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Peeyush Bhargava

कविता गीत

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Pawan k verma

#कविता गीत #पवन

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।।नशा छोडिये।।


नशा छोड़िये , नशा छोड़िये , नशा छोडिये,
जीने की तरफ, रुख मोड़िये , रुख मोड़िये ।

किसका हुआ भला यहां,नशे ने किसकी जान बचाई है।
चरस गांजा अफीम से हुआ कौन कब किसका भाई है ?
हमने दुश्मन ही बनते देखे  ,नशे में बिखरते रिश्ते देखे ,
इन बिखरे रिश्तो की लाज बचाने को तो नशा छोड़िये ,
नशा छोडिये, नशा छोड़िये,
जीने की तरफ रुख मोड़िये , रुख मोड़िये ।

मां-बाप आस लगाए बैठै हैं कि बेटा  घर लौट आयेगा ,
वो नशे में हो धुत तो मां-बाप पर क्या क्या बीत जायेगा ?
हमने टूटते देखे मां बाप, इन आंखो में बुनते सपने देखे ,
इन सपनो को हकीकत बनाने को तो नशा छोड़िये,
नशा छोड़िये नशा छोड़ियें,
जीने की तरफ रुख मोड़ियें , रुख मोड़ियें ।

नन्हे बच्चो की आंखो में तुमको सुपर मैन होते देखा है,
इतंजार भरी आंखो में पत्नी को क्या कभी तुमने देखा है?
हमने वो सब अरमां देखें, परिवार में तुम खुदा होते देखे,
इस खुदाई में घर की खुशियां लाने को तो नशा छोड़िये,
नशा छोड़िये, नशा छोड़िये,
जीने की तरफ रुख मोड़िये, रुख मोड़िये।

इंजै्क्शन चिट्टा लेने वालो तुमको मौत बुरी तरह तड़पायेगी ,
ये नशे की आदत कब  तक जुर्म की दुनियां से  बचायेगी ?
हमने जब भी देखे पांव तुम्हारे, हवालात या शमशान में देखे ,
शमशान व मौत के इस चंगुल से बचने को तो नशा छोड़िये,

नशा छोड़िये, नशा छोड़िये ।
हाथ जोड़कर विनती है नशा छोड़िये ।


#पवन कुमार वर्मा । #कविता गीत

RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'

तुम्हारे_बाद_मैं कविता गीत

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RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'

खेत_बेंचकर_पल्सर_ले_ली कविता गीत

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RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'

दौड़_रहे_हैं कविता गीत

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RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'

ढेर_सारा_प्यार_देना कविता गीत

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मेरे स्वप्नों के निलय को, तुम नया आकार देना। 
प्रेम के प्यासे ह्रदय को, ढेर सारा प्यार देना।।

मन के' कोमल से पटल पर, चित्र कुछ अंकित किये हैं। 
थे अचेतन किन्तु तुमने, प्राण उनको दे दिये हैं। 
हर सहज संकल्पना को, भावना साकार देना।।

दुःख के मौसम जब दिखे, तब-तब तुम्हें दिल ने पुकारा।
सुख के' नन्दन वन में फैला, है प्रिये चन्दन तुम्हारा।
वक़्त के दोनों सिरों को, जन्मों तक आधार देना।।

प्रेरणा के स्वर सुकोमल, बन मेरे मानस में आओ। 
मैं तुम्हें जब भी पुकारूँ, तुम मेरे अन्तस में आओ। 
गीत बन इस साधना की, चेतना को धार देना।।

जब से तुम आये तो गीतों ने नये शृंगार छेड़े। 
ले हिलोरें मन सरित ने फिर नये उद्गार छेड़े। 
सर्जना को पंख देकर, नव सृजित संसार देना।।

है सवेरा भी अचम्भित, देख मुख की ताजगी को। 
छंद के शैशव चकित हैं, देख कर इस सादगी को। 
तुम यों' ही शृंगार सरिता, को सतत विस्तार देना।।

©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #ढेर_सारा_प्यार_देना #कविता #गीत
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