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ajaykumarmishra5522
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डॉ.अजय कुमार मिश्र

असिस्टेंट-प्रोफेसर । उत्तर-प्रदेश (डेस्क प्रभारी) क्रेडिट न्यूज़-मासिक न्यूज़ पत्रिका। सँयुक्त-मंत्री(सिद्धार्थ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ) वास्तु-सलाहकार(वास्तु-सदन) नई दिल्ली। मंडल-प्रभारी(गोरखपुर-बस्ती मंडल) केसरिया हिंदुस्थान निर्माण संघ।

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

Unsplash किताबें बोलती नहीं लेकिन राज सबकी खोलती हैं,
 आँखें दिमाग में होती नहीं लेकिन देखती सबको हैं।

नसीहत मिले या न मिले राजदार सबके होते हैं,
दुनियां दिखे या न दिखे दुनियां देखती सबको है।

मुकाम मिले या न मिले मुकाम की तलाश सबको होती है,
समय को हम खोजें या ना खोजें समय खोजती सबको है।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र समय
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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White बहुत लोग हैं मेरे साथ, फिर भी आज मैं तन्हा हूं,
जाने क्यों खुली आसमां से ,व्यथा आज कहता हूं।

हमें आदत थी हमेशा आग और बर्फ पर चलने की,
आज सर्द हवाओं के सर्दी से भी जाने क्यों बचता हूं।
धधकती आग तो दूर, आज आग के धुएं से भी डरता हूं।।

 कोई चोटिल न हो जाए मेरे खट्टे मीठे शब्दों से ,
आज जुबान से निकलने वाली हर शब्द से डरता हूं।

कौन सक्स कब हमें कह दे गुनहगार।
आज हर सक्स के नजरों से डरता हूं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र डरता हूं

डरता हूं #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White मन्नते मांगते मांगते मुकाम भी मिला तो दरिया के किनारे।
जहां ज्वार भाटा तो आम बात,पीने को मिलता है खारा पानी और सोते हैं रेत के सहारे।
ना हरियाली ना खुशहाली फिर भी शीतलता मिलती है,जल कण के सहारे।
कोई हमें पुकारे या ना पुकारे लेकिन, हर पल हमें पुकारती हैं समंदर से उठती ज्वारें।
हमें हर रात लोरी गा गा कर सुलाती हैं,आकाश की टिमटिमाती तारें।
कितने खुश नसीब हैं हम कि, हर सुबह  हम जगते हैं सूरज के किरणों के सहारे।
हम भूल भी जाएं अपनी चारों दिशाएं,तो हमें दिशाओं की याद दिलाती हैं,समंदर से उठती हवाएं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र समंदर

समंदर #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White अनजान शहर के गलियारों में,दाएं बाएं मुड़ती गलियां,जाने क्यों ?जानी पहचानी लगती हैं।

सुनसान,शांत,शीतल तुषार में भीगे राहों में बिखरे काटें,जाने क्यों ?ना चुभते हैं।

हृदय वेदना से स्पंदित उष्ण वायु से जनित ताप कोरी कल्पित रह गई ख्वाब को जाने क्यों? आज आह में भरते हैं।

ठहर गया श्वासो का चलना,आंख अश्रु से भीग़  गया,फिर भी ना जाने क्यों? लोग हमें आवारा यूं कहते हैं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र सुनसान

सुनसान #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White सबसे न मिला करो,
 इतनी सादगी के साथ,
यह दौर अलग है ,
यहां लोग अलग हैं ,
 यह दुनिया वो नहीं है ,
जो आप देखते हो,
- 
अगर आप इस दुनिया में
 वफ़ा ढूँढ रहे हो तो, 
बड़े नादान हो क्योंकि,
आप ज़हर की शीशी में दवा ढूँढ रहे हो ।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र जहर में दवा

जहर में दवा #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

ताक़त,तारीफ़,तकदीर,तन्हाई और तजुर्बे इन्हें तौलना गुनाह है।।

गम,गहराई,गफलत,गुनाह,और गुगें जुबान पर हंसना गुनाह है।।

शर्म,शायराना,साज़िश,सजदा और सफर में भटके मुसाफिर पर उलाहना गुनाह है।।

वैसे भगवान,ईश्वर,अल्लाह, ईश,ईशा और वाहे गुरु में अंतर करना गुनाह है।।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र गुनाह

गुनाह #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White क्यों व्यर्थ गवाता मानव तन, झूठे अभिमान के महलों पर।।
बनना है तो पारस पत्थर बन, लोहे को स्वर्ण बना डालों।।
या कट - कट कर कोहिनूर बन,
दुनियां को चमक दिखा डालो।।
या बनना है तो गांधी बन, बिन सुख सुविधा के आधी बन।
या छोड़ महल के वैभव को,  गौतम बुद्ध जैसा ज्ञानी बन।।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र पत्थर

पत्थर #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White साहिल भी अब समंदर से दूर जाने लगा हैं।
जबसे सीपियां,मोतियों के भाव बिकने लगी हैं।
लहरों के लाख थपेड़े खाकर रेत वहीं के वहीं हैं।
लेकिन किनारे,कटान के डर से दूर जा खड़े हैं।
ज्वार और भाटा अब लहरों के साथ चलने लगे हैं।
ऐसा देख तूफान भी बीच मजधार में रुकने लगे हैं।
क्या करे अब ए बेचारा समंदर गर्जना कर के।
इसके अंक में अब सबके अरमान पलने लगे हैं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र समंदर

समंदर #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

बंदिशे लग गईं, मेरी चलती दुकान पे।
जैसे दीपक बुझ गई,इशारों की बाण से।
कितनी खुद गर्ज थीं उनकी निगाहें।
जिनकी पलकों ने रोक लीं बहती हवाएं।
हम दवा भी दिए,हम दुआ भी किए।
पर एक पल भी टिकी नही उनकी निगाहें।
उनकी सांसों से सरपट दौड़ती हैं जैसे हवाएं।
वैसे काजल पर न टिकती कोई भी बलाएं।
जैसे कागज़ का खत दूर...दूर तलक जाए।
वैसे दूर तलक मेरा मन उनके पास खींचा जाए।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र दूर तलक

दूर तलक #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White लोकतंत्र का महापर्व।।
लोकानुराग अब जारी है।।
किसके हिस्से कितनी जनमत।।
किसकी कितनी भागीदारी है।।
कौन बनेगा जननायक।।
किसके हिस्से लिखी कहानी है।।
हम तो एक मतदाता हैं।।
पर सपने मेरे काफी हैं।।
उन सपनों को पूरा करने वाला।।
ना जाने कौन खिलाड़ी है।।
लोकतंत्र के महापर्व में एक एक मत।।
भारत को भूषित  करने में काफी है।।
चलो चलें मतदान करें,लोकतंत्र निर्माण करें।।
सबके सपनों को साकार करें।।
चलो अपने मत से नव युग का निर्माण करें।।
            !!जय हिंद!!

©डॉ.अजय कुमार मिश्र
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