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Stories related to mahabharat abhimanyu story

SumitGaurav2005

मैं सूर्यपुत्र होते हुए भी,
सूत पुत्र कहलाया थ। 
कुंती माँ मुझे जना तू ने, 
परन्तु राधेय कहलाया था। 
कर्ण दानवीर होते हुए भी,
सबसे तिरस्कार पाया था।
ऐसी क्या तेरी विवशता थी,
जो तूने मुझे ठुकराया था।
✍🏻सुमित मानधना 'गौरव'😎

©SumitGaurav2005 #कर्ण  #karna #महाभारत #Mahabharat #Mahabharata #Sumitgaurav2005 #sumitkikalamse #sumitgaurav #sumitmandhana #Epic

Kartik Aryan

good story for my book story English story

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White Chand  mama At times round as a cricle and at times different once

©Kartik Aryan good story 
for my book story English story

Deepak Kumar 'Deep'

#story

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तक़दीर में तुमसे  
मिलना लिखा था  
सिर्फ़ बिछुड़ने के लिए

©Deepak Kumar 'Deep' #story

queen

#story

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Anil gupta

#story motivational story in hindi

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A short story गिलास की वजन की कहानी

एक प्रोफेसर ने अपने छात्रों को एक गिलास पानी दिखाया और पूछा, "इस गिलास का वजन कितना है?"
छात्रों ने जवाब दिया कि यह 200 से 500 ग्राम के बीच हो सकता है।

प्रोफेसर ने जवाब दिया, "गिलास का वजन महत्वपूर्ण नहीं है। जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि आप इसे कितना समय तक पकड़ते हैं। अगर मैं इसे एक मिनट के लिए पकड़ता हूं, तो यह हल्का लगेगा। अगर मैं इसे एक घंटे तक पकड़ता हूं, तो मेरा हाथ दुखने लगेगा। अगर मैं इसे पूरे दिन पकड़ता हूं, तो हाथ सुन्न हो जाएगा। गिलास का वजन नहीं बदलता, लेकिन जितना अधिक समय आप इसे पकड़ेंगे, उतना अधिक यह भारी महसूस होगा।"

फिर उन्होंने कहा, "जिंदगी की परेशानियाँ भी इस गिलास की तरह हैं। कुछ देर के लिए इन पर विचार करें, तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अगर आप इन्हें और अधिक समय तक सोचते हैं, तो ये दर्द देने लगती हैं। और अगर आप इन्हें पूरे दिन सोचते हैं, तो आप बिल्कुल थक जाते हैं। इसलिए कभी भी इस गिलास को नीचे रख दें।"

सीख: अपने तनाव और चिंताओं को कुछ समय के लिए छोड़ दें, ताकि वे आपके जीवन को न तोड़ सकें।

©Anil gupta(Storyteller) #story  motivational story in hindi

queen

#story

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Anil gupta

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Lippu Jena

#story

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NOTHING

Avinash Jha

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha #संशय
#Mythology  #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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