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Parasram Arora
सभ्यताओं के विवेक की ग्रंथिया आर्द्र हुई है....... पश्चाताप की गंगा व्यर्थ मे बह रही.... हमारे आचरण लहू लुहान हो चुके और नैतिकता अपने सिहासन से पद्चुत होकर किसो अंधी खाई मे गिर कर अंतिम साँसे ले रही... विवेक की ग्रंथिया........
Ashutosh Pandey
*प्रेम सदैव ढूंढ़ता रहा आंखों में प्रतीक्षा के उपरांत मिलन के अधखिले पुष्प का सौंदर्यबोध! अनुभूतियों के स्तर पर सहेजना चाहता है विरह की विषमता को अनुकूल करने के अधक प्रयास में स्वेद ग्रंथियों की सक्रियता से उभरी बूंदों का स्पर्श!🌹❣🌸 #love *प्रेम सदैव ढूंढ़ता रहा आंखों में प्रतीक्षा के उपरांत मिलन के अधखिले पुष्प का
saurabh
शब्द छिपकर भाव में पीड़ा कहेंगे क्या कहेंगे तुमने कैसे सोच कर रक्खा तुम्हारे बिन रहेंगे रात की आधी अधूरी सिसकियां बोलेंगी कैसे जख्म की या घाव की ये ग्रंथियां खोलेंगी कैसे पीर ये कैसे हमारे उर के अंदर रह सकेगी मौन होंगे शब्द ग
Akib Javed
KHATOLA MUSIC
👉 मृत्यु से जीवन का अंत नहीं होता जैसे हम फटे-पुराने या सड़े-गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही पुराने शरीरों को बदलते और नयों को धारण करते रहते हैं। जैसे कपड़ों के उलट फेर का शरीर पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता, वैसे ही शरीरों की उलट-पलट का आत्मा पर असर नहीं होता। जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो भी वस्तुत: उसका नाश नहीं होता। मृत्यु कोई ऐसी वस्तु नहीं, जिसके कारण हमें रोने या डरने की आवश्यकता पड़े। शरीर के लिए रोना वृथा है, क्योंकि वह निर्जीव पदार्थों का बना हुआ है, मरने के बाद भी वह ज्यों का त्यों पड़ा रहता है। कोई चाहे तो मसालों में लपेट कर मुद्द तों तक अपने पास रखे रह सकता है, पर सभी जानते हैं कि देह जड़ है। संबंध तो उस आत्मा से होता है जो शरीर छोड़ देने के बाद भी जीवित रहती है। फिर जो जीवित है, मौजूद है, उसके लिए रोने और शोक करने से क्या प्रयोजन? दो जीवनों को जोड़ने वाली ग्रंथि को मृत्यु कहते हैं। वह एक वाहन है जिस पर चढ़कर आत्माएँ इधर से उधर, आती-जाती रहती हैं। जिन्हें हम प्यार करते हैं, वे मृत्यु द्वारा हमसे छीने नहीं जा सकते। वे अदृश्य बन जाते हैं, तो भी उनकी आत्मा में कोई अंतर नहीं आता। हम न दूसरों को मरा हुआ मानें, न अपनी मृत्यु से डरें, क्योंकि मरना एक विश्राम मात्र है, उसे अंत नहीं कहा जा सकता। ✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 📖 अखण्ड ज्योति-मार्च 1948 पृष्ठ 1 http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/March/v1.1 ©KHATOLA MUSIC 👉 मृत्यु से जीवन का अंत नहीं होता जैसे हम फटे-पुराने या सड़े-गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही पुराने शरीरों को
AB
( अनुशीर्षक ) यह गंध अम्नियोटिक द्रव की निःसंदेह संसार सबसे सुंदर महक होगी लिपी - पुती हुई है तुम्हारी नग्न देह पर, मेरी सूंघने की क्षमता को और ज़्यादा ती
Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 *ग्रह और शरीर के अंग* चिकित्सा ज्योतिष के अनुसार, ज्योतिष के नौ ग्रह शरीर के विभिन्न अंगों से जुड़े हैं। चिकित्सा ज्योतिष के अनुसार ग्रहों और संबंधित शरीर के अंगों और उनसे जुड़ी बिमारियां निम्न प्रकार हैं ---- *सूर्य* सूर्य हृदय, रीढ़ की हड्डी, पाचन तंत्र, हड्डी संरचना, रक्त, पित्ताशय को नियंत्रित करता है। इससे व्यक्ति तेज बुखार, मानसिक रोग, जोड़ों के विकार, हृदय की परेशानी, गंजापन आदि से पीड़ित हो सकते हैं। *चन्द्रमा* चंद्र अंडाशय, भावनाओं, शरीरिक तरल पदार्थ, स्तन, टॉन्सिल, लसीका, ग्रंथियों आदि को नियंत्रित करता है। चंद्रमा की कमजोर स्थिति मुंह, तिल्ली, गर्भाशय, तंत्रिका संबंधी विकार, सुस्ती आदि से संबंधित बीमारियों का कारण बनती है। *मंगल* मंगल पित्त को नियंत्रित करता है। मंगल धमनियों, प्रजनन प्रणाली, दांत, नाखून, बाल, आंत और नाक को कवर करता है। कमजोर शुक्र जलने, फ्रैक्चर, घाव, त्वचा पर चकत्ते, ट्यूमर, टाइफाइड आदि का कारण बनता है। *बुध* बुध वात पर शासन करता है। पित्त और कफ। बुध मस्तिष्क, श्वसन प्रणाली और तंत्रिकाओं को नियंत्रित करता है। इसकी कमजोर स्थिति गैस्ट्रिक जूस, हाथ, भुजा, गर्दन के निचले हिस्से, नपुंसकता, सिर चकराना आदि से संबंधित विकारों का संकेत देती है। *बृहस्पति* गुरु लीवर, गुर्दे, मस्तिष्क, तिल्ली आदि का कारक है। कमजोर बृहस्पति कान, मधुमेह, अग्न्याशय, याद्दाशत आदि से संबंधित बीमारियों का कारण बनता है। *शुक्र* शुक्र वात और कफ को नियंत्रित करता है। यह पाचन तंत्र, किडनी, प्रजनन प्रणाली, यौन अंग, त्वचा, गले आदि को नियंत्रित करता है। कमजोर शुक्र मूत्र मार्ग, एनीमिया, मूत्राशय, मोतियाबिंद, नपुंसकता आदि से संबंधित रोगों और व्याधियों का कारण बनता है। *शनि* शनि वात (गैस), त्वचा, नसों, हड्डियों और कंकाल को नियंत्रित करता है। शनि के प्रभाव से शारीरिक कमजोरी, पेट दर्द, अंधापन, बहरापन आदि होता है। *राहु* राहु पैर, गर्दन, फेफड़े, श्वास आदि यह वात और कफ को नियंत्रित करता है। प्रभावित राहु के कारण मोतियाबिंद, अल्सर, सांस लेने की समस्या, हकलाना, तिल्ली की समस्या आदि हो जाते हैं। *केतु* केतु पेट और पंजों को नियंत्रित करता है। कमजोर और दुर्बल केतु कान की समस्याओं, आंखों के रोग, पेट दर्द, शारीरिक कमजोरी व अन्य परेशानियों का कारण बनता है॥ 🙏अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान 🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 *ग्रह और शरीर के अंग* चिकित्सा ज्योतिष के अनुसार, ज्योतिष के नौ