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sumitchaudhary4986
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Sumit Chaudhary

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Sumit Chaudhary

कुछ ऐसे गुजरी शाम कि
सूरज संग हम भी डूबे

सुबह हुई तो सूरज निकला
पर हम डूबे तो डूबे ही हैं।

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary
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Sumit Chaudhary






















कुछ ऐसे गुजरी शाम कि
सूरज संग हम भी डूबे

सुबह हुई तो सूरज निकला
पर हम डूबे तो डूबे ही हैं।

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary
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Sumit Chaudhary

अब लड़कपन के दिन नहीं
बचकानी हरकतों के दिन नहीं
यह उम्र का तैतीसवां साल है

अब सजने-सवरने के दिन नहीं
लड़ाई-झगड़े के दिन नहीं
यह उम्र का तैतीसवां साल है

अब बिछड़ने के दिन नहीं
साथ रहने के दिन हैं
यह उम्र का तैतीसवां साल है।
'
'
'
'
अब धक्के खाने के दिन हैं
डिग्रियां सड़ाने के दिन हैं
यह उम्र का तैतीसवां साल है

उम्र का तैतीस साल 
कम नहीं होता बर्बादी के लिए।

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary #Parchhai
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Sumit Chaudhary

हमारे भीतर कितने स्टेशन हैं
जहाँ हम कई-कई बार रुकते हैं
और रुक-रुक कर वापिस
आ जाते हैं उसी स्टेशन पर
जहाँ से हम चलते हैं

'रेलगाड़ी में हम नहीं चलते
रेलगाड़ी हम में चलती है' 

इस दुनिया में 
सबकी अपनी-अपनी रेलगाड़ी है
सभी उसके चालक हैं
सबके अपने-अपने स्टेशन हैं
सब अपनी-अपनी पसंद से 
रुकते और चलते हैं
कोई पटरी पर चलता है
कोई पटरी से उतर जाता है

पर चलते सब हैं
अपने-अपने स्टेशन पर ही
बिना यह सोचे कि 
किसे हम साथ लेकर चल रहे हैं
और किसका साथ छोड़कर...

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary #RailTrack
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Sumit Chaudhary

अब लड़कपन के दिन नहीं
बचकानी हरकतों के दिन नहीं
यह उम्र का तैतीसवां साल है

अब सजने-सवरने के दिन नहीं
लड़ाई-झगड़े के दिन नहीं
यह उम्र का तैतीसवां साल है

अब प्यार में पड़ने के दिन नहीं 
प्यार निभाने के दिन हैं
यह उम्र का तैतीसवां साल है
'
'
'
'
अब धक्के खाने के दिन हैं
डिग्रियां सड़ाने के दिन हैं
यह उम्र का तैतीसवां साल है

उम्र का तैतीस साल 
कम नहीं होता बर्बादी के लिए।

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary #peace
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Sumit Chaudhary

महामारी बीत जाने के बाद
सब कुछ वैसा ही चल रहा है दुनिया में
जैसे पहले चला करता था

कितना स्वार्थी और निर्मम होता है- मनुष्य
कि विपत्ति की घड़ी में सभी को याद करता है
और खुरच कर निकाल देना चाहता है
अपने हृदय से घृणा और द्वेष  
और बन जाना चाहता है- शिशु 

जबकि महामारी बीत जाने के बाद
वह उतना ही करुणा शून्य हो गया है
जितना कि पहले नहीं था

महामारी, जिसे हम मान चुके हैं
चला गया है हमारे बीच से
वह कहीं नहीं गया
बल्कि, बस गया है हमारे भीतर

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary #WoRaat
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Sumit Chaudhary

सबको हक़ है
सब प्यार करें 
दुख का दरिया पार करें 

खिलें-मुरझाएं 
खाद बनें 
सबको हक़ है
सब प्यार करें 

दूर-दूर रहते हैं तो क्या
भाव बारहा याद करें
जीवन का मूल्य समझ कर
एक-दूजे का मान करें

जीवन न निरर्थक यूं ही करें
सबको हक़ है
सब प्यार करें
दुख का दरिया पार करें।

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary #phool
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Sumit Chaudhary

उदासी,
बेचैनी,
अकेलापन,
ग्लानि
और न जाने क्या-क्या है 
मेरे कमरे में

जब भी आता हूं कहीं बाहर से 
अपने कमरे में
सब कुछ अस्त-व्यस्त पाता हूं
'रोज कुछ न कुछ टूटता है'
सोचता हूं सब सलामत रहे अपनी जगह
पर हो नहीं पाता

जीवन बहुत ख़ूबसूरत है
पर उदासी घर कर गई है चेहरे पर

कितना यांत्रिक हो गया है
यहां सब कुछ, मतलब सब कुछ
सिवाय प्रकृति को छोड़कर

आईने में जब भी देखता हूं अपनी सूरत 
तो खुद को ही काट खाने को जी चाहता है

सच ही कहा है किसी आलिम ने-
'हद से बढ़ी जो चीज़ खराबी उसमें आई,
ख़ाक में लोटते हैं यार के गेसू बढ़कर।'

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary #Dark
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Sumit Chaudhary

तुम एक फूल हो
और फूल को पसंद करती हो

मुझे पता है
तुम्हें फूल बहुत पसंद है
तुम बहुत करीब जाकर निहारती हो फूलों को 
और खिल जाती हो

तुम कहती हो
मैंने फूलों के पौधे रोपे हैं
मुझे फूलों का रंग बहुत पसंद है 
और उसके सुगंध भी 

तुम मुझसे पूछ पड़ी
तुम्हें फूल पसंद है?

मैंने तपाक से कहा
हाँ ! मुझे भी फूल पसंद है।

तुम कही कौन सा ?
मैंने कहा- जो फूलों को पसंद करती है।

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary #standout
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Sumit Chaudhary

जब हम प्रेम में पड़ते हैं
तब हम अपनी प्रेमिका में देखते हैं
त्रि-रूप।

प्रेमिका जो कभी मां हो जाती है
कभी दोस्त 
और कभी गुरु
हमारे साथ
बावजूद इसके, हम नहीं समझ पाते उसका मर्म।

हम कितने कठोर दिल होते हैं
जिसकी हम कल्पना किए थे
कि प्रेमिका में दिखे त्रि-रूप
उसे हम समझ न सके
बस माप दिए उसे
एक सामान्य सी वस्तु समझकर।

जब हम पड़ जाते हैं
उचाट, बियाबान में अकेले
तब आती है याद उस प्रेमिका की
जिसमें त्रि-रूपी स्नेह समाया हुआ था।

कुछ इसी तरह
आज मन भर आया है
आज तुम बेहिसाब याद आ रही हो
एक दोस्त की तरह
एक गुरु की तरह
और मां की तरह...

~सुमित चौधरी

©Sumit Chaudhary
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