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shashankikumari7028
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शीतल श्रेष्ठ

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शीतल श्रेष्ठ

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शीतल श्रेष्ठ

भक्ति में राम बसे हैं तो 
रामायण का प्रभाव ही है 
गीता का ज्ञान भी है तो
आक्रमण का घाव भी है।

रोम रोम में बसा सदा ही
यह भूमि हिंदुस्थान है 
इस धरती पर जन्मा बच्चा
करता सत्य संधान है।

हर नर नारी है हिंदू वो
भूला न जो बर्बर आक्रमण
शोणित से भींगी धरती का
किया तिलक व लिया है प्रण। 

हिंस्र आतिथ्य का समय नहीं 
बढ़ तलवार तुम्हें उठना होगा
आराध्य रणचंडी के चरणों में 
दानव का शीश चढ़ाना होगा।

हैं प्रजापति के हम वंशज 
और देश ही प्राण हमारा है
हुंकारित हिंदू रक्त-प्राण से
हाँ, हिंदू है हम 
यह हिंदुस्थान हमारा है।

©शीतल श्रेष्ठ
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शीतल श्रेष्ठ

भक्ति में राम बसे हैं तो 
रामायण का प्रभाव ही है 
गीता का ज्ञान भी है तो
आक्रमण का घाव भी है।

रोम रोम में बसा सदा ही
यह भूमि हिंदुस्थान है 
इस धरती पर जन्मा बच्चा
करता सत्य संधान है।

हर नर नारी है हिंदू वो
भूला न जो बर्बर आक्रमण
शोणित से भींगी धरती का
किया तिलक व लिया है प्रण। 

हिंस्र आतिथ्य का समय नहीं 
बढ़ तलवार तुम्हें उठना होगा
आराध्य रणचंडी के चरणों में 
दानव का शीश चढ़ाना होगा।

हैं प्रजापति के हम वंशज 
और देश ही प्राण हमारा है
हुंकारित हिंदू रक्त-प्राण से
हाँ, हिंदू है हम 
यह हिंदुस्थान हमारा है।

©शीतल श्रेष्ठ
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शीतल श्रेष्ठ

White सुख मेरा कांच सा
क्यो ये सबको चुभा
ऐसा हमने क्या किया
एक ही पल में तोड़ दिया 
जाने कितने बार गिरे 
हजार टुकड़े हो गए 
किसी ने पूछा ?
जिंदगी में क्या किया 
मैं हस कर बोला 
न किसी से छल न कपट 
फिर भी दर्द मुझे मिला

©शीतल श्रेष्ठ #milan_night
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शीतल श्रेष्ठ

मैं जिंदगी को देखी 
कुछ बडबडा रही थी
ढूंढी उसे तो आंख मिचौली
 खेल मुस्कुरा रही थी
आंसू पोंछ वो मेरा
सहला के सुला रही थी 
एक दूसरे से खफा क्यों
मुझे समझा रही थी
मैने पूछा क्यौ दिया दर्द इतना
हस के बोली
मैं जिंदगी हूं, तुझे
जीना सिखा  रही थी

©शीतल श्रेष्ठ
  #hibiscussabdariffa
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शीतल श्रेष्ठ

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शीतल श्रेष्ठ

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शीतल श्रेष्ठ

सुख  दुःख  अनुभूति स्मृतियो 
में रह जाता है
लेकिन कुछ यादें पीड़ा के साथ 
हृदय में आजीवन रह जाता है

©शीतल श्रेष्ठ
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शीतल श्रेष्ठ

तुम्हें नजर आने लगूं
बताओ तुम्हारे पीछे कितना चलना पड़ेगा
तुम्हारी आदत बन जाऊ
बताओ तुम्हारे आदत में कितना ढालना पड़ेगा
ये आसान है या मुश्किल
मुझे फर्क नहीं पड़ता
तुम्हें समझ में आने लगूं
बताओ मुझे कितना बदलना पड़ेगा

©शीतल श्रेष्ठ
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शीतल श्रेष्ठ

मेघ गरजते हैं
बिजली चमकती है
फिर भी यह
प्यासी धरती 
आसमा को तरस्ती है
ज़िन्दगी सस्ते है
सपने महंगे हैं
ठोकर खा कर भी
कदम कहाँ रुकते हैं
कुछ कहते नहीं
मौन लिखते हैं
शब्द बन कर दर्द
पन्नों पर सिसकतें हैं
अब बारिश की बूंदे भीआंसू
बनकर अक्ष से बहते हैं
फिर भी यह
प्यासी धरती
आसमान को तरस्ती है

©शीतल श्रेष्ठ
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