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Sumit Rai
White cggcgxgxgxxgcgcgchcg ©Sumit Rai #sad_shayari बारिश पर कविता Entrance examination Hitesa Hinduism Eid al-Adha
#sad_shayari बारिश पर कविता Entrance examination Hitesa Hinduism Eid al-Adha
read moreश्यामजी शयमजी
White कुत्ते का पिल्ला बैठा नीम की शाम में आज बारिश होगी आपकी भी गांव में ©श्यामजी शयमजी #cg_forest कविता कविता
#cg_forest कविता कविता
read moreRan Singh Guru
White मेरी मुसीबतों ने भी कमाल कर दिखाया, मुझें परेशान तो किया, बहुत चहरों से नक़ाब हटाया, मुझें मिटाने कि हसरत में, मुसीबतों ने बहुत से लोगों का वज़ूद तक मिटा डाला... ©Ran Singh Guru #car #मुसीबत # वजूद
Deependra Dubey
White बस कुछ ऐसा कर जाऊं की, इस दुनियां में अपनी वजूद छोड़ जाऊं। कुछ लोगो में ही सही, थोड़ा मोहब्बत छोड़ जाऊं। अपनो से अपनो तक, अपनी याद छोड़ जाऊं। ©Deependra Dubey #वजूद
Sapna Meena
White अबकी बार 400 पार या फिर गठबंधन सरकार। मोदी का उतरे का मुखौटा या फिर पहनेगा जीत का हार। केजरीवाली या कन्हैया या मनोज तिवारी होगा यमुना पार। कांग्रेस और आम आदमी के लड़ गए नैना बीजेपी रह गई बिन प्यार। अबकी बार 400 पार,या फिर गठबंधन सरकार। ©Sapna Meena #car चुनाव 2024 पर कविता
Satish Kumar Meena
मैं तुम्हें ढूंढता हूं तो, प्यार में जिंदादिल हो जाता हूं। तुम मुझे ढूंढती हो तो,, मैं सच में अपना वजूद पाता हूं।। ©Satish Kumar Meena वजूद
वजूद #कोट्स
read moreManish Raaj
वजूद ------ ज़रें-ज़रें में ज़िंदगी समाई है फिर क्यों ये तन्हाई जितनी, समंदर में गहराई है वाक़िफ़ हैं हक़ीक़त से मगर फिर भी ज़िंदगी, आज़माई है आज़माए इतने गए की अब भरोसे पर ही, शक़ घिर आई है ख़ामोशी एक जवाब और सवाल भी है, कितनों को समझ आई है नज़र, नज़ारे देखती है क्या ख़ुद की नज़र को देख पाई है पैसों के लिए अश्क़, पसीने और खून मगर खून के लिए जान किसने गंवाई है इंसान की हवस ऐसी की हैवानियत और मौत भी शर्माई है मौके की तलाश में रहनेवालों की नीयत साफ़ नज़र आई है जज़्बात, अलफ़ाज़ और शर्म-ओ-लिहाज़ नहीं फिर क्यों, आँख भर आई है आसमानी परिंदों ने अपनी जड़ ज़मीं पर ही बनाई है पौधों को पानी से सीचे और दूसरी तरफ कटे जड़ समझो अब, उसकी जान पर बन आई है मनीष राज ©Manish Raaj #वजूद
Rashmi Vats
हर दर्द को अपना है बना लेतीं । हम स्त्रियां तकलीफ में भी हैं मुस्कुरा लेतीं। खुद रहती हैं बिखरी हुई, पर अपना आशियाना है बखूबी सजा लेतीं। एक आस लिए जीवन है जीती। खुश रखना है सभी को यही है चाहतीं। और कोई चाहत नही है उनकी, बस रिश्तों को सहेजना है जानती। अपनी ख्वाइशों को करती है दफ़न। निभाती हैं मान सम्मान और चलन। इन सबके बावजूद भी जब नही मिलता प्रेम, तो दो आसूं बहा गुजार देती हैं सारा जीवन। हर दर्द को अपना...। रश्मि वत्स । ©Rashmi Vats #स्त्री #प्रेम #वजूद #समर्पण
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
कविता #शायरी
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