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चाँदनी
मै चीरना चाहती हू ख़ुद के अंदर की वो सारी आवाजें जो युगों युगों से खामोश रखी है मुझे मै हृदय की आग को दिसम्बर की बर्फीली लहर मे समेटना चाहती हू जी वर्षो से सीने मे धधक रही है पर रिवाजों का कैद बहुत गहरा है और संस्कारों का पिंजर बेड़ियों से लबालब धीर! मेरे रूह की अपर्याप्तता बताती है ©चाँदनी #धीर
Sudha Bhardwaj
ओ मन मेरे तनिक धीर धर। न हो व्याकुल न तू हो बेसबर। लक्ष्य पर ही दृष्टि ध्यान तू रख। वहीं पर हो तेरी अगली सहर। ओ मन ....... भले ही हो दुर्गम हो सूनी डगर। ढूंढ़ लेगी मंजिल को तेरी नज़र। न हार स्वयं से मत टेक घुटनें। विपदा पर टूट तू बन के कहर। ओ मन....... सुधा भारद्वाज "निराकृति" विकासनगर उत्तराखंड #धीर(Dheer)
Pratik Dasgupta
यूं तो मैं करता है कि दुनिया जला दू पर दो चीज़े रोक लेती है मुझे पहला तुम्हारा आशियां यहां है दूसरा और सबसे यहां ये है कि मै जानता हूं कि जलने से दर्द कितना होता है।। धीर साल
Tarakeshwar Dubey
धीर वीर ............ हौसले जो हों बुलंद, हर मुश्किल हल कर सकते हैं। दुनिया क्या रोके उसे? जो लिखी भाग्य मोड़ सकते हैं। मुसीबतों की तू बात न कर, यह तो है आनी जानी। मझधार फंसी कश्ती को भी, साहिल पर धर सकते है। लक्ष्मण रेखा के दास यूं ही, बहाने गढ़ते रहते हैं। सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं। पुरवईया की उमस में, तन तार-तार हो जाता है। विचलित नहीं होता वह मन, जो पर्वत से टकराता है। सूरज की तपिस क्या? सागर शुन्य कर सकती है। पर्वत की ऊँचाई क्या? गगन शीश चुम सकती है। मन में ठान लिए जो नर, वह सब हासिल कर सकते हैं। सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं। विहग उड़ते उन्मुक्त गगन में, पर उनकी भी सीमा होती। अर्णब होत है गहरा पर, उसकी भी परिसीमा होती। बुझदिल साहिल के भोगी, बस बैठे ही रह जाते हैं। सागर की गर्त से धीर वीर, मोती चुन ले आते हैं। जुनून की बुनियाद पर, हर बाजी जीत सकते हैं। सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं। ©Tarakeshwar Dubey धीर वीर #gaon
Manmohan Dheer
चश्म ए नूर हो या हो कोई नाज़ुक सा ख़्वाब मेरा ही अक़्स ए जेहन मेरा या आसमां पे आफ़ताब मेरा ही . किस्सा ए ज़िंदगी तुम मिरी खामोशियों की आवाज़ हो अशआर ए धीर हो तुम मेरे अरमानों की परवाज़ हो . धीर अशआर ए धीर
somnath gawade
मित्रांनो धीर सोडू नका! परिस्थिती कितीही गंभीर असली तरी जगण्याची उमेद हारू नका. स्वकीयांच्या जाण्याने भयभीत झाला तरी मित्रांनो धीर सोडू नका! कठीण काळात तग धरून राहण्यासाठी नकारात्मक विचारांना थारा नको. आजची काळरात्र उद्या नक्कीच नसेल म्हणून मित्रांनो धीर सोडू नका! समोर कितीही काळोख असला तरी माघार घेऊ नका. प्रकाशाची आस धरून शेवटपर्यंत लढायचे आहे हे ही विसरू नका. परिस्थिती तुमचा कस पाहीन; तिला शरण जाऊ नका. लढण्यासाठी जन्म आपुला मित्रांनो धीर सोडू नका. वेढले जरी संकटांनी भयभीत होऊ नका. नक्कीच निघेल मार्ग यातून मित्रांनो धीर सोडू नका. आपल्याबरोबर कुटुंबाचीही काळजी घेऊन शत्रुला संक्रमणाची संधी देऊ नका. शरीराने खचला तरी मनाने उभारी घ्या. हीच विनंती, मित्रांनो धीर सोडू नका! #मित्रांनो धीर सोडू नका!
Dheeraj Patidar
तमाम हुनर सिखने में बहुत मुसीबते सहता हु। हा... इंदौरी हु में इंदौर रहता हूं। पता नहीं क्यों बचपन बहुत याद आता है। हालाते नजर हो तो वो कही छुप जहा हे। आज पुरानी बातें बेजुबान कहता हूं। हा... इंदौरी हु में इंदौर रहता हूं। दूर जाऊ तो याद आता है शहर अपना। क्योकि देखा है मेने यहाँ बहुत बड़ा सपना। तब थप थापा कर दिल को अपने ठंडक देता हूं। हा... इंदौरी हु में इंदौर रहता हूं। दौलत इतनी तो नहीं की बड़े बड़े दान करु। माँ बाप की जान को नहीं आशिकी पर कुर्बान करु। लेकिन रक्तदान में रक्त देकर लोगो की नसो में बहता हु। हा... इंदौरी हु में इंदौर रहता हूं। क्योना स्वच्छता का एक कदम हम सब बढ़ाए। अपने शहर को लक्ष्य शिखर पर चढ़ाए। अपने घर का कचरा हम सब डस्टबिन को देते है। हा... हम इंदौरी हे हम इंदौर रहते है। ।।धीर...✍️ इंदौरी की कलम ।।धीर...✍️
somnath gawade
बळीराजा तु धीर सोडू नकोस! अंधारयात्रेचा प्रवासी तु, चाचपडत का होईना चालत रहा. दारिद्रयाचा काळोख मिटविण्या, तेजोमय पहाट लवकरच उजाडेल; या धीरोदात्त शब्दांनी स्वतः ला सावरत रहा. जगाचा पोशिंदा ही बिरुदावली मिरविणारा लढवय्या तु. असंख्य आस्मानी आणि अनैसर्गिक संकटांना विजयी मुद्रेने भिडणारा तु. कित्येक आत्म्यांची पोटाची खळगी भरणारा तु. असा आत्महत्येचा विचारच कसा करू शकतो? मान्य, संघर्ष हा तुझ्या पाचवीलाच पुजलेला पाहुणा. परंतु, तु हे ही विसरू नकोस तुझ्यात क्षमता आहे ती संघर्षाला भिडण्याची, असंख्य वादळे पेलण्याची अन नवोन्मेषीवृत्तीने पुन्हा सावरण्याची. तुझ्या जाण्याने एका घराचं छप्पर मात्र उडून जाईल. जेंच्यासाठी तु मायेची सावली होता; त्यांचे भावविश्व भर उन्हात करपून जाईल. वाईट दिवसांचे हे सावट आले तसे निघून जाईल. तुझे दुःख पाहून ढग पुन्हा गहिवरून येतील. आनंदाचे क्षण पुन्हा अंकुरतील. फक्त बळीराजा तु धीर सोडू नकोस. -सोमचंद्र बळीराजा, तु धीर सोडू नकोस!