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Anuj thakur "बेख़बर"
Alone मोहब्बतों से जो भरे थे वो दिल खाली हो गए! खुद निरुत्तर हूँ अब, जब लफ़्ज सवाली हो गए!! तुमने तोड़ी प्यार की कसमें कई रस्मे कई...! कुछ न बोले फिर भी देखो हम बवाली हो गए!! बेख़बर बवाली
Anuj thakur "बेख़बर"
घूमता था बोझ लेकर आज खाली हो गया! आ गईं खुशियां तो मौसम भी खुशहाली हो गया!! झूठ सुनकर लोग कहते बात बिल्कुल सत्य है! सत्य लिखकर बेखबर देखो बवाली हो गया!!😷 बेखबर बवाली
Author Harsh Ranjan
उम्र, एक युद्ध-भूमि बन गयी है, जहाँ जिंदगी से मेरी स्व का युद्ध चल रहा है! कोई राज-पाट नहीं, हाथी-घोड़े नहीं, स्त्रियाँ या रत्न नहीं जीतने को! जिंदगी की परिपाटी है कि वो लोगों को मार देती है और मेरी जिद है कि मैं उससे जीतूँ! हम हारेंगे तो एक एक-दूसरे को दलेंगे बस इसी लिए इस भांति हम लड़ेंगे! ये थाली में सजी रोटी, ये नयी पीताम्बरी धोती, छापेखाने से निकलते जिल्द, ये पुस्तकों की प्रस्तावना, ये संतुष्टि देते उनके समर्पण, ये प्रोग्रामों के कोड, उनके वर्जन, उनकी बिल्ड! ये कोई उपलब्धि हों किसी नजर में, पर ये किसी के दिल की चाहत नहीं है! चाहत रात में तकिए के नीचे सोती है! नींद उसे चूमते हुए खुलती है! Cont बवाली 1
Author Harsh Ranjan
उम्र, एक युद्ध-भूमि बन गयी है, जहाँ जिंदगी से मेरी स्व का युद्ध चल रहा है! कोई राज-पाट नहीं, हाथी-घोड़े नहीं, स्त्रियाँ या रत्न नहीं जीतने को! जिंदगी की परिपाटी है कि वो लोगों को मार देती है और मेरी जिद है कि मैं उससे जीतूँ! हम हारेंगे तो एक एक-दूसरे को दलेंगे बस इसी लिए इस भांति हम लड़ेंगे! ये थाली में सजी रोटी, ये नयी पीताम्बरी धोती, छापेखाने से निकलते जिल्द, ये पुस्तकों की प्रस्तावना, ये संतुष्टि देते उनके समर्पण, ये प्रोग्रामों के कोड, उनके वर्जन, उनकी बिल्ड! ये कोई उपलब्धि हों किसी नजर में, पर ये किसी के दिल की चाहत नहीं है! चाहत रात में तकिए के नीचे सोती है! नींद उसे चूमते हुए खुलती है! Cont बवाली 1
Author Harsh Ranjan
उपलब्धि आपके दरवाजे पे सजी होती है! वो आपसे पहले आगंतुकों से मिलती है! दशरथ मांझी ने पहाड़ तोड़कर कोठी में पत्थर नहीं सजाए थे! उन्होंने सिर्फ छेनी-हथौड़ी रखी। नाम भी नहीं लिखा कटे पहाड़ पर नेताओं, प्रशासकों, कार्यपालकों सा। उन्हें पता था कि लोग छेनी-हथौड़ी से पत्थर तोड़ते हैं, जब पहाड़ काटने की बात आएगी, ठेकेदारी मशीन बुलाएगी वरना खर्च कम करने जनता-जनार्दन दशरथ मांझी को ही बुलाएगी! जो सबसे हारता है वो अजेय होने के अर्थ से खेलता है, जिसे चाहतें न मिलें, वो हर दूसरी तम्मन्ना पेलता है! ये छोटे-छोटे चुहल-मजाक वो लोग खूब किया करते हैं, जिनके पास हँसी-विनोद के बहाने कम हुआ करते हैं। निष्प्राण शरीर पे प्रयोग कितने अधिक उपयोगी होते हैं, ये बात खूब बताते हैं वो जो लोग राजरोग के रोगी होते हैं। End बवाली 2
Author Harsh Ranjan
उपलब्धि आपके दरवाजे पे सजी होती है! वो आपसे पहले आगंतुकों से मिलती है! दशरथ मांझी ने पहाड़ तोड़कर कोठी में पत्थर नहीं सजाए थे! उन्होंने सिर्फ छेनी-हथौड़ी रखी। नाम भी नहीं लिखा कटे पहाड़ पर नेताओं, प्रशासकों, कार्यपालकों सा। उन्हें पता था कि लोग छेनी-हथौड़ी से पत्थर तोड़ते हैं, जब पहाड़ काटने की बात आएगी, ठेकेदारी मशीन बुलाएगी वरना खर्च कम करने जनता-जनार्दन दशरथ मांझी को ही बुलाएगी! जो सबसे हारता है वो अजेय होने के अर्थ से खेलता है, जिसे चाहतें न मिलें, वो हर दूसरी तम्मन्ना पेलता है! ये छोटे-छोटे चुहल-मजाक वो लोग खूब किया करते हैं, जिनके पास हँसी-विनोद के बहाने कम हुआ करते हैं। निष्प्राण शरीर पे प्रयोग कितने अधिक उपयोगी होते हैं, ये बात खूब बताते हैं वो जो लोग राजरोग के रोगी होते हैं। End बवाली 2