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Ek villain
भारतीय प्राच्य विद्या और परंपरा के लेखन विश्लेषण और अभिलेखीकरण ने जिन प्रमुख संसाधनों की गणना होती उनमें गोविंद चंद्र पांडे का बड़ा मुकाम है वह उस परंपरा के वाहक है जहां वेदिक दिव्य खानों को तुलनात्मक मृतक विज्ञान की तरह ही नहीं बल्कि तत्व एक जिज्ञासा की दृष्टि से भी परखा गया है ऐसे में उनकी उपस्थिति पंडित क्षेत्र संघ चौपाटी पीवी गण वासुदेव अग्रवाल भगवतशरण उपाध्याय पंडित गोपीनाथ कविराज विश्वविद्यालय वास मंत्री शास्त्री यादव सर जैसे देशों के बीच बनती है स्वाधीनता की वर्षगांठ के अवसर पर गोविंद चंद्र पांडे की वैदिक संस्कृति का प्रश्न बन जाता है जिसमें अपने प्रकाशन के बाद भारतीय आध्यात्मिक और सनातन चेतन के अध्यायों को सार्थक के साथ किया जाता है हमें मालूम है कि भारतीय परंपरा में वेतन आदि माने जाते हैं तब से लेकर शहर तक उनके बहुत सारा होने के कारण भी इतनी बहु रेल में संभव हुई है उनके कई बार सही समय होता है ऐसा शास्त्रों को पंडित जी किताब प्रतिपादित करते हैं देखने वाली बात यह है कि ऐतिहासिक और इसके साथ ही आदि की व्याख्या पर विचार किया गया ऐसे में दयानंद सरस्वती श्री अरविंद मसूद और झा आदि की सकेत बराक व्यक्तियों में भी सम्यक दृष्टि डाली गई 1 रन तक के सबसे महत्वपूर्ण योजना योजना आती है कि वैदिक संस्कृति की परिभाषा करने वाले शरद सत्यात्मा सूत्रों की विवेचना किस प्रकार से भारतीय सभ्यता के इतिहास में प्रकट हुई इस पर भी समग्रता में चिंतन हुआ है ©Ek villain पारंपरिक और आधुनिक दृष्टि से वेदों की व्याख्या #proposeday
Shaikh Akhib Faimoddin
व्याख्या जीवन की क्या व्याख्या करुँ मै इस जीवन की जिसकी कोई व्याख्या ही नही हर दिशा से मिलती है मुझे विषमता क्या यही विषमता तो जीवन नही| कोई सब कुछ होकर भी रोता है तो कोई कुछ ना होके भी हसता है किसीका जीवन मधुबन तो किसीका रेगिस्तान भी नही क्या यही विषमता तो जीवन नही| जिसने सत्य को ही जीवन माना उसके किसीने छुए चरण नही जिसने किया समाज को खोकला उसके खिलाफ कोई आवाज नही क्या यही विषमता तो जीवन नही| माना जीवन सुख दुख का संघर्ष ही सही पर इसके परिणामों में समानता क्यों नही किसीको जलाया जाता है चंदन की चीता पर तो किसीको मिलता कफन भी नही क्या यही विषमता तो जीवन नही| अंत में क्या सही और क्या गलत इसका मिलता कोई जवाब नही क्योंकि हर दिशा से मिलती है मुझे विषमता क्या यही विषमता तो जीवन नही| फिर भी करना चाहता हुँ व्याख्या जीवन की जीस जीवन की कोई व्याख्या ही नही| व्याख्या जीवन की..
Dharmraj lohar
गीता में दिए कर्म के सिद्धांत की व्याख्या। कर्म का सिद्धांत दो शक्तियों के माध्यम से कार्य करता है ज्ञान और अज्ञान ज्ञानयोग से किए कर्मो का फल अच्छा और अज्ञान योग से किए कर्मो का फल बुरा होता है ज्ञान से धर्म और कर्तव्य जुड़ा होता है अज्ञान से अधर्म और अकर्तव्य जुड़ा होता ©Dharmraj lohar गीता की व्याख्या