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vakilbabu2652
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Manoj Srivastava

मैं एक विचित्र परिकल्पनाओं वाला दार्शनिक विचारों से युक्त व्यक्ति हूं। मैं, कविता लिखता हूं, गजल लिखता हूं, मुक्तक लिखता हूं, ब्लॉग लिखता हूं, पेंटिंग (चित्रकारी) करता हूं, सैर करता हूं, बातें अपनी सबसे खूब करता हूं, सबकी खूब सुनता हूं, व्यावहारिक हूं.....पेट और परिवार पालने के लिए दिल्ली में एक निजी संस्थान में कार्यरत हूं... दो बेटियों का पिता हूं ❤️❤️.... निराधार बातों और धार्मिक उन्माद से सबसे ज्यादा उबकाई आती है.... फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सक्रिय सहभागिता है... लिखे बिना मेरी परिकल्पना नही की जा सकती... लिखता हूं...मन से, मन के उद्गार...उनकी भी, हो समाज के अंतिम व्यक्ति है...वे ही मेरे संबल हैं 🙏🙏🙏

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Manoj Srivastava

सर्द रातों को क्या पता 
हमने इश्क का लिहाफ ओढ़ा है

©Manoj Srivastava #Winter
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Manoj Srivastava

जे चली जइहैं मोरा नाहीं
जे मोरा  उह जइहें नाहीं

©Manoj Srivastava
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Manoj Srivastava

तुमसे बिछुड़ जाने के बाद भी
तुमको बिसार देने का
प्रयास नहीं करूँगा
ऐसी कोई कसम तो, 
नहीं उठाई थी ‘मैंने’,
तिसपर भी,
कोई कड़ी रह गई है ऐसी,
जो बॉंधती है मुझको-तुमसे
तभी तो ‘मैं’ सर्वदा 
तुम संग बिताये पल-क्षणों को 
बीनकर, चुनकर, सजाकर
बड़ी तन्मयता से
याद करने लगता हूँ
 ‘तुमको’ निरन्तर!!!!

हॉं कदाचित् यही सत्य है......कि तुम और मैं....नहीं नहीं....’हम’,
ऐसे जुड़े रहें हैं,
कुछ इतनी अंतरंगता से, 
कि  प्रेम के भावुक सागर पर 
कसमें -वादों के किसी सेतु की
आवश्यकता ही नहीं महसूसी ‘हमनें’।

रक्ताभ आभा लिये,
मंदसिक्त मुस्कान से सज्जित तुम्हारे होंठ,
जिन्होने मुखर हो...अबतक,
कुछ भी नहीं....कुछ भी तो नहीं कहा था ‘मुझसे’, 
किन्तु, तुम्हारे कमलवत् 
शब्दों की बाढ़ से भरे युगल नेत्र पटलों ने,
बोझिल हो - बन्द होते - खुलकर,
बार बार .....बहुत बार 
एक एक कड़ी ‘स्मरित’ है,
कितना कुछ कहा है ’मुझसे’।

हमारा और तुम्हारा
 ‘मैं’ से अलग करता रिश्ता,
‘हम’ से भी पार,
कुछ.....हॉं.....कुछ कुछ, 
नयेपन से भरा,
वह अविच्छिन्न सम्बन्ध,
जो कहे - अनकहे से भी परे,
कहीं एक बिन्दु पर जाकर,
हुआ था स्थापित.....दृढ़ता से।

नीत नये सिरे से,
ढूँढ रहा हूँ,
वही बिस्मृत ‘नींव’ ।

मनोज श्रीवास्तव नींव जो खो गाई है

नींव जो खो गाई है #कविता


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