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MoHiTRoCk F44

#naginshayari #MohitRockF44 🐍🐍🐍🐍🐍🐍🐍 अजी शोला तो क्या चिंगारी में भी ढल ना पायेगी अगर गीली हो लकड़ी तो यकीनन जल ना पायेगी बहुत इतराती है तू

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BROKENBOY

#Thinking ज़िंदगी से यही गिला है मुझे, तू बहुत देर से मिला है मुझे, तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल, हार जाने का हौसला है मुझे, दिल धड़कता नह

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White ज़िंदगी से यही गिला है मुझे,
तू बहुत देर से मिला है मुझे,

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल,
हार जाने का हौसला है मुझे,

दिल धड़कता नहीं टपकता है,
कल जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे,

हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं,
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे,

कोहकन हो कि क़ैस हो कि 'फ़राज़',
सब में इक शख़्स ही मिला है मुझे !!

©BROKENBOY #Thinking 
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे,
तू बहुत देर से मिला है मुझे,

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल,
हार जाने का हौसला है मुझे,

दिल धड़कता नह

Irfan Saeed

जब मां जिंदा थी तो हमेशा ख्याल रखती थीं आज वो नही है तो कोई भी हाल नही पूछता जरा सी चोट लगती थी दबाने सर को लगती थी मां के बिन गिर पड़ता हू #Shayari

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Pankaj Bindas

कभी तू सौं खवोंदी छै, गढ़वाली मुक्तक विधाता छंद {Pankaj Bindas} वक्त सबसे बड़ू हूंद, वक्त ही हूंद जू कबारी इंसान तैं हसोंदु अर अगला ही पल रु #SAD #kavita #कविता #Nozoto #uttrakhand #Majboori #viral #poatry #Trading #garhwali

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ #कविता

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White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभ

N S Yadav GoldMine

#love_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} जो बधजीव भगवान श्री कृष्ण जी का मन से चिंतन नही करता, और यदि किस्मत से अवसर मिलता भी है, तो वह कीमत #मोटिवेशनल

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