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Hina Kumari my Instagram ID @Rakesh radhika sarda
White जय श्री कृष्ण जी जय श्री श्याम जी भर दे रे श्याम झोली भर दे हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा मेरी पहचान खाटू वाला श्याम जीसाँसों की डोर तेरे हाथों में तेरे हाथ में दिल की धड़कन मतवाले साँवरे तेरे चरणों में बीते सारा मेरा जीवन 🙏।।जय like comment share Facebook श्री श्याम।।🙏 ©Hina Kumari my Instagram ID @Rakesh radhika sarda #SunSet जय श्री कृष्ण *हर कोई चन्दन नहीं,* *कि 'सुगन्धित' कर सके;* *कुछ नीम के पेड़ भी हैं,* *जो सुगन्धित तो नहीं करते* *पर काम बहुत आते हैं
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- देख-देख लुट गये , फिर हम मिट गये , भोली-भाली सजनी के , सुन लो शृंगार में । याद नहीं नूँन तेल , रहा सब कुछ झेल , माँगे क्रीम पाऊडर , वह उपहार में । डाल गले बाँह हार , करे खूब मनुहार , कहे ऐसी प्रीत पिया , मिलें न बाजार में । करें मीठी-मीठी बातें , कहे क्यूँ है छोटी रातें , लगता है काम टेढ़ा , आया है विचार में ।। -१ पूछ मत बात कुछ , याद मुझे सब कुछ , ऐसा उसने जलवा , दिखाया दीदार में । नशा ऐसा चढ़ रहा , पिये बिन झूम रहा , जिसका उतार बस , है उसके प्यार में । सुन उसकी पायल , ये दिल होता घायल , सुन लगे मीठी बोली , अब तकरार में । वह जो पसंद करे , मन में आनंद भरे , दिल का दे दूँ तोहफा , फिर इजहार में ।। ०२/११/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- देख-देख लुट गये , फिर हम मिट गये , भोली-भाली सजनी के , सुन लो शृंगार में । याद नहीं नूँन तेल , रहा सब कुछ झेल , माँगे क्
N S Yadav GoldMine
पाण्डवों को शाप देने के लिये उद्यत इुई गान्धारी को व्यासजी का समझाना पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व चतुर्दश अध्याय: श्लोक 1-21 {Bolo Ji Radhey Radhey} पाण्डवों को शाप देने के लिये उद्यत इुई गान्धारी को व्यासजी का समझाना :- 🙏 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायनजी कहते हैं – राजन् तदनन्तर धृतराष्ट्र की आज्ञा लेकर वे कुरुवंशी पांडव सभी भाई भगवान् श्रीकृष्ण के साथ गान्धारी के पास गये। पुत्र शोक से पीडित हुई गान्धारी को जब यह मालूम हुआ कि युधिष्ठिर अपने शत्रुओं का संहार करके मेरे पास आये हैं, तब उनकी सती-साध्वी देवीने उन्हें शाप देने की इच्छा की। 🙏 पाण्डवों के प्रति गान्धारी के मन में पापापूर्ण संकल्प है, इस बात को सत्यवती नन्दन महर्षि व्यास पहले ही जान गये थे। उनके उस अभिप्राय को जानकर वे मनके समान वेगशाली महर्षि गड्गाजी के पवित्र एवं सुगन्धित जल से आचमन करके शीघ्र ही उस स्थान पर आ पहुँचे। वे दिव्य दृष्टि से तथा अपने मनको समस्त प्राणियों के साथ एकाग्र करके उनके आन्तरिक भाव को समझ लेते थे। 🙏 अत: हित की बात बताने वाले वे महातपस्वी व्यास समय-समय पर अपनी पुत्रवधू के पास जा पहुँचे और शाप का अवसर उपस्थित करते हुए इस प्रकार बोले- गान्धर राजकुमारी ! शान्त हो जाओ। तुम्हें पाण्डुपुत्र युघिष्ठिर पर क्रोध नहीं करना चाहिये। अभी-अभी जो बात मुँह से निकालना चाहती हो, उसे रोक लो और मेरी यह बात सुनो। 🙏 गत अठारह दिनों में विजय की अभिलाषा रखनेवाला तुम्हारा पुत्र प्रतिदिन तुमसे जाकर कहता था कि मॉं ! मैं शत्रुओं के साथ युद्ध करने जा रहा हूँ। तुम मेरे कल्याण के लिये आशीर्वाद दो। इस प्रकार जब विजयाभिलाषी दुर्योधन समय-समय पर तुमसे प्रार्थना करता था, तब तुम सदा यही उत्तर देती थीं कि जहॉं धर्म है, वहीं विजय है। 🙏 गान्धारी !तुमने बातचीत के प्रसडग में भी पहले कभी झूठ कहा हो, ऐसा मुझे स्मरण नहीं है, तथा तुम सदा प्राणियों के हित में तत्पर रहती आयी हो। राजाओं के इस घोर संग्रामसे पार होकर पाण्डवों ने जो युद्ध में विजय पायी है, इससे नि:संदेह यह बात सिद्ध हो गयी कि धर्म का बल सबसे अधिक है। धर्मज्ञे ! तुम तो पहले बड़ी क्षमाशील थी। 🙏 अब क्यों नहीं क्षमा करती हो ? अधर्म छोड़ो, क्योंकि जहॉं धर्म है, वहीं विजय है।मनस्विनी गान्धारी ! अपने धर्म तथा की हुई बात का स्मरण करके क्रोध को रोको। सत्यवादिनि ! अब फिर तुम्हारा ऐसा बर्ताव नहीं होना चाहिये। गान्धार्युवाच गान्धारी बोली- भगवन् ! मैं पाण्डवों के प्रति कोई दुर्भाव नहीं रखती और न इनका विनाश ही चाहती हूँ; परंतु क्या करूँ ? 🙏 पुत्रों के शोक से मेरा मन हठात् व्याकुल-सा हो जाता है। कुन्ती के ये बेटे जिस प्रकार द्वारा रक्षणीय हैं, उसी प्रकार मुझे भी इनकी रक्षा करनी चाहिये। जैसे आप इनकी रक्षा चाहते हैं, उसी प्रकार महाराज धृतराष्ट्र का भी कर्तव्य है कि इनकी रक्षा करें। कुरुकुल का कुन्तीके यह संहार तो दुर्योधन, मेरे भाई शकुनि, कर्ण तथा दु:शासन के अपराध से ही हुआ है। 🙏 इसमें न तो अर्जुन का अपराध है, और न कुन्तीपुत्र भीमसेन का। नकुल-सहदेव और युघिष्ठिर को भी कभी इसके लिये दोष नहीं दिया जा सकता। कौरव आपस में ही जूझकर मारकाट मचाते हुए अपने दूसरे साथियों के साथ मारे गये हैं; अत: इसमें मुझे अप्रिय लगने वाली कोई बात नहीं है। 🙏 परंतु महामना भीमसेन ने गदायुद्ध के लिये दुर्योधन को बुलाकर श्रीकृष्ण के देखते-देखते उसके प्रति जो बर्ताव किया है, वह मुझे अच्छा नहीं लगा। वह रणभूमिमें अनेक प्रकार-के पैंतरे दिखाता हुआ विचर रहा था; अत: शिक्षा में उसे अपनेसे अधिक जान भीमने जो उसकी नाभि से नीचे प्रहार किया, इनके इसी बर्ताव ने मेरे क्रोध को बढ़ा दिया है। 🙏 धर्मज्ञ महात्माओं ने गदायुद्ध के लिये जिस धर्म का प्रतिपादन किया है, उसे शूरवीर योद्धा रणभूमि में किसी तरह अपने प्राण बचाने के लिये कैसे त्याग सकते हैं ? 🙏 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्री पर्व के अन्तर्गत जलप्रदानिकपर्वमें गान्धारीकी सान्तवनाविषयक चौदहवॉं अध्याय पूरा हुआ। Rao Sahab N S Yadav... ©N S Yadav GoldMine #Love पाण्डवों को शाप देने के लिये उद्यत इुई गान्धारी को व्यासजी का समझाना पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री प
Nëélåm Råñï
सुगन्धित इत्र और औरैया जिला से मित्र, बड़े किस्मत वालों को ही मिलते हैं। ©Nëélåm Råñï #Aurora #City #सुगन्धित #इत्र #औरैया #जिला से #मित्र, #किस्मत #Hindi #nojota Anupriya Jagsir Singh Sunil Bamnake Bhardwaj Only Budana Ayu
N S Yadav GoldMine
युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 19-16 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था, उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के प्रसंग से मुझे एक महात्मा का इस रूप में अनुग्रह प्राप्त हुआ। तीर्थ यात्रा के समय देवर्षि लोमष का दर्षन हुआ था। उन्हीं से मैंने यह अनुस्मृति विद्या प्राप्त की थी। इसके सिवा पूर्व काल में ज्ञान योग के प्रभाव से मुझे दिव्य दृष्टि भी प्राप्त हो गयी थी। धृतराष्ट्र ने पूछा- भारत। यहां जो अनाथ और सनाथ युद्धा मरे पड़े हैं, क्या तुम उनके शरीरों का विधि पूर्वक दाह संस्कार करा दोगे। 📜 जिनका कोई संस्कार करने वाला नहीं है तथा जो अग्निहोत्री नहीं रहे हैं, उनका भी प्रेत कर्म तो करना ही होगा, तात । यहां तो बहुतों के अंतेष्टि कर्म करने हैं, हम किस-किस का करें। युधिष्ठिर। जिनकी लाशों का गरूड़ और गीध इधर-उधर घसीट रहें हैं, उन्हें तो श्राद्व कर्म से ही शुभ लोक प्राप्त होंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज। राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने सुधर्मा, धौम्य, सारथी संजय, परम बुद्धिमान विदुर, कुरूवंषी युयुत्सू तथा इन्द्रसेन आदि सेवकों एवं सम्पूर्ण सूतों को यह आज्ञा दी कि आप सब लोग इन सबके प्रेत कार्य को सम्पन्न करावें। 📜 ऐसा न हो कि कोई भी लाष अनाथ के समान नष्ठ हो जाये। धर्मराज के आदेष से विदुरजी, सारथी संजय, सुधर्मा, धौम्य तथा इन्द्रसेन आदि ने चंदन और अगर की लकड़ी कालियक, घी, तेल, सुगन्धित पदार्थ ओर बहुमूल्य रेषमी वस्त्र आदि बस्तुऐं एकत्रित कीं, लकडि़यों का संग्रह किया, टूटे हुए रथों और नाना प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों को भी एकत्र कर लिया। फिर उन सबके द्वारा प्रयत्न पूर्वक कई चिताऐं बनाकर क्रम से सभी राजाओं का शास्त्रीय विधि के अनुसार उन्होंने शांत भाव से दाह संस्कार सम्पन्न कराया। 📜 राजा दुर्योधन, उनके निनयानवें माहरथी भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, राजा जयद्रथ, अभिमन्यु, दुषासन पुत्र, लक्ष्मण, राजा धृष्टकेतु, बृहन्त, सोमदत्त, सौसे भी अधिक संजय वीर, राजा क्षेमधन्वा, बिराट, द्रुपद, षिखण्डी, पान्चालदेषीय द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, कोसलराज बृहदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सुबल पुत्र शकुनि, अचल, बृषक, राजा भगदत्त, पुत्रों सहित अमर्षशील वैकर्तन कर्ण, महाधनुर्धर पांचों कैकय राजकुमार, महारथी त्रिगर्त, राक्षसराज घटोत्कच, बक के भाई राक्षस प्रवर अलम्बुस और राजा जलसंघ- इनका तथा अन्य बहुतेरे सहस्त्रों भूपालों का घी की धारा से प्रज्वलित हुई अग्नियों द्वारा उन लोगों ने दाह कर्म कराया। 📜 किन्ही महामनस्वी वीरों के लिये पितृमेघ (श्राद्वकर्म) आरम्भ कर दिये गये। कुछ लोगों ने वहां सामगान किया तथा कितने ही मनुष्यों ने वहां मरे हुए विभिन्न जनों के लिये महान् शोक प्रकट किया। सामवेदीय मंत्रों तथा ऋचाओं के घोष और स्त्रियों के रोने की आवाज से वहां रात में सभी प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। उस समय स्वल्प धूप युक्त प्रज्वलित जलाई जाती हुई चिता की अग्नियां आकाष में सूक्ष्म बादलों से ढके हुए ग्रहों के समान दिखाई देती थी। एन एस यादव।।। 📜 इसके बाद वहां अनेक देसो से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये उन सबकी लाशों को मंगवाकर उनके सहस्त्रों ढेर लगाये। फिर घी-तेल में भिगोई हुई बहुत सी लकडि़यों द्वारा स्थिर चित्त बाले लोगों से चिता बनाकर उन सबको विदुर जी ने राजा की आज्ञा के अनुसार दग्ध करवा दिया। इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर कुरूराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये। ©N S Yadav GoldMine #Sitaare युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्ल
N S Yadav GoldMine
पाण्डवों को शाप देने के लिये उद्यत इुई गान्धारी को व्यासजी का समझाना पढ़िए महाभारत !! 📒📒 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व चतुर्दश अध्याय: श्लोक 1-21 पाण्डवों को शाप देने के लिये उद्यत इुई गान्धारी को व्यासजी का समझाना :- 📔 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायन जी कहते हैं – राजन् तदनन्तर धृतराष्ट्र की आज्ञा लेकर वे कुरुवंशी पांडव सभी भाई भगवान् श्रीकृष्ण के साथ गान्धारी के पास गये। पुत्र शोक से पीडित हुई गान्धारी को जब यह मालूम हुआ कि युधिष्ठिर अपने शत्रुओं का संहार करके मेरे पास आये हैं, तब उनकी सती-साध्वी देवी ने उन्हें शाप देने की इच्छा की। 📔 पाण्डवों के प्रति गान्धारी के मन में पापा पूर्ण संकल्प है, इस बात को सत्यवतीनन्दन महर्षि व्यास पहले ही जान गये थे। उनके उस अभिप्राय को जानकर वे मनके समान वेगशाली महर्षि गड्गाजी के पवित्र एवं सुगन्धित जल से आचमन करके शीघ्र ही उस स्थान पर आ पहुँचे। वे दिव्य दृष्टि से तथा अपने मन को समस्त प्राणियों के साथ एकाग्र करके उनके आन्तरिक भाव को समझ लेते थे। 📔 अत: हितकी बात बताने वाले वे महातपस्वी व्यास समय-समय पर अपनी पुत्रवधू के पास जा पहुँचे और शाप का अवसर उपस्थित करते हुए इस प्रकार बोले- गान्धरराजकुमारी ! शान्त हो जाओ। तुम्हें पाण्डुपुत्र युघिष्ठिर पर क्रोध नहीं करना चाहिये। अभी-अभी जो बात मुँह से निकालना चाहती हो, उसे रोक लो और मेरी यह बात सुनो। 📔 गत अठारह दिनों में विजय की अभिलाषा रखने वाला तुम्हारा पुत्र प्रतिदिन तुमसे जाकर कहता था कि मॉं ! मैं शत्रुओं के साथ युद्ध करने जा रहा हूँ। तुम मेरे कल्याण के लिये आशीर्वाद दो। इस प्रकार जब विजयाभिलाषी दुर्योधन समय-समय पर तुमसे प्रार्थना करता था, तब तुम सदा यही उत्तर देती थीं कि जहॉं धर्म है, वहीं विजय है। 📔 गान्धारी! तुमने बातचीत के प्रसग में भी पहले कभी झूठ कहा हो, ऐसा मुझे स्मरण नहीं है, तथा तुम सदा प्राणियों के हित में तत्पर रहती आयी हो। राजाओं के इस घोर संग्राम से पार होकर पाण्डवों ने जो युद्ध में विजय पायी है, इससे नि:संदेह यह बात सिद्ध हो गयी कि धर्म का बल सबसे अधिक है। धर्मज्ञे ! तुम तो पहले बड़ी क्षमाशील थी। 📔 अब क्यों नहीं क्षमा करती हो ? अधर्म छोड़ो, क्योंकि जहॉं धर्म है, वहीं विजय है। मनस्विनी गान्धारी ! अपने धर्म तथा की हुई बातका स्मरण करके क्रोधको रोको। सत्यवादिनि ! अब फिर तुम्हारा ऐसा बर्ताव नहीं होना चाहिये। गान्धार्युवाच गान्धारी बोली- भगवन् ! मैं पाण्डवों के प्रति कोई दुर्भाव नहीं रखती और न इनका विनाश ही चाहती हूँ परंतु क्या करूँ ? 📔 पुत्रों के शोक से मेरा मन हठात् व्याकुल-सा हो जाता है। कुन्ती के ये बेटे जिस प्रकार कुन्ती के द्वारा रक्षणीय हैं, उसी प्रकार मुझे भी इनकी रक्षा करनी चाहिये। जैसे आप इनकी रक्षा चाहते हैं, उसी प्रकार महाराज धृतराष्ट्र का भी कर्तव्य है कि इनकी रक्षा करें। कुरु कुल का यह संहार तो दुर्योधन, मेरे भाई शकुनि, कर्ण तथा दु:शासन के अपराध से ही हुआ है। 📔 इसमें न तो अर्जुन का अपराध है और न कुन्तीपुत्र भीमसेन का। नकुल-सहदेव और युघिष्ठिर को भी कभी इसके लिये दोष नहीं दिया जा सकता। कौरव आपस में ही जूझकर मारकाट मचाते हुए अपने दूसरे साथियों के साथ मारे गये हैं; अत: इसमें मुझे अप्रिय लगने वाली कोई बात नहीं है। परंतु महामना भीमसेन ने गदायुद्ध के लिये दुर्योधन को बुलाकर श्रीकृष्ण के देखते-देखते उसके प्रति जो बर्ताव किया है। 📔 वह मुझे अच्छा नहीं लगा। वह रणभूमि में अनेक प्रकार-के पैंतरे दिखाता हुआ विचर रहा था; अत: शिक्षा में उसे अपनेबसे अधिक जान भीम ने जो उसकी नाभि से नीचे प्रहार किया, इनके इसी बर्ताव ने मेरे क्रोध को बढ़ा दिया है। धर्मज्ञ महात्माओं ने गदायुद्ध के लिये जिस धर्म का प्रतिपादन किया है, उसे शूरवीर योद्धा रणभूमि में किसी तरह अपने प्राण बचाने के लिये कैसे त्याग सकते हैं ? एन एस यादव, यदुवंशी।। 📔 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्री पर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिक पर्व में गान्धारी की सान्तवना विषयक चौदहवॉं अध्याय पूरा हुआ। ©N S Yadav GoldMine #JallianwalaBagh पाण्डवों को शाप देने के लिये उद्यत इुई गान्धारी को व्यासजी का समझाना पढ़िए महाभारत !! 📒📒 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत
N S Yadav GoldMine
इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 ( राव साहब एन एस यादव ) महाभारत: स्त्री पर्व :- षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 19-44 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 युधिष्ठिर बाले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था, उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के प्रसंग से मुझे एक महात्मा का इस रूप में अनुग्रह प्राप्त हुआ। तीर्थ यात्रा के समय देवर्षि लोमष का दर्षन हुआ था। उन्हीं से मैंने यह अनुस्मृति विद्या प्राप्त की थी। इसके सिवा पूर्व काल में ज्ञान योग के प्रभाव से मुझे दिव्य दृष्टि भी प्राप्त हो गयी थी। 📜 धृतराष्ट्र ने पूछा- भारत। यहां जो अनाथ और सनाथ युद्धा मरे पड़े हैं, क्या तुम उनके शरीरों का विधिपूर्वक दाह संस्कार करा दोगे। जिनका कोई संस्कार करने वाला नहीं है तथा जो अग्निहोत्री नहीं रहे हैं, उनका भी प्रेत कर्म तो करना ही होगा, तात। यहां तो बहुतों के अंतेष्टि कर्म करने हैं, हम किस-किस का करें। 📜 युधिष्ठिर। जिनकी लाशों का गरूड़ और गीध इधर-उधर घसीट रहें हैं, उन्हें तो श्राद्व कर्म से ही शुभ लोक प्राप्त होंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज। राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने सुधर्मा, धौम्य, सारथी संजय, परम बुद्धिमान विदुर, कुरूवंषी युयुत्सू तथा इन्द्रसेन आदि सेवकों एवं सम्पूर्ण सूतों को यह आज्ञा दी है कि आप लोग इन सबके प्रेत कार्य सम्पन्न करावें। 📜 ऐसा न हो कि कोई भी लाष अनाथ के समान नष्ठ हो जाये। धर्मराज के आदेष से विदुरजी, सारथी संजय, सुधर्मा, धौम्य तथा इन्द्रसेन आदि ने चंदन और अगर की लकड़ी कालियक, घी, तेल, सुगन्धित पदार्थ ओर बहुमूल्य रेषमी वस्त्र आदि बस्तुऐं एकत्रित कीं, लकडि़यों का संग्रह किया, टूटे हुए रथों और नाना प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों को भी एकत्र कर लिया। 📜 फिर उन सबके द्वारा प्रयत्न पूर्वक कई चिताऐं बनाकर जेठे, छोटे के क्रम से सभी राजाओं का शास्त्रीय विधि के अनुसार उन्होंने शांत भाव से दाह संस्कार सम्पन्न कराया।राजा दुर्योधन, उनके निनयानवें माहरथी भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, राजा जयद्रथ, अभिमन्यु, दुषासन पुत्र, लक्ष्मण, राजा धृष्टकेतु, बृहन्त, सोमदत्त, सौसे भी अधिक संजय वीर, राजा क्षेमधन्वा, बिराट, द्रुपद, षिखण्डी, 📜 पान्चालदेषीय द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, कोसलराज बृहदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सुबल पुत्र शकुनि, अचल, बृषक, राजा भगदत्त, पुत्रोंसहित अमर्षशील वैकर्तन कर्ण, महाधनुर्धर पांचों कैकयराजकुमार, महारथी त्रिगर्त, राक्षसराज घटोत्कच, बक के भाई राक्षस प्रवर अलम्बुस और राजा जलसंघ- इनका तथा अन्य बहुतेरे सहस्त्रों भूपालों का घी की धारा से प्रज्वलित हुई अग्नियों द्वारा उन लोगों ने दाह कर्म कराया। 📜 किन्ही महामनस्वी वीरों के लिये पितृमेघ (श्राद्वकर्म) आरम्भ कर दिये गये। कुछ लोगों ने वहां सामगान किया तथा कितने ही मनुष्यों ने वहां मरे हुए विभिन्न जनों के लिये महान् शोक प्रकट किया। सामवेदीय मंत्रों तथा ऋचाओं के घोष और स्त्रियों के रोने की आवाज से वहां रात में सभी प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। 📜 उस समय स्वल्प धूप युक्त प्रज्वलित जलाई जाती हुई चिता की अग्नियां आकाष में सूक्ष्म बादलों से ढके हुए ग्रहों के समान दिखाई देती थी। इसके बाद वहां अनेक देषों से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये उन सबकी लाशों को मंगवाकर उनके सहस्त्रों ढेर लगाये। 📜 फिर घी-तेल में भिगोई हुई बहुत सी लकडि़यों द्वारा स्थिर चित्त बाले लोगों से चिता बनाकर उन सबको विदुर जी ने राजा की आज्ञा के अनुसार दग्ध करवा दिया। इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर कुरूराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये। ©N S Yadav GoldMine #boat इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 ( राव साहब एन एस यादव ) महा
Kulbhushan Arora
धन्यवाद मन से शुद्ध आभार भाव है धन्यवाद🙏🙏🙏 धन्यवाद उद्गार है व्यक्त आभार है आभार करता कम मन का भार है। आभारी होते ही मन झुका होता है अन्तर्मन मंदिर के देव
Kulbhushan Arora
Happy Birthday ☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕ स्नेहाशीष देता तुम्हें मन, सुगन्धित रहे तुम्हारा जीवन, बांटती तुम खुशियां दिन भर, चाय के घूंट सबको पिला, इस चाय में होता तुम्हारा उत्साह, ये उत्साह बना रहे सदा, यही करते तुम्हारे लिए , सच्चे दिल से हम सब दुआ🙏🙏 जीवन गीत यूंही तुम गाती जाओ, मुश्किल पलों में भी मुस्कुराती रहो, मुश्किलों को हरा आगे बड़ती जाना, इस जन्म दिन का यही हो तराना शुभ हो खुशियों से भरा हो तुम्हारा जीवन सब मिल के मनाएं आज तुम्हारा जन्मदिन 🙌☕🙌☕🙌☕🦪☕🙌☕🙌☕ Dedicating a #testimonial to Rina Sahu Happy Birthday ☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕ स्नेहाशीष देता तुम्हें मन, सुगन्धित रहे तुम्हारा जीवन, बांटती तुम खुशियां द
Kulbhushan Arora
Happy Birthday 🎉🎂 Surabhi🎉🎂 *तुम्हारे ही शब्दों में *जो बीत गया उसे भूल जाते हैं* *जो सामने है उसका आनंद उठाते हैं* जीवन को साधारण कर के जीने का, ये साधारण सी बात लगे मगर ये बात साधारण ना हो जीने का,अति विशिष्ट मंत्र है जन्मदिन के अवसर पे इस सुगन्धित विचार पुष्प से सुगंधित रहना, तुम्हारे जीवन का उद्देश्य और लक्ष्य है ऐसे जीने के लिए वर्तमान को वर्तमान के पल में जी कर, जीवन जीने की सार्थकता होती है सफल, यही शुभकामना संदेश तुम्हें जन्म दिन का बीते तुम्हारा जीवन श्रेष्ठतम हो कर क्योंकि, सुगंध की मिठास *सुरभि* मिठास का विश्वास *सुरभि* Happiest Birthday 🎂🎂🎂 Surabhi Maheshwari Dedicating a #testimonial to Surabhi Maheshwari *तुम्हारे ही शब्दों में *जो बीत गया उसे भूल जाते हैं* *जो सामने है उसका आनंद उठाते हैं* जीवन