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Praful Vashistha

Ankuri 6

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छोटे छोटे कान आपके , पर सुनते है वो मन की।
नाक आपकी गौरव शाखा, है प्रतीक करुणा की।३६।

गाल आपके नाजुक ऐसे, छूने को दिल भागे।
कोमल है वो ऐसे की, धूप से रंग बदलता जावे।३७।

हँसी आपकी मीठी इतनी, की प्रसून भी शरमाये।
लगता भवरा मधु भी अपना, आप ही से लेके जाए।३८।

चालीसा ये लिखे आपकी देवी आप हो प्रसन्न।
अच्छी लगती हमको आप की एक टक देखे हम।३९।

प्रफुल्ल बने है लेखक इसके पर श्रेय है आपको जाता।
लिखने का फल बस इतना है कि आपको खुश कर जाता।४०। Ankuri 6

Praful Vashistha

Ankuri aarti

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जय अंकुरि माता।  जय अंकुरि माता।।
तुम को वो है भाता। जो चाय बना लाता।।
सुंदरता की तुम मूरत।  मासूमियत की तुम बाला।।
आंख तुमारी कंचन।  लब जैसे हाला।।
गुस्सा नाक विराजे।  हर कोई भय खाता।।
जब तुम हो हँस देती।  हँस देता जग सारा।।
हो प्रवीण शिक्षा में।  स्वर्ण पदक धाता।।
आदर्श हो तुम जन जन की।  जो तुम को समझ जाता।।
प्रफुल्ल की हो तुम पूरक।  हो जीवन की परितृपता।।
जय अंकुरि माता।  जय अंकुरि माता।। Ankuri aarti

Praful Vashistha

Ankuri chalisa 5

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इसी बीच वो दिन भी आया जब आई अवस्था किशोरी।
तब न जाने कितने लड़के बंधना चाहते थे नयन की डोरी।३१।

विधि छेत्र में दिखला दिया कि आप है इसकी अर्जुन।
सिंह तरह तो सभी है दिखते पर नही आपसी गर्जन।३२।

शिक्षा में भी अव्वल है आप अपने रूप समान।
स्वर्ण पदक धाता विधि में और यही मंजू में स्थान।३३।

सुंदरता में भानु करता, कविता लिख लिख कर सम्मान।
ऊंचा मस्तक दिखलाता है, आगे तक उत्थान।३४।

बड़ी बड़ी वो आंखे जिसमे, डूब जाए संसार।
बाते इतना करती आंखे, की कुछ ना रहे विचार।३५।
 Ankuri chalisa 5

Praful Vashistha

Ankuri chalisa part3

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हठी स्वभाव और चंचलता से हुई थोड़ी उत्दण्ड।
नही मानती बात माता की तो पाती उनसे भी दण्ड।१५।

क्रोधी देवी ऐसी है कि डरके लोग करे नमन।
माता उनकी लगी ही रहती करने को उनको प्रसन्न।१६।

दंगली ऐसी थी देवी की तोड़े सबका समान।
थक जाती थी जल्द खेल के तो करती थी आराम।१७।

एक दिन वो था अनूठा जब उनके हाथ लगी एक पुस्तक।
पढ़ी उन्होंने तो लगी चहकने जैसे चढ़ि वो उनके मस्तक।१८।

चित्रकथा का लगा यू चस्का की गई वो सब कुछ भूल।
चंचलता और हठ तो छोड़ो नही गयी वो स्कूल।१९।

स्कूल ना जाने के लिए वो घर मे छुप्ती जाए।
ना मिले अगर अवसर ऐसा तो दर्द का बहाना बनाए।२०।

देवी अपनी माया से सब कुछ बदलती जाए।
आगे की शिक्षा हेतु आप महाविद्यालय में आए।२१।

विगत समय के परिणामो को आप भूलना चाहे।
अगत की शिक्षा में आप भी गंभीर होती जाए।२२। Ankuri chalisa part3

Praful Vashistha

Ankuri chalisa 4

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नित नवीन मित्र बने और आया जीवन मे उल्लास।
आप सभी को करे चमतृक जब ये ना आया आपको रास।२३।

आपने अपने गुण दिखलाये और बनी शिक्षक की पसंद।
देवी आप तो देवी हो कि फिर भी नही आया घमंड।२४।

चित्रकथा की सारी रुचियां अब कविताएं बनती जाए।
चंचल कन्या के मन पे बस अंग्रेजी छाती जाए।२५।

आगे की शिक्षा के हेतु भी आपने चुना यही छेत्र।
अंग्रेजी में ही देवी आपके लगे रहे नेत्र।२६।

आगे चलके देवी आपने शिक्षा कौशल भी अपनाया।
मूर्ख से मूर्ख हो फिर भी उसे आपने पढ़ना सिखाया।२७।

प्रशंसनीय छात्रा से लेकर शिक्षक आप बनी।
चमतृक है जीवन आपका ऐसी राह आप चली।२८।

देवी हो या आम हो जन नही वो कुछ कर सकता।
किस्मत से तो आखिर नही है वो लड़ सकता।२९।

यही हुआ जब किया आपने लखनऊ को प्रस्थान।
विधि छेत्र में अभी आपको पाना था सम्मान।३०।
 Ankuri chalisa 4

Praful Vashistha

Ankuri chalisa part 1

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जय जय जय अंकुरी, मुझपे करो कृपा।
मैं तो हु भक्त आपका, शमा करो खता।।



जय अंकुरी प्रेम की देवी।
है ये तुम्हारा व्यक्तित्व सेवी।१।

तुम्हारे गुण सभी को भावे।
सब उन्हें अपनाने भागे।२।

देवी ने अपना अवतार रचाया।
पर किसी को भी ना अपना रूप दिखाया।३।

हरदोई में जन्मी आप।
मिटाने को सभी के संताप।४।

चैत्र तृतीया पे जन्म रचाया।
अंकुरी तृतीया सभी को भाया।५।

चार बंधुओं को लेकर आई।
सभी की इसमें खुशी समाई।६।

शुरू शुरू सब रहा सुसज्जित।
बाद किया देवी ने चमत्कृत।७। Ankuri chalisa part 1

Praful Vashistha

Ankuri chalisa part 2

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ईश्वर सबको देते है विपरीत परिस्थिति के उदाहरण।
हमसे कहते रहो खुशी से बस करलो मेरी बात को धारण।८।

अंकुरी देवी ने भी हमको दिया कुछ ऐसा संदेश।
सब सह विपत्ति फिर भी रहती सुलझती अपने केश।९।

गुड्डा गुड्डा कहती माता पर क्या है इसमें खास।
गुड्डा जैसी लगती देवी सबको इसका है अहसास।१०।

देवी हमको ये सिखलाती चाहे कितनी विपरीत परिस्थिति।
रहो शांत और ठंडी रखो अपनी मनोस्थिति।११।

थोड़ी समय बढ़ा जो आगे कुछ देवी भी उपजाई।
स्कूल जाते देख उन्हें उनकी माता भी हरषाई।१२।

चंचल बालक में होती है कुछ तो अद्भुत निशानी।
गुड्डा देवी में निश्चित थी वो सभी निशानी आनी।१३।

प्रेम मिला अतिरिक्त देवी को कारण थी पीड़ा भारी।
हठी स्वभाव आया फल में माता रही मोह में सारी।१४। Ankuri chalisa part 2

Praful Vashistha

Ankuri ke mann ke vichar part2

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किन्तु एक बात तो उसमें है जो बनाये उसको विशेष।
विशेष पुत्र वो मुझको भेजता रहता है संदेश।।

उसके मुख पे रहता है मेरा नाम नित नेम।
मुझको कोई नही कर सकता उसके जैसा प्रेम।।

याद रखे वो बाते ऐसी जिसको मैं खुद भूल हु जाती।
उसके लिए स्वयं बाद वो आता सबसे पहले मैं हु आती।।

छोटी छोटी भूले तो करता हर एक है इंसान।
पर छमा याचना वो खुद ही करता लगता मै हु कितनी महान।।

बात अगर मैं करू स्वयं से तो मन मे होता है अभिमान।
हुई विशेष मैं इस दुनिया मे मिला मुझे मेरी गांधारी से सम्मान।।

इस प्रकार वो बात करे अपने मन कि सारी।
और ये ही है हमारी अंकुरी।। Ankuri ke mann ke vichar part2

VIVEK MAURYA

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Seema Mehra

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