे 
तो फिर क्या बुनना , क्या चुनना 

जीवन बेशकीमती कालीन सा है 
हर कदम सही चुनना साफ चलना 

मन अगर चलने को ही नहीं दे साथ 
कभी भी दौड़ने की राह मत चुनना 

राह मुश्किल है मगर मुस्कान भरी  
मन कहे ऐसा तो संग जरूर चलना

©सुरेश सारस्वत #leafbook
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सुरेश सारस्वत

White मंथन ....
मंथन ...
मंथन ....
कब तक करे कोई मंथन ....
चिंतन...
चिंतन...
चिंतन....
कब तक करे मनन चिंतन ...
सत्य प्रदीप्त रहे ....
आलोकित .मन अंतर ....
सतत गतिमय जीवन में  
नव-नव अभिनव ...... 
नित्य परिवर्तन....
अहं मुक्त हों,
छंद मुक्त हों ...
महके कविता में चन्दन 
प्रेम प्रणय के....
भाव सृजन में 
आत्मीय भाव का  वंदन 
कालजयी हो सृजन  निरंतर
प्रहरी काल बन 
मुक्त समस्त  बंधन 
स्थित मन में सृजन  सृजन
 सृजन रहे अभ्यंतर  .....

©सुरेश सारस्वत
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सुरेश सारस्वत

White किसी दिन आवारा बादल सा 
घुमड़ता घुमड़ता बरस जाऊंगा 
भीगो दूंगा बाहर से अंदर  तक 
ढूंदते रहना मेरे लफ्जों की गीली गीली खुशबू में..........
अपना ही महकता पिघलता वज़ूद 
सौंधी सौंधी महक होश में नहीं रहने देगी 
कोई मद्धम सा सुर खुल जाएगा 
मन अनजान हरकतों संग गायेगा
कोई करीब आकर बुलाएगा 
एक सुर तेरा एक सुर मेरा ..... साथ साथ 
समवेत स्वर में आलाप लगाएगा 
कोई बादल फिर बरसने आएगा 
माज़ी के संग वक़्त ठहर जाएगा 
मन भीगा भीगा खुल कर .....
बस घुलता जाएगा.....घुलता जाएगा 
घुलते घुलते एक बूंद हो जाएगा 
एक बूंद में एक ही अक्स 
कोई नहीं पहचान पाएगा 
मोती की चमक में कैद हो जाएगी 
एकात्म मुस्कान हमारी 
दूर आसमान से कोई बादल मुस्कुराएगा

©सुरेश सारस्वत
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सुरेश सारस्वत

White ज़िक्र जो करता है ज़ाकिर
 ज़ौ बन जाता है आखिर 

 तज़ुर्बा नहीं है मेरा फिर भी 
 ये ज़िक्र है यक़ीने-क़ाबिल 

 होश में अक्सर दिखता है
 जो रखता है नूरे-रूहे-शामिल 

 सबको दिख रहा मुझमें तू 
 चश्मो-चिराग से ये ज़ाहिर

कोई चिलमन नहीं रूहे-सुर 
ज़रा दिल को ये बता ग़ालिब

©सुरेश सारस्वत
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सुरेश सारस्वत

White मैं आश्वस्त 
तुम आश्वस्त 
सब कुछ लगता है जैसे शांत...शांत ... निश्चिंत
ये शांत सतह ...
प्राण-स्पंदन रहित है  ...
जीवन बोध नहीं है इसमें ....
रूका-रूका प्रतिरोध है ये ....
ये शीतलता नहीं जमता हुआ प्रतिरोध है 
कोई बात नहीं हो ....
और सम्बन्ध गहराए ....?
प्रश्न है ये ....
नेह-जल नहीं जहाँ ....
चेतन-स्वर नहीं जहाँ ....
प्रकृति कैसी हैं वहाँ ....
ये जमी हुई बर्फ 
या तो अंतर उष्णता से पिघले अविलम्ब 
या फिर ...
जीवन ढूंढें अपनी कोई नई राह...
सम्बन्ध... सम्बन्ध हो ....
बोझ नहीं हो... 
रोष नहीं हो.... 
आक्रोश नहीं हो...
सिर्फ ख़ुशी हो...ख़ुशी ....
अंदर भी...बाहर भी ....
जो निकले बिना रुके ....
सतह शांत हो अपने स्पंदनों को बताते हुए

©सुरेश सारस्वत
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सुरेश सारस्वत

White तन्हा-तन्हा मेरा घर है 
दूर हद से जो नज़र है 
जल रहा हूँ मैं अकेला 
मेरे घर नंगा शजर है 
कोई भी आता नहीं है 
मेरे संग बस मेरा डर है 
ना नवाएँ, ना सदाएँ
बे-ज़ुबान संगे-शहर है 
कोई नहीं संग रोशनी 
डूबा अँधेरों मेरा घर है
खोले सारे दर मैं बैठा 
कोई नहीं आता इधर है 
सहरा-सहरा-सा है मंज़र 
सूखा समंदर मेरा घर है 
बेरूखी की इंतेहा है ये  
इल्तजा सब बेनज़र है 
सुर्खियों में बिखरे हैं जो 
भूखे नंगे वो बशर  हैं

©सुरेश सारस्वत #GoodNight
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