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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

बाल-गीत :- प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी , प्यार बहुत ही करती हैं । नये-नये कपड़े पहनाकर , राजा बाबू कहती हैं ।। प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी ... #कविता

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White बाल-गीत :-

प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी , प्यार बहुत ही करती हैं ।
नये-नये कपड़े पहनाकर , राजा बाबू कहती हैं ।।
प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी ...

नई-नई पुस्तक मँगवा कर , थैले में रख देती हैं ।
कहती करना खूब पढ़ाई , काम न करने देती हैं ।।
अम्मा की वह अच्छी बातें, मुझको बहुत लुभाती हैं ।
प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी....

नये न होते जूते चप्पल , नये न होते हैं कपड़े ।
पर अम्मा का प्यार नया यह , हमको रहता है जकड़े ।।
छुट्टी से पहले ही अम्मा , थाल सजाये रहती हैं ।।
प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी ....

कल अम्मा से हमने बोला , साथ सदा मुझको रखना ।
जीवन की सारी खुशियाँ , लाकर रख दूँगा अँगना ।।
तो अम्मा मुस्का कर सिर पर , हाथ फेरने लगती हैं ।
प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी ....

थक जाता हूँ जब मैं पढ़कर , कहती अम्मा फिर खेलो ।
देखो इधर-उधर कुछ कोने , तुम समझ खिलौना ले लो ।।
ऐसी मेरी प्यारी अम्मा, संग-संग जो रहती है ।
प्यारी प्यारी अम्मा मेरी ..

प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी , प्यार बहुत ही करती हैं ।
नये-नये कपड़े पहनाकर , राजा बाबू कहती हैं ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बाल-गीत :-


प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी , प्यार बहुत ही करती हैं ।

नये-नये कपड़े पहनाकर , राजा बाबू कहती हैं ।।

प्यारी-प्यारी अम्मा मेरी ...

Rimpi chaube

#खोदेनाकैसाहोताहै गहराई से चाहकर किसी को, छोड़ देना कैसा होता है? जीवन की बगिया से टूटा, वो पुष्प के जैसा होता है।। ख्वाब बुनकर स्वपन सजाकर, #Poetry

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White 
गहराई से चाहकर किसी को,
छोड़ देना कैसा होता है?
जीवन की बगिया से टूटा,
वो पुष्प के जैसा होता है।।
ख्वाब बुनकर स्वपन सजाकर,
सो देना कैसा होता है?
बिना लक्ष्य के अर्थहीन–सा,
जीवन के जैसा होता है।।
किसी को पाकर अपना बनाकर,
खो देना कैसा होता है?
मुट्ठी मे स्वपन–सी सिमटी हुई,
वो रेत के जैसा होता है।।

©Rimpi chaube #खोदेनाकैसाहोताहै
गहराई से चाहकर किसी को,
छोड़ देना कैसा होता है?
जीवन की बगिया से टूटा,
वो पुष्प के जैसा होता है।।
ख्वाब बुनकर स्वपन सजाकर,

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग #शायरी

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ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।।
दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई ।
मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।।
गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था ।
पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।।
खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए ।
मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।।
कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले ।
निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।।
हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे ।
देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।।
कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये ।
आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।।
जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर ।
जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग
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