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Santosh 'Raman' Pathak
White लोग कहेंगे क्या सोचेंगे पड़े रहे इस फेरे में रोशनी रोशनी खेल रहे थे डूबे रहे अँधेरे में खून के रिश्ते मधुर तिक्त से आगे विष में माते हैं सब संयुक्त विभक्त हुए एकल परिवार बनाते हैं बचपन और बुढापा दोनों पलने लगे अकेले में.... रोशनी रोशनी खेल रहे थे...... भौतिकता हावी है यूँ चहुँ ओर चमाचम ऊपर है अंध अनुकरण मगन है फिर भी नींद शान्ति की दूभर है भरी घुटन सब भीतर है....… चोर सिपाही बने हुए सब अपने अपने घेरे में.... रोशनी रोशनी खेल रहे थे...... जिस दिन अपनी जड़ को हमने दकियानूसी माना था उसने था बहकाया हमको जिसका नहीं ठिकाना था सेवा धर्म बहाना था.... गेंहुवन से फुँफकार छीन ले... दम ही नहीं सँपेरे में रोशनी रोशनी खेल रहे थे..... उलझन सुलझाने वाले ही उलझे तेरे मे ©Santosh 'Raman' Pathak #रोशनी #अँधेरे
Ankush Sharma
अंधेरों के सायों में उम्मीद की इक किरण चमकती है करके बुलंद हौसलों को हम रास्तों को दोस्त बनाते है साये से भी डरते है हम ,उसी डर से लड़ते है खुद को पाकर ही जिंदगी के हर लड़ाई लड़ते है हम सच कहूं तो "अंकुश" हां साये से भी डरते है हम। ©Ankush Sharma #hunnarbaaz #अनजान #शायरी
Ramnik
Black तू शमा है हमारी चिरागे जिंदगी का। अपने लिए ना सही, हमारे लिए खुद का ख्याल रखना। ©Ramnik #रोशनी
Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
White "रोशनी" अंधकार तो बहुत है,इस जिंदगी में फिर भी रोशनी ढूंढ रहे,इस जिंदगी में अगर भीतर दीप जी रहा हो,बेबसी में बाह्य रोशनी का क्या फायदा जिंदगी में यदि भीतर चराग जिंदा खुद की खुदी में फिर जुगनू रोशनी बहुत गम की घड़ी में जिसने भीतर जोत जलाई,घनी निशी में वो बना फिर ध्रुव तारा,फ़लक जमीं पे जो आखिर तक लड़ा,अमावस निशी से उसने फैलाई रोशनी,पूनम चंद्र चांदनी से आओ लड़े,अपनी अंधेरे जैसी कमी से फिर कैसे न होंगे,रोशन,अपनी खुदी से जो लड़ा मृत्यु जैसे विचार खुदखुशी से उसने ढूंढी खुशी सी रोशनी,आत्म वर्तनी से दिल से विजय विजय कुमार पाराशर-"साखी" ©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" #कविता रोशनी
M@nsi Bisht
अनजान बनकर कर भी क्या लोगे। असल में तुम वाकिफ हो हमसे।। ©M@nsi Bisht #अनजान
M@nsi Bisht
तुम ख्वाहिश में मुलाकात कर गए। हर मुलाकात में तनहा कर गए। सोच कर रह गए हम । की तुम क्यूं अब अनजान बन गए।। ©M@nsi Bisht #अनजान
Nikhil nitin (Raja)
वो जो कल तक कहते थे तुम जान हो मेरी देखो कैसे आज वो अनजान बैठे हैं..!!🖤 ©Nikhil nitin (Raja) #अनजान🖤
।।दिल की कलम से।।
रोशनी अक्सर झरोखों से देखती है, मेरी तंहाईयां मुझको समेटती है। रोशनी से अब दूरियां बहुत रहती है, मेरी तंहाईयां मुझे लपेटे रहती है। अंधेरों से रिश्ता अब बंध सा गया है, अपनों ने रिश्तों मे जब से तंहा किया है। रोशनी अब मुझे सुहाती कहाँ है, सहारा अंधेरों का जबसे हासिल हुआ है। ©।।दिल की कलम से।। रोशनी