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Mahesh Patel
White सहेली.... ज्ञानी होने से शब्द समझ आने लगते हैं.. अनुभवी होने से अर्थ... लाला..... ©Mahesh Patel सहेली.....अर्थ... लला....
सहेली.....अर्थ... लला.... #Shayari
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी सियासतों की है आज अग्नि परीक्षा कौन सत्ता का ताज पहनेगा दमोददार चुनाव आयोग पर भी है जनता के भरोसे पर खरा उतरेगा एक एक वोट लोकतंत्र की बेहतरी के लिये है पिछलगु सत्ता का नही बनेगा चीर कर अंधेरा लोकतंत्र का प्रहरी बनेगा हार जीत प्रत्याशी की होगी लेकिन हमारा लोकतंत्र फूल सा खिलेगा इसी भरोसे से भारत विश्वगुरु बनेगा प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #election_results कौन सत्ता का ताज पहनेगा #nojotohindi
#election_results कौन सत्ता का ताज पहनेगा #nojotohindi #कविता
read moreGanesh joshi
White अन्तो नास्ति पिपासायाः । अर्थ : तृष्णा का अन्त नहीं है । ©Ganesh joshi #shayari अन्तो नास्ति पिपासायाः । अर्थ : तृष्णा का अन्त नहीं है । #story #status #motivatation #Gym
shayari अन्तो नास्ति पिपासायाः । अर्थ : तृष्णा का अन्त नहीं है । #story #status #motivatation #Gym #Motivational
read moreMohan raj
White प्रज्ञायाः अर्थः ज्ञानस्य अर्थः - आत्मानं दृढं साहसं च कर्तुं। बुद्धि अर्थात ज्ञान का अर्थ है - अपने आप को मजबूत और साहसी बनाना। Wisdom means knowledge means - to make oneself strong and courageous. Dhnyvaad Har Har Mahadev ©Mohan raj #Buddha_purnima बुद्धि अर्थात ज्ञान का अर्थ है - अपने आप को मजबूत और साहसी बनाना।
#Buddha_purnima बुद्धि अर्थात ज्ञान का अर्थ है - अपने आप को मजबूत और साहसी बनाना। #Life
read moreBharat Bhushan pathak
White ओढ़े हिम की श्वेत दुशाला। मोहे गिरि जो नाम हिमाला।। मानें जिसको ताज हिन्द का। रक्षा करता लोक वृंद का ।। ©Bharat Bhushan pathak #Emotional#himalaya#nature ओढ़े हिम की श्वेत दुशाला। मोहे गिरि वो नाम हिमाला।। मानें जिसको ताज हिन्द का। रक्षा करता लोक वृंद का ।।
#Emotional#himalaya#Nature ओढ़े हिम की श्वेत दुशाला। मोहे गिरि वो नाम हिमाला।। मानें जिसको ताज हिन्द का। रक्षा करता लोक वृंद का ।। #Poetry
read moreShiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
कविता #शायरी
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