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Ravendra
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दैवीय पृवति और आसुरी प्रवृत्तियां ********************************* समस्त पृथ्वी पर 14 जुन से , नारी शक्ति और पुरुषार्थ शक्ति के अन्त: करण द्वितीय महाभारत युद्ध जो हो रहा है। अहिंसा पर उसका पृथ्वी पर विराट रूप में, महासंग्राम होता दिखाई देना शुरू हो जाएगा। अपनी आंखों से देखते रहिए समस्त संसार में , समस्त नारी शक्ति और पुरुषार्थ शक्ति में। पृथ्वी पर जो मेरे भक्त है वे मेरे पास ही रहेंगे। उनके अंतःकरण में शीतलता प्रदान कि जाएगी। जो मुढ़ और दुष्ट हैं समस्त धर्मों में सर्वप्रथम उनकी शांति भंग की जाएगी समस्त पृथ्वी के सभी धर्मों में। समस्त पृथ्वी पर सभी धर्मों के परमत्तव अंशों शरीर में उनके हृदय मैं स्थित हूं । किसी को भी भविष्य में हृदय की इस आग पहचान नहीं हैं। भुतो का हृदय पुनः अग्नि तत्व अति तीव्र को नियंत्रित करने असफल होंगे। कौरव पक्ष के समस्त अधर्मी पाखण्डी गुरुऔ को। करुणा और दया का प्रयोग ना करें मेरे भक्तों इन अधर्मियों पर। आप देखते रहिए चुपचाप इस महासंग्राम युद्ध को समस्त धर्मों के तुच्छता पहचान वालों को संसार में। यह श्री गीता जी अठारहवां श्लोक गुप्त रहस्य भाव है ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #New #treanding #viral #Haryanvi #merikHushi दैवीय पृवति और आसुरी प्रवृत्तियां ***************************
Bharat Bhushan pathak
मंगलमाया छंद विधान-कुल २२ मात्राएं,११-११ पर यति,यति के पूर्व पश्चात त्रिकल और अंत में वाचिक गा अनिवार्य। भटक रहा क्यों मनुज,पड़े तू तू मैं मैं, जब होंगे सब अनुज,न तब होगी टें टें। व्यर्थ युद्ध के तान,करें प्रीत का नाद, नश्वर जब यह जान,फिर क्या भला ये मैं। धन्य सम्पदा गेह,क्या काम आते हैं, करें सभी से नेह,बस यही जाते हैं। मोह-माया प्रसार,बने यही संसार, वैर भाव को मार,सब विनय करते हैं। जीवन रसरी अल्प,व्यर्थ करो ना कल्प। प्रसिद्ध यह है गल्प,श्रम सब वरते हैं। ©Bharat Bhushan pathak #Qala मंगलमाया छंद विधान-कुल २२ मात्राएं,११-११ पर यति,यति के पूर्व पश्चात त्रिकल और अंत में वाचिक गा अनिवार्य। भटक रहा क्यों मनुज,पड़े तू
N S Yadav GoldMine
आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए जानें रोचक कथा !! 💠💠 {Bolo Ji Radhey Radhey} गयासुर की कथा :- 🌟 धर्म, सदाचार, नीति, न्याय, और सत्य का बोध कराने वाली प्राचीन कथाएं। यह प्राचीन कथा है हमारे जीवन के लिए प्रेरणादायक होती है। वैदिक काल में ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तो असुर कुल में गय का जन्म हुआ, पर उसमें आसुरी वृत्ति नहीं थी। वह परम वैष्णव तथा दैवज्ञ था। वेद संहिताओं में जिन असुरों का नाम आया है, उसमें गय प्रमुख है। एक बार उसकी इच्छा हुई कि वह अच्छे कार्य कर इतना पुण्यात्मा हो जाए कि लोग उसके दर्शन करके ही सब पापों से मुक्त हो जाएं तथा मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्ग में स्थान मिले। 🌟 ऐसा विचार कर उसने कोलाहल पर्वत पर समाधि लगाकर भगवान विष्णु की तपस्या करनी प्रारंभ की। वर्ष पर वर्ष बीतते गए, उसकी तपस्या चलती रही। उसके कठोर तप से प्रभावित होकर भगवान विष्णु प्रगट हुए और गय की समाधि भंग करते हुए कहा-महात्मन गय, उठो! तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। किस उद्देश्य के लिए इतना कठोर तप किया? अपना इच्छित वर मांगो। गय ने आंखें खोली तो देखा, सामने चतुर्भुज भगवान विष्णु खड़े हैं। गय ने चरणों में दण्डवत प्रणाम कर कहा-भगवन! 🌟 आपके चतुर्भुज रूप का दर्शन कर मेरे सब पाप दूर हो गए। मुझे ऐसा लगता है कि आप इसी रूप में मेरे अन्दर समा गए हैं। अब तो यही इच्छा है, आप इसी रूप में मेरे शरीर में वास करें तथा जो मुझे देखे, उसे मेरे बहाने आपके दर्शन का पुण्य मिले तथा उसके सभी पाप नष्ट हो जाएं और वह इतना पुण्यात्मा हो जाए कि मृत्यु के बाद उस जीव को स्वर्ग में स्थान मिले। मेरे इस तप का फल उन सबको प्राप्त हो जो मेरे माध्यम से आपके अप्रत्यक्ष दर्शन करें। 🌟 गय की इस सार्वजनिक कल्याण-भावना से भगवान विष्णु बहुत प्रभावित हुए और हाथ उठाकर बोले-तथास्तु! ऐसा कहते ही भगवान अन्तर्धान हो गए। अब गय एक स्थान पर न बैठकर सर्वत्र घूम-घूम कर लोगों से मिलता। फलस्वरूप जो भी उसे देखता, उसके पापों का क्षय हो जाता और वह मरणोपरान्त स्वर्ग का अधिकारी हो जाता। इससे यमराज की व्यवस्था में व्यवधान आ गया। अब किसी के कर्मफल का लेखा-जोखा वे क्या रखें, जब गय के दर्शन होते ही उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है तो फिर नरक दूतों का क्या कार्य रहा। 🌟 उन्होंने ब्रह्मा जी के सामने यह समस्या रखी। ब्रह्मा जी ने कहा-ठीक है, इसका कुछ उपाय करते हैं। कर्मफल का विधान बना रहना चाहिए। हम इसके शरीर पर एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा मैं और अन्य सारे देवता इसकी पीठ पर पत्थर रखकर, उस पर बैठकर उसे अचल कर देंगे। फिर यह कहीं आ-जा न सकेगा। गय की पीठ पर यज्ञ हो, यह तो और पुण्य का काम है, गय ने ब्रह्मा के इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। ब्रह्मा जी यमराज सहित सारे देवताओं को लेकर, पत्थर से दबाकर उस पर बैठ गए। अपने ऊपर इतना भार होने पर भी गय अचल नहीं हुआ। 🌟 देवगणों को चिन्ता हुई तो ब्रह्मा ने कहा-इसे भगवान विष्णु ने वरदान दिया है, इसलिए हम विष्णु जी की शक्ति का आह्वान करें तथा उन्हें भी इस शिला पर अपने साथ बैठाएं, तब यह अचल होगा। ब्रह्मा समेत सब देवों ने विष्णु का आह्वान किया तथा अपनी और यमराज की समस्या बताई। विष्णु इस पर विचार कर जब सबके साथ उस पर बैठे तब कहीं जाकर वह अचल हुआ। विष्णु को अपने ऊपर आकर बैठे देखकर उसने देवताओं से कहा-आप सब तथा भगवान विष्णु की मर्यादा के लिए मैं अब अचल होता हूं तथा घूमकर लोगों को दर्शन देकर जो उनका पाप क्षय करता था, उस कार्य को समाप्त करता है। 🌟 पर आप सबके इस प्रयास से भी भगवान विष्णु का यह वरदान व्यर्थ सही जाएगा। भगवन, अब आप मुझे पत्थर-शिला के रूप में परिवर्तित कर यहीं अचल रूप से स्थापित कर दें। गय का यह मर्यादित त्याग देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो उठे और बोले-गय! तुम्हारा यह त्याग व्यर्थ नहीं जाएगा। इस अवस्था में भी तुम्हारी कोई इच्छा हो तो वह कहो, मैं उसे पूर्ण करूंगा। 🌟 गय ने कहा-नारायण! मेरी इच्छा है कि आप इन सभी देवताओं के साथ अपरोक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मरणोपरान्त धार्मिक कृत्य के लिए तीर्थस्थल बन जाए। जो व्यक्ति यहां अपने पितरों का श्राद्ध करें, तर्पण-पिण्ड दान आदि करें, उन मृतात्माओं को नरक की पीड़ा से मुक्ति मिले। यह सारा क्षेत्र ऐसी ही पुण्य-भूमि बन जाए। 🌟 विष्णु ने कहा-गय! तुम धन्य हो! तुमने अपने जीवन में भी जन कल्याण के लिए ऐसा ही वर मांगा और अब मरण-अवस्था में मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए भी ऐसा ही वर मांग रहे हो। तुम्हारी इस जन-कल्याण भावना से हम सब बंध गए। ऐसा ही होगा। इस क्षेत्र का नाम तुम्हारे नाम गयासुर के अर्धभाग गया से विख्यात होगा। इस क्षेत्र में आने वाले तथा इस शिला के दर्शन कर यहां श्राद्ध तर्पण-पिण्ड दान करने वालों के पूर्वजों को जीवन में जाने-अनजाने किए गए पाप कर्मों से मुक्ति मिलेगी। यहां स्थित पर्वत गयशिर कहलाएगा। 🌟 गयशिर पर्वत की परिक्रमा, फल्गू नदी में स्नान तथा इस शिला का दर्शन करने पर पितरों का तो कल्याण होगा ही, जो यहां इस उद्देश्य से आएगा, उसके पुण्य में भी श्रीवृद्धि होगी। भगवान विष्णु से ऐसा वर पाकर गय संतुष्ट होकर शान्त हो गया। बिहार प्रदेश में स्थित गया पितरों के श्राद्ध पिण्ड-दान का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। यहां स्थित विष्णु मंदिर के पृष्ठ भाग में पत्थर की एक अचल शिला आज भी स्थित है। जो जन-कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं, उनका यश ऐसे ही चिरकाल तक स्थायी तथा स्थिर होता है। जो केवल अपने लिए न जीकर समष्टि के लिए जीते हैं, उनका जन्म-मरण दोनों सार्थक होता है। ©N S Yadav GoldMine #Gulaab आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए जानें रोचक कथा !! 💠💠 {Bolo Ji Radhey Radhey} गयासुर
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विद्या (ह्रदय) हे परमत्तव अंश ज्ञान(विद्या) का स्वरूप को बढ़ावा देना । हमारे ह्रदय रुपी भावसागर कि एक क्रिया है। हद्रय के कारण ही हमारी उत्पत्ति हुई है। हृदय के कारण ही संहार होना तय है । क्योंकि इसी में चार द्वार (वाल) वेदों के स्वरूप से देखा व समझा गया है । वेदों का अस्तित्व सर्वप्रथम सरस्वती को दिया गया है। मानव शरीर में ये ह्रदय क्रिया सनातन से चली आ रही है। हद्रय विद्या का स्पष्टीकरण हमारे मुख और कभी -कभी चन्द , इन्द्रियों के द्वारा भी किया जाता है। इस क्रिया को आजकल के संसार के कानून भी पकड़ नहीं सकते हैं। विद्या के मुल स्पष्टीकरण कै । प्रमाण से प्रमाण निकलता है । हर शरीर में वेदों के अमृत ज्ञान के साथ विष भी है। हद्रय के विष को ग्रहण करने वाला कोई नहीं है। आपके सिवा इस ब्रह्माण्ड में । हद्रय रूपी अमृत को पीने वाले सभी है इस जहां में। ज्ञान का स्वरूप हमेशा हृदय से हुआ है । ऐसा नहीं दावा के साथ व पुर्ण विश्वास से कहता हूं । अपनी हाथ की चार अंगुली को लीजिए और हृदय पर रखकर उन्हें कहिए कि सरस्वती के पास कोई डिग्री नहीं है । इस प्रमाण से - इस क्रिया से। अब ज्ञान बातें सोचकर ओर बोल कर दिखा । अभी खुद करके देखो आपके ज्ञान रुप । इस क्रिया से कहा चला जाता है। बड़ा प्रमाण क्या - हमारा ज्ञान का ही सर्वोपरि उद्गम का स्त्रोत हृदय ही है। ह्रदय में से निकला ही विष हमारा सर्वोपरि विध्वंस है। ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #sattingbaba #sanjana #New #treanding #Trading #PriyankaMeme Johirul Islam Kamalakanta Jena (KK) Pooja Thakor Samanda
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सोच(हद्रय) सोच इस शरीर रूपी भवसागर स्वरूप ह्रदय का ऐसा रत्न है। जो अन्दर तो बहुत ही तरल रहता है , बाहर निकलते ही ठोस रूप हो जाता है , ठोस रूप में तो ये कभी -कभी तो, ये करोड़ों सालो तक नहीं फुटता है। जैसे कि - कण-कण में भगवान होता है ? आप खुद ही देख लीजिए हे परमत्तव अंश। अन्दर स्वरूप कैसा है? बाहर कैसा है ? क्योंकि जिसने बोला इस वाक्य को, यह उनकी सोच ही थी, एक हृदय से निकली। आप इसको फोड़ कर दिखा दीजिए । समस्त पृथ्वी के परमत्तव अंश । प्रमाण से हम जीवित हैं, प्रमाण से ही आप भी जीवित हैं। जन्म है तो मृत्यु भी देना हृदय में बैठा हुऐ का अधिकार है। ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #New #Trending #think #Haryanvi #old #Best #Silence
Kulbhushan Arora
सुप्रभात🙏🏼 अंतर्यात्रा से *कृष्ण*संदेश #d_k_p सुप्रभात🙏🏼🙏🏼 अंतर्यात्रा से *कृष्ण* सन्देश, मन की दुनिया में असंख्य, आसुरी वृत्तियां भटकती हैं, बाहुबली होने का दम भरती हैं, भीड़ सी शक्त
Kulbhushan Arora
#D_K_P Suprbhat मीठी मीठी मुस्कान से, आओ दिन का करें स्वागत, मधुर वाणी के संगीत से, चिड़ियों सा करें मीठा शोर, मीठी मीठी सांसे गहरी सांसे से, सुगंध फैला दें
Kulbhushan Arora
*कृष्ण* संदेश अंतर्यात्रा से *कृष्ण* सन्देश मन की दुनिया में असंख्य आसुरी वृत्तियां भटकती हैं बाहुबली होने का दम भरती हैं भीड़ सी शक्तिशाली लगती हैं ले