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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मुक्तक :-बूँद बूँद-बूँद को तरस रहा है , जग में हर इंसान । सूखी फसले देख-देखकर , रोता आज किसान । जीव-जन्तु की कौन करे फिर , बतलाओ परवाह- कुछ दौलत के आज नशे में , बन बैठे शैतान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :-बूँद बूँद-बूँद को तरस रहा है , जग में हर इंसान । सूखी फसले देख-देखकर , रोता आज किसान । जीव-जन्तु की कौन करे फिर , बतलाओ परवाह-
मुक्तक :-बूँद बूँद-बूँद को तरस रहा है , जग में हर इंसान । सूखी फसले देख-देखकर , रोता आज किसान । जीव-जन्तु की कौन करे फिर , बतलाओ परवाह- #कविता
read moreSinger Chandradeep Lal Yadav
कवने बिरादर से फसल हई actor singer writer Chandradeep lal Yadav #Videos
read moreShashi Bhushan Mishra
White कुनबे का सरदार है तू, लाखों दिल का प्यार है तू, गज़ल कही है रूमानी, धड़कन की झंकार है तू, दिखलाई दे दूर तलक, ताक़तवर मीनार है तू, करे सुरक्षा सरहद की, इक अभेद्य दीवार है तू, प्यास बुझाए प्यासों की, मीठा जल रसधार है तू, तप्त धरा का जनजीवन, सावन माह फुहार है तू, 'गुंजन' रब से वाबस्ता, फसलों का श्रृंगार है तू, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ• प्र• ©Shashi Bhushan Mishra #फसलों का श्रृंगार है तू#
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।। रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान । अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।। कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात । रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।। रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल । एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।। अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात । समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।। नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज । करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।। उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण । रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।। जो कुछ जीवन में मिला , बाबा तेरा प्यार । व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।। हृदय स्मृतियों में चले , बचपन के वह काल । हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।। जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार । कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।। जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल । एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।। बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल । कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती
अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती #कविता
read moreArvind Kumar Yadav
Ravendra
अग्निकांड में बहराइच जिले के नवाबगंज थाने में अग्निकांड से चौपट हुआ किसान जल गई सारी फसल #वीडियो
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